सम्मान की सूखी रोटी :  स्वाती जैन : Moral Stories in Hindi

सड़क के किनारे एक टीन, जिसके नीचे वहीं एक बुजुर्ग व्यक्ति जिनकी आंखें नहीं थी, वो अपनी छड़ी के सहारे कोने में एक थैले को बगल में दबाए हुए खड़े ठिठुर रहे थे, क्योंकि पानी भरे होने के कारण बैठने की भी जगह नहीं बची थी।

बरसात की तरह आज उनकी आंख का पानी भी रुकने का नाम नहीं ले रहा था। बेसहारा वृद्ध महेश जी बरसात के रुकने का इंतजार कर रहे थे। टीन में हुए छेदों से गिरते पानी के कारण वो पूरे भीग चुके थे , और ठंड से कांप रहे थे। तभी वहां से छतरी लेकर एक बच्चा गुजरा और बोला…” दादाजी यहां क्यों खड़े हो आप, घर जाना है क्या..?

बच्चे के मुंह से दादाजी की आवाज सुनकर महेश जी चौंके क्योंकि वे बहुत लोगों से मदद मांग चुके थे मगर किसी ने उनकी नहीं सुनी और छोटा सा बच्चा उन्हें दादाजी कहके पुकार रहा था !!

 घर कहां है आपका, उस बच्चे ने दोबारा पूछा …”क्या हुआ दादाजी , मैं कुछ मदद करूं क्या आपकी ?? तो महेश जी ने कहा….”बेटा कौन हो तुम. तो उस बच्चे ने करीब आकर कहा….” दादाजी मेरा नाम सोनू है, चलिए मैं आपको घर पहुंचा देता हूं।“ बच्चे ने बहुत मासूमियत से कहा तो महेश जी नम आंखों से बोले….” बेटा ,

मेरा घर नही है, और मैं देख भी नहीं सकता, मैं तो रात में यहीं सोता हूं, लेकिन आज पानी यहां भी भर चुका हैं !! सोनू बोला दादाजी, आप मेरे घर चलो ना। आपके कपड़े गीले हो गए हैं उन्हें मम्मा से सुखवा भी दूंगा।“ एक बच्चा इतनी आत्मीयता दिखा रहा था और एक अपने थे, जो उन्हें इस हालत में छोड़कर जाने कहां थे

और उपर से घर चलने की जिद किए जा रहा था वह अलग !! सोनू महेश जी का हाथ खींचते हुए बोला दादाजी, चलो ना, देखो, इधर पानी भरा है ! महेश जी कुछ बोल ना पाए और उसके साथ चल दिए !! रास्ते में महेश जी सोचने लगे ना जाने इसके माता पिता इसे मेरे साथ देखकर क्या सोंचेंगे ”मुझ फटेहाल भिखारी को अपने घर में देखकर इसके घरवालो को बुरा लगेगा। ये तो बच्चा है, नादान है, मुझे यहां से चले

जाना चाहिए। जिंदगी में इतना अपमान सहने के बाद अब और अपमान नहीं सह सकूंगा !! सोनू जैसे ही अपने घर में गया महेश जी दबे पांव लाठी टिकाते हुए वहां से निकल गए , लेकिन बारिश मे इतना भीगने के कारण वो अब तक बुखार में तप चुके थे, किसी तरह से उन्हें किसी दुकान के आगे जगह मिल गई , जहां उन्होंने अपने थैले में से गीली चादर निकालकर बिछा ली और सो गए !! दादाजी , दादाजी की आवाज

से महेश जी अचानक से उठ बैठे, सोनू बोला मम्मी , यही हैं वह दादाजी !! महेश जी बोले सोनू हैं क्या ?? सोनू की मां बोली हां अंकल जी , सोनू ही हैं !!

कब से मुझसे कह रहा था दादाजी को ढूंढकर लाओ !!

ये कहकर वो साथ वाली दुकान पर जाकर चाय ले आई और खाने का सामान भी लाकर उन्हें दे दिया !! महेश जी के ना लेने पर उन्हें जबरदस्ती चाय और खाना पकड़ाया !!

 उनका बदन कांपते देख सोनू की मां बोली,”अंकल जी, आपको तो बुखार है, सोनू के पापा डॉक्टर हैं। तो सोनू तुरंत चहकते हुए बोला…” हां दादाजी मेरे पापा डाक्टर है वो, सबको ठीक कर देते हैं।“ सोनू की मां ने तुरंत सोनू के पापा को फोन करके बुलाया !!

