ऐ जी सुनों ना चलो चलते है छोटे बेटे बहू के घर ,इतना बुलाया पर हम लोग जा नही पाये।अब तो ईश्वर की कृपया से बड़ी बहू ठीक ठाक है , कहते हुए सुबह का नाश्ता ‘ छाछ का गिलास ‘ पकड़ाते हुए रन्नो बगल में रखी मचिया को खीच कर बैठ गई।
इस पर दीन दयाल ने सिर्फ़ हां में गर्दन हिला दिया पर पूर्ण सहमती नही दी।और गिलास का मट्ठा खत्म करके पनही पहनी और दुलार पर चल दिये।
वो निकलने लगे तो एक बार रन्नों ने फिर अपनी बात दोहराते हुएउनके पीछे पीछे हो ली और खड़ी होकर निराई करते हुए उन्हें देखती रही फिर कुछ देर बाद रसोई में बहू का हाथ बटाने चली गई।
इधर वो थाल्हे की गुड़ाई भी कर रहे थे और सोच भी रहे थे कि ये तो वहां जाकर पोते पोतियों में मगन हो जाये गी पर हम क्या करेंगे।
भाई पक्का मकान है उसका ऊपर से ए सी से लेकर नौकर चाकर तक सब हैं।यहां तक कि सब्जी, दूध, बनिया का सामान और धोबी तक उसके घर आता है ।कुल मिला के कह लो तो सिर्फ खाने के लिए मुंह डोलाना पड़ता है ।
बाकी हर काम के लिए जी हुजूरी करने को एक नौकर तैनात रहता है । इसी लिए मेरा वहां मन उकताता है।मगर ये बात वो पत्नी से नही कह सकते वरना वो भड़क जाये गी।
हां हां तुम्हें तो आराम से एलर्जी है ना आराम तो काटता है। अरे यहाँ तो करते ही हो थोड़े दिन वहां आराम ही कर लोगे तो क्या जायेगा आखिर एक जगह बंध के क्यों रहना,सभी के पास रहना चाहिए।
बस इसी तर्क के आगे वो नत मस्तक हो जाते है।
और बिना ना नुकुर के अच्छा चलूंगा धैर्य रखो का धीरज बंधा मुस्कुरा देते।
पर सच कहो तो उन्हें अपना पुस्तैनी घर छोड़ने को जी नहीं करता और सबसे बड़ी बात ये है कि बड़े बेटे बहू और उसके बच्चे ख्याल बहुत रखते है , बहू घरेलू महिला जो है यकीन मानों ये लोग भी नही चाहते कि हम लोग कहीं जाये।हलाकि ख्याल वो लोग भी रखते है अब वहां की लाइफ ही व्यस्त है तो कोई क्या करे। जितना निकाल पाते है उतना समय देते है। पर इस बार लगता है कोई बहाना नही चलेगा।लगातार बहू का फोन भी आ रहा है जिसकी वजह से ये भी जिदिया गई है तो लगता है जाना ही पड़ेगा।यही सोचते सोचते निराई गुड़ाई करके जब दोपहर के खाने पर बैठे तो बड़ी बहू से बेटे से टिकट निकलवाने को कह ही दिया।अब उसका मन तो नही है क्योंकि इन लोगों के रहने से उसे काफी सहारा रहता है।पर सास को देख रही है कि जिद पर अड़ी हुई हैं जाने को तो उसने भी शाम को पति देव से बाबू जी का संदेशा कह दिया।
बेटे ने हां में सिर हिलाते हुए खाना खाया और तत्काल में आन लाइन टिकट बुक कर दी।
दूसरे दिन जैसे ही दोनों कपड़ा लत्ता सहेज स्टेशन जाने को तैयार हुए बहू की आंखें भर आई वहीं पोते पोतियों भी सिसकने लगे ये देख उन दोनों का भी जी भर आया पर जल्दी ही वापस आऊंगा का आश्वासन दे कार में बैठे और स्टेशन पहुंच की ओर चल दिये ।गाड़ी लगी हुई थी सो बेटे ने भी सामान रखा और सही तरीके से उन लोगों को बिठा पैर छूते हुए भाई को इक्तिला किया कि ये लोग अब निकलने वाले है ट्रेन पर बिना दिया है कहता हुआ नीचे उतरा ही था कि ट्रेन छुक छुक कर छूट गई ,और वो खड़ा गाड़ी के ओझल होने तक देखता रहा फिर भारी मन से घर आ गया।
