“सम्मान की सूखी रोटी” – सरोजनी सक्सेना : Moral Stories in Hindi

रामचरण जी की शहर में ऑटो पार्ट्स मैन्युफैक्चरिंग की फैक्ट्री है । रामचरण जी एक सुलझे हुए दयाशील सर्वगुण संपन्न बहिर्मुख व्यक्तित्व के मालिक हैं । व्यवहार कुशलता ही उनके जीवन की आधारशिला है । जो उनके पारिवारिक संस्कारों को आधार है । अपने पारंपरिक व्यवहार कुशलता भाव भंगिमा से परिलक्षित होती है ।

यही कारण है उनकी फैक्ट्री दिन दुनी रात चौगुनी उन्नति के शिखर की और अग्रसर है । उनके सदभावपूर्ण व्यवहार के कारण ही उनकी फैक्ट्री के कर्मचारी लोग, सारा स्टाफ मेहनत और लगन से काम करता है ।

रामचरण जी की पत्नी मधु लता भी संस्कारिक मृदुल भाषी हंसमुख स्वभाव की महिला है । उनके तीन बेटे हैं । बड़ा बेटा अजय, छोटा विजय और तीसरा संजू । दोनों बड़े भाइयों से संजू बहुत छोटा है । छोटा होने के कारण वह सबका बहुत लाड़ला है ।

रामचरण जी भी अपने मां-बाप के इकलौते बेटे हैं । इसी कारण उनके पिताजी ने उनकी पढ़ाई पूरी होने के बाद उनकी फैक्ट्री इसी शहर में खुलवाई थी । ताकि बेटा उनके पास ही रहेगा । जमीन जायदाद पैसों की कोई कमी नहीं थी । भगवान का दिया सब कुछ था । रामचरण की बचपन से ही होनहार थे । पढ़ाई में सदा प्रथम रहते ।

हक – नन्दिनी

अपने पारिवारिक संस्कार और सबके प्यारे आज्ञाकारी पुत्र रहे । इसी कारण पिता के कहने पर यही घर पर ही रहने का विचार मन में बना लिया । उनकी इच्छा दूसरे शहर में जाकर नौकरी करने की थी । सबका कहना मानकर फैक्ट्री खोलने को राजी हो गए  इंजीनियरिंग करने के बाद । अब पिताजी रहे नहीं । उनके नाम की फैक्ट्री रामेश्वर प्रसाद चल रही है ।

खूब फल फूल रही है । रामचरण जी अपने पूरे स्टाफ के लोगों को बोनस भी दिवाली पर अच्छा देते थे । शाम को चाय और हल्का-फुल्का नाश्ता भी अपनी तरफ से दिया करते थे ।

अब उनके दोनों बड़े बेटे अजय और विजय बधाई के लिए दूसरे शहर में चले गए । छोटे बेटे संजू की रुचि अलग डॉक्टर बनने की है । उसके मन में छोटेपन से एक अच्छे डॉक्टर होनेका सपना है ।

उसका एक साथी दोस्त मोनू डॉक्टर की गलत दवा देने के चक्कर में इस दुनिया से चला गया । तभी से उसके बचपन से ही मन में डॉक्टर बनने की थी । बड़े होने पर उसने पिताजी से अपने मन की बात कह दी । पिताजी को कोई एतराज नहीं था । 

अजय विजय अपनी पढ़ाई पूरी करके घर आ गए । अपने पिताजी से बात करके अपनी फैक्ट्री में ही काम करने की राय रखी । पिताजी ने कहा जो तुम दोनों को ठीक लगे । दूसरे दिन से उन दोनों ने अपनी फैक्ट्री जाना और काम करना शुरू कर दिया । दोनों ही इंजीनियरिंग करके आए थे । अच्छे से काम संभाल लिया । नई-नई टेक्नोलॉजी के बारे में अपने पिता और सीनियर इंजीनियरों से राय लेते रहते । 

छोटा संजू अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए दूसरे शहर चला गया । अजय और विजय की शादी के लिए रिश्ते आने शुरू हो गए । उनके परिवार की शख्सियत नामीग्रामी है । उनको दान दहेज चाहिए नहीं

