बहूरानी को नौकरानी बनाकर रखेंगे??- कनार शर्मा

थोड़ी देर और रुक ना एक मसाला चाय पीते हैं अभी 6 ही तो बजे है क्या जल्दी है घर जाने की… नीता ने अनन्या से कहा। तू नहीं समझेगी मेरा “दर्द”… सास ससुर, ननद चाय के लिए मेरी राह देखते होंगे, पिंकी को भी भूख लगी होगी, छत पर सूखते कपड़े उठाऊंगी,तह बनाऊंगी, प्रेस करूंगी,फिर शाम के खाने की तैयारी करूंगी, सबको खाना खिला पति के आने की राह देखूंगी, उनके आते ही गरम-गरम रोटियां सेंक कर दूंगी, उसके बाद खुद खाना खाऊंगी फिर रसोई और बर्तन साफ करके रखूंगी। इतनी चिंता, इतनी फिक्र…क्यों तेरे सास और ननद को लकवा मारा है क्या??? जो अपने हाथ से चाय नहीं बना सकते और तेरी पिंकी तो 2 साल की है ना कोई उसे एक गिलास दूध और बिस्किट नहीं दे सकता, एक दिन कपड़े ना उठा क्या फर्क पड़ता है??? कौन सा भोपाल में रोज बारिश होती है और आज के जमाने में कौन सी पत्नी अपने पति का इंतजार करती है… सभी काम के ऑप्शन होते हैं समझ डियर… बड़ी बेफिक्री से नीता ने अनन्या से कहा!!

बोल तो ठीक ही रही है मगर क्या बताऊं?? शादी के दूसरे दिन से ही मेरी सास ने मुझे रसोई में लगा दिया। मैंने बहुत कहा मैं नौकरी करना चाहती हूं मगर उन्होंने साफ इंकार करते हुए कहा हमारे घर की बहूएं नौकरी नहीं करती। जब सौरभ से भी इस बारे में बात करना चाहा वह बोले “चुपचाप घर संभालो हमारे वंश को आगे बढ़ाओ यही तुम्हारा धर्म है”… और मां ने कहा है वही होगा। अपने मायके में भी बात की वहां मां और भाभी दोनों ही बोले तुम्हारा घर है अब तुम संभालो हम तुम्हारे मामलों में नहीं बोलेंगे!! अब तू ही बता जब मेरी वहां कोई सुनता ही नहीं तो अपनी बात किसके सामने रखूं… सभी को अपनी अपनी चलानी होती है। अरे जब तुझे ही बोलना है तो खुलकर बोल दे ना क्यों खुद को इतना “दर्द” देती है… अब तो तुझे वहां रहते रहते 4 साल हो गए… ठीक है “नौकरी नहीं करती तो क्या बहूरानी को नौकरानी बनाकर रखेंगे”?? और ये पति के आने के बाद खाना खाने वाला कल्चर भी खत्मकर पति अगर बाहर खाकर आता है तो क्या तू भूखी सो जाती है??? तू ये सब इसलिए कह पा रही है क्योंकि तुझे आजादी मिली है मस्त नौकरी करती है। अपने सास-ससुर से दूर रहती है, घर में 3 लोग हैं बच्चा आया संभालती है। तुझे किस चीज की फिकर नहीं… समझाकर मैं पैसे नहीं कमाती ना इसलिए बोल नहीं सकती… अनन्या मुंह लटका कर बोली!!! वाह!! तेरे हिसाब से क्या सिर्फ नौकरी करने वाली बहू ही अपने हक के लिए बोलती है??… किसी ने सही कहा है “दूर के ढोल सुहाने लगते हैं”… नीता एक गहरी सांस लेकर बोली!! मतलब????




