शीशम की लकड़ी – पायल माहेश्वरी

आज आलमारी की सफाई करते वक्त रूचि ने गर्म कपड़े निकाले वर्षो पुराने स्वेटर, टोपी, मोज़े, शाल, कोट, मफलर और रजाईया थी। रूचि ने जब सारे कपड़े बाहर निकाले तो उसे एक राहत भरी साँस लेने वाली आवाज आयी, पर आसपास तो कोई नहीं था फिर आवाज कहा से आ रही थी? रूचि को लगा यह उसका वहम हैं पर आवाज निंरतर बढ़ती जा रही थी, रूचि एक बार घबरा गयी। रूचि के पति भारतीय सेना में थे और उनका तबादला हर दो साल बाद भारत के विभिन्न शहरों में होता रहता था, रूचि ने लगभग सारा भारत-दर्शन कर लिया था और विभिन्न प्रकार की जलवायु से भलीभांति परिचित थी। इस वक्त रूचि के पति जम्म-कश्मीर में कार्यरत थे और सर्दियाँ अपने चरम स्तर पर थी,रूचि ने गर्म कपड़ो को धूप दिखाने के लिए बाहर निकाला था। रूचि आवाजों के पीछे का रहस्य समझ नहीं पायी और उसे अपने मन का वहम समझकर भुला दिया। रूचि ने सारे कपड़े धूप में डाल दिए और शाम होते-होते पुनः समेटकर आलमारी में रखने के लिए गयी,रूचि ने जैसे ही आलमारी का दरवाजा खोला उसे किसी औरत के सिसकने की आवाज सुनाई दी।

” जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ….” रूचि डर से कांपने लगी और कमरे का दरवाजा बंद करके तुरंत बाहर चली आयी। ” जरूर इस घर में भूत-प्रेत का साया हैं, मुझे रौनक से तुरंत बात करके यह अपार्टमेंट खाली कर देना चाहिए ” कैप्टन रौनक रूचि के पति थे। ” रौनक इस घर के स्टोर रूम में भूत-प्रेत का साया हैं, मैंने वहां किसी औरत की राहत भरी व सिसकने वाली दर्दनाक आवाजें सुनी हैं ” रूचि डरी सहमी थी। ” हा हा हा हा…..!! रूचि तुम पागल हो, भूत-प्रेत कुछ नहीं होते हैं दिन भर हाॅरर सीरियल लाल साया देखकर अपना दिमाग खराब कर बैठी हो ” रौनक ने रूचि की बात हंसी में उड़ा दी। ” रौनक मैं सच कह रही हूँ आप खुद स्टोर रूम में आलमारी के पास चलकर देखो ” रूचि ने सहमी आवाज में कहा। रौनक और रूचि स्टोर रूम में आए पर उन्हें वैसी कोई आवाज नहीं सुनाई दी, रूचि बड़ी आश्चर्यचकित थी। दूसरे दिन जब रौनक काम पर चला गया और दोनों बच्चे शौर्य व शैली अपने स्कूल चले गये तब रूचि हिम्मत जुटाकर फिर स्टोर रूम में आयी और जैसे ही गर्म कपड़े रखने के लिए आलमारी खोली फिर वही सिसकने की आवाज सुनाई दी।