सोनू के पापा महेश जी को अपने साथ घर ले गए , और उनका चेकअप किया। बुखार की कुछ दवाइयां भी दीं और बोले अंकल जी आपको आराम की जरूरत हैं आप आज से यही हमारे साथ रहेंगे, मगर महेश जी को वो सब स्वीकार नहीं था। उन्होंने कहा, “ मेरे अपनों ने ही मुझे छोड़ दिया तो, अब मैं किसी का अहसान नहीं ले सकता बेटा,

तुम मुझे ऐसे ही छोड़ दो। आप लोगों ने मेरे लिए इतना किया उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।“ सोनू के पापा सुमित ने कहा , “अंकल जी सोनू ने आपको दादाजी कहा है। तो आप मेरे पिता समान हुए ना, तो इस बेटे के घर में रहने से मना क्यों करते हैं। अच्छा आप ठीक हो जाइए, फिर आपको मैं नही रोकूंगा लेकिन अभी इसमें रहिए।“

उनके बार बार कहने पर महेश जी को मानना पड़ा, और वे वहां ठहर गए। सोनू के माता पिता शालू और सुमित की सेवा से वो ठीक होने लगे , अच्छे कपड़े और अच्छे खान पान से चहरे की चमक वापस आ गई थी। महेश जी बार बार ईश्वर को धन्यवाद करते, कि इतनी दुख की घड़ी में उन्हें सोनू और उसके माता पिता का साथ मिला।

एक दिन सोनू की मम्मी शालू ने पूछ ही लिया,….”अंकल जी बुरा न माने तो आपके परिवार के बारे में जानना चाहती हूं ,आपके भी तो बेटे बेटी होंगे..???” महेश जी खामोश हो गए और उन्हें भूले बिसरे दिन फिर से याद आ गए जिनकी पीड़ा चेहरे पर साफ झलकने लगी थी। अपनी आंखों के आंसू पोंछकर बोले …”बेटा , परिवार तो है,

मगर अब जाने कहां गए सब मुझे छोडकर, मैने तो कितनी बार तलाशा ,मगर कुछ पता नहीं चला, शालू ने कहा..” अंकल, हुआ क्या था आपके साथ, जो आप बेघर हो गए, महेश जी उसकी बात सुनते ही उन यादों में चले गए जो, उनकी आंखों के सामने तैरने लगीं। करीब डेढ़ साल ही हुआ था, जब वो अपने परिवार के बीच थे। परिवार में दो बेटे और बहू थीं। पत्नी के साथ बाकी जीवन तीर्थ करने में बीत रहा था। दोनो अक्सर ,तीर्थ पर ही रहते और अब तक अलग अलग प्रदेशों में घूम चुके थे। बेटे बहुएं भी अपने जीवन में मस्त थे। एक बार तीर्थ करते समय जब शहर घूमने निकले, तो सड़क पार करते समय दोनो का एक्सीडेंट हो गया। दोनों को भयंकर चोटें आई। पत्नी की हालत बहुत गंभीर थी, और महेश जी को सिर में और आंखों में चोटे आई थीं।

बेटो ने हॉस्पिटल में भर्ती करवाया, मगर उनकी पत्नी को बचाया न जा सका, और उनकी मृत्यु हो गई !! पत्नी के दुख से गुजर ही रहे थे कि किशोर जी पर कुछ दिन बाद एक दुख का पहाड़ और टूट पड़ा, उनकी आंखें देखने लायक नही बची थीं। वो अपनी आंखों की रोशनी खो चुके !!

