रिक्त स्थान (भाग 27) – गरिमा जैन

आखिर वह पल आ गया जिस पल का इंतजार हर प्रेमी युगल करता है ।प्यार के वह पल जब दोनों एक दूसरे से दिल की बात कर सके ,मन से जैसे एक बोझ उतर जाता है। विवाह का पवित्र बंधन प्रेम का साक्ष्य प्रतीक बन जाता है ।जीतेंद्र रेखा से कहता है

” रेखा आज जब तुम लाल पाटे पर बैठी थी और मां तुम्हे गहने पहना रही थी तब तुममें मुझे एक तस्वीर की झलक दिखाई दी थी।वह तस्वीर मैंने कई साल पहले बनाई थी और मैं सोचता था  आखरी यह किसकी तस्वीर है जो मैंने बना दी। मैं इस बात को लगभग भूल चुका था लेकिन आज उस रूप में तुम्हें देखकर मुझे वही तस्वीर याद आ गई।”

जितेंद्र अलमारी में से एक पुरानी सी फाइल लेता है और उसमे से एक तस्वीर निकलता है ।फिर वह रेखा के पास आता है

” देखो रेखा “

रेखा उस तस्वीर को देखती है तो देखती ही रह जाती है। लाल रंग की झीनी सी पोशाक पहने बेहद खूबसूरत लड़की थी ,जिसके बाल हवा में लहरा रहे थे।वह झूले पर बैठी थी जिसपर ढेर सारे फूल लगे थे ।उसकी पोशाक हवा में लहरा रही थी और उसके लंबे सुडौल पैर की हल्की सी झलक मन में उमंग भर देती थी ।रेखा वह तस्वीर देखी शर्मा जाती है। जितेंद्र कहता है

“सच रेखा तुम बिल्कुल परियों सी सुंदर हो पर आज तो तुम्हारी सुंदरता का मैं कायल हो गया ।”

रेखा और जितेंद्र की आंखें पल भर को मिलती है। दोनों की मुस्कुराहट उनकी आंखों तक आ रही थी ।शायद उनका जन्म एक दूसरे के लिए ही तो हुआ था ।रेखा जितेंद्र से ना जाने क्या कुछ कहना चाहती थी ,क्या कुछ सुनना चाहती थी, क्या कुछ महसूस करना चाहती थी कि तभी दरवाजे पर हल्की सी आहट होती है ।रेखा चौक जाती है ।इस समय ,इस समय कौन आया होगा? खटखट दोबारा होती है । रेखा जल्दी से दरवाजा खोलती है ।एक वृद्ध महिला गोदी में जानू को लिए खड़ी थी। उनके चेहरे के भाव बहुत अच्छे नहीं थे। वह जैसे गुस्से में रेखा को देख रही थी। वह रेखा से कहती है

“यह लो संभालो अपनी जिम्मेदारी ।यही तो तुम्हें घर में लेकर आया है और इसे ही तुम भूल गई ।मैं देख रही हूं जब से तुम इस घर में आई हो तुमने एक बार भी जानू को प्यार से गोद नहीं लिया। वह यूं ही मा मा कहते तुम्हारे पीछे आगे भागता रहता है ।बेचारा कब से रो रहा है ।क्या यह मां के होते हुए आया के हाथो पलेगा। जानू तुम्हारी जिम्मेदारी है याद रखो ।तुम उसकी मां बन कर आई हो ना कि सिर्फ जितेंद्र की पत्नी ।”

उनके कहने का अंदाज रेखा को अच्छा नहीं लगा ।यही बात प्यार से भी तो कही जा सकती थी ।जानू बहुत तेज रो हो रहा था ।जितेंद्र भागकर दरवाजे तक आता है और जानू को रेखा की गोद से ले लेता है। वह जानू की पीठ पर धीरे-धीरे हाथ फेरता है ।वह वृद्ध महिला जितेंद्र की मौसी थी ।जितेंद्र उनको प्रणाम करता है और कमरे में आने को कहता है पर  इस समय वह अच्छे मूड में नहीं है ।वह कहती हैं