मतलब ये तुझे लगता है मेरी जिंदगी में आराम ही आराम है शायद इसलिए क्योंकि तू सिर्फ मेरे आज से प्रभावित हो गई है… मेरा रहन सहन, बोलचाल, नौकरी करना तुझे आसान लग रहा है। तू सच्चाई सुनना चाहती है तो सुन शादी से पहले ही मैं जॉब करती थी मेरी सास मुझे बड़े ठप्पे से बोलकर ले गई थी बेटी बना कर रखूंगी। कुछ ही दिनों में सच्चाई सामने आ गई… मुझे साड़ी ही नहीं हर समय घूंघट में रहना था, तुम नई बहू हो घर के रीति रिवाज सीखो नौकरी कुछ समय बाद कर लेना बोलकर छुड़वा दी, हर तीज त्योहार पर मायके से गहने और पैसा लाने को बोलते, गर्भवती थी तब सारे काम यह बोलकर करवाएं की नॉर्मल डिलीवरी होगी। उसके बाद ऑपरेशन से बेटी पैदा होने पर मुझे मायके भेज दिया ताकि बहू और पोती की देखभाल ना करना पड़े। सबसे ज्यादा बुरा तो तब लगा जब मेरे पति ही 6 महीने में एक बार भी मुझे और मेरी बच्ची को देखने नहीं आए। जब वे मुझे लेने आए तो मैंने उनके साथ जाने से साफ इनकार कर दिया क्योंकि मुझे पता था मेरे पिता शादी के बाद से लेकर अब तक इतना करने के बाद कर्जे में डूब चुके हैं।

अगर मैं दोबारा ससुराल गई तो फिर बच्ची के नाम पर पैसा मांगना शुरूकर देंगे… तब मैंने फैसला किया कि अब मैं अपनी नौकरी दोबारा करूंगी और अपनी ससुराल कभी नहीं जाऊंगी!! मेरे पति राकेश “मुझे भी तुम्हारी जरूरत नहीं बोल वापस चले गए” उन्हें लगा औरत कमजोर होती है जैसा कहा जाएगा उसे वैसा ही करना होगा।सास ससुर ने भी उन्हें मुझे छोड़ने के लिए बोल दिया मगर अगले 6 महीने में राकेश की अकल ठिकाने आ गई क्योंकि अब मेरी सास को पता चल गया था घर में काम करने वाली बहू चली गई है। राकेश को भी अब कोई महत्वता नहीं मिल रही थी। सबको बस उसके पैसे चाहिए होते थे। घर में खाना तक नसीब नहीं था उन्हें होटल और मेस का खाना खाकर अकल ठिकाने आ गई उनकी… साल भर बाद वो मुझसे मिलने मेरे घर आए और बोले मैंने एक मकान किराए पर लिया है अब हम तीनों वही जाकर रहेंगे… तुम नौकरी कर सकती हो मेरी तरफ से कोई रोक-टोक नहीं, बच्ची को हम दोनों मिलजुल कर पालेंगे… मुझे समझ आ गया है मेरे घरवाले मुझे सिर्फ स्वार्थ सिद्धि का जरिया समझते थे और साथ में तुम्हें भी टॉर्चर कर रहे थे… बस अनन्या शादी के 5 साल बाद मेरी जिंदगी जो तुम्हें लगता है बड़ी आसान है बड़ी मुश्किल से बनी है… नीता ने अपने आंसू पोछते हुए कहा!! अरे यार मुझे माफ करना मुझे नहीं पता था तेरे साथ इतना कुछ हो चुका है तू ने सच ही कहा “दूर के ढोल सुहाने लगते हैं”। जब तक सच्चाई का पता ना हो तब तक किसी के बारे में राय नहीं बनानी चाहिए…!!