जब हॉस्पिटल से घर वापस आए तो, बहुओं को अंधे ससुर का ख्याल रखने में समस्या होने लगी। बेटे दिन भर ऑफिस में रहते तो, दिन में दोनों बहुएं आपस में उनके काम को एक दूसरे पर टालती रहती। कई बार महेश जी खाने का इंतजार ही करते रहते। पर शाम तक खाना ही नहीं मिलता था तो अपने काम खुद से करने की कोशिश भी करते तो न देख पाने के कारण कही भी टकराकर गिर जाते , तो कभी कपड़े उल्टे पहन लेते थे। कई बार तो सही अंदाज न होने के कारण पानी ही बिस्तर पर गिर जाता था। जब वो गिरते तो बहुए उन पर हसती और उन्हें उठाने भी नही आती , और महेश जी को अपने कमरे का अंदाजा तक न रहता। इस अंधेपन के कारण उन्हें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता, एक दिन बड़ी बहू रचना ने अपने पति राजेश से कहा….” राजेश हम तुम्हारे अंधे बाप को कब तक संभालेंगे। ये छोटी तो कुछ करती नही है। तुम्हारा बाप भी हर छोटी बात के लिए आवाज लगाता रहता है, मैं सारा दिन थक जाती हूं।मुझसे तो नही होगा, अब कुछ फैसला कर लो।“ राजेश ने कहा….”अब क्या करूं मैं, इनको भी तीर्थ करने की जाने क्या पड़ी थी। अब कौन करे।“ उधर छोटी बहु माला भी अपने पति नरेश से यही कहती ….”देखो नरेश, अपने पापा को कहीं छोड़ आओ नही तो इनके काम के लिए नौकर लगा दो । मै तो नहीं कर सकती , दीदी सारा दिन इनका काम मुझ पर टालती हैं और मैं अकेले करती हूं। तुम्हारा बाप नखरे भी बहुत करता है।“ नरेश ने कहा….”राखी, हम नौकर रखेंगे तो उसका खर्चा भी तो देना होगा। बड़े भैया तो देंगे नहीं और हम पर अकेले बोझ पड़ेगा। नौकर रखना तो बेवकूफी होगी। हां इन्हें कहीं छोड़ सकते हैं।“ माला ने नरेश को बड़े भैया से बात करने का सुझाव दिया तो नरेश ने जाकर बड़े भाई राजेश से कहा….”भैया, पापा के लिए करना मुश्किल हो गया है, माला सारा दिन लगी रहती है। “ यही बात राजेश ने अपनी पत्नी रचना के किए कही !! बात का कुछ हल ना निकला !!

“ये बुड्ढा तो अंधा होकर बैठ गया, बेटों बहुओं पर बोझ बनते शर्म भी नही आती।“ रचना के तीखे शब्द महेशजी के कानों में पड़ते तो, वो तिलमिलाकर रह जाते, क्योंकि अब खुद भी लाचार थे तो चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते थे !! एक बार बहुत देर तक खाना ना मिलने के कारण महेश जी भूख प्यास से तड़प उठे, लेकिन किसी बहु को भी तरस नही आया। जब उन्होंने खुद ही भोजन तलाशने की कोशिश की तो, रसोई से समान गिरने की आवाज़ें आई। दोनो भागकर आई तो देखा, कि किचेन में कांच का समान नीचे गिरकर टूट गया था। महेश जी को वहां देखकर रचना उन पर हाथ उठाते हुए बोली कितना नुकसान कर रहा हैं तु बुड्ढे , अब कौन भरेगा ये सबका बिल ।“ अंधे महेश जी जमीन पर पड़े बडी बहु के हाथों पीटे जा रहे थे, नीचे पड़े कांच के टुकड़े उनको चुभ गए थे, लेकिन रचना उन्हें इतनी बदहवास होकर मार रही थी, कि उन्हें उनके शरीर पर बहता खून भी दोनों को ना दिखाई दिया। कांच चुभने के जख्म कई जगह हो गए थे, और महेश जी दर्द से कराह रहे थे इतनी बदतर जिंदगी जी रहे महेशजी जी ये सब सहने को मजबूर थे। उनके जख्म ठीक नही हो रहे थे, और अब उनमें पच पड़ने लगा था। बेटों ने उन्हें एक सरकारी अस्पताल में भरती करवा दिया। लेकिन इससे पहले कुछ कागजात अस्पताल के नाम पर साइन करवा लिए। महेश जी को अस्पताल में ठीक होने में काफी समय लगा, उनसे घरवालों के बारे में पूछा जाता तो, वो कुछ न बता पाते। कोई भी इतने दिन में उन्हें अस्पताल में देखने तक नही आया। महेशजी जी ठीक होकर जब खुद ही अपने घर के पते पर पहुंचे तो पता चला, कि पूरा परिवार घर बेचकर जा चुका था।

महेश जी बेबस होकर कितनी देर घर के बाहर बैठे रहे। फिर वहां से उठकर मंदिर चले गए, हर रोज भगवान से प्रार्थना करते, और घर पर जाते ,कि शायद कोई उन्हें मिले। मगर उनके अंधेपन का फायदा उठाकर उनके साथ विश्वासघात किया गया था। घर अपने नाम कराकर बेच दिया गया था। महेश जी की इतनी कहानी सुनकर शालू की आंखों में आसूं आ गए…”अंकल जी आपके साथ तो बहुत बुरा हुआ। इतनी बुरी औलाद कैसे हो गई, कि बाप का ख्याल न आया।“ महेश जी ने कहा…”बेटा सब तुम्हारी तरह नही होते, संस्कार तो मैंने भी अच्छे ही दिए थे , मगर अब समझ नही आता ,कि किसको दोष दूं किस्मत को , बच्चों को या फिर अपने संस्कारों को बुरा कहूं।“ महेश जी रो रहे थे, और सोनू उनके आंसू पोंछ रहा था !!

