‘ स्नेह का बंधन’ – पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

कुछ …मेरे ही…करम रहे होंगे ….जाने किस ..करम की सजा दे ….रहा है भगवान मुझे, अपने आप…..तो चले गए ……ठाकुर साहब मुझे जाने……क्यों नहीं बुलाते …अपने पास? सांसों की तार कोई धागा …तो नहीं… जो मैं खींच कर तोड़ दूं। कहते कहते आंखों से अविरल अश्रु धारा चल पड़ी उनकी आंखों से।

बड़ी मुश्किल से धीरे-धीरे लड़खड़ाते शब्दों से।बोल पा रही थी कौशल्या जी। कमली जो गरम पानी से, उनके शरीर को स्पंज कर रही थी, उनके मुंह पर हाथ रखते हुए बोली ना अम्मा ऐसी बात मत कहो मैं तो हूं तुम्हारा सारा काम करने के लिए मुझे कोई भार नहीं लगता तुम्हारा काम, कमली समझती थी उनकी टूटी-फूटी भाषा। पिछले 2 महीने से बिस्तर पर ही है कौशल्या जी पैरालिसिस का अटैक आया था इसी वजह से थोड़ी सी जबान लड़खडाने लगी है और शरीर का एक हिस्सा बहुत कम काम कर रहा है। 

चार-चार बेटे और बहूओ के होते हुए भी स्वर्गीय ठाकुर विद्यासागर की पत्नी ठकुराइन कौशल्या जी आज अपनी हवेली के छोटे से कमरे में अकेली बिस्तर पर निरीह अवस्था में अकेली पड़ी थी। विद्यासागर जी की मृत्यु को 2 साल हो चुके है । विद्यासागर जी ने अपनी सारी जायदाद का अपने जीते जी ही बटवारा कर दिया था । मगर पिता के मरते ही बच्चों ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए थे। सब अपनी मर्जी के मालिक हो गए थे। कौशल्या जी ने भी यह सोचकर कुछ भी कहना सुनना बंद कर दिया था कि अपनी अपनी गृहस्ती है मुझे क्या मतलब?यू खाने पहनने की तो कोई कमी नहीं थी कौशल्या जी को मगर अकेलापन बुरी सालता 

था उनको। चारों बेटों ने तीन-तीन महीना के हिसाब से अपने हिस्से में मां की जिम्मेदारी ले रखी थी। उनकी सारी दुनिया जैसे एक ही कमरे में सिमट गई थी अपने पति के न रहने से। बस एक कमली ही थी जो उनके साथ उनके हर सुख दुख की बात साझा किया करती थी। कमली उनकी हवेली के माली रघु की पत्नी थी।

 रघु की शादी के बाद कमली उनके घर  सफाई और बर्तन साफ करने का काम किया करती थी। कमली ने अपने व्यवहार से कौशल्या जी का मन मोह लिया था

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 साल में कितनी बार उसे अलग से पैसे और उसके बच्चों के लिए कुछ ना कुछ जरूर देती रहती थी कौशल्या जी उसे, कमली उन्हें अम्मा कहकर बुलाती थी। थ उनके चारों बच्चों की शादी भी कमली के सामने ही हुई थी। तब से आज तक कमली उनके घर में काम करती है। हर अच्छा बुरा समय देखा है उसने उनका। कहने को तो कोई रिश्ता नहीं दोनों के बीच लेकिन फिर भी एक स्नेह का बंधन था। 2 महीने से कौशल्या जी की तबीयत बहुत खराब थी इसी वजह से बिना किसी स्वार्थ के वह उनके नहलाने धुलाने का काम कर दिया करती थी।

यूं तो उनके बेटों ने उनके लिए एक नर्स का इंतजाम कर दिया था। लेकिन नर्स भी पैसे लेती जरूर थी मगर उनका ध्यान नहीं रखती थी क्योंकि कमरे में कोई उनके देखभाल करने के लिए दूसरा होता ही नहीं था? कमली ने कितनी बार अलग-अलग चारों बहू से बोला था। अम्मा को तुम्हारे साथ की भी जरूरत है बहूरानी थोड़ी-थोड़ी देर एक-एक करके बैठ जाया करो थोड़ी देर अम्मा के पास। बड़ी बहू ने तो उसे लताड़ ही दिया था इतना ज्यादा लाड आ रहा है तो क्यों नहीं अपना बोरिया बिस्तर समेट लाती है मां के पास आई

बड़ी अम्मा वाली खाने पहनने में क्या कमी छोड़ रखी है समय पर खाना नाश्ता तो मिल ही रहा है इससे ज्यादा हमारे बस का नहीं है किसी की गंदगी साफ करना? तू नौकरानी है तो नौकरानी बनकर ही रहे तो अच्छा है  लगा तो रखी है नर्स पैसा पानी की तरह बाह रहे हैं और क्या चाहिए? कमली की आंखों में आंसू आ गए थे भगवान से यही दुआ करती थी हे भगवान अम्मा की दुर्गति मत करना। अम्मा की बूढी आंखों में भी कमली को देखकर चमक आ जाती थी। उनकी आंखें पढ़कर ही कमली समझ जाती थी

