संध्या एक सांवली सलोनी तीन भाइयों कैलाश,विशाल और नरेश और माता कमला पिता द्वारका प्रसाद की लाडली बेटी थी। ग्रेजुएट हुई तो माता पिता चाहते थे कि अब उसका विवाह हो जाए ताकि वो अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाए और भाभियों के आने से पहले संध्या अपने घर की हों जाए।लड़के देखने का सिलसिला चल रहा था।
तभी रघुनाथ जी के घर से दो रिश्ते आए एक संध्या के लिए और एक उनके बड़े बेटे कैलाश के लिए संध्या के लिए रघुनाथ जी के बेटे रमेश और कैलाश के लिए उनकी बेटी मेघा का रिश्ता आया रमेश एक कंपनी में अकाउंटेंट था।मेघा बीए पास थी। गृह कार्य में दक्ष थी तो बिना किसी रुकावट के सभी की सहमति से विवाह सम्पन्न हुआ ।
मेघा एक गुणी लड़की थी जिसे घर जोड़ने की कला आती थी।संध्या भी गुणी थी भरेपूरे परिवार से आई थी जल्द ही घर में रचबस गई। दोनो घरों में सुख शांति थी।पर नियति को कुछ और ही मंजूर था एक दिन घर आते हुए रोड एक्सीडेंट में रमेश की मृत्यु हो गई।संध्या पर तो दुख का पहाड़ टूट पड़ा। सब का रो रोकर बुरा हाल था।संध्या 15 दिन बेहोश रही।
15 दिन बाद होश आया तो उसकी दुनिया उजड़ चुकी थी। द्वारका प्रसाद जी ने और उनकी पत्नी कमला ने कहा बेटा चलो अब अपने घर चलो अब यहां कुछ नहीं रहा।सलोनी बोली मां अब यदि मेरा घर है रमेश के जाने के बाद मां पिताजी भी तो अकेले हो गए हैं उन्हें मेरी जरूरत है मै उन्हें छोड़ कर कही नहीं जाऊंगी। सब इस फैसले से सहमत नहीं थे।
रघुनाथ जी बोले अभी आप सलोनी बेटी को यही छोड़ दीजिए थोड़े दिन गुजर जाने दीजिए वो संभल जाए फिर हम उसे छोड़ जाएंगे।
दिन बीते बार बार द्वारका प्रसाद जी के घर से बुलावा आता और सलोनी मना कर देती। फिर सबने सलोनी के फैसले को ही अपना मान लिया और सलोनी अपने सास ससुर के साथ ही रहने लगी।वो उसे बेटी सा प्यार देते सलोनी ने घर के पास ही एक स्कूल था वहां पढ़ाना शुरू कर दिया। कुछ दिन बाद विशाल और नरेश का विवाह पक्का हो गया।
मेघा सलोनी को पहले ही ले जाने आई और बोली सलोनी अभी मना मत करना भाइयों की शादी है। रघुनाथ और उनकी पत्नी शीला ने भी कहा हा बेटा तुम चली जाओ।सलोनी बोली आप लोग अकेले कैसे रहेंगे।वो बोले अरे 2 चार रोज की तो बात है फिर तो हम सब साथ ही होंगे।हम भी एक दिन पहले आ जाएंगे फिर तुम्हे लिवा लायेंगे।सलोनी अपने मायके आ गई सब तैयारियां चल रहीं थी।
सलोनी की ताई उसे तैयारियों से दूर ही रखती पर मेघा और कमला सलोनी को सब करने के लिए कहती।भाइयों का तिलक था सलोनी बहुत सुंदर लग रही थी हल्के गुलाबी रंग का लहंगा उसके सावले रूप पर जच रहा था। एन मौके पर जब सब निकलने लगे तो ताई जी ने शोर मचाना शुरु कर दिया कैसे लोग हो तुम धर्म करम कुछ है कि नहीं विधवा को आगे आगे कर रखा है कुछ अपशगुन हो गया तो।
नरेश बोला ताई जी जो बहन बचपन से हमारे मंगल की कामना करती आ रही हैं उससे हमारे लिए कोई अपशकुन नहीं होगा आप चले।सलोनी अंदर आ गई और रोने लगी तभी रघुनाथ जी आए और बोले यदि हमारी बेटी का तिरस्कार करना था तो उसे क्यों लाए।कैलाश बोला नहीं अंकल जी सलोनी हमारे साथ जाएगी कोई उसका अपमान नहीं करेगा सलोनी मना करती रही पर भाइयों के दबाव में उसे जाना पड़ा
