संभालो अपने संस्कारों को ..!! – भाविनी केतन उपाध्याय

“जब मैंने कोई गलती नहीं की तो क्यों बर्दाश्त करूं ? आप को पता था कि मेरे माता पिता गरीब हैं और कुछ देने में सक्षम नहीं हैं फिर भी आप ने मांजी अपना स्वार्थ ही देखा। मेरे माता पिता ने आप को इस बात से अवगत भी कराया था कि आप लोगों में और हमारे में बहुत बड़ा अंतर है फिर भी आप को मेरे अलावा कोई और नज़र नही आया क्यों ? क्योंकि आप को आप के बिगड़ैल बेटे के लिए और घर के कामों के लिए मुफ्त की नौकरानी चाहिए थी… क्योंकि आप दोनों के स्वभाव के कारण घर में कोई कामवाली बाई आने को तैयार जो नहीं थी ..!!
आप लोगों के यहां मैं पूरे तन मन से काम करती हूं तब जाकर मुझे दो वक्त खाना नसीब होता है वो भी रुखा सूखा ..!! कहने को तो मैं आप के बड़े घर की बहू हूं पर मेरे कपड़े तक भी आप की या आप की बेटी का उतरा हुआ ही पहनती हूं।
बर्दाश्त करने की भी एक लिमिट होती है जो आज आप ने और आप के बेटे ने वो भी छोड़ दी है क्योंकि आप मेरे और मेरे माता पिता पर संस्कारों के लिए ऊंगली उठाते हैं तब आपको यह भी याद होना चाहिए कि मैंने ना मेरे माता पिता ने कभी चींटी तक को नहीं मारा ..!! तो इंसान को मारना बहुत दूर की बात है।
ये आप के संस्कार ही हैं जो आज आप के सिर पर चढ़कर बोल रहे हैं … ये उन्हीं संस्कारों का प्रतिघोष ही है जो मेरे साथ रोज मेरी गलती हो या ना हो पर गाली गलौज करना.. आए दिन मुझ पर हाथ उठाना ! ये मेरे दिए हुए संस्कार नहीं है और आप लोग कहते हो ना कि बड़ा होकर हमारा नाम करेगा … आज उसने आप का नाम कर दिया ..!! अब संभालो उसे और अपने संस्कारों को भी ..!! ” कई सालों से भरा हुआ लावा आज फट पड़ा अवनि की जबान से और रोते हुए अपने कमरे में चली गई।
जतिन और जानकी जी उसे जाते हुए देखते रह गए। थोडी देर में अवनि एक हाथ में छोटी सी बेग लेकर बाहर आई।
बेग खोलते हुए अवनि ने जतिन और जानकी जी को कहा कि,” देखकर तसल्ली कर लिजीए, मैं आप के घर से तन पर लपेटे कपड़े के अलावा कुछ भी साथ नहीं ले जा रही। सिर्फ मेरे मायके की यह साड़ी और मेरे सर्टिफिकेट लेकर जा रही हूं अपनी बेटी के साथ ..!!
मैं नहीं चाहती कि मेरे जाने के बाद मेरी बेटी की दशा भी आप लोग मेरी तरह करें इसलिए मैं उसे अपने साथ लेकर जा रही हूं । वैसे भी उसको मैंने ही संस्कार दिए हुए हैं इसलिए वो भी कुछ भी कहे बिना चुपचाप सहती रहेगी और वो मैं नहीं चाहती… और भूलकर भी मेरे उठे हुए कदमों को रोकने की कोशिश मत करना.. क्योंकि आज एक औरत का ज़मीर जाग गया है … जो बीच में आती रुकावटों को कुचल कर रख देगा । ”
अवनि ने आज बरसों बाद अपने और अपनी बेटी के लिए क़दम उठाया। जतिन और जानकी जी सर पर हाथ रखें चुपचाप अवनि को जाते हुए देख रहें हैं।
स्वरचित और मौलिक रचना ©®
धन्यवाद,
आप की सखी भाविनी केतन उपाध्याय

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