सिसक (कुसूर किसका) – रीमा ठाकुर

ये ऐसी दो युवतियो की कहानी है ।जो  मिलन के साथ “शुरु और बिछोह के साथ “अन्त तक की प्रेम कहानी है, मूझे नही पता इस में  अच्छाई या बुराई क्या है !अपितु मेरा मानना ये आज की पीढी की ज्वलन्त समस्या हैं , मैने बस आपलोगो की  कसौटी पर खरी उतर जाए ,इस बात  की पूरी कोशिश की है !

मुझे ऐसे लोग बिल्कुल पसन्द नही जो शादी किसी  और से ,और प्यार किसी  और से, करे ,पखुडी अपनी  जेठनी, से बोली ,जेठानी सरिता जबाब में सिर्फ मुस्कुरा दी ,दोनो जल्दी  जल्दी  काम निपटाने में लग गयी ,बच्चे स्कूल से आने वाले थे , पखुंडी कुछ मैडिकल प्राब्लम की  वजह से अब तक माँ न बन सकी ,थी” उसका पति राकेश उसे बहुत चाहता था  ,मजाल की  उसने कुछ चाहा हो और उसे मिला न हो, उसके दूर के रिश्ते की मौसेरी बहेन थी जो उससे तीन चार साल छोटी  थी। उस की शादी उसके ही रिश्ते मे हुई थी।

यही से शुरू हुआ गलतफहमियो का सफर,  पलक उसकी मौसेरी  बहन जो की  अपने पति समीर को हमेशा  पखुडी के प्रति भडकाती रहती थी! वजह पखुंडी और समीर मे अपनापन ज्यादा  होना .हालकि की पलक ओर समीर ने  सबके खिलाफ जाके शादी की थी! पर अपने पति के मुंह से पखुडी की तारीफ़ पलक को ,जरा भी न भाती पलक ,पखुडी को नीचा गिराने की हमेशा कोशिश में लगी रहती, समय के साथ बडे मान मनौवल के बाद पखुडी ने एक बेटे को जन्म दिया !बेटे के जन्म के बाद उसके मान सम्मान मे चार चांद लग गये!

पखुडी खूबसूरती से लेकर हर कार्य मै दक्ष ,परिवार मे सबकी लाडली चहेती बहू थी! उसका परिवार के प्रति समर्पण, उसे सबसे अलग करता था! समय बदला पर उसमें लेशमात्र बदलाव न आया.   इन्ही दस बाराह सालो में,समीर का आना जाना ज्यादा हो गया !समीर और राकेश की दोस्ती , फिर  रिश्ता  ‘समीर मे राकेश की  जान बसती थी! 

वो दोनों पास होते तो सब को भूल जाते,, समीर हॅसमुख और दिलेर था!

  वो पंखुडी को हमेशा छेडता रहता ,,कुछ समय से पंखुडी नोटिस कर रही थी की , समीर उसके ज्यादा करीब आ रहा है !पर वो उससे छोटा है !अपनी  ही सोच पर हँसी  आती, इधर समीर के मन में पंखुडी के लिए इज्जत बढती जा रही थी !वो  जितना पंखुडी के नजदीक आता, उतना ही लगाव बढता जाता ,कई सालो की कोशिश के बाद भी पलक के मन में शक का बीज पलता रहा ,इसका नतीजा ये हुआ उसने जितना समीर को दूर करना चाहा ,वो पंखुडी के और पास आता गया ! 


इन सब बातों से अनभिज्ञ पंखुडी अपनी  मस्ती में जीती रही  ,,,

उसका बेटा उसका पति बस वो उसी दुनिया में खोई रही, समय के साथ  उसकी तकदीर में विधाता ने कुछ और लिख रखा था! एक दिन अचानक समीर ने  उससे बोला, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो , 

वो निरुतर हो गई ,पर अब वो  समीर से नजरे चुराने लगी, उसके घर आने पर उसकी पूरी कोशिश रहती की,,समीर, उसके सामने न पडे समीर की हँसी मजाक की , आदत से सब परिचित थे !वो राकेश के सामने ही पंखुडी को  छेड देता! राकेश भी उसका साथ देता !कभी कभी पंखुडी चिढ जाती, तो वो माफी मांग लेता ,जाते जाते बोल कर जाता समीर हूँ ,हवा का झोका, सर्दी तो देकर जाऊगा! कभी तो वो पंखुडी का सेलफोन लेकर राकेश और पंखुडी की  पर्सनल बाते पढता ,फिर सबके सामने बच्चों जैसा सबको पढकर सुनाता ,…