” कौन हो तुम !! मुझे क्यों परेशान कर रही हो सामने क्यों नहीं आती?” रूचि आवेश में आकर बोली। ” रूचि घबराओ मत में कोई भूत-प्रेत नहीं हूँ में आलमारी बोल रही हूँ ” आलमारी से आवाज आयी। ” क्या!! निर्जीव आलमारी कैसे बोल सकती हैं?” रूचि स्वंय से बोली। ” बोल सकती हैं ,जब सजीव मनुष्यों की संवेदना खत्म हो जाती हैं तब निर्जीव चीजें बोल उठती हैं, में तुमसे बात करना चाहती हूँ मेरा दर्द अब असहनीय होता जा रहा हैं “आलमारी बोली। ” क्या बात करना चाहती हो,क्या दर्द हैं ?” रूचि ने कांपते हुए कहा। ” रूचि !! ये इतने सारे गर्म कपड़ो का बोझ जो तुमने मेरे उपर अनावश्यक लाद रखा था क्या वो सब तुम्हारे काम के हैं?” आलमारी दर्दनाक आवाज में बोली। ” में इन कपड़ो के बोझ से दबी जा रही थी मेरी साँस घुटने लगी थी और कल जब में बोझमुक्त हुई तब मुझे चैन की साँस आयी। ” अब रूचि को कल वाली आवाज का रहस्य समझ आया। ” पर तुम सिसकियां क्यों ले रही थी?”




रूचि ने सवाल किया। ” रूचि जब तुम वापिस यह कपड़े मेरे अंदर रखने लगी तब मुझे मेरी बेबसी पर रोना आ गया ।” ” यह सब कपड़े मेरे काम के हैं ,और आलमारी कपड़े रखने के लिए ही काम आती हैं ” रूचि हैरान होकर बोली। ” रूचि जरा इन गर्म कपड़ो को गौर से देखो क्या सच में हर साल तुम इनका उपयोग करती हो ?” रूचि ने एक नजर कपड़ो के विशाल ढेर पर दौडाई, शौर्य और शैली के बचपन वाले कपड़े जो अब उनके लिए छोटे हैं, रौनक के पुराने पर अच्छे कोट जो अब रौनक नहीं पहनते हैं, रूचि की पुरानी शाॅले व स्वेटर और बहुत सी रजाईया जो रूचि ने सालों से काम नहीं ली। रूचि को लगा लगभग आधे से ज्यादा कपड़े व्यर्थ हैं पर उन कपड़ो से बच्चों की बचपन वाली यादें और रौनक के साथ बिताए पल जुड़े हुए थे। ” मैं मानती हूँ यह सब कपड़े व्यर्थ हैं लेकिन अनमोल यादें समेटे हुए हैं तो मैं इन्हें फेंक नहीं सकती हूँ ” रूचि ने आलमारी से कहा। ” रूचि यादें कपड़ो में नहीं, अच्छी स्मृतियों में और तस्वीरो में समाई रहती हैं, और में इन्हें फेंकने का नहीं कह रही हूँ इन्हें जरूरतमंद लोगों तक पहुंचा दो तुम्हारे मन को संतोष मिलेगा,तुम्हें उन गरीबों का दर्द कम करने का श्रेय मिलेगा ” आलमारी ने रूचि को समझाया। ” जरूरतमंद लोग मैं कहा ढूंढने जाऊँ, मैं इस श्रेत्र में नयी हूँ?” रूचि ने पूछा। ” रूचि इस बड़ी काॅलोनी के बाहर विशाल शीशम पेड़ो का झुंड हैं उन पेड़ो के नीचे ऐसे कई परिवार तुम्हें देखने को मिल जाएंगे जो हालात के मारे हैं, इस भीषण सर्दी में उनके पास गर्म कपड़े भी नहीं हैं, उन्हें यह सब कपड़े दान कर दो तुम्हारी यादों में सच्ची दुआएं भी जुड़ जाएगी ” आलमारी भावुक आवाज में बोली। रूचि आलमारी की बात मानकर काॅलोनी के बाहर गयी और वहां का दृश्य देखकर उसका दिल भर आया,लगभग बीस-पच्चीस परिवार बहुत निर्धन हालत में थे छोटे बच्चे ठंड से ठिठुर रहे थे, वे सब मजदूर थे,लाचारी व गरीबी का दर्द उनके चेहरों पर स्पष्ट नजर आ रहा था। आर्मी वाइफ संगठन की अध्यक्ष मिसेज रीमा मल्होत्रा भी वहा पर उनकी सहायता कर रही थी। ” मिसेज रीमा मैं जरूरतमंद लोगों को कपड़े दान देना चाहती हूँ ” रूचि ने कहा। ” मोस्ट वेलकम !!




