रिक्त स्थान (भाग 10) – गरिमा जैन

रेखा गहरी नींद सो रही थी तभी अचानक उसके फोन की घंटी बजती है। कमरे में बिल्कुल अंधेरा था शायद बाहर रोशनी भी नहीं हुई थी।वह समझ नहीं पाती कि आखिर समय क्या हो रहा होगा और इतनी रात में कौन कॉल कर रहा होगा। मोबाइल में टाइम देखती है तो सुबह के 5:00 बज चुके थे। फोन जितेंद्र का था। रेखा परेशान हो जाती है वह तुरंत फोन उठाती है । जितेंद्र बहुत घबराया हुआ था।

वह कह रहा था “रेखा तुम्हारी मदद चाहिए, क्या तुम थोड़ी देर के लिए घर आ सकती हो ! मम्मी पापा शहर से बाहर गए है और ….”रेखा परेशान हो जाती है उसे जानू की याद आती है “जानू ,जानू ठीक तो है ना !”उधर से जितेंद्र कहता है” नहीं रेखा जानू ठीक नहीं है। उसे बहुत तेज बुखार है और वह रात भर मम्मा मम्मा कहता रहा ।रेखा अचानक से बोल पड़ती है “तो उसकी मम्मा को बुलाओ मुझे क्यों फोन किया है ?

जितेंद्र से यह कहकर रेखा को एक बार अफसोस भी होता है। लेकिन उसे सख्त कदम तो उठाना ही था। जितेन थोड़ी देर को चुप हो जाता है फिर कहता है “मैंने स्वाति को फोन किया था पर पूरी रात फोन करने पर भी उसने मेरा फोन नहीं उठाया” तभी रेखा  अचानक से कहती है” तो फिर गाड़ी उसके घर भेज देते वह जानू के पास दौड़कर आ जाती”

” घर, घर पर रहती कहां है वह!वो तो होटल के कमरे में रहती है ,कभी किसी होटल में, कभी किसी के साथ तो कभी..”

रेखा को अपने कहे पर अफसोस होने लगता है  ।वह कहती ठीक है” मैं आ रही हूं तुम गाड़ी मत भेजना मैं थोड़ी देर में पहुंच जाऊंगी ” वह जल्दी से एक सूट बदलती है अपनी चुन्नी लेती है और बाहर निकल जाती है ।जाने से पहले आपने भाई अमित को उठाती है और कहती है कि बहुत जरूरी टेस्ट है और वह तैयारी करना भूल गई इसीलिए वह रूपा के घर जा रही है ,दो-तीन घंटे में तैयारी करके कोचिंग चली जाएगी ,

फिर बाहर जाकर वह रूपा को फोन करती है। वह सारा वाकया समझाती है ,रूपा कहती है “बस यही दिन तो बचा था ,अब प्रेमी जोड़े के लिए झूठ बोलना पड़ेगा रेखा  कहती है कि इस तरह की बातें उसे अच्छी नहीं लगती वह सिर्फ जानू के लिए जा रही थी।  थोड़ी देर में रेखा जितेंद्र के घर पहुंच जाती है।

जितेंद्र जानू को कंधे पर लिए कमरे में इधर से उधर टहल रहा था। कमरे में तेज ऐसी चल रहा था काफी ठंड थी। रेखा सबसे पहले जानू को अपनी गोद में लेती है ।बुखार बहुत तेज नहीं था शायद दवाइयां असर कर गई थी ।वह जितेंद्र से कहती है कि सारे ऐसी बंद करके खिड़कियां खोल दे । इतनी तेज बुखार में ठंडी हवा बच्चे को बहुत नुकसान करेगी।रेखा वहीं रखें एक कंबल में जानू को लपेट देती है और उसे  गोद में लेकर बैठ जाती है।




जानू नींद में मम्मा मम्मा कहकर रेखा की चुन्नी पकड़ लेता है। रेखा जैसे फिर किसी स्वप्नलोक में आ गई थी । सामने खिड़की के बाहर उगता हुए सूरज की लालिमा पूरे कमरे में बिखर गई थी। नन्हा जानू उसकी चुन्नी पकड़ के सो रहा था। उसके चेहरे की मासूमियत से आगे सारी धन दौलत सारी कामयाबी भी कम दिखती थी ।

जितेंद्र  मुस्कुरा रहा था। उसके चेहरे के डिंपल रेखा को हमेशा से ही बहुत अच्छे लगते थे ।रेखा ना जाने कितनी देर तक जितेंद्र को देखती रह गई ,उसे पता ही नहीं चला। उसे लगा वह तो रोज सुबह यही जागती है ,जानू उसकी गोद में ऐसे ही सोता रहता है। जितेंद्र यूं ही मुस्कुराता रहता है और सूरज की लालिमा उसके चेहरे को ऐसे ही रौशन करती रहती है। उसे पता ही नहीं चला कब जितेंद्र कितने करीब आ गया और उसके होठों को हल्के से चूम लिया।

रेखा जैसे किसी सपने से बाहर आ गई! वह हड़बड़ाकर  उठ गई, जल्दी से जानू को लिटाया और अपनी चुन्नी संभालते सीढ़ियों  से नीचे उतरने लगी।रेखा के गाल सुर्ख लाल हो गए थे और गर्म आंसू उसपर बह रहे थे।वह बाहर निकलने लगी तभी पीछे से जितेंद्र ने आवाज दी ” मुझे छोड़कर मत जाओ ,मेरी जिंदगी में तुम्हारे लिए है जो स्थान है उस  रिक्त स्थान को भर जाओ रेखा!”