अम्मा कितनी दुआएं दे रही है उसे। जितना हो सकता था वह अपने तन से उनकी सेवा करती थी लेकिन उसे दूसरे घरों का भी काम करना होता था। लेकिन अब धीरे-धीरे अम्मा का स्वास्थ्य और ज्यादा गिरने लगा था। आज जब कमली सुबह काम पर आई तो उसने देखा नर्स कुर्सी पर बैठी हुई किताब पढ़ रही है और कमरे में बहुत बदबू आ रही है। उसने कहा भी अम्मा का डायपर बदल दो लेकिन नर्स ने उसे नजरअंदाज कर दिया। तब कमली उससे चीख कर बोली थी पैसे किस बात के लिए लेे रही हो तुम्हें समझ नहीं आता

अमां के कपड़े खराब हो रहे हैं बदल क्यों नहीं देती? बहस बहुत ज्यादा बढ़ गई तो बड़ी बहू दौड़ कर आई उसने नर्स की शिकायत कर दी इसीलिए वो गुस्से में काम छोड़ कर चली गई बड़ी बहू कमली पर भड़क गई आवाज सुनकर तीनों बहुए भी चली आई और कमली पर गुस्सा होने लगी लेकिन किसी ने भी अम्मा पर ध्यान नहीं दिया और कमली ने हीं उनका डायपर बदल दिया और गर्म पानी से उनका सारा शरीर स्पंज करने लगी तब से कमली ने और जगह का काम छोड़ दिया है और अम्मा के पास ही पूरा दिन रहती है

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उनके बेटे नर्स के हिस्से के पैसे भी उसे देते हैं लेकिन वह मना कर देेेतीी, है, फिर भी जबरदस्ती उनके बेटे यह कहकर पैसे दे देते हैं कि तुमने और जगह का काम भी तो हमारे लिए छोड़ा है उसी की पगार समझ लो कमली की सेवा से थोड़ी-थोड़ी ठीक होने लगी

थी कौशल्या जी कमलीनेअमां का,स्पंज करने के बाद भी अपने हाथों से खिचड़ी बनाकर खिलाई दो चार चम्मच खिलाने के बाद अम्मा को सुलाकर वो अपने घर चली गई थोड़ी दूर पर ही घर होने के कारण वह अपने घर के भी कितने चक्कर लगा आती है शाम को वापस आने पर उसने अम्मा के लिए थोड़ा सा मीठा दलिया बनाकर अपने हाथों से खिलाया

लेकिन कौशल्या जी से दो चम्मच से ज्यादा नहीं खाया गया आंखों में हाथ पकड़ लिया कमली का और आंखों में, आंसू आ गए अपनी टूटी-फूटी भाषा में कहने लगी मुझे क्या पता था। तेरा मेरा रिश्ता इतना गहरा बन जाएगा जो मेरी आखिरी सांसों तक मेरे साथ रहेगा। चार-चार बेटे और बहू होने के बाद भी तू मेरे साथ रहेगी

 अगली बार तुम मेरे पेट से पैदा होना बिटिया। जाने कैसे कहते-कहते ही कमली की गोद में उनके प्राण निकल गए शायद भगवान ने उनकी सुन ली थी?

 उन्हें नहीं बनना था बोझ किसी के ऊपर। चली गई दुनिया से। अम्मा अम्मा कहकर चीख पड़ी कमली उसके रोने की आवाज सुनकर चारों बेटे बहु पास आ गए। और अम्मा अम्मा कर रोने चिगाड़ने लगे। कितनी दोगली होती है यह दुनिया बुढ़ापे में वही मां-बाप जिनके बिना बचपन में हमारी दुनिया ही नहीं थी।

हमें बोझ लगने लगते हैं। पूरे शहर को न्योता दिया गया था अम्मा के अंतिम भोज के लिए। लोगों से बहुत वाहवाही बटोरी बहू बेटों ने। सब कुछ अम्मा की पसंद का बनवाया था वह सब कुछ इसके लिए अम्मा तरसती चली गई। कमली ने अब ठकुराइन के घर का काम छोड़ दिया है यह कहकर की अम्मा के बिना घर-घर नहीं लगता।

उन्हीं की वजह से मैं इस घर में आई थी और उन्हीं की वजह से अब तक इस घर में रही हूं। जाते-जाते अम्मा की सेवा के लिए उनके बेटों ने उसे बहुत सारा धन देना चाहा लेकिन उसने यह कहकर उन्हेही दे दिया की सेवा का कोई मोल नहीं होता भैया जी। अम्मा के और मेरे बीच भले ही कोई खून का रिश्ता नहीं था

लेकिन एक स्नेह का बंधन था जिसकी डोरी से हम दोनों बंधे थे। रख लीजिए आप अपना पैसा अपने पास आपके बच्चे उसे दे देंगे जो आप लोगों की बुढ़ापे में सेवा करेगा।् यह समय भी सभी पर आना है मत भूलो। देख लिए बड़े घर के बड़े लोग मैंने। कहकर कमली बिना पीछे मुड़े उस घर से निकल गई। जहां उसका कितना जीवन बीता था ठकुराइन के बच्चों को कोई बोल ही नहीं सूझ रहा था चुपचाप उसे जाती देखते रहे जब तक वह आंखों से दूर ना हो गई।

जाते-जाते उन्हें आईना भी दिखा गई थी कमली

पूजा शर्मा स्वरचित

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