शामली का मोबाईल जब रात के दो बजे बजा तो वो समझ गई कि भारत से उसकी परम मित्र रूही का फोन ही होगा। वैसे तो उसे भारत से न के बराबर फोन आते है, कोई है ही नहीं तो फिर फोन कौन करेगा। जो नाममात्र के रिश्ते हैं वो तो बहुत पहले ही छूट चुके हैं। और जो अब अपने स्वार्थ के लिए उससे रिशता रखना चाहते है, उनसे वो नहीं चाहती।
उनींदी से उसने फोन उठाया तो रूही की आवाज सुनाई दी। “ हैलो शामली, सारी , मैं तुम्हें इस समय डिसटर्ब कर रही हूं, पर बात जरूरी थी, इसलिए सोचा तुम्हें बता दूं”
“ हां बोलो, सब ठीक तो है ना” शामली उठ कर दूसरे कमरे में चली गई क्योंकि वहां कबीर और बेबी सान्या भी सो रहे थे।
“ ठीक ही तो नहीं है, वरना मैं इस समय तुम्हें क्यों जगाती। जैसा कि मैनें तुम्हें पहले ही बताया था, तुम्हारी बहन अवनि के लक्षण ठीक नहीं हैं। पढ़ाई लिखाई में तो कभी उसका मन लगा ही नहीं, उपर से आवारागर्दी। कुछ समय पहले पता चला था कि उसकी शादी फिक्स हो गई है। यहां तक तो सब ठीक था, कल तेरी मां मेरे पास आकर बहुत रो रही थी, हाथ जोड़कर बोली कि तूं उसकी मदद कर”
फिर कुछ रूककर कहने लगी, उसका प्रेमी ऋषि शादी के लिए तैयार है, लेकिन उसके घर वाले दहेज में कार मांग रहे है। दहेज देना गल्त है लेकिन मजबूरी है, अवनि ने शादी से पहले ही अपने आप को ऋ्षि को सौंप दिया, अगर जल्दी शादी न हुई तो परिवार की बहुत बदनामी होगी। तेरे साथ जो तेरी सौतेली मां बहन ने किया मैं सब जानती हूं, लेकिन आखिर वो तेरा परिवार है। कल को कोई उँच नीच हो गई तो तुझे भी बहुत दुःख होगा। कुछ और बातें करने के बाद फोन बंद हो गया।
शामली वापिस आकर लेट गई परतुं नींद तो कोसों दूर थी। सारी पुरानी तस्वीरें चलचित्र की तरह आखों के सामने थी। सात साल की होगी जब मां इस दुनिया से चल बसी। पिताजी की कम उम्र को देखते हुए दूसरी शादी कर दी गई। नई मां नीना के साथ एक साल की बेटी अवनि भी दहेज में आई। इस स्वार्थी दुनिया से दूर और नासमझ शामली बहुत खुश थी। नाच रही थी अपने ही पिता की शादी पर। दिन रात अवनि संग खेलती, उसे तो नई मां और बहन मिल गई।
मगर नीना को शामली एक आंख न सुहाती। पति सुधीर के दुकान पर जाते ही उसका असली रंग सामने आ जाता। छोटी सी शामली घर का काम करती फिर भी भरपेट रोटी को तरसती। गनीमत इतनी कि उसकी पढ़ाई नहीं छूटी। जल्दी ही सुधीर सब समझ गया। नीना को समझाता तो घर में और क्लेश खड़ा हो जाता। नीना के ककर्श स्वभाव को देखकर सुधीर के नाते रिशतेदार भी दूर हो गए।
शामली पढ़ाई में होशियार थी। मजबूरियां इन्सानं को समय से पहले ही समझदार बना देती हैं। कभी पिताजी को भी कुछ न बताया। सौतेली मां उसके सामने ही अपनी बेटी अवनि को दूध, मलाई, फल सब बढ़िया खिलाती और बेचारी शामली को स्कूल जाते वक्त कई बार तो आचार के साथ सूखी रोटी भी नसीब न होती। सुधीर सब देख रहा था। वो उसके हाथ पर चुपके से कुछ रूपए रख देता ताकि वो बाहर कुछ खा सके।
अवनि का दाखिला अच्छे प्राईवेट स्कूल में हुआ जबकि शामली तो पहले से ही सरकारी में पढ़ती थी। दसवीं में प्रथम, बारहवीं में पूरे जिले में उच्च रैंक मिलने पर शामली को कालिज वालों ने हाथों हाथ लिया।
सरकारी सहायता से ही उसने अमेरिका का रूख किया। एक ही सखी थी रूही, जिससे उसे अपने घर शहर की पल पल की खबर मिलती थी। कभी कभार सुधीर से बात होती लेकिन अचानक ही सुधीर को लकवे का ऐसा अटैक आया कि उसने खाट पकड़ ली। चलना बोलना सब बंद।
बाप , बेटी में शुरू से ही बहुत कम बात होती थी । शामली का अपने देश से नाता बिल्कुल टूट चुका था। जब रिशतेदारों को पता चला कि शामली तो अमेरिका पहुंच गई तो कुछ ने उससे बात करने की कोशिश की लेकिन शामली को जो जख्म मिले उसकी कोई भरपाई नहीं थी। पिता से बात हो नहीं सकती थी। अब तो दुकान भी किराए पर दे दी गई।
उसी से ही घर चलता। रूही ने बताया कि उसकी फिसड्डी बहन ने मुशकिल से ग्रेजुएशन की है, लेकिन फैशन और आवारागर्दा में नंबर वन है। शामली ने वहीं पर ही भारतीय लड़के से शादी कर ली थी और प्यारी सी बच्ची की मां भी बन गई। अतीत के पन्ने वो बंद कर चुकी थी। पिताजी से मिलने की सोची लेकिन उसे उन यादों में फिर से नहीं जीना था।
एक बार मौका देखकर रूही ने विडियो काल पर पिताजी से बात करवाने की कोशिश की, लेकिन वो इशारे ही करते रह गए। आखों में आसूं देखकर शामली भी रो पड़ी, लेकिन क्या करे। बता नहीं भगवान ने उस शरीफ इन्सान को किस बात की सजा दी थी।
सोचते सोचते न जाने कब आँख लग गई। सुबह हुई तो आँखे लाल थी। कबीर ने पूछा भी मगर वो टाल गई।सारा दिन सोचती रही। रूही से ऋषि का नंबर लिया और उससे बात की और उसे कहा कि वो चुपचाप बिना कुछ बोले जल्द से जल्द अवनि से कोर्ट मैरिज कर ले और खबरदार अगर किसी ने उसके साथ बुरा बर्ताव किया या कोई मांग की और उसके एकाऊंट में बीस लाख डाल कर उसका मुंह तो बंद किया ही किया अपना दिल भी हल्का कर लिया।
आखिर तो उसका अपना परिवार था। जैसी भी है मां बहन ही है और फिर बदनामी तो पूरे खानदान की होती” नमक का हक तो अदा करना ही था”।
विमला गुगलानी
चंडीगढ
मुहावरा- नमक का हक अदा करना