। बस लड़की व्यवहार कुशल संस्कारी चाहिए । आखिर में हंसा जो बी ए करने के बाद आगे की पढ़ाई की तैयारी में थी । उसके मां-बाप ने उसको समझाया । बेटा अच्छा घर भर है । जाना पहचाना है । बार-बार अच्छे रिश्ते नहीं मिलते । आखिर हंसा शादी के लिए मान गई ।

विदाई – अभिलाषा कक्कड़

विजय के लिए इनको इनकम टैक्स अधिकारी की बेटी रीना पसंद आ गई । वह बहुत ही सुंदर मधुर भाषी व्यावहारिक लड़की लगी । थोड़े अंतराल के अंदर ही दोनों बेटों की शादियां हो गई । रामचंद्र जी के परिवार में खुशियां ही खुशियां जगमगाने लगी । रामचंद्र जी और उनकी पत्नी आस्थावान और दानवीर रहे हैं ।

पूजा पाठ मंदिर जाना उनके दिन प्रतिदिन का नियम है । सुबह 5:00 बजे उठकर एक-एक कप चाय पीकर मॉर्निंग वॉक के लिए निकल जाते हैं । लौटकर अपनी पूजा पाठ करते कराते आते तब तक बहुएं बेटे भी उठ जाते । सब साथ में नाश्ता करके अपने काम पर निकल जाते । बीच-बीच में तीर्थ यात्रा के लिए भी जाया करते थे ।

रामचरण जी ने एक नियम बना रखा है । शुरू से बच्चों के जन्मदिन पर सदा अनाथ आश्रम में बच्चों को खाना, मिठाई देना, सारा दिन उनके बीच बिताना । हर महीने अनाथ आश्रम के लिए चदें के रूप में दान में देना । अपने पति-पत्नी के जन्मदिन पर वृद्ध आश्रम में बुजुर्ग लोगों को खाना मिठाई लेकर जाना, उनका नियम था ।

हर महीने चंदे के रूप में पैसे देकर बुजुर्ग लोगों की मदद करना । वहां के मैनेजर उनके हमदर्द और दोस्त की तरह है । पैसों का उनको घमंड नहीं था । समान व्यक्तियों की तरह ही सबसे मिलना, आदर भाव करना दोनों पति-पत्नी का स्वभाव है । लक्ष्मी की उन पर मेहरबानी है । 

छोटे बेटे संजू की मेडिकल की पढ़ाई पूरी हो गई । उसके मन में जैसा अटल विश्वास था डॉक्टर बनने का सपना पूरा हो गया ।

उसने घर जाकर सबसे पहले मां को बात बताई शहर में अस्पताल खोलने की । बात जानकर सब बहुत खुश हुए । संजू के मां पापा को संजू की शादी की चिंता थी । उसने बताया उसके साथ ही पढ़ने वाली डॉक्टर लड़की रचना के बारे में । संजू और रचना की शादी धूमधाम से हो गई । रामचरण की मधुर लता जी एक दिन अपने घर के गार्डन में बैठे शाम की चाय पी रहे थे ।

बैठे-बैठे मधु लता जी बोली पता ही नहीं लगा हम अपनी जिम्मेवारियां पूरी करते-करते कब उम्र दराज हो गये । आभास ही नहीं हुआ । दोपहर में जब सब खाना खा रहे थे तो दोनों बेटों ने कहा पापा आप खाना खाकर आराम करा कीजिए । उन दोनों को भी थकान का अनुभव महसूस होने लगा ।

शाम को चाय पीकर दोनों पार्क में घूमने के लिए निकल जाते हैं । वहां अपने उम्र के साथियों के साथ गप्पे और हंसी मजाक होती । घर आते तब तक दोनों बेटे भी फैक्ट्री से आ जाते । खाना खा कर थोड़ी देर ऑफिस की चर्चा होती है । फिर अपने-अपने रूम में सोने चले जाते हैं । एक दिन जब रामचरण जी की फैक्ट्री के लिए तैयार हो रहे थे ।

