घर के मुख्य दरवाजे पर गाड़ी की आवाज सुनकर साक्षी की छोटी भतीजी रतन ने भागकर मैन गेट खोला तो खुशी से झूम उठी ” लाडू आई … लाडू आई ।” उसने उसे अपनी बुआ से लेकर अपने सीने से लगा लिया । दो वर्ष की बच्ची भी रतन से स्नेह पूर्वक लिपट गयी । दस वर्षीय रतन ने बुआ जी के चरणस्पर्श किये और बच्ची को लेकर अन्दर भागी । वह सबको सरप्राइज देने के इरादे से घर में जाकर खुशी से उछलते हुए बोली ” माँ जी! दा जी !! मम्मी !!! देखो लाडू आ गयी !”
उस दिन भाईदूज थी । इस दिन बहने अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनकी पूजा करती है । मोहित जीजी के इंतजार में कब से राह निहार रहा था । उसने अपनी बड़ी बहन के पांवधोक लगाया तो साक्षी की स्नेह से आंखें भर आई । वह मोहित के सिर पर हाथ रखते हुए बोली ” कैसा है रे मोहित तूं! ” “ठीक हूँ जीजी!” साक्षी की माँ व भाभी उससे मिलकर बहुत प्रसन्न हुई ।
“लाडू! अपनी गौरी गाय बछड़ी लाई है, आ मैं तुझे दिखाती हूँ ! देखो भोली भोली कितनी सुन्दर है ? मस्तक पर सफेद तिलक कबरी, झबरी अनमोल है हमारी बच्छिया !”
लाडू बच्छिया की गर्दन अपने दोनों नन्हें हाथों से पकड़ कर उसे प्यार करने लगी । बड़ी मुश्किल से उसे वहाँ से रतन घर की बगिया में ले गयी, गुलाब के खिले हुए बड़े बड़े फूलों से उसकी झोली भरवाई और घर में माँ जी के पास लाई । गुलाब के फूलों की सुगंध से घर महक उठा ।
साक्षी ने मोहित के तिलक निकाल कर मोली धागा बांधा व हजारों आशीषें देकर लम्बी उम्र की कामनाएं की । मोहित ने कहा ” दीदी आजकल तुम कुछ कमजोर दिखाई दे रही हो, कोई परेशानी तो नहीं? ” साक्षी झट से बोली “नहीं रे! सब बढिया है, तूं पूरी फैमिली की बहुत चिंता करता है । अपना ध्यान रखा कर ।” बहन भाई के स्नेह के बंधन को देखकर भाभी की भी आंखें भर आई । वह बोली “जीजी किसी का सिर भी दर्द करने लग जाये तो चिंता में इन्हें सारी रात नींद तक नहीं आती, तुम्हीं समझाओ इन्हें ।
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साक्षी बोली ” स्नेह के बंधन में बंध जाने पर संवेदनाएँ एक दूसरे का सुख दुःख अपने आप भांप लेती है, तब ऐसा ही होता है । अब देखो मैं इतने दिन बाद ससुराल से आई हूँ , फिर भी वहाँ से रवाना होते समय मेरे सासू जी ने कहा “कब आओगी बहू ।” और वो रोने लग गयीं । भाभी ने कहा “आप भला, तो जग भला । जीजी आपमें हमारे परिवार के संस्कार और मर्यादाएँ हैं । इन्हीं गुणों के कारण आपकी सासू आपसे इतना स्नेह रखती है ।”
माँ जी ने कहा ” साक्षी पूर्वजों की पुण्याई है, तेरे जैसी ही मुझे मेरी बहू मिल गई, सच में इसने मेरी उम्र ही दुगुनी करदी है । ऐसा ही मोहित है खुद कष्ट उठा लेगा परन्तु परिवार को तनिक भी कोई कमी खले यह उससे नहीं देखा जाता ।”
साक्षी ने मोहित में राम जैसे गुण होने की बात बताते हुए कहा अयोध्या से भगवान राम ने जब वन में प्रवेश किया तो उनकी वार्तालाप वनवासियों से हुई थी । माँ, वह प्रसंग इस प्रकार —
वनवासी- हे, दिव्य पुरुष! हम
आपकी क्या सेवा कर
सकते हैं?
राम- यदि तुम मेरे लिए कुछ
करना ही चाहते हो तो
उस मार्ग से कांटे हटा
दो जिस मार्ग से मैं यहाँ
तक आया हूँ ।
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वनवासी- स्वामी! अब तो आप
यहाँ आ ही गये हैं फिर
कांटे हटाने न हटाने
से क्या फर्क पड़ता है?
राम- मैंने तो पीड़ा सहन कर
ली, पर मुझे पता है
जब मेरा भाई भरत
मुझे ढूंढता हुआ मेरे
पीछे आयेगा तो उसके
पैरों में कांटे न चुभें,
नहीं तो वो यह बात
सहन नहीं कर पायेगा
कि उसके भैया के
पैरों में कितने
कांटे चुभे होंगे!
यही बात मोहित में है, उसके हृदय में स्नेह की धारा प्रवाहित होती रहती है । सबकी खुशी में ही वह खुश रहता है, परिवार में जब किसी को जरा सी भी तकलीफ होती है तो उसका मन व्यथित हो जाता है ।
माँ ने देखा कमरे के रोशनदान में रतन लाडू को कबूतरी के बच्चे दिखा रही है । पलंग पर टेबल और टेबल पर कुर्सी, उस पर रतन और उसके कंधे पर लाडू! कबूतरी के बच्चों की लाल और मुलायम चोंच, हरे हरे कच्चे पंख, पीले पीले पांवों के पंजे । पेट तो पतली पोलीथीन में जैसे पानी भरा हो । गर्दन पर फूलों के पुंकेसर जैसे नीले रोएं ! उन पर हाथ फेरने की फिराक में थी लाडू । माँ ये दृश्य देखकर डर गयी । अगर डांट लगा दी तो दोनों बहनें अभी धड़ाम हो जायेगी । वह कुछ नहीं बोली । तभी कबूतरी उड़ती हुई रोशनदान तक आती फिर लाडू को उतरते हुए देख उड़ कर दूर बैठ कर गुटरगुं गुटरगुं करने लग जाती ।
रतन ने मां को देख लिया । झट से लाडू को उतारा और माँ से बोली ” कबूतरी ऐसे क्यों कर रही है माँ जी ?
माँ ने कहा ” ये तो स्नेह का बंधन है बेटा ! भगवान सबको सुखी रखें ।”
लेखक : नेमिचन्द गहलोत