रोशनी लैम्प की- गोविन्द गुप्ता

अनुज पांच वर्ष का था तब उसके पिता ने पास के स्कूल में उसका एडमिशन करा दिया था, स्कूल गांव से पांच किमी दूर था तो पैदल ही सभी बच्चों के साथ जाता था,

रास्ते भर बच्चे हंसी मजाक करते रहते ,

एक दिन अनुज के शर्ट कुछ फटी हुई थी तो एक बच्चे ने हंसी में कहा देखो अनुज गुल्लक साथ लाया है ,

अनुज के आंसू आ गये क्योकि उसके पास दूसरी शर्ट नही थी स्कूल ड्रेस की,

स्कूल से आकर धोता था सुवह पहन लेता था,

क्योकि माँ को गुजरे एक वर्ष हो गया था ,

जो इलाज पैसों के अभाव में न करा सकी थी,

जो पैसा था वह लग गया था इधर पिता भी बीमार रहते थे कभी कभी ही काम पर जाते थे,

स्कूल से आकर अनुज गांव में 

लगी सौर ऊर्जा के लैम्प के नीचे बैठकर पढ़ाई करता था,

हाईस्कूल तक अनुज लगातार स्कूल में प्रथम आता रहा,

शिक्षक व उसके पिता बहुत खुश थे पर चिंता आगे की पढ़ाई की थी,

एक दिन एक बड़ी कम्पनी के मैनेजर गांव से होकर निकल रहे थे कि उनकी गाड़ी पंचर हो गई उतर कर देखा तो एक लड़का लैम्प की रोशनी में पढ़ते दिखा उंन्होने उसे बुलाया,

अनुज ने उनके पैर छुये और कहा सर आप रुके आपके लिये ठंडा पानी लाता हूँ,

घड़े से पानी लेकर आया और पिया तो मन तृप्त हो गया मैनेजर का,

बातों ही बातों में उंन्होने सब पता कर लिया अनुज के विषय मे तब तक ड्राइवर ने पहिया फिट कर लिया और वह चले गये,

एक दिन एक बड़े स्कूल से फोन आया प्रधान जी के पास तो अनुज को बुलाया गया पता चला उसे स्कूल में निशुल्क दाखिले हेतु बुलाया गया है,

अनुज खुशी खुशी कॉलेज पहुंचा तो ऑफिस में पहुंचकर जब फार्म भरने लगा साथ मे एक पर्चा लगा देखा जिसमे लिखा था ,



प्रिय अनुज तुम्हारी पढ़ाई बाधित न हो इसलिये तुम्हारी आगे की पढ़ाई की जिम्मेवारी हमारी पर आपको यह पैसा अपनी पहली तनख्वाह के साथ ही किस्तों में बापस करना होगा,

जब सर्विस लग जाये तब स्कूल से मेरा पता ले सकते हो,।

अनुज ने मेहनत से पढ़ाई की और पीसीएस की परीक्षा उतीर्ण कर ली,

अपने गांव का पहला अधिकारी बनकर गांव आया तो उसी लैम्प के पास आकर उसे चूम लिया,

क्योकि यदि घर मे पढता तो किसी की नजर उस पर न पड़ती ,

उसने भविष्य में उस सोलर लैम्प को हमेशा जलने हेतु गोद ले लिया और पांच और लैम्प गांव में लगवा दिये,

 

एक दिन स्कूल से उन साहेव का पता लेकर शहर गया जिन्होंने पढ़ाई का सारा खर्च उठाया साथ मे एक बैग में पहले महीने की सैलरी ,

जैसे ही केविन में प्रवेश किया वही मैनेजर थे जो गांव में आये थे ,

नमस्ते व आभार के बाद महीने की तनख्वाह उन्हें प्रदान की तो वह बोले हंमे नगद में नही चाहिये,

अनुज चक्कर मे पड़ गया कहा सर पहेलियां न बुझाओ मुझे बताओ क्या करना है,

मैनेजर ने कहा अनुज मैं भी तुम्हारी तरह गरीब माँ बाप का बेटा था पर मेरी भी किसी ने मदद की थी,

पर उनका पता ही नही चला तो मैंने संकल्प लिया कि अब मैं उस परम्परा को आगे बढ़ाऊंगा,

आपको यह करना है आप भी एक बच्चे की पढ़ाई का खर्च अपनी तनख्वाह से दे और उससे भी यही वायदा ले इस तरह हमारी क़िस्त अदा होती रहेगी और बच्चो के सपने भी पूरे होते रहेंगे,,

अनुज समझ गया और दो बच्चों की पढ़ाई खुद के खर्चे पर करवाने का संकल्प लिया,

सोंचने लगा कि लैम्प की रोशनी ने जिंदगी रोशन कर दी,,,

 

लेखक,

गोविन्द

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