एक दिन सोनू के पापा सुमित ने आकर कहा….” अंकल जी एक आंखों के कैंप का आयोजन हो रहा है। वहां आपकी आंखें दिखाकर पता कर सकते हैं, कि आप फिर से देख पाएंगे या नहीं। क्या पता कुछ इलाज हो जाए और आप देख पाएं…!!!!” महेश जी ने कहा…” नहीं बेटा, डॉक्टर ने मना कर दिया था अब तुम भी रहने दो। इतना किया वही काफी है, उसके इलाज में बेकार इतना पैसा भी खर्च होगा, और फायदा भी नही होगा। “ सुमित ने कहा….”अरे नही नही अंकल जी , वो सब काफी सस्ता है बल्कि गरीबों के लिए मुफ्त भी है।“ सोनू खुश हो रहा था कि अब दादाजी देख पाएंगे क्योंकि शालू ने उनको इलाज करवाने के लिए मना लिया था। कैंप में उनकी आंखें दिखाई गई , तो डॉक्टर ने कहा कि ठीक होने की कुछ संभावना तो है, लेकिन थोड़ा ट्रीटमेंट शुरू करके पता चलेगा।“ सुमित डॉक्टर्स की इस बात पर राजी हो गया और महेश जी का इलाज शुरू हो गया। एक महीने के ट्रीटमेंट के बाद डॉक्टर्स ने कहा कि आंखें वापस आ सकती हैं !!

महेश जी के छह माह के ट्रीटमेंट के बाद वो दिन आ गया जब उनकी आंखों की पट्टी खोली जानी थी। उन्होंने सबसे पहले सोनू को देखने की इच्छा जताई, हल्के हल्के आंखें खुली तो पहले कुछ नजर नही आया, लेकिन थोड़ी देर बाद सोनू का चेहरा दिखाई दिया और दादाजी दादाजी कहकर वह उनसे लिपट गया। महेश जी ने उसे खुद से लिपटा लिया, और खूब प्यार किया और बोले…”मेरे मासूम फरिश्ते, ये सब तेरे कारण ही हुआ है।“ महेश जी अपनी आंखें ठीक होने से बहुत खुश थे, और उन्होंने सुमित और शालू से अपने घर के पते पर जाने की इच्छा जताई। दोनों उन्हें लेकर वहां पहुंचे तो, इस घर में आए नए मकान मालिक ने कुछ नही बताया। महेश जी दुखी मन से वापस आ गए। अब महेशजी के दिन सोनू के साथ बीतने लगे थे। एक दिन उन्होंने डॉक्टर सुमित और शालू के सामने अपना थैला खोला, और अपनी पत्नी की तस्वीर बाहर निकाली उन्होंने दोनो से कहा….”तुम दोनों के कारण ही मैं ये जीवन फिर जीने के लायक हुआ हूं, नही तो भिखारी बन चुका था, और दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर था। आज अपनी पत्नी की तस्वीर इन्ही आंखों से देखकर उसे याद करता हूं , सब तुम लोगों के कारण हो सका है।“ दोनो उनकी बाते सुनकर बोले हमने ऐसा कुछ नही किया धन्यवाद तो उस भगवान का है, और फिर सोनू को भी तो दादा जी मिल गए।