चल अब ज्यादा सेंटी मत हो अगर तू समझ ही गई है तो अपनी फिक्र करना शुरू कर और तूने क्या कहा था कमाने वाले ही बोलते हैं…”क्या तेरी सास ननद पैसा कमाती है जो इतना बोलती है”….??????? कुछ वक्त के लिए हालात मंजूर किए जा सकते हैं लेकिन समझौता करना अपने जीवन को किसी और के हाथों में सौंपना जैसा होता है फिर वो आपको जैसे चाहे नाचता फिरे… इससे अच्छा है आवाज उठाएं, ना कहना सीखें, जितना हो सके उतना करें, अपनी क्षमता से अधिक कार्य करने की कोशिश ना करें वरना नुकसान आप ही का होगा… जैसा तेरे साथ हो रहा है अपनी सेहत तो देख कितनी कमजोर नजर आ रही है आंखों में गड्ढे हो गए हैं बहन घर गृहस्ती के अलावा भी दुनिया होती है ये बात समझ और आगे तू समझदार है!! नीता की बात समझ अनन्या भी कुछ सोच रेस्टोरेंट् से घर पहुंचती है… जिसे देखते ही… बहु तुम्हें थोड़ी देर बाहर जाने की इजाजत क्या दी तुम्हारी तो पर ही निकाला है 1 घंटे का बोल कर गई थी 3 घंटे बाद आ रही हो तुम्हें पता है चाय तुम्हारी ननंद को बनानी पड़ी, ससुर जी तो गुस्से से आगबबूला हो रहे थे और भाभी पिंकी इसको भी बड़ी मुश्किल से दूध पिलाया है हमने इसके पीछे भाग भाग के हमारे तो पांव ही दुख गए… और छत पर कपड़े पड़े हैं, प्रेस करना है, शाम का खाना बनाना है…सास ननद दोनों बोले चली जा रही थी…!!

अच्छा किया ना मम्मी जी आज दीदी के हाथ की चाय पी स्वाद भी बदल गया होगा। मेरे हाथ की चाय में तो कभी शक्कर कम पत्ती ज्यादा हो जाती है अब से पापाजी की चाय समय पर दीदी ही दिया करेंगी, और मम्मी जी क्या हो गया अगर पिंकी के लिए आपने थोड़ी सी मेहनत कर ली तो आखिर आप उसकी दादी हैं मुझसे ज्यादा हक तो आपका बनता है। अब से आप ही अपनी पोती को संभालिए मुझे तो बहुत परेशान कर देती है। कपड़ों का क्या है कल सुबह भी ला सकती हूं और रास्ते में प्रेस वाले भैया से बोलती हुई आई हूं… कल से प्रेस के कपड़े वहीं ले जाया करेंगे आप वैसे ही परेशान रहती हैं कितनी भी प्रेस कर लूं मुझसे कड़क होती ही नहीं साड़ी शर्ट सभी में सले रह जाती हैं…!! वाह!! बहू थोड़ी देर के लिए बाहर क्या गई… बातें बनाना सीख गई सुनो बातों से पेट नहीं भरता… खाना हमें समय पर ही चाहिए वरना तुम्हें तुम्हारे ससुर जी का गुस्सा तो पता ही है…सास सविता जी फिर भनभना कर बोली! जी मम्मी जी बिल्कुल समय पर मिलेगा केशव ऑफिस से आते वक्त होटल से खाना लेते आएंगे… वो भी आपकी पसंद का अब छुप-छुपकर आपको दीदी,पापाजी से होटल का खाना मंगाने की जरूरत नहीं… (ना जाने कितनी बार सविता जी होटल की सब्जियां मंगवाती और कमरे में बैठकर छुपकर खाती थी.. और घर में बना हुआ खाना बासी हो जाता जो अगले दिन अनन्या को खाना पड़ता!!) सविता जी के पास कहने को कुछ नहीं था…दोनों मां बेटी अनन्या को देखते रह गए जो इतने सालों से चुप थी अचानक कैसे बोल पड़ी…अब अगर ज्यादा बोले तो कहीं ऐसा ना हो रात के बर्तन मांजने पड़ जाए?? आखिर क्यों नहीं… जब सब बोल रहे हैं तो बोलने का हक तो उसका भी था,सच ना कह पाने के “दर्द” से छुटकारा भी मिल गया… सोच अनन्या अपने कमरे में चली गई!! आशा करती हूं मेरी रचना आपको पसंद आएगी धन्यवाद 🙏🙏
आपकी सखी कनार शर्मा (मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित)
#दर्द

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