“संयुक्त परिवार” – सरोजनी सक्सेना : Moral Stories in Hindi

आदिकाल से संयुक्त परिवार की प्रथा रही है । संयुक्त परिवार समाज की महत्वपूर्ण इकाई है । आज के समाज में धीरे-धीरे संयुक्त परिवार में बिखराव आता जा रहा है । देश में शिक्षा का महत्व निरंतर अपनी उन्नति की दिशा में फैल गया है । साथ ही साथ विज्ञान का आगमन अपनी तेज गति से पूरे समाज में अपनी शाखों सहित फैल गया है । आज के नवयुवक युवतियों का रुझान भी नई-नई कंपनियों को आकर्षित कर रहा है । उच्च श्रेणी की पढ़ाई करने के साथ अपने करियर को बढ़ावा दे रहा है ।

इसी कारण अपनी अपनी पढ़ाई पूरी कर अच्छी नौकरियों के लिए एप्लाई करना, अपना करियर बनाना,  बच्चों को शहरों की तरफ आकर्षित कर रहा है ।संयुक्त परिवारों की संख्या घटने लगी और एकल परिवार बढ़ते जा रहे हैं । रंजीत बाबू संयुक्त परिवार के चहेते बेटे हैं । उनको बचपन से सबका खूब प्यार दुलार मिला । वह भी आज्ञाकारी सरल स्वभाव के हैं ।

उनके दादा रामचरण जी, दादी राजरानी जी, ताऊजी हर स्वरूप जी, ताई जी कृष्णा कुमारी जी, पिताजी शिव स्वरूप, मां शांति देवी,  चाचा महादेव जी, चाची सरला देवी एवं बुआ खुश देवी (कम उम्र में विधवा होने के कारण उनके घर रहती हैं) पूरे परिवार में सब  प्यार की भावनाओं का ध्यान रखते हुए आदर भाव से संस्कार युक्त सबका मान सम्मान करते हैं । सबका अपनेपन की भावनाओं सहित बचपन बीता । अपनी आगे की पढ़ाई के लिए शहर आना पड़ा । ताऊ जी के भी दोनों बेटे रामू श्यामू पढ़ाई में तेज है ।

बड़े ने एमबीए करने के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर ज्वाइन कर लिया । छोटे भी पढ़ाई में होशियार है । इंजीनियरिंग करने के बाद विदेशी कंपनी से उनके जौब का ऑफर आया । वह विदेश चले गए मेरा मोह शुरू से अपने गांव में था । गांव की गरीबी,  किसानों की मनोदशा, तीनों मौसम की मार, अपने शरीर पर जलती गर्मी बरसात जाड़ा । मै अपनी बीएससी करने के बाद गांव आ गया । गांव में मैंने लघु उद्योग खोल लिया । शहर जाकर किसान भाइयों की खेती से संभावित सामान,

अच्छी क्वालिटी के बीज, खाद और जरूर संबंधी सामान सब रखता था ।पैसों की कोई कमी नहीं थी । सिंचाई के लिए ट्यूबवेल लगवा दिए । जिससे किसान लोगों को हर तरह की सुविधा हो गई । सिंचाई से उत्तम श्रेणी के बीज खाद कम रेट में मिलती । अब उनकी फसल दिन पर दिन बढ़िया होती गई । मेरे मन में बचपन से गरीब बच्चों को देखकर बहुत दुख होता था । गांव की गरीब महिलाओं को भी लघु उद्योग में छोटा-मोटा काम मिल जाता ।

 संयुक्त परिवार – कुमुद मोहन : Moral Stories in Hindi

कुछ समय पश्चात मैंने अपने परिवारों की राय से गांव में अस्पताल खुलवा दिया । साथ ही मवेशियों के लिए भी वेटरनरी अस्पताल खुला दिया । पूरे गांव में खुशहाली का माहौल रहता । मेरी पत्नी रीमा भी पढ़ी लिखी शहर की लड़की है । बहुत ही सुशील संस्कारिक मिलनसार हंसमुख परिवार में सबका मान सम्मान करती है । घर के कार्य में सबके साथ मिलजुल कर काम करती है । तीज त्यौहार रक्षाबंधन जब बहने आती । पूरे परिवार मे हर तरफ खुशियां ही खुशियां नजर आती है । ऐसा लगता ही नहीं हम चाचा ताऊ जी के बच्चे हैं । सब एक संयुक्त परिवार के बच्चे हैं । बड़े भाई रामू भी अपने परिवार सहित अक्सर त्योहार पर आते रहते है ।

