संतान – रश्मि सिंह

दीप्ति-दीदी मुझे यहाँ से ले जाओ, रोज़ रोज़ ताने सुन सुनकर मैं थक गई हूँ, मेरी कोख नहीं ठहरती तो इसमें मेरी क्या गलती। यहाँ सब सौरभ (दीप्ति का पति) की दूसरी शादी का सोच रहे है दीदी मुझे इसमें भी दिक़्क़त नहीं है पर सौरभ मुझसे तलाक़ ना ले।

शैली (दीप्ति की दीदी)-तुम पागल हो क्या अपने पति की दूसरी शादी से तुम्हें कोई एतराज़ नहीं, अगर कोई कमी सौरभ में होती तो क्या तुम दूसरी शादी कर लेती।

दीप्ति-पर दीदी रोज़ रोज़ खून के आंसू बहाने से अच्छा है इस समस्या का कुछ हल मिल जाए।

शैली (दीप्ति की दीदी)-हाँ तो इसका एक हल किसी बच्चे को गोद लेना भी है।

दीप्ति-दीदी, मम्मी नहीं मानेंगी कि कौन सी जात, कुल और नक्षत्र का है।

शैली उस वक़्त बात को विराम देकर फ़ोन रख देती है और अपनी कोख में पल रहे 6 महीने के बच्चे पर हाथ फ़ेरकर कहती है क्यों ना तू अपनी मासी माँ की गोद को भर दे।

शैली (फ़ोन पर)-दीप्ति, मेरी बहन तेरी सभी समस्याओं का निवारण हो गया, तू माँ बनने वाली है।

दीप्ति-दीदी क्यों जले पर नमक छिड़क रही।

शैली-सच में जो मेरी कोख में पल रहा है वो तेरी संतान होगी, अब तो तेरी सासु माँ को भी कोई दिक़्क़त नहीं होगी।

दीप्ति-ये क्या कह रही हो दीदी, जीजा जी को गये कितने दिन हुए है, उनके जाने के बाद अब ये संतान ही तो आपका सहारा है।

शैली-तू तो मेरी बीमारी का जानती ही है कब इस दुनिया को अलविदा कह दूँ कुछ पता नहीं, पर मेरे जाने के बाद बच्चे को तो मम्मी पापा दोनों का प्यार मिलेगा।

दीप्ति-दीदी मैं आपको बता नहीं सकती कि आपने क्या कह दिया मुझसे। दुनिया की सारी ख़ुशियाँ दे दी मुझे।

दीदी मैं आपको थोड़ी देर में कॉल करती हूँ सौरभ को तो ये ख़ुशख़बरी सुना दूँ।

आज एक साथ दो माएँ खुश थी, एक संतान को पकड़ और एक संतान को देकर।

स्वरचित एवं अप्रकाशित।

रश्मि सिंह

लखनऊ।

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