उधर ये लोग भी शहर छोटे बेटे के पास पहुंच गए बेटा बहू बच्चों समेत स्टेशन पर लेने आये।मां -बाप को देख बेटा और सास ससुर को देख जहां बहू की आंखों में चमक आ गई वहीं पोते पोतियां गले लग खूब प्यारा किये और दादी बाबा के सीने से चिपक बतियाते हुए कब घर आ गए पता न चला और उंगली पकड़ गेट के अंदर ले जातेः हुए बोले अब तो हम सब की छुट्टियां बहुत अच्छे से बीतेगीं ,दादी बाबा जो आ गए कहते हुए ड्राइंग रूम में ले गए और फिर क्या सभी आव भगते में लग गए।
कोई पानी लाया तो कोई नाश्ता और कोई खाने की टेबल सजाने लगा।
तो वही छोटा बेटा बड़े भाई को फोन कर कहने लगा कि मां पिता जी अच्छे से घर आ गए।उसके बाद सभी ने मिल कर नाश्ता और खाना खाया और उसी दरमियान हाल चाल भी एक दूसरे का पूछा। उसके बाद सब अपने अपने कमरे में चले गए और दूसरे दिन अपने अपने काम पे निकल गए कोई डांस क्लास कोई एक्स्ट्रा कोर्स तो आफिस और कोई फेक्ट्री ।इस तरह तीन से चार घंटे घर खाली रहता।यानि यही दो लोग बचतें।ये लोग भी नाश्ता पानी करके ए सी में आराम करते फिर मेड आकर खाना बनाती ,जब तक वो खाना बनाती तब तक घर में बेटे बहू तो नही पर बच्चे हाज़िर हो जाते और फिर सब मिल कर साथ खाते और दादी बाबा के साथ समय बिताते। इस तरह कुछ दिनों तक तो अच्छा लगा क्योंकि नए मकान में पहली बार गए थे पर कुछ ही दिनों में उनका वहां दम घुटे लगा पर कह नही पा रहे थे कि पत्नी नाराज है जायेगी।
मगर जैसे लगता है ईश्वर ने भी उनके साथ दिया। रातो- दिन एक ही जगह एक सी कूलर में रहते रहते और फ्रीज़ का पानी पीने पीते और अधिकतर कम समय होने के नाते बाहर का खाना खाने की वजह से उनकी तबियत बिगड़ने लगी उनके जोड़ो में दर्द रहने लगा पेट खराब रहता और कुछ अच्छा न लगता ,हर वक़्त अनमने से रहने लगे ।जिसे बेटे ने जज किया और इलाज के बावजूद भी ठीक न होने की वजह पूरी तो उन्होंने बताया की देखो अगर तुम लोग बुरा ना मानों तो एक बात कहूं ।इस पर उन दोनों ने कहा हां पिता जी बेझिझक कहिये क्या बात है।
तब उन्होंने कहा देखो तुम्हारे शहर में सुख सुविधा तो बहुत है कोई चीज की कमी नही है पर शुद्ध वातावरण नही हैं दूर दूर तक कही पेड़ रूख नही है जिससे हमें शुद्ध आक्सीजन नही मिल पा रही और हमारा इसमें दम घुटे रहा ,सबसे बड़ी बात तो ये है कि यहाँ हमारे पास , कोई काम नही है जिसकी वजह से सौ बीमारी हो रही बहुत रह लिये तुम लोगों के साथ अब हमें हमारे गांव छोड़ दो यहां हमारा दम घुटता है अरे विकास की आड़ में इंसान अपना दुश्मन खुद बना हुआ है ।सैकड़ों बीमारियों से घिरा रहा है।रात दिन डा. के पास दौड़ रहा है ।
यह सुन उन लोगों का भी बाबू जी की बात सौ प्रतिशत जायज लगी।
और दूसरे ही दिन उन्हें पुस्तैनी घर छोड़ दिया जहां बड़ी बहू छाछ की गिलास लिए उनका इंतज़ार कर रही थीघर दुलार आंगन और चारपाई पलके बिछाये बैठी थी ।सच गांव का शुद्ध वातावरण, शुद्ध अनाज किसका मन नही आकर्षित करता फिर भला बाबू जी तो यहीं के बासिंदा है उनका मन भला तंग जगहों पर कैसे लगता।
बाबू जी का कहना है कि स्वस्थ जीवन चाहिए तो पर्यावरण बचाओं
अर्थात पेड़ लगाओ पर्यावरण बचाओं। स्वस्थ जीवन पाओ।
मौलिक अप्रकाशित रचना
कंचन श्रीवास्तव आरज़ू
प्रयागराज