 ‘ सच्चा सुख ‘ –   विभा गुप्ता

उस समय उनकी पत्नी ने कहा आज आप फैक्ट्री नहीं जाइए । मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही । वह बोले जल्दी आ जाऊंगा । तुम चिंता मत करो । कुछ नहीं होगा । बहूयें तुम्हारे पास है । उस दिन ऑफिस में उनसे कुछ लोग राय मशवरा लेने आ गए । इस कारण घर पहुंचते पहुंचते शाम हो गई । शाम तक जब मां उठी नहीं तो बहू उनको उठाने गई ।

उसने मां जी को उठाने के लिए दो-तीन आवाज दी । नहीं उठने पर उनका हाथ हिला कर उठाना चाहा । वह एकदम ठंडा था । दोनों ने डर कर अपने पति और ससुर जी को फोन किया । मां को पता नहीं क्या हो गया है । उठ ही नहीं रही है   । सब जल्दी से घर आए । देखा तब तक मधुर लता जी के प्राण पखेरू उड़ चुके थे खबर पाकर डॉक्टर संजू भी परिवार के साथ आ गया ।

कुछ ही क्षणों में रामचरण जी का हंसता खेलता परिवार मुरझा गया । उनका सारा क्रिया कर्म करने के बाद सारे रिश्तेदार लोग जा चुके थे । अब घर में सन्नाटा छा गया । रामचरण जी मॉर्निंग वॉक जाने को तैयार थे । कोई बहु चाय बना कर दे देती । कभी कोई बहू । कभी कोई बेटा । एक दिन किसी ने नहीं बनाई तो अपने आप बने रसोई में गए चाय बनाई ।

थोड़ी बहुत स्लैब पर गिर गई । जब बहू उठकर आई देखा स्लैब पर चाय गिरी पड़ी है । उसका बोलने का तरीका ही बदल गया । वह सब सुनकर चुप रहे । दूसरे दिन जब घूमने के लिए बिना चाय पिए निकल गये । पार्क के पास ही एक छोटी चाय की दुकान खोली है । वह वहां चाय पी रहे थे । इतने में उनका जानकार मैनेज़र मिल गया । उसने पूछा आज यहां ।

बोले मैं सुबह-सुबह बच्चों की नींद खराब नहीं करना चाहता । धीरे-धीरे उनकी बहू का उनके प्रति व्यवहार चेंज होता गया । खाना भी ठंडा,  बासी रोटी कड़क, सब्जियों में तेल ज्यादा, किसी में नमक मिर्च अधिक । कभी-कभी भूख जोर से लगती तो किसी से कह भी नहीं पाते । बेटों से वह कुछ कहते नहीं थे । बहू से कहें तो जवाब मिलता मै बच्चों के काम करूं या आपके भूख का ।

एक दिन जब वह पार्क में टहलने जा रहे थे तो उनको वृद्ध आश्रम वाले मैनेजर मिल गए व उन्होंने देखकर वह बोले क्या हुआ आप बहुत परेशान लग रहे हैं । बातें करते-करते दोनों ही आश्रम पहुंच गए । वहां सब लगभग उनकी आयु के थे । मस्ती भरा माहौल था । मैनेजर साहब ने कहा आप और आपके बच्चे बुरा ना माने तो आप भी यही आ जाया करिए ।

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सबके साथ समय व्यतीत हो जाएगा । वहां उन्होंने खाना भी सबके साथ प्यार से खाया । बहुत अच्छे सम्मान के साथ । आज सूखी रोटी भी उनको चुपड़ी हुई रोटी लग रही थी । उनका मन वहां अच्छे से लग गया ।सब बच्चे लोग उनसे मिलने आते रहते थे । घर चलने को कहते । उनका एक ही जवाब होता । यहां मैं  अपनी जीवन संध्या सम्मान के साथ जी रहा हूं । सम्मान की दो रोटी खाता हूं यही है “सम्मान की सूखी रोटी”

लेखिका

सरोजनी सक्सेना

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