पर वो वहां एक तरफ बैठ गई।सब रस्में हो रही थीं उसे अपने दिन याद आ रहे थे।तभी उसके पास एक लड़का आ कर बैठा और उसे टिश्यू दे कर बोला रो नहीं मेकअप खराब हो जाएगा।सलोनी ने उसे देखा तो वो बोला तुम तो इतनी सुंदर सलोनी हो कि तुम्हे तो मेकअप की जरूरत ही नहीं।सलोनी वहां से चली गई।ये सलोनी के भाई विशाल का दोस्त विनय था जो एक बिजनेस मेन अमीरचंद का इकलौता बेटा था।
उसके माता पिता उसके लिए लड़की तलाश कर रहे थे।उसे सलोनी बहुत पसंद आई उसने विशाल से एकांत में पूछा ये लड़की कौन है? विशाल बोला कौन उसने सलोनी की तरफ इशारा किया।विशाल बोला ये मेरी बहन सलोनी है इसका एक वर्ष पहले विवाह हुआ था पर रोड एक्सीडेंट में ४ महीने में ही इसके पति का देहांत हो गया।
अब ये अपने सास ससुर के साथ ही रहती हैं वो इसे बेटी मानते हैं।विवाह का दिन आया हल्की पीली साड़ी में सलोनी बहुत सुंदर लग रही थी पर ताई जी के डर के कारण वो किसी भी रस्म में शामिल नहीं हुई।शीला और कमला दोनो का दिल फट रहा था पर घर के बड़ों के आगे उनकी एक ना चली।शादी में सलोनी एक तरफ बैठी थी उसकी सहेली आरती भी आई थीं तो वो उससे बातचीत कर रही थीं
तभी विनय वहां आया और बोला अरे आपने मेंहदी नहीं लगाई।सलोनी उसको देखने लगी और उसकी आंखों में आसू आ गए वो वहां से चली गई।आरती बोली तुम कौन हो तुम्हे बात कैसे करते है ये भी नहीं पता।शादी हो गई और दो चार दिन बाद सलोनी घर आ गई।पर जब से शादी से आए थे तब से रघुनाथ जी के मन में एक बात आ गई थी अभी सलोनी सिर्फ २४ साल की थी उसे ऐसे ही तो नहीं बिठा सकते थे
वो उसके पुनर्विवाह का विचार कर रहे थे इसी सिलसिले में वो सलोनी के पिता द्वारका प्रसाद से मिलने जाना चाहते थे।ये होता इससे पहले ही विनय ने विशाल से बात की बोला मै तेरी बहन से शादी करना चाहता हूं।विशाल बोला पागल है तुझे सब पता है फिर भी और तेरे घर वाले ।विनय बोला तू चिंता मत कर मै उन्हें मना लूंगा।
विशाल ने ये बात घर में बताई।सब खुश थे कमला जी बोली पर पहले हमे रघुनाथ भाईसाहब और शीला भाभी से बात करनी चाहिए।सब लोग एक शाम सलोनी के ससुराल पहुंचे सब को अचानक देख सलोनी घबरा गई।रघुनाथ जी बोले भाई आज तो सब यही खाना खाएगे ।मेघा,सलोनी और दोनों देवरनिया शिप्रा और गीता खाना बनाने लगी।
सलोनी ने पूछा भाभी आज आप सब अचानक कैसे ।मेघा बोली अरे कुछ नहीं तुमसे मिलने को दिल चाह रहा था।गीता बोली आप तो आती नहीं इसलिए हम चले आए।उधर द्वारिकाप्रसाद ने रघुनाथ जी से विषय छेड़ा। रघुनाथ बोले आपने मेरे मुंह की बात छीन ली।मै विशाल और नरेश के विवाह के उपरांत से यही सोच रहा हूं।
लड़का देखा है आपने फिर विशाल ने विनय के बारे में बताया।विशाल बोला विनय खुद से आगे बढ़ कर रिश्ता मांग रहा है। रघुनाथ जी बोले यदि आपको बुरा ना लगे तो आप और मै पहले जाकर घर बार और लड़के के माता पिता से मिल लेते हैं उन्हें कोई एतराज नहीं होना चाहिए।द्वारका प्रसाद बोले ठीक है।विशाल ने विनय को फोन किया कि कल हम तुम्हारे घर आ रहे हैं।
अगले दिन विशाल ,कैलाश , द्वारका प्रसाद और रघुनाथ उनके घर पहुंचे।अमीरचंद और उनकी पत्नी दमयंती जी घर पर थे।द्वारका प्रसाद ने कहा आपको पता है ना ये हमारी पुत्री का दूसरा विवाह है ४ महीने के विवाह में इसके पति का रोड एक्सीडेंट में देहांत हो गया था।अमीरचंद बोले हमे पता है विनय ने हमे बताया था।विनय का भी एक तरीके से ये दूसरा ही विवाह होगा विशाल बोला वो कैसे ?
