सम्मान की सूखी रोटी – ऋतु यादव : Moral Stories in Hindi

समीक्षा, लक्षित जी से शादी कर भरे पूरे परिवार में आई। घर में लक्षित की मां के अलावा के दो बड़े भाई थे ।जिसमें से सबसे बड़े भाई साहब, विनय शादीशुदा थे और उनकी पत्नी और दो बच्चे थे। मंझला भाई शारीरिक और मानसिक रूप से अस्वस्थ था तो, सासू मां उसके साथ ही व्यस्त रहती थी।

सबसे बड़े भाई का अपना बिजनेस था। घर के सभी खर्चों की सारी जिम्मेदारी वही संभालते थे और ज़ाहिर सी बात थी घर की बागडोर बड़ी बहू के हाथ में ही थी।वैसे भी लक्षित जी के पिता का देहान्त काफी समय पूर्व हो गया था ,तो बड़े भाई साहब ने जल्दी ही उनकी जगह काम संभाल लिया था और उसे काफी आगे भी बढ़ाया था।

इन सबके बीच लक्षित अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहा और फिर भाई साहब के साथ हाथ बंटाने लगा था पर पैसे का हिसाब किताब सब भाई साहब ही देखते थे, न कभी लक्ष्य ने पूछा न कभी उन ने बताया। जब तब पैसे की जरूरत पड़ने पर लक्ष्य मांग लेता और भाई साहब भी जितना मांगता उतना दे देते।शादी के बाद घर के काम

जितना हो सकता उतना समीक्षा कर ही लेती थी, सुबह की चाय , फिर नाश्ता और टिफिन पैक करना, सासू मां के साथ मिल वह संभालती, बड़ी भाभी बच्चों को तैयार करती , तो सबकी बढ़िया निभ रही थी। समीक्षा को जितने की जरूरत होती नई शादी के कारण उसे अपने मायके से मिल जाता।कभी कभी उसे बुरा लगता की अगर उसे कभी शॉपिंग भी करानी होती तो बकायदा लक्षित भाई

साहब से यही बताकर पैसे मांगता फिर उसे कराता।एक दो बार उसने टोका भी परंतु लक्षित का कहना था कि बिना कारण बताए भाई साहब पैसे नहीं देंगे क्योंकि शुरू से यही आदत है, और इसमें बुरा भी क्या है अपने ही तो है और न ही मना करते हैं, तो दिक्कत क्या है। 

कई बार तो समीक्षा ने महसूस किया की बड़ी भाभी मजाक मजाक में उसे टोंट भी कस देती कि लक्षित तो अभी भी अपनी पत्नी की जरूरतों के लिए भी बड़े भाई साहब पर निर्भर है। एक दो बार तो बड़ी भाभी ने यह बात पड़ोसियों और रिश्तेदारों के सामने भी कह दी। समीक्षा जब भी लक्षित को यह बात बताती उसका कहना था कि तो क्या हुआ भाभी ने मजाक में ही तो कहा है

, वैसे भी सच ही तो है कि पिताजी के जाने के बाद सारी जिम्मेदारी बड़े भाई साहब बखूबी निभा रहे हैं। और तुम क्या चाहती हो अब मैं उनसे हिस्सा मांगू? वह तो कुछ देने के लिए कभी मना करते भी नहीं है। और तुम भी पढ़ी-लिखी होकर इन औरतों वाली छोटी बातों में न उलझो तो ही सही रहेगा। घर की एकता और शांति बनाए रखने के लिए अगर एक इंसान कुछ बातों को इग्नोर कर दे तो इसमें कोई बुराई नहीं है। 

साल भर बाद समीक्षा के एक बेटी हो गई, अब उसकी ज़रूरतें भी बढ़ गई थी। परंतु घर का हाल वैसे का वैसा था। एक दो बार उसने सासू मां से भी कहने की कोशिश की परंतु वह चुप्पी साध लेती क्योंकि कहीं ना कहीं वह भी अपने और मंझले भाईसाहब की सभी जरूरतों के लिए बड़े भाई साहब पर ही निर्भर थी।

गाहे-बगाहे बड़ी भाभी का शेखी बघारने और सभी जिम्मेदारियां उठाने का रौब जारी था। सभी रिश्तेदार या पड़ोसी जब भी आते हुए यही कहते कि घर इसीलिए चल रहा है क्योंकि बड़े भाई साहब और भाभी ने सब कुछ बहुत अच्छे से संभाल रखा है। और इसमें कुछ गलत भी नहीं था यह बात समीक्षा भी अच्छी तरह समझती थी।

परंतु समय के साथ धीरे-धीरे अब उसे अपना स्थान घर में नग्ण्य सा महसूस होता था। बल्कि अब तो ऐसा होने लगा था कि उनकी गुड़िया भी किसी भी जरूरत के लिए जाकर ताऊजी ताई जी को ही कहने लगी थी।

कहने को बड़ी भाभी और भाईसाहब बुरे नहीं थे परंतु अक्सर समीक्षा को यह बात खटकती थी कि सब तरह से काबिल होने के बावजूद और घर में इतना काम करने के बावजूद उसका एवं उसके पति का कोई खास सम्मानजनक स्थान नहीं था। एक दो बार उसने लक्षित से बात भी की, कि अब ज़रूरतें बढ़ रही है तो आपको भाई साहब से महीने का कुछ एकमुश्त रकम की बात करनी चाहिए। कल को दूसरा बच्चा भी होगा तब भी क्या हम अपनी जरूरत के लिए इसी प्रकार निर्भर रहेंगे। 