“बड़ी मुश्किल से तो मैं ऊपर तक चढ़कर आई हूं  ।अब मैं बैठूंगी तो फिर उठ नहीं पाऊंगी ।तुम अपना परिवार संभालो अब मैं चल रही हूं ।”

जितेंद्र अचरज भरी निगाहों से उन्हें देखने लगता है ।वह पूछना चाहता था कि आया  ….आया… कहां है लेकिन तब तक मौसिजी सीढ़ियों से उतर चुकी थी। जितेंद्र जानू को रेखा को देता है और कहता है कि वह अभी आया को बुला कर ला रहा है। जानू आज बहुत परेशान है। ना जाने वो इतना क्यों रो रहा है। रेखा क्या करे समझ नहीं पा रही थी । वह जानू को कंधे पर लेकर धीरे-धीरे उसकी पीठ सहलाती रहती है ,शायद उसने शादी में कुछ अंड संड खा लिया हो ।आया जितेंद्र को पूरे घर में नहीं मिलती ।तभी चौके में उन्हें मौसी जी मिल जाती हैं। मौसी पूछती हैं

“क्या हुआ बेटा ,बीवी ने पहले ही दिन दौड़ लगवा दी क्या? जानू को वह दो पल नहीं संभाल पा रही !जितेंद्र पूछता है मौसी जी बेबी कहां है जानू की  आया !!

मौसी जी कहती है” मैंने उसे घर भेज दिया ,उसे भी तो अपना घर संभालना है  ।सुबह वह आ जाएगी । पूरी शादी तो उसने जानू को संभाला है।”

जितेंद्र मौसीज़ी से कुछ नहीं कह पाता और वह चुपचाप ऊपर अपने कमरे में चला जाता है ।जबसे मौसा जी इस दुनिया में नहीं रहें मौसी बहुत चिड़चिड़ी  हो गई है। कोई भी उनसे बहस नहीं करता। बहुत जल्दी रोने लगती है फिर उनकी तबीयत बहुत खराब हो जाती है ।ऊपर कमरे में जितेंद्र गया तो जानू रेखा के  कंधे पर ही सो चुका था ।रेखा ने उसके कपड़े भी बदल दिए थे। शायद  शादी के कपड़े उसे चुभ रहे थे ।जितेंद्र रेखा को प्यार भरी नजरों से देखता है

रेखा कितनी  सरल है ।उसके चेहरे को देखकर ऐसा सुकून मिलता है जैसा मां की गोद में मिलता है ।उसके चेहरे में ऐसा नूर जिसके आगे दुनिया की खूबसूरती फीकी लगती है ।उसके चेहरे का संतोष ऐसा कि उस पर मर मिटने को दिल करता है ।रेखा जानू को हौले से पलंग पर लेटा देती है ।आज उनका परिवार पूरा हो गया था ।जानू कितना प्यारा लग रहा था ।उसने धीरे से रेखा की साड़ी का आंचल पकड़ रखा था।ये नजारा देखकर  जितेंद्र की आंखों से आंसू छलक जाते हैं।वह रेखा से कहता है “मेरी जिंदगी में आने के लिए ,जानू की जिंदगी में आने के लिए मैं जितना भी धन्यवाद करूं कम है। जितेंद्र को ऐसा देखकर रेखा भी भाव विभोर हो जाती है और उसकी बाहों में समा जाती है।

उस वक्त रेखा ऊपर वाले से यही मनाती है कि जिंदगी यूं ही बीत जाए, इसी पल में सारी जिंदगी समा जाए। उसे अब जिंदगी में और कुछ नहीं चाहिए था ।आज वह पूर्ण हो चुकी थी। उसकी सारी चाहत आज पूरी हो चुकी थी ।उसके मन में जो संतोष था वह बड़े-बड़े ऋषि मुनियों को ही मिलता होगा।

रेखा और जितेंद्र क्या इसी तरह प्रेम की डोर में बंधे पूरी जिंदगी बिता पाएंगे? क्या रेखा के मन का यह संतोष हमेशा कायम रहेगा ?क्या जितेंद्र को हमेशा ही रेखा के चेहरे का नूर अपनी ओर आकर्षित करता रहेगा !या फिर जिंदगी एक नई करवट लेगी…

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गरिमा जैन 

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