न चाहते हुए भी अपनी मसूमियत की  वजह से दोनो की  दिल में बस चुका था! समीर का बचपना दोनों के लिए कुछ लोगों के  मन में शक का बीज बोने लगा, आज राकेश ने  छुट्टी ली थी!  राकेश पंखुडी बाते कर रहे थे!  राकेश कुछ रोमाटिक मूड मे थे। तभी समीर रुम में  आ गया। क्या चल रहा है लव वर्डस. हमको भी  शमिल कर लो, पंखुडी झेप गई,  और  वो नहाने बाथरुम मे घुस गई , कुछ देर बाद बाहर निकली तो राकेश किसी काम से बाहर चला गया था!  अब आप भी बाहर तशरीफ लेगे ,,,,,,,     

नही,, जाऊगा समीर ने  ढीटता दिखाई,  और सेलफोन से फोटो लेने लगा !इतना मजाक अच्छा नही ,,पंखुडी सेलफोन छीनती हुई बोली, तभी उसका पैर पैर दान में फस गया !और वो समीर के ऊपर गिर पडी, समीर एक झटके से उठा और साँरी बोलते हुऐ बाहर निकल गया! परिवार के किसी सदस्य ने शायद ये घटना देख ली थी!

किसी ने नमक मिर्च लगाकर ये , बात पलक तक पहुंचा दी,, थी ! राकेश ने पंखुडी से कई बार पूछा कि  उसने समीर को कुछ बोला क्या, पंखुडी खुद भी न समझ पायी की इसमें बुरा मानने जैसा क्या था!  ये तो किसी के साथ हो सकता है!  समीर के  जाने से कही न कही आजादी महसूस कर रही थी ! एक दिन अचानक राकेश की तबियत खराब हो गई, हास्पिटल मे देर हो गई,  रात ज्यादा होने के कारण समीर की जिद से दोनो उसके घर रुक गये! समीर के घर से हास्पिटल बहुत पास था! वो लोग घर पहुचे पलक खाना बना रही थी!

पर उसने जरा भी  अभास ना होने दिया समीर और उसके बीच क्या चल रहा है ।खाना खाने के बाद समीर काफी देर तक राकेश से हँसी मजाक करता रहा, वही मासूमियत, वही भोलापन, अब भी उसके चेहरे पर था  । सुबह पंखुडी जल्दी उठ गई  ,उसे घर आना था! बेटे को जेठानी सरिता के पास छोडकर गई थी!  वो सिढिया उतर किचन में जा रही थी! राकेश उठ गये थे! उनके लिए पानी गरम करना था !तभी समीर  आ गया , पंखुडी मुझे आपसे बात करनी है!  समीर कि बात सुनकर वो वही रुक गई,  पास ही मे ही गेस्टरुम था

!वो वही बैठ गया ! पंखुडी ने  जैसे गेस्टरुम मे कदम रखा ,,वैसे ही पलक का सिढियो से उतरना हुआ ,,,तभी समीर ने पंखुडी को खीच लिया ,, दरवाजा अन्दर से पकडकर खडा हो गया!पलक के वहाँ से जाने की प्रतिक्षा करने लगा ,पंखुडी ने समीर को हटाने की कोशिश की, पर हटा न पायी।,पंखुडी कुछ देर रुक जाओ प्लीज बाहर काफी लोग हैं!  सब नौकर भी आ चुके है,  और पलक तुमको लेकर मुझ पर शक करती है!  पंखुडी के कदम वही चिपक गये! तुम कुछ देर रुक जाओ मै सब सम्भाल लूगा ,सामने से हटो पंखुडी

गुस्से और तैश में बोली ,,पर समीर को न हटा पायी ,उसके दिमाग मे राकेश का ख्याल आया ,,उसने तुरन्त काँल की, पर राकेश ने  रिसीव नही किया! हे प्रभु कहा फसा दिया, तब तक पलक ने पूरा घर इकट्ठा कर लिया ,,,,अब वो कोई मौका नही छोडना चाहती थी जलील करने का ,

अब गेस्टरुम मे पंखुडी को घुटन होने लगी,  समीर अब आगे से हट जाऔ नही तो बात बहुत बढ जायेगी  ,,,,,,,,      


मै तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा! आगे पंखुडी ने कुछ न सुना पूरी ताकत से उसने समीर को परे कर दिया ! और एक झटके से दरवाजा खोल दिया,, बाहर सभी की आँखो मे सवाल था । जिसका जबाब किसी के पास न था। अब तक राकेश भी वहा आ चुका था। पलक चीखती हुई बोली,,  तुम अन्दर क्या कर रहे थे !इसके साथ  पलक तुम जैसा सोच रही हो ऐसा कुछ नहीं है! पंखुडी और हम दोस्त है बस”””””””,           

 मुझे सब पता है तुम्हारी दोस्ती,  पलक समीर की कोई बात सुनने को तैयार न थी ! पंखुडी ने भी पलक को समझाने की कोशिश की ,पलक उल्टा उसी को दोष देने लगी ,वो कुछ भी सुनने को तैयार न थी!  पलक की बातो पर घर के किसी सदस्य को  यकीन न हुआ,, तो उसने अपनी बात मनवाने के लिए एक नया हथकन्डा अपनाया ,,,उसने पायजन खाने की कोशिश की,, समीर डर गया! उसके छोटे बच्चे माँ पापा समाज में इज्जत ,शोहरत ,फिर पलक उसकी पत्नी उस समय उसने पत्नी का साथ देने मे ही अपनी  भलाई समझी,,        

