संस्कार के नाम पर. – संगीता त्रिपाठी

“शोभा सुना है तू और देवर जी पायल को उसकी ससुराल से वापस ले आये, कुछ समझ है तुम लोगों को, बेटी अपने घर में ही सोहती है,हमारे घर का यही संस्कार है, शादी हो गई, चाहे जैसा ससुराल हो बेटियों को ही निभाना है।”रमा जी ने देवरानी शोभा को डांटते हुये कहा।

     शोभा तो कुछ ना बोली पर बाहर बैठे कैलाश जी से रहा ना गया “भाभी, हमारे क्या संस्कार है हमें पता है, संस्कार के नाम पर मुझे बेटी की बलि नहीं देनी, एक गलती पहले की, जो जबरजस्ती शादी कर दी उसकी, उसे वहाँ भेज कर अब दूसरी गलती नहीं करूँगा, दुनिया कुछ भी कहे, मै पायल को पढ़ा कर आत्मनिर्भर बनाऊंगा तभी चैन की सांस लूंगा “।

 कैलाश की बात सुन रमा जी भड़क उठी “तुम्हे ही सिर्फ बेटी नहीं है, हमारे पास भी बेटी है पर हम उसको इतना सर नहीं चढ़ाते, शादी कर दी, अब निभाना उसका काम है “।

   “भाभी, नेहा निभा तो रही है, संस्कार के नाम पर आपको उसकी पीठ, चेहरे पर पड़े निशान नहीं दिखाई दे रहा, संस्कार की दुहाई दे कर आप अपनी जिम्मेदारी से ना भागो, अब तो सब जगह लिखा है “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ “इसे सिर्फ नारा समझ कर मत पढ़ो, इसे जीवन में उतारना सीखो, नेहा को ले आओ, कहीं संस्कार के नाम पर नेहा शहीद ना हो जाये “कैलाश जी की कड़वी बात सुन रमा गुस्से में अपने घर वापस आ गई।

       रमा और शोभा सगी देवरानी -जिठानी है, रमा को दो बेटा और एक बेटी नेहा है, जबकि कैलाश को तीन बेटियाँ ही है। रमा बेटों की माँ होने के दर्प में कई बार शोभा का दिल दुखाती थी।”लड़कियाँ तो अपने घर की हो जायेंगी, बुढ़ापे में तुम लोग अकेले रह जाओगे “। शोभा का मन बहुत दुखता पर सीधी होने की वज़ह से जिठानी को जवाब ना दे पाती।




            समय बीता, कैलाश जी ने पायल की जल्दी शादी से सबक ले, अपनी दोनों छोटी लड़कियों की पढ़ाई पर ध्यान दिया। पायल को भी आगे की पढ़ाई जारी करवा दी। स्नातक पूरी कर पायल प्रतियोगिता की तैयारी करने लगी।उसकी कड़ी मेहनत रंग लाई सिविल सर्विसेज की परीक्षा में सफल हो गई। “जहाँ चाह होती वहीं राह होती,”घर में बधाई देने वालों का ताँता लग गया, कल तक जो लोग पायल और कैलाश जी की. लानत -मलानत करते थे अब अपनी बेटियों को पायल का उदहारण देने लगे।ससुराल और पति फिर दौड़े आये पर पायल ने वहाँ जाने से इंकार कर दिया।

         रमा जी ने सुना तो ईर्ष्या से जल गई,पर बधाई देने देवर के घर आई तो बिना बोले रह नहीं पाई “भई, अपनी बेटी को मैंने संस्कारवान बनाया है, तभी तो निभा रही है, औरों की तरह नहीं कि ससुराल छोड़ कर मायके बैठी रहे,… ना बाबा.. हमारी नेहा संस्कारों में अपनी माँ पर गई है “।

         “भाभी, आपका संस्कार तो इतना अच्छा था, उसे नेहा नहीं ले पाई, नहीं तो आपकी तरह वो भी अपने सास -ससुर को घर से निकाल अपनी अलग गृहस्थी बना लेती “सदा शांत रहने वाली शोभा आज अपने को रोक ना पाई, जवाब दे दिया। बात जब संतान पर आती तो सीधी सरल माँ भी शेरनी बन जाती है। शोभा की बात से रमा जी फिर गुस्से में अपने घर चली गई।




             शाम रमा जी के घर रोने -पीटने की आवाज सुन शोभा और कैलाश जी रमा के घर गये पता चला, नेहा ने आत्महत्या कर ली, ससुराल से खबर आई। बड़े भाई -भाभी के संग कैलाश जी जब नेहा के ससुराल पहुंचे तो हँसती -खिलखिलाती नेहा को मृत्यु शैया पर देख बिलख पड़े। काश संस्कार के नाम पर नेहा को ससुराल में ना छोड़ा होता तो नेहा आज जिन्दा होती।

             “देवर जी आप ठीक कहते हो, संस्कार के नाम पर, हम नेहा को खो बैठे, काश हिम्मत कर आपकी तरह हम भी नेहा को इस नर्क से निकाल कर ले आते तो आज हमारी बच्ची जिन्दा होती “। रमा जी नेहा के शरीर से लिपट कर रोते हुये बोली।

     “काश हमने भी नेहा को गलत सहने के विरुद्ध आवाज उठाने की शिक्षा दी होती तो आज मेरी बेटी जिन्दा होती “रमा जी रह -रह कर पश्चाताप से बोल रही थी पर अब क्या हो सकता जब चिड़ियाँ चुग गई खेत…..।

         दोस्तों, आज भी हमारे समाज में बेटियाँ इज्जत और संस्कार के नाम पर शहीद होती है, माता -पिता बदनामी के डर से बेटियों का साथ नहीं दे पाते। बेटियाँ सही होकर भी गलत साबित कर दी जाती….। समय बदल रहा, शादी से पहले बेटियों को आत्मनिर्भर बनाइये। उनको गलत के विरुद्ध आवाज उठाना सिखाये।अपवाद सभी जगह है, जरुरी नहीं हर ससुराल खराब ही हो….। 

#संस्कार 

                   .—-संगीता त्रिपाठी 

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