रिश्तों की मिठास – मनीषा भरतिया : Moral Stories in Hindi

अनुभव सुनो संगीता दीदी का फोन आया था वह लखनऊ से कोलकाता आ रही है ….  जीजाजी और बच्चों के साथ….१० दिन हमारे साथ ही रहेगी.. उन्होंने आपको भी फोन किया था….. पर आपने अच्छे से बात नहीं की….

यह ठीक नहीं है माना हमारे रिश्तों में दरार आ गई है…..

 उन्होंने सालों से हमारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया…. मोनू के जन्म के समय उसके जलूवा के नेग में भी नहीं आई…..”ना हीं पिंकी को देखने आई….

इतना ही नहीं हमारे  गृह प्रवेश में भी नहीं आई….. मैंने और आपने 10-10 फोन किये… यहां तक की दो बार घर भी बुलाने गए….

उन्हें तो खुद से खुश होकर आना चाहिए था …वह बुआ बनी है…. उनके भाई ने एक अपना आशियाना बनाया है…. लेकिन शायद उन्हें खुशी हुई ही नहीं….

वह हमारे खुशी के किसी भी पल में शामिल नहीं हुई..

ना उन्होंने बहन होने का फर्ज निभाया ना ही बुआ होने का….

 : लेकिन क्या नफरत की दीवार इतनी बड़ी होनी चाहिए??? जिसे गिराया ना जा सके??

जो हुआ उसे भूलना आसान नहीं…. मैं जानती हूं… लेकिन सामने से उन्होंने फोन करके कहा है  आने का तो हो सकता है…. कि उन्हें अपनी गलती का एहसास हो…

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10 साल तक उन्होंने हमारी खबर तक नहीं ली यहां तक की भाई भतीजे के लिए शगुन की राखी तक नहीं भेजी….. हमने तो बहुत फोन किया लेकिन कभी फोन का भी जवाब नहीं दिया….

आपके बारे में कितना कुछ भला बुरा भी कहा… लेकिन रिश्ते रेत की‌ तरह नहीं  होते जो एक हवा का झोंका आया और सबकुछ तहस नहस हो जाए…. रिश्ते तो दिल से जुड़े  होते हैं.. जिसमें भले‌ ही एक बार खटास आ‌ जाए

“लेकिन ज्यादा देर टिक नहीं पाती…. रिश्तों की मिठास उसे खींचकर अपनों के पास ले ही आती है…

: मैं तो कहूंगी कि आप एक बार दीदी को फोन कर  उनसे अच्छे से बात कर लो…. और हां उन्हें रुकने के लिए आग्रह भी कर देना…

अनीता तुम मुझे कैसे कह सकती हो फोन करने के लिए क्या तुम नहीं जानती??

मुझे कितना दुख हुआ है…. मेरी आत्मा तक को चोट पहुंची है… मैंने हमेशा दीदी को अपनी मां का दर्जा दिया…. हमेशा उनकी हर बात मानी…

मां पिताजी तो बचपन में ही छोड़ कर चले गए जब मैं सिर्फ 15 साल का था|

दीदी ने हीं मेरी परवरिश की… वह मुझे कितना प्यार करती थी जबकि हमारे  बीच सिर्फ 4 साल का ही अंतर है…”उन्होंने मुझे अपने बेटे की तरह प्यार किया मेरी हर जिद पूरी की…

“लेकिन पता नहीं मेरी शादी के बाद अचानक उन्हें क्या हो गया… वह सिर्फ पैसों को अहमियत देने लगी। 

उन्होंने मुझसे ₹500000 की मांग की वह भी उपहार के रूप में जो कि मेरे पास थे ही नहीं..

जब मैंने उन्हें पैसे देने से इन्कार कर दिया…. तब उन्होंने कहा कि आज से तू मेरे लिए मर गया है…..

उनके इन शब्दों ने मेरे दिल को बहुत आहत किया… मानो मेरे दिल के हजारो टुकड़े हो गए हो….

उसी दिन से मैं सोच लिया कि अगर रिश्ते कागज के नोटों से ही बनते हैं तो 

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बहुत बहन बन‌ जाएगी…

प्लीज तुम मुझ पर दबाव मत डालो मुझसे अब नहीं हो पाएगा….

  अनीता तुम सच में कितनी भोली हो…क्या तुम्हें याद नहीं मेरा एक्सीडेंट हुआ…वो मुझे देखने तक नहीं आई…

मेरे इलाज के लिए तुम्हें अपने मायके से मिले हुए गहने तक बेचने पड़े…. उन्होंने एक बार यह जानने की भी कोशिश नहीं की …. मैं ठीक हूं… या ही… उन्हें तो मेरी कोई फ़िक्र ही नहीं थी …जबकि मैंने अपने भाई और मामा होने का फर्ज बखूबी निभाया है….

