अमन अभी-अभी ऑफिस से आकर खड़ा ही हुआ था, कि उसके पांच साल के बेटे अनमोल ने पूछा। पापा आप चॉकलेट नहीं लाये। सॉरी बेटा मुझे थोड़ी देर हो रही थी। तो मै भूल गया। मैं अभी लेकर आता हूंँ। अरे क्या आप भी रहने दीजिए एक दिन। अरे नहीं मैं अभी आता हूंँ। तुम चाय बनाओ। उधर से समोसे भी लेता आऊंगा। माधवी मना ही करती रह गई। आधा घंटा अमन को गए हुए हो चुका था। दुकान ज्यादा दूर नहीं थी। माधवी के दिल में अजीब सी बेचैनी थी। उसने सोचा मैं फोन करके पूछती हूँ। कहाँ रह गए।
तभी पड़ोस का एक लड़का भागता हुआ आया। आंटी अंकल का एक्सीडेंट हो गया है गली के बाहर ही। जल्दी चलिए। माधवी बदहवास सी दौड़ पड़ी। चारो तरफ खून और अमन जिंदगी हार चुका था। हाथ में चॉकलेट मुट्ठी में दबी थी। आधा घंटे पहले हंँसते-खेलते परिवार की खुशियांँ पलक झपकते ही उजड़ चुकी थी। पाँच साल का अनमोल स्थिति से अनजान अपने पापा को ऐसे देख बस एक ही बात कह रहा था। पापा मुझे चॉकलेट नहीं चाहिए।
माधुरी के मायके और ससुराल वाले सब इकट्ठा हो चुके थे।आज अमन की तेरहवीं के बाद माधवी के पापा ने माधवी से अपने साथ चलने को कहा। क्योंकि ससुराल में कोई भी ऐसा नहीं था जो माधवी और अनमोल की जिम्मेदारी उठा सके। अमन के जाने के बाद तो वहां शहर में माधवी को अकेले नहीं छोड़ सकते थे। माधवी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह तो बस जो कोई जो कुछ भी कह रहा था बुत बनी सुन रही थी। अपने पापा को अपने लिए दुखी देख वह अनमोल को लेकर अपने मायके आ गई। उसके मायके में उसके भैया भाभी और उनके दो बच्चे थे। मां पहले ही स्वर्ग सिधार चुकी थी। उसकी भाभी को अपने ससुर का यह फैंसला बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा था। लेकिन यह वक्त ऐसा था सभी रिश्तेदारों के सामने वह भी ऊपरी तौर पर माधवी को बड़े प्यार से अपने साथ चलने के लिए कह रही थी। दूसरी वजह यह भी थी कि अभी सारा घर कारोबार उसके ससुर के ही हाथ में था।
माधवी सारा दिन बिल्कुल चुप रहती। अनमोल भी उसी से चिपटा रहता। उसकी भाभी ने मीठा बोल-बोल कर कि दीदी कुछ काम करोगी तो ध्यान बँटेगा। धीरे-धीरे घर का सारा काम माधवी पर छोड़ दिया। अपने ससुर के सामने तो अपने आप काम करती। फिर तो उसे फ्री की काम करने वाली मिल गई। माधवी सब कुछ समझते हुए भी बस अपने बेटे के लिए चुप रहती। क्योंकि उसके पापा उनकी जरूरत का पूरा ध्यान रखते और उन्हें लगता कि बहू भी उनकी बेटी का पूरा ध्यान रखती है। क्योंकि उसकी भाभी उनके सामने माधवी के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करती।
दिन महीने साल यूं ही बीत रहे थे। अनमोल दस साल का हो चुका था। माधवी के पापा को एक दिन हार्ट अटैक आया। और वह भी उसका साथ छोड़ गए।
उसके पापा के जाने के बाद तो भाभी ने अपना असली रूप दिखा दिया। वह उठते-बैठते माधवी को ताना मारती कि उस पर और उसके बेटे पर वे कितना खर्च कर रहे हैं। कई बार तो माधवी रोज-रोज के इस अपमान से इतनी आहत हो जाती कि सोचती अनमोल को लेकर कहीं चली जाऊंँ। पर अपने बेटे के भविष्य को उस घर में सुरक्षित देखकर चुप रहती। क्योंकि उसका भाई अनमोल की पढ़ाई अच्छी तरह करा रहा था। अनमोल अब बड़ा और समझदार हो रहा था। एक दिन माधवी बर्तन साफ कर रही थी। उसके हाथ से कप टूट कर गिर गया। आवाज सुनते ही उसकी भाभी आई। और बिना सोचे समझे जो कुछ भी मुंँह में आया, बोलती चली गई। अनमोल यह सब सुन रहा था। गुस्सा तो उसे बहुत आ रहा था। लेकिन ये उसकी मां के संस्कार थे कि वह अपनी मामी के सामने चुप था। लेकिन उस दिन वह माधवी से बोला, मां अब हम यहांँ नहीं रहेंगें। इतने अपमान से अच्छा है कि हम सम्मान की सूखी रोटी खा लें। हांँ बेटा। मैं भी तेरे कुछ बनने का इंतजार कर रही हूंँ। नहीं मां हम अभी इस घर को छोड़ देंगे। मैं कुछ भी कर लूंँगा। अपने बेटे के हौंसले को देख माधवी ने हां कर दी। रोज-रोज के अपमान से वह भी टूट सी गई थी।
जब माधवी के भाई को पता चला तो उसने उसे रोका। लेकिन माधवी की भाभी ने इतना क्लेश किया कि घर की शांति के लिए बेचारा चुप रह गया। लेकिन उसने अनमोल से कहा कि वह उसके साथ है चिंता ना करे। उसने अपनी पत्नी को बिना बताए अनमोल को एक छोटी सी दुकान खुलवा दी। अनमोल एक किराए का कमरा लेकर अपनी मां को अपने साथ ले आया। अनमोल का व्यवहार सबके साथ अच्छा होने के कारण उसकी दुकान अच्छी चलने लगी। अपने होनहार बेटे को देखकर माधवी सोचती कि शायद यही मेरे किसी अच्छे कर्म का फल है। अमन के जाने के बाद अब जाकर माधवी को अपने जीवन में कुछ अच्छा महसूस हो रहा था।
लेखिका : नीलम शर्मा