सबिया का धैर्य – कंचन श्रीवास्तव

परिवर्तन प्रकृति का नियम है ,जो इसे स्वीकार करता है  कभी दुखी और पीछे नही रहता।  सबिया को ही ले लो इसका जीवन हमेशा चुनौतियों भरा रहा ,पर कभी हार नहीं मानी,। कहते हुए अप्पी कुर्सी में धंस गई उन्हें अच्छे से याद है जब अख्तर से निकाह हुआ तो ये पढ़ रही थी।बड़ी कमसिन कली कि  छूते हुए डर लगता जैसा की अख्तर बताता।

एकदम सुकुमार, कच्ची कली सच ऐसा लगता कहीं इसके जिस्म को छूने से कोई दाग न लग जाए।

तभी तो कई महीनों बाद मिलन हुआ था,वो भी उनके बार बार कहने पर कि देवर जी जब कोरे ही रहना था तो निकाह काहे  किए।इस पर वो झेंप जाते और उठकर तुरंत बाहर चले जाते।

पर एक दिन जब पीछे ही पड़ गई तो उन्हें हमबिस्तर होना ही पड़ा।

खैर तब तक काफ़ी खुल भी चुके थे इसलिए सब कुछ ठीक ठाक रहा ।जिसे 

सुबह सबिया का खिला चेहरा देखकर वो भांप गई थी कि रात अच्छी कटी।

पर ये खुशी चेहरे पर ज्यादा दिन तक ठहर न सकी।और ननद बाथरूम में फिसल गई जिससे उनका  पैर टूट गया।

फिर क्या  पूरा घर उनकी तिहमतदारी में  लग गया।

इस बीच उन्होंने देखा ये उदास और परेशान रहने लगी।उदासी तो समझ में आई कि अख्तर समय नहीं दे पा रहा पर परेशानी नहीं।



तो उन्होंने पूछा , क्या हुआ?

परेशान लग रही ,इस पर उसने परीक्षा वाली बात उनसे सांझा की ,बोली कि  घर में सभी परेशान हैं ऐसे में मैं घर जाने की बात कैसे बोलूं ।

तो उसने कहा – सुनो  घर तो नहीं जा सकती ,पर वो उसकी  मदद कर देंगी।।उसके काम में हाथ बटा कर और वो  पढ़ाई कर लेगी।

इस पर ये खुश हो गई।

फिर क्या ये काम के साथ साथ पढ़ाई भी करने लगी।

इसके बाद परीक्षा देने भी गई।

और अल्लाह के रहमों करम से पास भी हो गई।

जिसका सारा श्रेय इसने अप्पी को दिया।

उसके बाद जब इसको बच्चा होने वाला था तो एक्ततफाक  की बात थी की ससुर का इंतकाल हो गया।

इस पर सभी ने कहा अपने पीहर चली जाओ पर इसने एक न सुनी और यही पर रहकर जच्चगी की।

फिर क्या इसको एक चांद सा बेटा हुआ  जिसे पाकर पूरा घर खुशियों से झूम उठा, ।

पर बात यही खत्म नहीं हुई स्थिति वो भी आई जब उसे खुद निकलकर नौकरी भी करनी पड़ी।

वो ऐसे की एक एक्सीडेंट में पति की दोनों टांगें बेकार हो गई। जिसके  इलाज के लिए पैसे नहीं थे तो किसी तरह मांग जांच कर इलाज करवाया।

पर कर्जदार बहुत हो गई,साथ ही बच्चों की पढ़ाई का भी जिम्मेदारी, इसलिए उसे निकलना पड़ा।देखते देखते सब कुछ सब कुछ सामान्य हो होने लगा।

बच्चे नौकरी करने लगे,पति भी एक जगह काम करने लगे।

और ये घर में रहकर सब कुछ संभालने लगी।

सच उसके  चेहरे की खुशी देखके लगता है कि वक्त और धैर्य के साथ जो चलता है।

उसके जीवन में संघर्ष भले होता है पर मेहनत जब रंग लाती है। तो चेहरे की आभा बढ़ आती है। बस जीवन में आए परिवर्तन को हारने के बजाय स्वीकार करना होता है।जैसा की सबिया ने किया।

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव

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