आमिर चंद बोले हमने अपने दोस्त से विनय का विवाह पक्का कर दिया था पर वो लड़की रोज़ नई नई फरमाइशें करती और एक बार विनय को बिजनेस टूर पर अमेरिका जाना था वो पीछे पड़ गई मै भी चलूंगी एक महीना तुम्हारे साथ रह कर तुम्हे परखेंगी की तुम विवाह के लायक हो या नहीं विनय को गुस्सा आया और उसने रिश्ता तोड़ दिया उसके बाद हमने बहुत कोशिश की ये शादी कर ले पर ये तैयार नहीं हुआ
अब इसने सलोनी से विवाह की इच्छा जताई है हमारी तरफ से ये रिश्ता पक्का समझिए। विशाल ने कहा अब सलोनी से बात करनी है।विनय बोला अगर आप लोगों को एतराज ना हो तो सलोनी से मै बात करूं।अगले इतवार सलोनी के मायके में सब को दोपहर भोज के लिए बुलाया गया वही विनय भी अपने माता पिता के साथ आया था।तब मेघा ने सलोनी से रिश्ते की बात छेड़ी।
सलोनी भड़क उठी बोली भाभी आप कैसी बात कर रही हैं मैं रमेश की पत्नी हूँ।मेघा बोली मै रमेश की बहन हूं और वो रमेश के माता पिता जाने वाले के साथ नहीं जाया जाता वक्त कहता है आगे बढ़ो विनय एक अच्छा लड़का है और आज सब है कल मां पिताजी नहीं रहेंगे भाइयों के घर बस गए हैं तुम्हे कोई नहीं पूछेगा। रघुनाथ जी बोले मेघा ठीक कह रही है बेटी।द्वारिकाप्रसाद ने कहा बेटा सही समय है
अच्छा लड़का है विवाह कर नई शुरुआत करो।सलोनी बोली आप दोनो अकेले हो जाएंगे तो विनय बोला हम उन्हें अपने घर ले चलेंगे।कैलाश बोला हम मां पिताजी को अपने घर ले आएंगे उनके 3 बेटे है विनय बोला अब 4 ।विनय सलोनी के पास आया और बोला जो बीत गया उसे छोड़ दो जीवन में आगे बढ़ो मै हर कदम पर तुम्हारे साथ हूँ।
आखिरी फैसला तुम्हारा है यह कह विनय और उसका परिवार विदा ले घर आ गया।सलोनी पूरी रात सोई नहीं वो बार बार रमेश के बारे मे सोच रही थीं पर रमेश की जगह विनय का चेहरा आंखों के आगे आ रहा था तभी मेघा आई और बोली सलोनी आगे बढ़ो रमेश तुम्हारा भूत काल था और विनय वर्तमान। वर्तमान को अपनाओ शिप्रा बोली ये पल दुबारा नहीं आएंगे।
गीता ने कहा बस सलोनी अब मान जाओ और आगे बढ़ो सबकी बात सुन सलोनी बिस्तर पर लेटी उसे ऐसा लगा जैसे रमेश उसका हाथ विनय के हाथ में दे कर कह रहा है आगे बढ़ अगले दिन सलोनी ने रिश्ते के लिए हा कर दी और पंद्रह दिन बात का शुभ विवाह निश्चित हुआ सच में विवाह शुभ था दुल्हन का कन्यादान 2 माताओं और 2 पिताओं ने किया ।
ऐसी दुल्हन जिसे हर कोई आशीर्वाद दे रहा था प्यार दे रहा था और उसका हमसफर उसके लिए पलके बिछाएं बैठा था। वरमाला होने पर सब चिल्लाने लगे शुभ विवाह और सलोनी विनय की तरफ देख रही थी और विनय आंखों से ही कह रहा था मै हूँ तुम्हारे साथ।
स्वरचित कहानी
आपकी सखी
खुशी
पसंद आई हो तो कमेंट में बताएगा।