राकेश खुद को ठगा सा महसूस कर रहा था !पखुडी अपने अँसुओ को दबाये रूम में  आ गई  ,पीछे से राकेश भी आ गया! उसने पंखुडी को गले लगा लिया ! उसने  पंखुडी  की ठुढी उठाई वो झरझर रोये जा रही थी ,!क्या आपको  मुझ पर भरोसा है !       

हाँ खुद से भी ज्यादा राकेश बोला  ,,,,

समीर ने जैसे तैसे करके पलक को समझा लिया, पर पखुडी के साथ जो हुआ था वो  उसे कही न कही वो खुद को गुनाहगार समझ रहा था! राकेश के मन में अंतद्धन्द्ध चल रहा था!! उसको कुछ न समझ आ रहा था!  उसे जितना भारोसा पंखुडी पर था,, उतना ही समीर पर था,,, पर सब हुआ कैसे,, वो कभी पलक को समझाता ,तो कभी पंखुडी को,  हालकि समीर उसके साथ ही रहता,,,  जब कुछ दिनो मे सबकुछ समान्य हो गया तो, पंखुडी ने पलक को समझाया, पलक ने भी गलत फहमी की माफी मांग ली,, फिर लगा कि सब ठीक हो गया! सब ने एक दूसरे सम्मान रखते हुए तय किया की,, ये एक गलत फ़हमी है !घर की बात घर में रहेगी, तब जाके पंखुडी को तसल्ली  मिली,,, सब कुछ ठीक चल रहा था  !तभी कुछ दिन बाद राकेश और जेठानी सरिता की कुछ कहा सुनी हो गई,,,,,,,,,, 

सरिता ने वो रूप दिखाया की पंखुडी पूरी तरह बिखर गई  ,,,,सरिता ने राकेश को खूब जली कटी सुनाई ,,,,,,,, समीर और पंखुडी के रिश्ते को लेकर बहुत कुछ बोल डाला ,इतने सालो से बहनो वाला प्यार ध्वस्त हो गया !पखुडी का विश्वास टूट गया= पलक ने इतना गहरा षडयंत्र रचा, भरोसा दिलाकर भरोसा तोड दिया !जिस दिन पलक ने ईल्जाम लगाया ,उस दिन उसे इतनी  चोट नहीं पहुँची थी।

जितनी आज  विश्वास घात से, इस घटना से घर के  दो टुकड़े हो गये! सब के अपने अपने  स्वार्थ थे  !पर वो तो निस्स्वार्थ थी! पंखुडी समीर से दूर हो चुकी थी! इस बीच उसने बहुत कुछ सहा, अपमान तिरस्कार,, पर राकेश हर पल उसके साथ खडा था! उसने कभी उससे कोई सवाल न किया !उसके बेटे ने  भी उसका बहुत ख्याल रखा, सरिता और पलक के  अलावा सब ने उसका मान रखा, पंखुडी को बस समीर से इतनी शिकायत थी!                                

“की उसने उसे हर बात से अनभिज्ञ क्यूँ रखा, अगर पलक उसपर शक करती थी, तो ‘उसके पास क्यू आया,,,,,,,, उसके मन में अगर कोई फिलिँग थी!  तो उसको क्यू नहीं बताया ,वो कुछ रास्ता निकालती, अगर कुछ नहीं था तो,   ये स्थिति क्यू बनी ,हजारों सवाल थे  ,उसके मन में, पर जबाव किससे पूछे ,बाहर सब समान्य हो रहा था ।।

        पर अंदर  कुछ टूट रहा था।  न समीर को कुछ हसिल हुआ ,न पलक की  आँखो की नमी कम हुई,, न पंखुडी फिर से जुड सकी थी,,, पर सबसे ज्यादा टूटा था, राकेश जो किसी को कुछ न बोल पा रहा था ! इन सम्बंधो के टूटने से कई लोगों को फायदा हुआ था, जो अब फायदा उठा भी रहे थे, अब सब खामोश है ,शायद फिर किसी तूफान का इन्तजार है !पंखुडी अब सहम चुकी थी, वो रातो मे उठकर रोने लग जाती,, उसकी सिसक से पूरा कमरा गूंज उठता अखिर कुसूर किसका था!

समाप्त “

रीमा ठाकुर

ये कहानी महज गलतफहमी का रूपातंरण है,इस कहानी का किसी घटना से कोई लेना देना नही है।ये,महज इत्तफाक है।यदि किसी घटना से मिलती है तो हम क्षमाप्रार्थी है”

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