* सीख * – पुष्पा जोशी

‘मेडम जी मीनू बेबी जी आई है, आपसे मिलने’. शारदा ने दामिनी जी से कहा. ‘कौन? मीनू आई है.उसे यहीं ले आ. ‘अपने कमरे में किताबों की अलमिरा  जमाते हुए दामिनी जी ने कहा.दामिनी जी अभी कुछ दिन पूर्व, हायर सेकण्डरी स्कूल की प्राचार्या के पद से सेवा निवृत्त हुई है.मीनू उनके पड़ोस में रहती है.मीनू ने इसी स्कूल से हायर सेकण्डरी की परीक्षा उत्तीर्ण की.स्नातक की डिग्री प्राप्त करने पर अभी छह महीने पूर्व उसका विवाह हो गया.दामिनी जी प्राचार्य का पद भार सम्हालने के साथ -साथ.कई बार बच्चियों को इंग्लिश पढ़ाती थी.मीनू सरल स्वभाव की प्रतिभाशाली लड़की थी.वह अक्सर दामिनी के पास अपनी किसी विषय संबंधित समस्या लेकर आती और वे उसका हल बताती थी.दोनों का एक दूसरे से आत्मीय रिश्ता था.

दामिनी जी ने कहा-‘आ गई मीनू बेटा.आ बैठ कैसी है? कब आई ससुराल में सब ठीक है ना? मीनू ने कहा कल शाम को आई. और चुपचाप बैठ गई. दामिनी जी को अजीब लगा कि हर समय चहचहाने वाली इतनी सुस्त क्यों है. उन्होंने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा और पूछा क्या बात है मीनू, कोई परेशानी है क्या बेटा.उनके स्नेहिल स्पर्श से मीनू ने जो अश्रु मुश्किल से रोक रखे थे, बहने लगे.दामिनी जी बोली, ‘मीनू! पहले रोना बंद करो बेटा, रोने से किसी समस्या का हल नहीं होता, और अपनी शक्ति कम होती है.तुम्हें सशक्त बनना है, कमजोर नहीं.’ फिर उन्होंने शारदा से कहा हम दोनों का नाश्ता ड्राइंग रूम में रख दे, वे मीनू को लेकर ड्राइंग रूम में गई और बोली- ‘अब बता क्या परेशानी है.’




मीनू ने कहा मेडम मैं वहाँ पर सब काम मन लगाकर करती हूँ, मगर किसी को कुछ पसंद ही नहीं आता, मेरे बनाए खाने में, हर चीज में कुछ न कुछ कमी निकालते रहते हैं, कोई मुझे कुछ समझता ही नहीं, यहाँ पर तो मम्मी, पापा, भैया सभी मेरे काम की तारीफ करते थे.’ वह सुबक रही थी.दामिनी जी ने बड़े प्यार से उसके हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘बस इतनी सी बात है, बेटा मीनू वह घर अभी तुम्हारे लिए नया है, वहाँ के लोगों की पसंद अलग है,रहन-सहन,स्वभाव भी कुछ अलग होगा, अभी तुम्हें वहाँ गए अभी सिर्फ तीन महिने हुए हैं,बेटा तुम्हें उनकी पसंद नापसन्द समझनी होगी, उसके अनुरूप कार्य करके उनका दिल जीतना होगा, तुम उन्हें समझोगी तो वे भी तुम्हें समझेंगे.बेटा मैं किशोर जी के परिवार से परिचित हूँ, बड़ा अच्छा परिवार है उनका.और हॉं राजेश जी कैसे हैं ?उनके बारे में तो तूने कुछ बताया ही नहीं.’ मेडम जी वो… वो तो…’ मीनू के चेहरे पर चमक आ गई थी. वो तो बहुत अच्छे हैं मुझे बहुत प्यार करते हैं.यही कहना चाह रही हो ना.’ ‘ जी मेडम जी’ मीनू ने शरमा कर सर झुका लिया.फिर क्या परेशानी है बेटा सब ठीक हो जाएगा.जीवन में कई संघर्षों का सामना करना पड़ता है.कई उतार चढ़ाव आते हैं जिन्हें विवेक से पार करना पड़ता है.तुम किस्मत वाली हो कि तुम्हारा बचपन बिना संघर्ष के बीता.आगे भी सब अच्छा होगा अब प्रयास तुम्हें करना होगा.अपने सास ससुर को मान दो.  पति     की भावनाओं को समझो.और अपनी बात भी समझाने की कोशिश करो. सामंजस्य बनाकर चलो. मैं तुम्हें एक ऐसी लड़की की कहानी सुनाती हूँ, जिसने जन्म लेने से पूर्व ही कड़े संघर्ष का सामना किया.




