रिश्ते – खुशी : Moral Stories in Hindi

रिश्ते ये शब्द बड़ा ही नाजुक हैं।किसी के दिल से जुड़ जाए तो दिल के तार जुड़ जाते है और किसी से जरा मनमुटाव हो जाए तो दिलो में गांठ पड़ जाती है।

निशि और  प्रीति दोनों गुप्ता परिवार की बहुएं पर दोनों बहनों की तरह रहती थीं।उन्हें देखकर कोई ये नहीं कह सकता था कि ये देवरानी जेठानी है।दोनो मिलनसार थी इसलिए परिवार में भी सुख शांति थी।दोनो भाई राजीव और संजीव भी आराम से बिजनेस संभाल रहे थे।पिताजी रामचन्द्र समाजसेवी थे और माता जी शांति देवी बस नाम की ही शांति घर में अशांति फैलाती थी

उन्हें बहुओं का एक होना बिल्कुल ना भाता पर ससुर और दोनों भाई इस बात से खुश थे।कभी कभी ननद शीला आती वो भी मां को यही समझाती सुख से खा रही हो पी रही हो सब तुम्हारी बात मानते है लोग तो इस शांति के लिए तरस जाते है फिर क्यों चिढ़ती हो।कहते है ना कई बार हमारी खुद की नजर ही हमको लग जाती हैं। ऐसा ही कुछ गुप्ता परिवार के साथ हुआ  रामचन्द्र जी की बहन  कमला जो दूसरे शहर में रहती थी वो कुछ दिन उनके घर रहने आई।

उनके घर की शांति देख कर कमला को जलन हुई क्योंकि उनके घर। में तो हर समय अशांति रहती थी उसका कारण भी वो खुद थी।भाई के घर की शांति देखी नहीं जा रही थी।

निशि सुबह जल्दी उठती थी वो उठ कर नहा कर पूजा कर रसोई में जाकर खाना बनाती थी। और प्रीति 6 बजे उठती बच्चो को उठाती तैयार कर स्कूल छोड़ आती तब तक निशि सबका नाश्ता लगा देती फिर प्रीति और निशि नाश्ता करके रसोई समेटते की कमला आ जाती फिर विमला साफ सफाई बर्तन करके जाती तो प्रीति सबके कपड़े लगा देती फिर दिन की रोटी निशि बनाती शाम की चाय प्रीति और रात का खाना भी प्रीति ही बनाती।बाजार का कोई काम होता तो प्रीति निशि को अपने साथ स्कूटी या गाड़ी से ले जाती।

अगर बाहर से आने में देर हो जाती तो निशि प्रीति की मदद करने आ जाती और दोनों हसी खुशी सारा काम निपटाती। कमला ने पहले अपनी भाभी के कान भरने शुरू किए जो खुद ही अशांत थी।शांति ने अगले दिन दोनो बहुओं को तलब किया बोली अब तुम अपना अपना काम बाट लो ।निशि बोली क्यों मम्मी जी सब ठीक तो है रामचंद्र ने भी कहा अरे तुम खुद तो कुछ करती नहीं वो कर रही है तो उन्हें अपने तरीके से करने दो।

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बात आई गई हो गई पर शांति और कमला दोनो बहुओं में लड़ाई करवाने का मौका ढूंढ रही थी।और उन्हें वो मौका मिल गया निशि के उस दिन सर में दर्द था इसलिए वो जल्दी सो गई उधर प्रीति के पापा की तबियत खराब हो गई और उसे और संजीव को निकलना पड़ा जल्दी में वो  निशि को उठा कर ये नहीं बता पाई कि कल बेटी का इंपोर्टेड टेस्ट है।

अपनी सास और बुआ सास को सब बता वो चलीं गई।

अगले दिन निशि अपने टाइम पर उठी पर उसे पता ही नहीं था कि प्रीति नहीं है वो अपना काम करती रही बच्चो को भी नहीं उठाया।जब स्कूल का टाइम हुआ तो उसने देखा कोई हलचल नहीं ऊपर जाकर देखा बच्चे सो रहे हैं वो प्रीति के कमरे में पहुंची  वहां भी कोई नहीं था।निशि नीचे आई तो उसने पूछा कि प्रीति कहा है तो उसकी सास बोली वो तो गई अपनी मां के। यहां मैने इतना कहा तुझे बता कर जा पर बोली आप बता देना।