महेश जी ने उनकी बात सुनकर हाथ में ली तस्वीर को पीछे से खोलना शुरू कर दिया, ये देखकर दोनो चौंक गए, कि ये ऐसा क्यों कर रहे हैं। महेश जी ने तस्वीर खोलते ही पीछे से कुछ कागजात बाहर निकाले जिन्हें देखकर दोनो हैरान रह गए , महेश जी बोले ये उस जमीन के कागजात हैं जिसके बारे में मेरे बच्चे तक नही जानते थे। ये जमीन हमने तीर्थ पर जाने के पहले खरीदी थी , जिसके लिए गांव की जमीन बेच दी थी। इसी शहर में इसको खरीदा था ,और तीर्थ से आने के बाद बच्चों को तोहफे में देना चाहते थे, मगर उसके बाद उनका रूप देखकर मेरा मन बदल गया। लेकिन अब ये जमीन मैं तुम्हें तोहफे में देना चाहता हूं। क्योंकि तुम दोनो मेरे बच्चे ही हो, इतना तो मेरे लिए कोई नही कर सकता था, कि सड़क से उठाकर दिल से लगा लिया इस भिखारी को, ये उसकी कीमत नही बल्कि मेरा प्यार समझकर रख लो, “ ये सब देखकर दोनो हैरानी से एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे, कुछ देर बाद दोनों ने कहा,” नही अंकल जी ये हम नहीं ले सकते हमने किसी लालच से आपके लिए कुछ नही किया।“ महेश जी यह सुनकर उदास हो गए और बोले बेटा , क्या इस जमीन पर हम हॉस्पिटल बनवा सकते हैं , यह सुनकर सुमित बोला हां अंकल जी बिल्कुल !! मैं कल ही इस जमीन पर हॉस्पिटल बनवाने की प्रक्रिया शुरू करवाता हुं !! दो साल बाद हॉस्पिटल बनकर तैयार था जिसका उदघाटन महेश जी द्वारा करवाया गया और वहां सुमित के अलावा कई डॉक्टर्स काम करने लगे !!

एक रात को सुमित को हॉस्पिटल से फोन आया और उन्हें अचानक हॉस्पिटल बुलाया गया !!

सुमित हॉस्पिटल पहुंचा तो देखा एक आठ वर्षीय लड़का जो बुखार से बहुत तप रहा हैं , जिसकी आंखें उपर चढ़ चुकी थी !!

सुमित ने तुरंत उसे एडमिट किया और चौवीस घंटे की निगरानी में उसे रखने कहा !!

दूसरे दिन महेश जी सुमित के साथ हॉस्पिटल का मुआयना करने निकले थे तब वापस सुमित को एमरजंसी कॉल आया कि उस बच्चे की तबीयत ज्यादा खराब हैं , सुमित महेश जी को लेकर वहां पहुंचा और उस बच्चे का इलाज करने लगा !!

बच्चे के माता पिता बहुत रो रहे थे , महेश जी ने जब उन्हें देखा तो हैरान रह गए !!

इस बच्चे के मां बाप कोई और नहीं बल्कि उनके बेटे बहू रचना और राजेश ही थे। महेश जी की नजर बेड पर लाचार पड़े अपने पोते पर पड़ी तो उनका दिल रो पड़ा।

राजेश ने जब अपने पिता को वहां देखा वो हैरान हो गया, कि इनकी आंखें ठीक कैसे हो गई और ये यहां कैसे..??”राजेश के मन में चलते सवालों को महेश जी ने ताड़ लिया था पीछे से रचना की आवाज आई ….”डॉक्टर साहब , मेरे बच्चे को बचा लीजिए जाने इसको क्या हो गया है। “

डॉक्टर सुमित ने बच्चे को देखते हुए धीरे से कहा…” बच्चे की हालत बहुत गंभीर हैं , भगवान से प्रार्थना किजिए !! डॉक्टर की बात सुनकर रोती हुई रचना को किशोर जी ध्यान से देख रहे थे। ये वही रचना थी जिसकी इतनी प्रताड़नाएं महेश जी ने बिन कुछ कहे सही थीं। उनके कान में तभी रचना की आवाज पड़ी….”ये तुम्हारा बाप यहां क्या कर रहा है, इससे कहो कि जाए यहां से ,कैसे मेरी तरफ देखे जा रहा है।“ डॉक्टर सुमित ने सारी बात सुनी तो पीछे पलटकर कहा….”ये आदमी इस हॉस्पिटल के मालिक हैं मैडम, ये मेरा नही इनका हॉस्पिटल है, रचना हक्की बक्की रह गई। “इतना बड़ा हॉस्पिटल कैसे कर किया सब इस बुड्ढे ने..???” बस यही सब रचना मन में सोचने लगी, जिस पर राजेश भी हैरान हुआ। अपने बाप को इस मुकाम पर देखकर नजरें झुकाने को मजबूर हो गया।

उतने में सुमित को एक डॉक्टर द्वारा बाहर कुछ इमरजेंसी मींटिग के लिए बुलाया जाता हैं !!

राजेश ने महेश जी से कहा…”पापा, आपकी आंखें वापस ठीक कैसे हो गई…????”