मिसेज रूचि इन लोगों को सच में गर्म कपड़ो की आवश्यकता हैं ” मिसेज रीमा खुश होकर बोली। रूचि ने शौर्य व शैली के कपड़े बच्चों में उनकी आयु के अनुसार बांट दिए और उन्हें पहनकर बच्चे इठलाने लगे, रूचि को एक बच्चे में अपने एक साल के शौर्य की झलक दिखने लगी और कोई बच्ची शैली के गुलाबी स्वेटर में उसके जैसी लगी, एक जोड़ा जो रूचि व रौनक के पुराने कपड़ो में सज गया था वो शर्मा रहा था, रूचि व रीमा उन्हें देखकर हंस पड़ी। वापिस लौटते समय रूचि के चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान थी और आखों में भावुकता वाले आँसू थे, रूचि ने तय किया की वो शौर्य व शैली के अनावश्यक खिलौने, कपड़े, उसके सूट व रौनक के अनावश्यक कपड़े भी कल यहाँ ले आयेगी,मिसेज रीमा ने रूचि के प्रस्ताव का स्वागत किया।

” मैंने तुम्हारे कहे अनुसार सब अनावश्यक कपड़े दान कर दिए, आज तुमने मेरी आँखे खोल दी, आज संजोई हुई यादें और दुआएं जीवन भर मेरे काम आएगी ” रूचि हल्के मन से आलमारी को बोली। ” धन्यवाद रूचि!! तुमने भी मुझ गरीब पर तरस खाकर मेरे उपर का अनावश्यक बोझ कम कर दिया ” आलमारी शरारत से बोली। ” पर एक बात बताओ, तुम्हें कैसे पता चला की शीशम के उन पेड़ो के नीचे ऐसे परिवार मुझे मिलेंगे, तुम तो जड़ वस्तु हो ?” रूचि उत्सुकता से बोली। ” रूचि कभी मैं भी उन शीशम के पेड़ो का हिस्सा थी और उन्हीं में से एक पेड़ की लकड़ी हूँ, प्रकृति माँ अपनी संतानो का सदैव ध्यान रखती हैं मेरा सिर्फ रूप बदला हैं पर मन में अभी भी माँ वाली ममता हैं , चाहे संतान कृतघ्न हो जाए पर माँ कभी कृतघ्न नहीं होती हैं ” आलमारी भावुकता से बोली। एक निर्जीव आलमारी की लकड़ी जिसे रूचि निर्जीव मान रही थी उसने कटने के बाद भी हम मनुष्यो के दर्द को महसूस किया, और मनुष्य अनावश्यक पेड़ काटकर अपने विनाश को निमंत्रण दे रहा हैं, ना जाने भविष्य हमें कैसा दर्दनाक माहौल देने वाला हैं, रूचि सोचने लगी। रूचि एक आलमारी की सजीवता देखकर आश्चर्यचकित थी और निर्जीव व सजीव की नयी परिभाषा सीख रही थी,दर्द का नया रूप देख रही थी और उसने तय किया की अनावश्यक चीजें सहेज कर रखने के बजाय दान करेगी। रूचि आज भी आलमारी की बातों का अनुसरण करती हैं और शौर्य व शैली को भी यही शिक्षा देती हैं। क्या यह सच नहीं हैं की हमारे घर में भी ऐसी कई अनावश्यक चीजें पड़ी रहती हैं जिन्हें हम यादों का नाम देकर सहेजते हैं, क्यों ना हम सब भी आलमारी की बातों का अनुसरण करें और नयी यादें व दुआएं कमाए? यह कहानी काल्पनिक हैं सिर्फ अपनी बात को समझाने का माध्यम हैं, कृपया इसे किसी अंधविश्वास से जोड़ कर ना देखें। आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में

पायल माहेश्वरी

यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं धन्यवाद।

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