प्रीति ने घर फोन कर पूछा बच्चे स्कूल गए तो निशि बोली मुझे बता कर गई नहीं इसलिए मुझे पता ही नहीं चला बच्चे नहीं उठे और आज उनकी छूटी हो गई।

प्रीति बोली क्या आज रिया का पेपर था।आप थोड़ा ध्यान देती मैं मम्मी और बुआजी को बता कर आई थी।

प्रीति ने गुस्से में फोन रख दिया स्कूल से रिया की टीचर ने भी उसे सुना दिया उसने संजीव को तभी घर भेज दिया और बोली आदि और रिया की जिम्मेदारी तुम्हारी  बच्चों की छुटी ना हो।

संजीव घर आ गया निशि बोली भैया मै ध्यान रखूंगी आप सो जाइए। अगले दिन सुबह निशि का अलार्म नहीं बजा और वो सोती रही और बच्चे आज भी स्कूल

ना जा पाए।आज यह सुन प्रीति को बहुत गुस्सा आया और अब उसके पापा की तबियत भी ठीक थी इसलिए वो घर चली आई।धीरे धीरे उनके मन में गांठ पड़ने लगी। प्रीति आकर अगले दिन 4:00 बजे उठकर किचिन में आ गई और खाना बनाने लगी।निशि नहा कर आई और बोली अरे मैं कर ही रही थी प्रीति बोली जैसे 2 दिन किया था।मेरे बच्चे के दो एग्जाम आपकी वजह से रह गए आप रहने दे मै अपने बच्चों को देख लूंगी।निशि सून थी प्रीति ने अपने बच्चों का खाना बनाया और बाहर आ गई बच्चो को उठाया 

और सबको तैयार कर स्कूल छोड़ आई।घर आकर भी उसने अपने रूम में नाश्ता किया किचेन समेटा अपना काम किया कपड़े धो  कर वो अपने कमरे में आ गई।।

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आज कल वो निशि से बात ही नहीं करती थी।अब कमला को मौका मिल गया प्रीति के कान भरने का वो प्रीति को कहती तू ही काम करती है ये तो घर में आराम करती हैं।बाहर का भी घर का भी इसे देख बस सुबह का खाना बनाया बाकी काम काम वाली ही करती है।एक दिन प्रीति बच्चों को छोड़ कर आई तब तक नाश्ता नहीं बना था निशि की उस दिन तबियत खराब थी उसे उल्टियां हो रही थीं तो वो काम छोड़ बाथरूम में गई थी।प्रीति आई बड़बड़ाती हुई काम करने लगी।

निशि आई तो बोली मै आ ही रही थी आज सुबह से मुझे उल्टियां हो रही हैं। प्रीति बोली जाओ यहां से तुम्हे बहाने बनाने के अलावा क्या आता है उसकी आवाज बाहर तक आ रही थी।राजीव भी बोला प्रीति तुम कैसे बात कर रही हो उसकी तबियत सच में ठीक नहीं है।वो बोली भैया सॉरी पर इनका रोज का मेरी बेटी का पेपर भी इनकी वजह से मिस हो ।गया।फिर क्या देवरानी जेठानी के बाद भाइयों में भी बहस शुरू हो गई घर शांति की जगह अशांति का अड्डा बन गया।दोनो एक दूसरे की शकल नहीं देखना चाहते थे रामचंद्र ने खुब समझाया पर कुछ फायदा ना हुआ। बिजनेस और घर सब  का बंटवारा हो गया।

सब अलग हो गए अब घर में रामचन्द्र और शांति थे।अब  शांति को अपने आप ही सब करना पड़ता पहले खाना  गरम गरम हाथ में मिलता कपड़े प्रेस जगह पर कही जाना कही आना अपनी मर्जी से बहुएं अच्छे से तैयार होने में मदद करती पर अपनी बेवकूफी की वजह से वो सब सुख उन्होंने गंवा दिया जो ननद पट्टियां पढ़ाती थीं वो अब अपने घर बैठी हैं और ये अपने सुख में आग लगा बैठी हैं। दोनो बहुओं का प्यारा सा रिश्ता खराब हो गया गलतफहमी की गांठ उलझ गई और प्यार और स्नेह धराशाई हो गया।

जिस घर की मिसाल दुनिया देती थी आज उसी का मजाक दुनिया बनाती है।

गलतफहमी एक ऐसा खंजर है जो जहां घुस जाए वही सब स्वाहा कर देता है।

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स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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