समधन जी.. सर्वगुण संपन्न खुद बनी है मेरी बेटी !! – मीनू झा  

आज सब्जी कैसी बनी थी…मां??

ठीक थी..थोड़ा सा तेल ज्यादा था–पत्रिका पर नजर गड़ाए गड़ाए मालती ने उत्तर दिया।

कभी तो अच्छे से तारीफ कर दिया करो मां..उतना भी ज्यादा नहीं था तेल कि उसकी अच्छाइयों को दबा दे…और हां मेरी सारी सहेलियों ने हाथ चाट चाट कर मेरा टिफिन खत्म कर दिया..पर तुम हो कि मेरे बनाए हर खाने को “ठीक थी” बोलकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेती हो–काव्या मां पर गुस्साती हुई पैर पटकती अपने कमरे में आ गई।

अरे…मालती कर दिया करो ना तारीफ..बच्ची है…क्या जाता है तुम्हारा..और आज तो सच में उसने बहुत टेस्टी सब्जी बनाया भी था..और हां तेल भी बहुत ज्यादा तो नहीं था??–पिता सदानंद ने भी बेटी का पक्ष लिया।

मैं उसकी मां हूं…आप मुझे मत समझाइए..कि मुझे अपनी बेटी के साथ क्या करना चाहिए क्या नहीं, क्या बोलना चाहिए क्या नहीं…समझे आप–कहकर मालती ने सदानंद का मुंह चुप करा दिया।

मैं भी हार मानने वालों में से नहीं हूं…एक दिन तुम्हारे मुंह से “बहुत ही अच्छा” ना कहलवा लिया तो मेरा भी नाम काव्या नहीं देख लेना,कभी तेल ज्यादा,कभी मसाला कम,कभी सब्जी ढंग से भूनी नहीं गई,कभी तरी बहुत पतली है, कभी कुछ तो कभी कुछ , कमियां ही दिखती हैं मेरे बनाए खाने में हमेशा मां को —उदास काव्या कपड़े बदलती हुई बड़बड़ाए जा रही थी।

पर उसका ये ख्वाब और प्रयास कभी पूरा नहीं हुआ…उसने जितनी मेहनत,जितने प्रयास,जितनी तरकीब लगा सकती थी लगाई पर मां के मुंह से “बहुत अच्छा” नहीं सुन पाई चाहे वो मीठा डिश हो या नमकीन..मां का भाव कभी नहीं बदला।

समय के साथ काव्या की शादी हुई…अपना सारा अनुभव और प्रयास लगाकर उसने अपनी पहली रसोई पूरे मन से  बनाई।कम से कम पच्चीस से तीस आदमियों का खाना बनाया उसने…और सबको डरते डरते परोसा।

वाह…क्या सब्जी बनी है…

दाल के स्वाद का क्या कहना!!

पूरी भी कितनी फूली फूली और अच्छी है….और चावल भी कितने खिले खिले…

हलवा तो घर का बना लग ही नहीं रहा…बहू ने क्या बाहर से मंगवाया है?



नहीं नहीं…पूरे तीन चार घंटे किचन में लगकर मेरी बहू ने ये सारी चीजें अकेले और पूरे मन से बनाई है…उसकी मेहनत और प्यार का स्वाद खाने में भी उतर आया है —रिश्तेदारों की जिज्ञासा का उत्तर सासू मां ने गर्वित स्वर में काव्या की तरफ प्यार से देखते हुए दिया।

काश मां यहां होती तो देखती…उनकी “ठीक है ” टिप्पणी से आहत उसके मन पर सासू मां की इस लंबी चौड़ी तारीफ ने कितना असरदार मरहम लगाया है।

काव्या जो भी बनाती…सब उसकी भूरि भूरि प्रशंसा करते और खुब चटखारे लेकर खाते…मानों ऐसा खाना कभी उन्होंने खाया ही ना हो..।

बहू…सच में तुम्हारे हाथों में अन्नपूर्णा का वास है…तुम्हारा खाना लजीज और बेहतरीन ही नहीं होता…एक संपूर्णता का भी भाव देता है…लगता है इससे अच्छा तो ये डिश हो ही नहीं सकता… तुम्हारी मां सच में बधाई की पात्र है.. जिन्होंने तुम्हें कम तेल मसालों में भी इतना अच्छा खाना बनाना सिखाया है —सासू मां ने उससे एक दिन कहा।

मम्मी जी…एक बार मेरी ये तारीफ आप मेरी मम्मी के आगे भी कर दें ना… उन्हे बहुत अच्छा लगेगा—काव्या ने सोचा तब मम्मी को एहसास होगा कि वो कितनी गलत थी।



कुछ दिन बाद ही पगफेरों के लिए मायके गई काव्या को जब उसकी सास ने अपनी मां को फोन देने के लिए कहा तो काव्या गर्व से फूल उठी।

समधन जी…आपने तो अपने घर का पारस हमें दे दिया है..आजकल ऐसी सर्वगुण संपन्न लड़कियों मिलती कहां है… स्वभाव,बात,विचार ही नहीं खाना बनाने तक में आपकी सुघड़ परवरिश का पता चलता है…

नहीं समधन जी…ये सब उसके अपने खुद से हासिल किये संस्कार है… मैं तो बस उसे समय समय पर उसकी कमियां ही बताती रही,सुधार तो उसी ने किया और खुद की कमियों से ही सीखा है और आगे बढ़ी है मैंने कभी उसका हाथ पकड़कर उसे कुछ नहीं सिखाया…मेरी बेटी खुद से सर्वगुण संपन्न बनी है समधन जी…सच कहा आपने पारस ही है वो…आजतक कभी उसने मुझे कहीं से शिकायत का मौका दिया ही नहीं..

मालती की ओर आश्चर्य से देख रही थी काव्या…

मां ये आप ही थी…मेरी इतनी तारीफ???

बेटा…अब सच बताऊं? मैं तो मां हूं ना मुझे तो तेरी सारी चीज़ें, तेरे हाथ का कच्चा पक्का खाना भी अमृत ही लगता था और मेरा मन करता था तेरा हाथ चूम लूं…पर मेरे अंदर की मां को मेरे अंदर का प्रशिक्षक रोक लेता था और मैं दिल पर पत्थर रखकर तेरी कमियां गिना देती थी.. इसलिए की तू और अच्छा करें,सबसे अच्छा करे और कल को तेरी मां नहीं, तेरी तारीफ सारी दुनिया करे मेरे बच्चे–कहकर सिसक उठी मां ने काव्या को कलेजे से सटा लिया…काव्या ने मां को कसकर पकड़ लिया और उनके प्यार को महसूस करने लगी। 

साथ ही अंदर ही अंदर शर्मिंदा हो रही काव्या सोच भी रही थी सच में दुनिया में मां जैसा कोई नहीं हो सकता….।

मीनू झा  

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!