रिश्तों की अहमियत – शिखा जैन

“भाभी,आप भैया को छोड़कर अपने घर चली जाओ।मैं भी हमेशा के लिए यहाँ रहने आ गई हूँ।”

आरती के यह कहने पर रीना भाभी जोर जोर से हंसने लगी जैसे आरती ने कोई चुटकुला सुनाया हो।

“क्या भाभी,आप भी?इतनी सीरियस बात पर भी कोई हंसता है क्या”

आरती झुँझला पड़ी। “अभी-अभी भैया आप से लड़कर बाहर गए हैं और आपको बिल्कुल भी बुरा नहीं लगा?”

“बुरा तो लगा,लेकिन क्या कर सकती हूँ” भाभी ने शांत स्वर में कहा।

“वही तो कह रही हूँ मैं कि आप अपने घर चली जाओ हमेशा के लिए। इन आदमियों को कभी हमारी कद्र नहीं होगी”

अब रीना गंभीर हो गई और आरती का हाथ अपने हाथों में लेकर पूछा,”आज लड़ाई हुई है क्या?”

आरती के सब्र का बांध टूट गया। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी।आज सुबह-सुबह अमर से लड़ाई जो हुई थी। यूँ तो अमर और आरती में नोंक झोंक होती ही रहती थी लेकिन आज तो लड़ाई कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी। सुबह आरती ने अमर से कहा कि वह कुछ दिन के लिए अपने मायके जाना चाहती है तो बात इतनी बढ़ी कि अमर ने आखिर में बोल दिया, “कुछ दिन के लिए ही क्यों,हमेशा के लिए मायके चली जाओ। मुझे भी हमेशा के लिए शांति मिल जाएगी।” हालांकि बात गुस्से में कही गई थी लेकिन बात तो दिल पर लगनी ही थी। अमर तो बोल कर चला गया लेकिन यह शब्द आरती के दिल में कहीं तीर की तरह चुभ गए थे।



आरती ने गुस्से में अपना बैग पैक किया और अपने घर की ओर रवाना हो गई। अभी दरवाजे पर कदम रखा ही था कि भाई के चिल्लाने की आवाज उसके कानों में पड़ी। भाई किसी बात पर नाराज होकर भाभी से से झगड़ रहा था। आरती को देखते ही शांत हो गया और बाहर चला गया।

सारी बात जानकर भाभी धीरे से मुस्कुराई और बोली,”बस,इतनी सी बात”

“भाभी……” आरती कुछ कहती, इससे पहले भाभी ने उसे चुप रहने का इशारा किया और बोली,”मेरी प्यारी ननदिया, ये जो आदमी होते हैं न, ये बहुत अच्छे से जानते हैं कि हम औरतों के बिना ये कितने अधूरे हैं लेकिन इनका अहम यह बोलने में कतराता है। इन्हें हमारी कद्र हो या न हो लेकिन हमें अपनी कद्र खुद करवानी होगी।कभी बोलकर तो कभी चुप रहकर।और ये हमारी समझ पर निर्भर करता है कि हमे कब बोलना है और कब चुप रहना है।”

आरती सब कुछ ध्यान से सुन रही थी।और भाभी अब दार्शनिक अंदाज़ में बोलने लगी ” यह जीवन एक युद्ध है जो किसी युद्ध क्षेत्र में नहीं बल्कि हमारे अपने घर हमारे आसपास और हमारे अपनों के साथ ही है लेकिन यहां हमें एक दूसरे से नहीं बल्कि उन बुराइयों से लड़ना है जो हमारी जिंदगी को बदतर बना रही है।हमें यही रह कर अपने अस्तित्व को खोजना है और डटकर मुकाबला करना है लेकिन मैदान छोड़कर नहीं जाना है।”

” तुम यहां रहना चाहती हो तो रहो। यह तुम्हारा भी घर है ।लेकिन एक बात का जवाब देना। तुम्हारे भैया का मिजाज बहुत गरम है।कल अगर तुम्हारे भैया ने तुम्हे गुस्से में कुछ बोल दिया तो फिर कहां जाओगी।”

आरती गहरी सोच में पड़ गई।रीना ने अपनी बात जारी रखी “घर छोड़ना या रिश्ते तोड़ना कोई समाधान नही है जब तक कि समस्या बहुत बड़ी न हो। इन छोटी छोटी लड़ाईयों को अपने जीवन पर इतना हावी मत होने दो कि जीने के लिए रिश्ते ही न बचे।”

अब आरती का मन शांत हो चुका था। वह अमर से बात करके अपना मन हल्का करना चाहती थी।उसने बात करने के लिए फोन उठाया ही था कि व्हाट्सएप पर आए अमर के मैसेज पर नज़र पड़ी..

कैपिटल लेटर्स में लिखा हुआ था

I AM SORRY

आरती के चेहरे पर एक मुस्कान दौड़ पड़ी।और वो खुशी के मारे भाभी से लिपट गयी।

शिखा जैन

स्वरचित

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