राजेश को बोलते देखकर रचना बोली ये कौन सा नया नाटक है, कोई लॉटरी तो लग नही गई होगी इस बुड्ढे की..??? किसकी जेब काटकर ये सब बनवा लिया।“ महेश जी ने गुस्से से उसकी तरफ तिरछी निगाहों से देखकर कहा…”यही जानना चाहते हो न कि तुम्हारा बाप मरा क्यों नही, बच कैसे गया और ये सब कैसे हो गया ????” राजेश का सिर झुक गया और अपने किए पर झूठ बोलकर लीपापोती करने की कोशिश करने लगा ”पापा, आप जाने कहा थे , हमें मिले ही नही थे।“ ये सुनकर महेश जी दहाड़ पड़े….”झूठ मत बोलो तुम लोग, तुम लोग घर ही बेचकर चले गए थे। तुमने मुझसे गलत कागज पर झूठ बोलकर साइन करवाए। जब मैं गया तो पड़ोसियों ने कहा कि कब गए पता ही न चला। बोलो अब भी झूठा हूं क्या मैं…???” राजेश ने कांपती आवाज़ में कहा….”नही पापा, ऐसा तो नहीं कहा मैंने।“ तभी रचना अपने बच्चे के पास भागी जो जोर जोर से लंबी लंबी सांसे ले रहा था। घबराई हुई रचना बच्चे को आवाज दे रही थी , मगर उसका शरीर कोई हरकत नहीं कर रहा था। रचना ने महेश जी के पास आकर कहा…”पापा, आप डॉक्टर को बुला दीजिए प्लीज पापा, आप तो यहां के मालिक हैं। पापा, वही मेरे बच्चे को ठीक कर सकते हैं। देखिए न इसकी क्या हालत हो रही है।“ रचना महेश जी के कदमों में गिरकर बच्चे के लिए मदद मांग रही थी, महेश जी को अपने पोते की हालत पर तरस आया, और वे सोचने लगे इस बच्चे का क्या कसूर है, उन्होंने अपने फोन से डॉक्टर सुमित को कॉल किया., “बेटा, पांच मिनिट चाहिए थे।“ डॉक्टर सुमित ने कहा,,, हां हां अंकल जी कहिए क्या हुआ..???” महेश जी ने कहा, जिनका बच्चा तुम्हारे पास इलाज के लिए आया है। वह मेरा पोता है, प्लीज बच्चे को तुरंत तुम्हारी जरूरत है, आ जाओ।“ डॉक्टर सुमित ये सुनते ही डॉक्टर से चल रही मीटिंग छोड़कर आ गए और बच्चे का इलाज करना शुरू किया !! रचना और राजेश महेश जी के आगे हाथ जोड़े खड़े थे। रचना ने हाथ जोड़कर उनसे माफी मांगी और बोली…” पापा, मुझे माफ कर दीजिए। बहुत बड़ी गलती हुई है। मुझसे पाप हुआ है। आपको इतना दुख दिए, जिसकी जो सजा मिले कम ही होगी।“ महेश जी को आज माफी की जरूरत नहीं थी। उन्होंने माफ करने को साफ मना कर दिया,” राजेश ने रोते हुए कहा…”पापा आज आप नही होते तो हम जाने क्या करते। मेरे बेटे का इलाज सही समय पर हो गया। पापा ,हम माफी चाहते हैं। मगर महेश जी कुछ नहीं बोले, डाक्टर बाहर आए तो बच्चा अब खतरे से बाहर था, राजेश और रचना ने डॉक्टर को शुक्रिया कहा। तो डॉक्टर सुमित ने कहा…”इनको धन्यवाद कीजिए, इनके कहने पर ही सब हुआ है। रचना की आंखें शर्मिंदगी से भरी थीं। अपने किए कारनामों को याद कर रही थी, और अब महसूस हुआ था, कि कितना गलत किया था उसने !! महेश जी वहां से अपनी कार में बैठ कर घर के लिए निकल गए, दोनों बेटे बहु उन्हें देखते रह गए !! महेश जी एक समय मुसीबतों से घिर खड़े थे, तब यही बेटे छोड़कर चले गए थे आज उनका साथ किस्मत ने छोड़ा तो, महेश जी ने ही सहारा दिया था।

दोस्तों , इस कहानी को लेकर आपकी क्या राय हैं ?? कमेंट जरूर कीजिएगा !!

आपकी सहेली

स्वाती जैन

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