समिधा  – ऋतु अग्रवाल

 

         रंजू सुबह से एक पैर पर इधर से उधर भाग रही थी। उसके घर में नवमी पर कन्या पूजन से पहले हवन कराने की परंपरा रही है। पति सूरज आराम से पंडित जी के पास बैठे थे और बच्चे अपने अपने मोबाइल में व्यस्त थे।

        पंडित जी हवन के लिए जो भी सामग्री मंगाते, रंजू वह एकत्रित करती जा रही थी।

       “कपूर भी ले आइए।” पंडित जी ने कहा।

   “अरे वह तो मैं मंगाना ही भूल गई। सुनिए, आप जरा पास वाली दुकान से ले आएँगे।”  अंजू ने पति सूरज से कहा।

      “बिल्कुल लापरवाह फूहड़ औरत हो तुम!  कोई भी काम ढंग से नहीं कर सकती।”  सूरज बड़बड़ाते हुए बाहर निकल गया।

      हवन शुरू होने पर पूरा परिवार हवन के लिए बैठ गया।

       “लीजिए, यजमान यह समिधा हवन कुंड में लगाइए।” पंडित जी बोले।

      “अरे, पंडित जी! आपने सारी समिधाएँ लगा दीं,फिर यह एक समिधा क्यों रोक ली?” सूरज ने समिधा हवन कुंड में लगाते हुए कहा।

    “यजमान, इस समिधा को लगाने के साथ ही आप यह संकल्प कीजिए कि आप अपनी पत्नी के साथ फिर कभी ऐसा व्यवहार नहीं करेंगे जो आपने अभी किया। स्त्री दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा, काली सभी देवियों का प्रतीकात्मक रूप होती है। वह परिवार की धुरी होती है  उसका अपमान करने का मतलब देवी का अपमान होता है। हवन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं वरन आत्मिक शुद्धि के लिए भी होता है।” पंडित जी बोले।

         सूरज आखिरी समिधा लगाते हुए नारी सम्मान का संकल्प ले रहा था। 

 

स्वरचित 

ऋतु अग्रवाल

मेरठ

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