इतना सब होने के बाद भी जब सोनू बीमार हुआ…. उसके इलाज के लिए दीदी के पास पैसे नहीं थे… मैंने ब्याज पर रूपए लेकर गुप्त रूप से‌ उनकी मदद की… क्योंकि मेरे लिए जैसै मोनू मेरा बेटा है… वैसे ही सोनू भी मेरा बेटा है…

इसलिए  ही तो कह रही हूं… जैसे बच्चे आपके है… वैसे ही दीदी भी तो आपकी ही है…. अगर उन्होंने आपको भला बुरा कह भी दिया…. पर दिल से आपका बुरा कभी नहीं चाहेगी…. कभी भी हमारे अपने हमारा बुरा सोच भी नही सकते…. चाहना तो बहुत दुर की बात हैं…

वैसे भी आप जितना भी झूठ बोले की दीदी से आपका कोई रिश्ता नहीं है… पर मैंने देखा है…. कितनी बार रातों में उन्हें याद करके रोते हुए….

आपको लगा होगा कि….. मुझे कुछ पता नहीं लेकिन‌ मैं इसी घर में रहती हूं….मुझे ये भी पता है… कि दीदी भी‌ सालों आपको याद करके रोई होगी… लेकिन उन्होंने जो आपको कहा … उस शर्मिंदगी की बजह से आपको मिलने नहीं आई होगी…. लेकिन 

 अब उनके सब्र का बाण टूट गया है… इसलिए वो अपनी गलती सुधारने आ रही है… तो आप भी बड़ा दिल रखकर उन्हें दिल से अपनाइये….. वैसे भी वो आपसे बड़ी है… कभी उन्होंने आपको मां जैसा प्यार दिया था…. मां की तरह देखभाल  भी की थी….आपको उसी का वास्ता…. तुम ठीक कह रही हो…. मैं अभी उन्हें फोन करता हूं….

हेलो, दीदी

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छोटे मुझे माफ़ कर दे‌ बेटा…

मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी… मैंने कभी सोचा ही नहीं की तुम्हारे पास‌ पैसे होते तो‌ तुम कभी अपनी बहन को मना करते ही‌ नही…. मैं लालच में अन्धी हो गयी थी…. मैंने तुमसे पैसे भी बेवजह  मांगे थे… मुझे ये भी पता  चल गया तुम्हारे दोस्त शाहिल से

…कि कैसे तुमने सोनू के इलाज के लिए ब्याज पर पैसे उठाए थे… जिसका ब्याज तू अभी भी भर रहा है… लेकिन अब तुम्हें और ब्याज नहीं भरना पड़ेगा… मैनै उसे पूरा मूल‌ चूका 

दिया…. तुम्हें लख लख धन्यवाद मेरे छोटे….. तूने तो अपने मामा होने का भी फ़र्ज़ निभा दिया…. आज सोनू सांसें ले रहा है… वो तुम्हारी वजह से…मैं बूआ तो दुर बहन‌ होने का फर्ज भी नहीं निभा पाई…. 

अरे दीदी बस कीजिए…. बड़े छोटों से माफी नहीं मांगते…. मेरे मन‌ में आपके लिए कोई मैल नहीं है…

अब क्या सारी बातें फोन पर ही करेगी… बस जल्दी से आ जाइए… आपका ये‌ भाई आपसे मिलने बेकरार है…. छोटे मेरा भी यही हाल‌ है… मन तो कर  रहा है.. कि उड़ के आ जाऊं…

ठीक है… दीदी

आप जल्दी आ जाइए …. जीजाजी और बच्चों के साथ ..

मैं,अनीता और‌ बच्चे बेसब्री से आपका इंतजार कर रहे हैं..…

दोस्तों इस कहानी के जरिए मैं यह बताना चाहती हूं कि नफरत की दीवार इतनी भी बड़ी नहीं होनी चाहिए… कि हम उसे गिरा ना सके… अगर सामने वाले को‌ अपनी गलती का अहसास है… तो हमें उसे एक मौका जरूर देना चाहिए…. मैं मानती हूं… गुस्सा आता है,नफरत‌ भी होती है… लेकिन हम मना बना लें तो उसे भूलकर आगे बढ़ ,सकते हैं…. ताकि भगवान  ना करें की कुछ ऐसा हो जाए … कि अफसोस करने के अलावा दुसरा कोई आप्शन ही ना बचे… इसलिए अगर हमारी एक कोशिश से  रिश्तों की मिठास बरकरार रह सकती है… तो जरूर करें 🙏🏻🙏🏻

 

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लेखिका : मनीषा भरतिया

# नफरत की दीवार

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