भाभी रागिनी भी अपने सबसे मिलकर बहुत मस्त रहती है । उनको किसी बात का घमंड नहीं है । घर की सब महिलाओं के साथ मिलजुल कर काम करती और उनकी सेवा करती ।वह कहती मेरा तो मन ही नहीं करता यहां से जाने का । उनके बच्चे भी यहां के माहौल में खुश रहते । भाभी भैया से कहती है आप अपने सर्विस पर जाइए । मेरा तो यहां से जाने का मन ही नहीं करता । हमारे गांव के चाचा उनका एक बेटा पढ़ाई के लिए शहर गया है। अपनी शिक्षा पूरी कर वहीं पर सर्विस लग गई ।

अब वह अपनी पत्नी बच्चों सहित वही बस गया । एक दिन उसका फोन आया । उसने बताया उसका एक्सीडेंट हो गया है । वह अस्पताल में है । यह जानकर उनको बहुत चिंता हो गई । वह अपनी गाड़ी से चाचा चाचा को लेकर उसके घर पहुंचा । थोड़े दिनों बाद में अस्पताल से घर आ गया । बच्चे छोटे थे इस कारण दोनों वहीं रुक गये । बच्चों को संभालने के कारण । उनकी बहू को ज्यादा आराम मिल गया । वह घर का काम भी देख लेती,  बच्चों को भी संभाल लेती । उन दोनों को अपने घर गांव की याद आती । 

बच्चे भी अपने दादा-दादी के साथ खुश रहते हैं । वह दोनों जब भी गांव जाने को कहते तो बहू अपने पति से कहकर रोक लेती । बहु को आराम की आदत पड़ गई । उम्र के चलते अब उनसे भी ज्यादा काम नहीं हो पता । धीरे-धीरे बहू के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा । बात बात पर उनको उल्टा सीधा कहती ।

अपने पति के सामने बड़े प्यार से बात करती । उनको चाय नाश्ता बना देती । उनके ऑफिस जाते ही दर्द के बहाने अपने कमरे में जाकर लेट जाती । ना खाना बनाने की चिंता ना बच्चों को देखना । एक दिन बेटा ऑफिस से जल्दी आ गया । उसकी तबीयत कुछ ठीक नहीं थी । उसने देखा बीबी तो आराम कर रही है । मां रसोई में खाना बना रही है । दूसरे दिन शनिवार था । उसने अपने मां-बाप से कहा मेरी दो दिन छुट्टी है । हम लोग गांव चलते हैं । वहां जाकर रंजीत भाई से मिला और कहां मैं आपके लघु उद्योग में नौकरी करना चाहता हूं । शहर की नौकरी मैंने छोड़ दी ।

मैं भी अपने गांव में परिवार के साथ रहना चाहता हूं । नौकरी के साथ-साथ अपनी खेती की भी देखभाल करूंगा । वह अब अपने परिवार सहित मां पिताजी बच्चों पत्नी सब मिलकर प्यार से आत्म समर्थन के साथ संयुक्त परिवार में रहते हैं । आज की पीढ़ी मे जहां आजादी होती है साथ में परेशानी भी देती है । दुख परेशानियों में अपना परिवार ही काम आता है । अब तो जमाने के साथ-साथ लोगों की सोच बदल गई है । सयुंक्त परिवार में एकता भी है । निजी स्वतंत्रता भी है । संयुक्त परिवार में मिलजुल कर सब रिश्ते रहते हैं ।

नियति नही बदल सकते हालात तो बदल सकते है !!- अंजना ठाकुर

कभी अकेलापन अवसाद जीवन पर हावी नहीं होता । तीज त्यौहार उत्सव साथ में मनाने का आनंद ही कुछ अलग है । संयुक्त परिवार में सब कुछ आसान हो जाता है । साथ में कुछ जिम्मेदारियां भी निभानी पड़ती हैं । संयुक्त परिवार में एक साथ रहना पहले के जमाने में अच्छा माना जाता था । आज के एकल परिवार की पीढ़ी में सहनशीलता का अभाव है । उनको साथ रहना पसंद नहीं आता । साथ में रहने का जो सुख है वह अलग रहने में नहीं ।

मौलिक रचना  “संयुक्त परिवार”

लेखिका 

सरोजनी सक्सेना

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