रेखा  को लगा कि वह इसी दिन का तो इंतजार कर रही थी लेकिन उसे खुद पर काबू करना होगा ।कहीं जितेंद्र उसमें स्वाति की झलक तो नहीं देखता !कहीं वह रेखा का इस्तेमाल करना तो नहीं चाहता !रेखा नहीं जानती कि जितेंद्र उसे सच्चा प्यार करता है या सिर्फ एक  खिंचाव है! वह  कुछ भी सोचना नहीं चाहती ।

वह बेतहाशा घर के बाहर भागती जाती है। सड़क पर खड़े होकर ऑटो का इंतजार करने लगती है पर सड़क पर ऑटो का नामोनिशान नहीं होता बिल्कुल सन्नाटा । जितेंद्र का घर ऐसे भी शहर से काफी दूर था ।वह घबरा जाती है। वह मोबाइल निकालती है लेकिन वहां पर नेटवर्क कनेक्टिविटी नहीं आ रही थी ।

वह कैब कैसे बुक करेगी ?फिर वह निश्चय करती है कि वह पैदल ही घर जाएगी चाहे उसे कितना भी समय लगे। तभी पीछे से गाड़ी में जितेंद्र आ जाता है। उसने अपना नाइट सूट ही पहना हुआ था।  जितेंद्र रेखा से माफी मांगता है ।उसे अपनी भावनाओं पर काबू रखना चाहिए था। उससे गलती हो गई है ।

रेखाउसे माफ कर दे ।वह रेखा को छोड़ देगा और कभी भी उसे फोन करके बात नहीं करेगा जानू को अगर उसकी याद आयेगी  तब भी वह उसे खुद संभालेगा। वह रेखा की जिंदगी से बहुत दूर चला जाएगा।रेखा यह सब सुनना नहीं चाहती थी। उसे लगता है काश यह एक सपना होता होता ।

रेखा  गाड़ी में नहीं बैठती और वह बेतहाशा चलती जा रही थी जैसे वक्त को भी पीछे छोड़ना चाहती है। जितेंद्र लगातार उसके पीछे आ रहा था ।उसे कर रहा था की वह गाड़ी में बैठ जाए ।आखिकार रेखा जितेंद्र की बात मान जाती है लेकिन वह नहीं चाहती है उसके मां-बाप की इज्जत  खराब हो इसलिए वह अपने घर से थोड़ी दूरी पर ही उतर जाती है। फिर वह तेजी से अपने घर की तरफ भागती है।




सुबह के 8:00 बज चुके थे ।घर पर मम्मी पापा चाय पी रहे थे। रेखा उनसे  कुछ नहीं कहती ।मम्मी पूछती” बेटा टेस्ट की तैयारी ठीक से हो गई !” रेखा को झूठ बोलने में बहुत शर्म आ रही थी ।उसने जिंदगी में कभी मम्मी पापा से  झूठ नहीं बोला था ।वह “जी “बोल कर अपने कमरे में चली जाती है और वहां जाकर बहुत रोती है ।

क्यों व जितेंद्र के बुलाने पर उसके घर चली गई? क्यों वह जानू को एक पराया बच्चा समझ उसका मोह छोड़ नहीं देती? जानू की मां जिंदा है उसे उसका ख्याल रखना होगा ।  जितेंद्र चाहे कितना भी फोन करेगा उसका फोन कभी नहीं उठाएगी।कॉन्ट्रैक्ट पूरा होने में 4 महीने शेष बचे हैं किसी तरह वह यह समय पूरा कर लेगी ।

अब जिंदगी में कभी भी जितेंद्र का चेहरा नहीं देखेगी ।फिर वह धीरे से अपने होठों को छूती है। उसे अजीब सा एहसास होता है। ऐसा लगता है की जितेंद्र सदियों से उसके साथ हो ,उसे खुद से मोहब्बत भी हो रही थी और नफरत भी।वह समझ नहीं पा रही थी कि उसे आगे जिंदगी में क्या करना है ?उसे अपने पापा की कही बात बार-बार याद आ रही थी कि “जितेंद्र आकाश  का तारा है उसे पाने की चाह करोगी तो बर्बाद हो जाओगी!

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रिक्त स्थान (भाग 9) – गरिमा जैन

गरिमा जैन 

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