परंतु सच तो यह था कि लक्षित को भी इसी में मजा आ रहा था। ना उसे पर घर की कोई जिम्मेदारी थी ना बिजनेस की जब मन किया तब चला गया, जब मन किया तब आ गया, कभी दोस्तों के साथ घूमने फिरने निकल गया। 

एक दिन बाजार में उसे अपने कॉलेज की पुरानी सहेली शिखा मिली। बातों बातों में उसने बताया कि वह वह यहां टेलर के अपना सूट डालने आई है परंतु वह कोई भी उसे समय पर सूट सीकर देने के लिए तैयार नहीं है। इस पर समीक्षा ने कहा कोई बात नहीं मैं सिल दूंगी, वैसे भी मैंने होम साइंस में सिलाई विषय लिया था। सहेली भी इस बात से अनजान नहीं थी कि समीक्षा शुरू से ही इस कार्य में कितनी दक्ष थी।उसने किसी तरह समय निकालकर 2 दिन में ही सहेली का सूट सिलकर दे दिया। 

फिर करीबन हफ्ते भर बाद उसकी सहेली का फोन आया के तुम्हारे द्वारा सिले गए डिजाइनर सूट की सब बहुत तारीफ कर रहे थे मेरी कुछ और सहेलियां भी तुम्हारे पास कपड़े सिलवाने आना चाहती हैं। परंतु जब घर में यह बात पता चली तो बड़ा हंगामा हो गया कि घर में तुम्हें क्या कमी है, जो तुम्हें कपड़े सीने पड़ रहे हैं लोग क्या कहेंगे! और कहीं ना कहीं उसके इस काम के कारण घर के अन्य काम प्रभावित हो रहे थे, असल कारण यह भी था। घर में चली इस पूरी महाभारत के दौरान भी लक्षित चुप था।

कोई और विकल्प ने जानकर समीक्षा ने कहा कि इस बार तो उसने जिम्मेदारी ली है तो वह कपड़े सिलकर देगी परंतु आगे से वह ध्यान रखेगी। उसने जब यह बात अपनी सहेली को बताई तो उसका कहना था कि तुम दो घंटे बच्चों को ट्यूशन छोड़ने के दौरान मेरी एक जानकार के सिलाई सेंटर में एक सिलाई मशीन लेकर काम कर सकती हो। 

इस प्रकार सहेली उसे अपने जान पहचान वालों के कपड़े सिलवाने के काम दिलवाती रहती और वह काम करती रहती। धीरे-धीरे उसका काम बढ़ रहा था। परंतु यह बात वैसे भी कब तक छुपी रहती। एक दिन बड़ी भाभी ही अपनी एक सहेली के साथ उससे सिलाई सेंटर पर सूट सिलवाने आ धमकी। शाम को घर में अच्छा खासा क्लेश हुआ। परंतु अब समीक्षा फैसला कर चुकी थी कि मेवे मिठाई के लिए दूसरों को कातर निगाहों से देखने से बेहतर है सम्मान की सूखी रोटी खाना। उसने दो टूक फैसला लक्षित को बता दिया कि वह अपना काम नहीं छोड़ेगी। बल्कि अपनी एक सिलाई की दुकान खोलेगी, जिसमें वह दो टेलर रखेगी एवं स्वयं बैठेगी अब यह फैसला आप लोगों का है कि वह दुकान आप मुझे लेकर देंगे या मैं किसी जानकार से मदद लूं। किसी के कोई जवाब न देने पर उसने किसी तरह अपनी सखी सहेलियों एवं मायके की मदद से एक दुकान किराए पर लेकर काम शुरू किया

वह सुबह घर का काम निपटाकर अपने सिलाई सेंटर जाती एवं शाम को लौटती। कभी-कभी घर के काम एवं बच्चों की जिम्मेदारियों जैसे मुद्दों पर घर में लड़ाई झगड़ा भी होता। परंतु समीक्षा अपना मन पक्का कर चुकी थी।

और उसकी इसी मेहनत और लगन का परिणाम था कि धीरे-धीरे उसका नाम शहर में होने लगा और अब उसके पास न काम की कमी थी और न ही कमाई की। अब वह अपनी एवं अपनी बच्ची की सभी ज़रूरतें पूरी कर , घर खर्चे में भी योगदान देती। परंतु घर में अब भी उसके काम को लेकर कोई स्वीकार भाव नहीं था बल्कि उसके काम को हेय दृष्टि से ही देखा जाता। 

इस बार 26 जनवरी को शहर में होने वाले गणतंत्र दिवस समारोह में जब मुख्यमंत्री जी द्वारा मिलने वाले प्रशस्ति पत्र के लिए स्वावलंबी महिलाओं की सूची में, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा समीक्षा का नाम सुझाया गया था। घर में सभी अब भी इस बात के महत्व से अनभिज्ञ थे। परंतु जब अगले दिन अखबार में समीक्षा पर लंबा चौड़ा लेख छापा गया तो घर में सभी समीक्षा पर गर्व महसूस कर रहे थे और इसके लिए उसे बधाई एवं आशीष दे रहे थे। आज समीक्षा भी अपने आप को असल में इस घर का असली प्रेम एवं सम्मान का हकदार समझ छोटी बहू होने पर गर्व महसूस कर रही थी।

 

लेखिका 

ऋतु यादव

रेवाड़ी, हरियाणा 

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