प्यार की जीत – नूतन योगेश सक्सेना

ये कहानी आज से करीब 25 — 30 बरस पुरानी है । अजय और सीमा के घर पास — पास थे । सीमा एक साधारण परिवार की तीसरी बेटी थी, और अजय उच्च मध्य वर्ग से संबंधित था । दोनों हम उम्र ही थे, जैसा कि उन दिनों का चलन था लडके लडकियां आपस में कम ही बात करते थे । पूरे मौहल्ले की नजर जवान होते लडके लडकी पर टिकी रहती थी, इसलिए वह चाहकर भी  एक दूसरे से बात नहीं कर पाते थे ।

        अजय और सीमा भी मन ही मन एक दूसरे को पसंद करते थे पर उन्होंने कभी बताया नहीं था किसी को भी यहाँ तक कि एक दूसरे को भी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाये थे । 

        यूँ ही समय बीतता जा रहा था । धीरे — धीरे सीमा की दोनों बडी बहनों की शादी हो गई । अब घर में उसकी भी शादी की बातें शुरु होने लगी थीं , पर वो अपने मन की बात कैसे कहे ये ही नहीं समझ पा रही थी । अजय के घर का उच्च रहन – सहन भी सीमा को अपने दिल की बात कहने से रोकता था । वह एक साधारण क्लर्क की ही बेटी थी और वह भी तीसरी । उसके पिता जहाँ भी उसके रिश्ते के लिए जाते वहाँ मुँह फाड के दहेज माँगने वाले ही मिलते और दो बेटियों के विवाह के बाद अब उनकी हैसियत अधिक खर्च  करने की नहीं रह गयी थी ।

         फिर एक जगह सीमा का रिश्ता तय हो गया । पता लगा कि लडके वालों की कोई डिमांड नहीं है । अजय को जब ये पता लगा तो वह मन मसोस कर रह गया । उसके घरवालों को सीमा पसंद थी 




पर वह उन लोगों की जाति के नहीं थे और सीमा के पिताजी जाति – पाति को बहुत महत्व देते थे, ये वो लोग अच्छी तरह जानते थे।

        आज सीमा का विवाह था । खूब धूमधाम और रौनक थी । सीमा के पिता ने बारात के स्वागत का अच्छा इंतजाम किया हुआ था । तभी अचानक शोर उठने लगा ……….” ये शादी नहीं हो सकती, हमें नहीं पता था कि आप इतने कंगाल निकलेगें, अगर हमने कुछ मांग नहीं रखी तो क्या आप कुछ नहीं देंगे…..और हम मांग ही क्या रहे हैं केवल एक गाडी ही ना ।”

         वर के पिता की तेज आवाज दूर तक सुनाई दे रही थी। 

….. पर मैं आपकी ये मांग पूरी नहीं कर सकता मेरी इतनी हैसियत नहीं है, करजा लेकर मैं ये सब इंतजाम कर पाया हूँ और आपने तो पहले ही ये कहा था कि आपको कुछ नहीं चाहिए, तभी तो मैंने ये रिश्ता पक्का किया था ।…… सीमा के पिता का कातर स्वर गूँजा ।

       तो फिर हम भी मजबूर हैं, चलो बेटा उठो मंडप से । और दूल्हा भी पिता की आज्ञा मानकर तुरंत उठ गया ।

         इधर सीमा और उसके घरवालों का बुरा हाल था । तभी अचानक अजय ने आकर सीमा के पिताजी के पैर पकड लिए, “चाचाजी अगर आप मुझे किसी भी तरह से योग्य समझते हों तो मुझे सीमा का हाथ दे दीजिए,  सीमा के अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए । सब लोग हतप्रभ रह गये । सीमा के पिता ने अपने दोनों हाथ जोड दिए, “बेटा मैं दिल से शर्मिंदा हूँ जो मैंने तुम्हें अपने से छोटा समझा । मुझे क्षमा कर दो ।”

      और इस तरह इस प्रेम कहानी का सुखद अंत हुआ । दो प्यार करने वाले उम्र भर के लिए एक हो गये । उनके सच्चे और मूक प्रेम की जीत हुई ।

नूतन योगेश सक्सेना

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