एक लड़की थी बिल्लो, जिसके जन्म के पहले ही परिवार के लोग दादा – दादी, काका,भुआ सबने अपने दिल के दरवाजे बंद कर लिए थे.उन्होंने तरकीब से लिंग परीक्षण करवा लिया था और उसे इस संसार में लाना ही नहीं चाहते थे.उसका इस संसार में आना सिर्फ उसकी माँ की जिद थी, वह पूरे परिवार से लड़ती रही, कई मानसिक प्रताड़ना को झेलती रही, पति ने भी परिवार के विरूद्ध जाकर अपनी पत्नी का साथ नहीं दिया.वह अकेली लड़ती रही और बिल्लो को जन्म देकर भगवान के घर चली गई. बिल्लो नाम भी शायद इसीलिए रखा था कि जन्मते ही मॉं को खा गई. बिल्लों   की मासूमियत पर उसके पिता को रहम आ गया उसे पालने का फैसला किया तो उनके माता-पिता, भाई बहिन सबने उनसे संबन्ध तोड़ लिया.बिन माँ की बच्ची पिता की छत्रछाया में पली  बढ़ी.कई संघर्षों का सामना किया और स्नातक की डिग्री प्राप्त की.पिताजी बहुत कम बोलते थे, पत्नी को खोने का गम. परिवार के छूटने का गम उन्हें अन्दर ही अन्दर परेशान करते और वे मायूस हो जाते.बिल्लों भी हमेशा सहमी हुई रहती, वह अपने दुःख ,दर्द किससे कहती.पिता ने उसकी शादी कर दी उसने सोचा कि पति उसे समझेगा, उसे ससुराल में अपनापन मिलेगा, पर बिन माँ की बच्ची के जीवन में और परीक्षा देना बाकी थी.उसने  पूरी कोशिश की कि वह अपने परिवार वालों का अपनापन पा सके. उसके जेठ और देवर का व्यवसाय अच्छा चल रहा था, दैवरानी और जैठानी का पीयर परिवार भी समृद्ध था.पति का कपड़े का व्यवसाय था जिसमें अभी मंदी चल रही थी.परिवार के लोगों को सिर्फ पैसो की बातें समझ में आती थी, स्नेह, प्यार, सहानुभूति के शब्द उनके शब्दकोष में थे ही नहीं.बिल्लों अपने पति की कमाई में भी खुश रहती, मगर हर पल उसकी सास उसे जली कटी सुनाने से बाज नहीं आती.पति का प्यार उसे मिल रहा था, और वह उसी में संतुष्ट थी.मगर ईश्वर की सृष्टि में कुछ किरदार ऐसे होते हैं जिनका जीवन संघर्षों के लिए ही बना होता है.एक एक्सिडेंट में बिल्लो के पति का देहांत हो गया, बिल्लों पर दु:ख का पहाड़ टूट गया.सास हमेशा ताना देती, पैदा होते ही मॉं को खा गई और इस घर में सालभर भी नहीं हुआ और बेटे को खा गई और पता नहीं अब किसे खाएगी, यह घर में रखने लायक नहीं है.पति की मृत्यु के १५ दिन बाद ही उसे गर्मी की दौपहर में घर से बाहर निकाल दिया, मगर वह रोई नहीं.संघर्षों से जूझने की ताकत उसे मॉं के गर्भ से ही मिल गई थी.वह अपने पिता के यहाँ जाकर उन्हें दु:खी करना नहीं चाहती थी.उस दिन वह भूखी- प्यासी एक मंदिर के द्वार पर बैठी रही.मंदिर की पुजारिन उसे बहुत देर से देख रही थी.उसने बिल्लों से पूछा तो उसने अपनी आपबीती सुना दी. उन्हें दया आ गई और बिल्लों को मंदिर के पीछे हिस्से में बना छोटा सा कमरा रहने के लिए दे दिया. बिल्लों ने उनको दिल से धन्यवाद दिया.शाम को पुजारिन ने बिल्लों को भोजन कराया.दूसरे दिन उसने कई विद्यालय में नौकरी के लिए आवेदन दिया और किस्मत से उसकी नौकरी लग गई. पुजारिन जी ने उसकी बहुत मदद की.वह आज भी उनके उपकार को भूली नहीं है.अब बिल्लों के लिए आगे की राह खुल गई थी, स्कूल में पढ़ाने के साथ उसने प्राइवेट फार्म भर के परीक्षा दी और स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की.उसकी मेहनत रंग लाई और वह




विद्यालय की प्राचार्य बन गई जिस प्यार और अपनेपन के लिए वो हमेशा तरसती थी वो उसे उन पुजारिन मॉं, विद्यालय के स्टाफ और विद्यार्थियों से मिला.आज वह अपने खुद के मकान में रहती है मगर प्रतिदिन मंदिर जाकर उन पुजारिन मॉं की जरूरतों का ध्यान रखती है.

कहानी समाप्त कर दामिनी जी ने मीनू से कहा-‘ देखो था ना उसका जीवन संघर्षों से भरा, मगर क्या वो संघर्षों से घबराई, या उसने अपने कर्म से मुह मोड़ा? नहीं ना? फिर तुम्हारे साथ तो तुम्हारा पूरा परिवार है.बेटा छोटी-छोटी बातों से मन छोटा नहीं करते, जीवन को सुखमय बनाने का प्रयास करते हैं.’

मीनू ने कहा- ‘मेडम जी ये तो कहानी है, वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं हो सकता’.दामिनी जी मुस्कुराई और बोली-‘तुम्हें मुझपर विश्वास है या नहीं? ‘ ‘हैं ना मेडम जी! इसीलिए तो आपके पास आई हूँ.’

‘तो जान लो वह बिल्लों मैं ही हूँ, मेरा घर का नाम बिल्लों ही था, जब स्कूल में भर्ती कराया तो मेरा नाम दामिनी हो गया.’

मीनू आश्चर्य से मेडम जी को देख रही थी, उसने बढ़कर मेडम जी के पैर छूए और कहा कि ‘आपने आज मुझे जीवन का पाठ पढ़ा दिया, अब मैं अपने जीवन में आई परेशानियों से घबराऊंगी नहीं, रोऊँगी नही, ईमानदारी और विवेक से उनका सामना करूँगी, आप मुझे आशीर्वाद दीजिये.’दामिनी जी ने कहा-‘मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है.’ उन्होंने मीनू को अपने गले से लगा लिया.

#संघर्ष

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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