बिपाशा क्या कर रही हो..? यह करने से पहले मुझसे पूछा होता, लवली भाभी बोली।
भाभी यह छोटे-मोटे काम के लिए आपसे क्या पूछना.. अपना घर है, इसलिए मैं खुद ही कर रही हूंँ। नहीं बिपाशा दीदी ..! कौन सामान कहांँ रखना है यह तुम अपनी पसंद से नहीं मुझसे पूछ कर ही रखोगी..?
“भाभी की यह बात बिपाशा को बुरी लगी।” लेकिन कुछ बोली नहीं, आखिर वह गमला खाली था इसलिए कैक्टस का पेड़ उसमें लगा दिया। अब इसमें पूछने जैसी क्या बात थी जो भाभी इतना सुना कर चली गई।
बिपाशा की शादी पाँच साल पहले हुई थी। इस बीच वह एक बच्चे की मांँ बन गई। ससुराल में संयुक्त परिवार था। सूरज के माता-पिता और एक छोटा भाई सभी एक साथ रहते थे। बहुत प्यारी सी दुनिया थी बिपाशा की।
ससुराल में सास, ससुर देवर बिपाशा को बहुत चाहते और बहुत सम्मान करते थे। अचानक एक दिन सूरज को हार्ट अटैक हुआ। बहुत कोशिशों के बावजूद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। सूरज के गुजर जाने के बाद उसकी दुनिया ही बदल गई।
इस दुख की घड़ी में मायके वाले सभी आए और क्रिया कर्म होने के बाद बच्चे के साथ उसे मायके ले आए। दुख के माहौल में मांँ-बाप ने जैसा कहा वही सुनकर वह मायके आ गई। ऐसे समय में मायके वालों से बढ़कर अपना और कोई नहीं लगता।
मायके आकर बच्चे का दाखिला पास के स्कूल में करवा दिया। उनकी देखरेख, ले जाना ले आना सब बिपाशा करती। ससुराल में बच्चे को स्कूल ले जाने, ले आने का काम ससुर जी करते थे।
धीरे-धीरे घर वालों का स्वभाव भी बदलने लगा। अब वह पहले जैसा बर्ताव नहीं करते थे। इस चीज को बिपाशा ने महसूस किया, लेकिन क्या कर सकती थी। बच्चे को लेकर कहां जायेगी। यह सोचकर चुपचाप सहन कर लेती।
लवली भाभी का हर काम में दखलअंदाजी ज्यादा ही रहने लगा। जरा सा बैठे देखा तुरंत बोलती- बिपाशा दीदी यह काम कर लेना। हर काम में बिपाशा का अहम किरदार होने के बावजूद भी गृहस्ती उसकी नहीं, लवली भाभी की है। भाभी यह हमेशा एहसास करा देती।
ससुराल में वह हर काम स्वतंत्र होकर करती थी। सास- ससुर हर अच्छे काम के बाद उसे प्रशंसा करते थे जिससे उसका मनोबल और भी बढ़ जाता था।
उसे याद है सूरज के दुनिया से चले जाने के बाद सास ससुर दोनों डिंपू से लिपटकर रो रहे थे। कह रहे थे “बिपाशा तुम अपने मायके मत जाओ..! इसी घर में रहो..। जैसा भी है तुम्हारा अपना घर है। इस घर में बच्चे को अच्छी शिक्षा और सुरक्षित भविष्य मिलेगा। लेकिन माता-पिता के दवाब में आकर वह मायके चली आई। सास ससुर कुछ नहीं बोल पाए, जैसे उनका बिपाशा और डिंपू के ऊपर से सभी अधिकार खत्म हो गये हैं। और वह लोग चुपचाप दोनों को जाते हुए देखते रहे।
मायके आने के बाद डिंपू अपने दादा-दादी और चाचू को बहुत याद करता था। धीरे-धीरे वह भी मामा के घर के माहौल में ढल गया। अभी वह छोटा था इसलिए कुछ भी समझ नहीं पा रहा था लेकिन बिपाशा बहुत अच्छी तरह से सब कुछ समझ रही थी।
एक दिन डिंपू के हाथ से कांच का गिलास पानी पीते समय छूट गया और जमीन में गिरते ही टूट गया। लवली भाभी ने पूरा घर सिर पर उठा लिया। पहले तो डिंपू को बहुत डांटा और इसके बाद एक थप्पड़ मारा। इतने बदतमीज बच्चे हो, पूरे घर को तहस-नहस कर रखा है। लवली भाभी लगातार बड़बड़ाये जा रही थी। नाना नानी डिंपू को समझाते हुए बोले- तुमने गलती की थी इसीलिए मामी ने तुम्हें मारा है। अब कभी ऐसा नहीं करना। लेकिन बिपाशा के दिल में यह बात बहुत चुभी।
बिपाशा के आने के बाद काम का बंटवारा तो पहले ही लवली भाभी ने कर लिया था। सुबह का नाश्ता और दोपहर का खाना और आप बनायेंगी दीदी..! क्योंकि सुबह-सुबह डिंपू स्कूल जाता हैं उनके लिए नाश्ता बनाओगी तो थोड़ा ज्यादा ही बना लेना, घर में सभी के लिए हो जाएगा…! और हांँ रात का खाना मैं बनाऊंगी..।
शुरू- शुरू में मम्मी पापा बिपाशा का पक्ष लेते थे, लेकिन समय के साथ-साथ अब वह लोग भी मौन साध लेते। लवली भाभी के मुंँह में जो आता वह बोलती रहती। कोई भी बात होती तो मुझे बिना टोके रह नहीं सकती थी।
एक बार बिपाशा ने भी कह दिया कि यह घर तो हमारा भी है। आप इस तरह से क्यों बात करती हो….?
इस पर लवली भाभी तुनक कर तुरंत बोली-आ हा हा हा..! अब यही तुम्हारे मुंह से सुनना बाकी था। एक बात कान खोल कर सुन लो दीदी..! यह घर मेरे पति और मेरा है। आप इस घर में रह रही हैं, क्योंकि आपके पति नहीं है..? आपकी मदद के लिए हम लोगों के सिवाय और कोई नहीं है। इसलिए आइंदा से यह बात मेरे सामने कभी नहीं बोलना…!
“एक बात कान खोल कर सुन लो, शादी के बाद बेटी का घर उसका मायका नहीं ससुराल होता है। समझ में आया कि नहीं..!”
भाभी तुम भी एक बात अच्छे से सुन लो..! यह घर जितना भैया का है उतना मेरा। मुझे धौंस दिखाने की कोशिश मत करना। यह मुझे अच्छे से पता है, फिर भी मायके से रिश्ता न खराब हो इसलिए बोलना नहीं चाहती। आप मेरा मुंँह मत खुलवाओ… भाभी?
यह लो…!! हम तो इनका भला करने चले थे, और यह हमको ही कानून सिखाने लगी।
“लेकिन बिपाशा की बात सुनकर लवली भाभी थोड़ी नरम पड़ गई।”
उनके बीच हो रही वार्तालाप को उनके मम्मी-पापा भी सुन रहे थे, लेकिन उन्होंने भी कुछ नहीं बोला। सिर्फ एक ही शब्द बोला घर में शांति रखें। बिपाशा..! तू डिंपू को बोल…! घर में धमा चौकड़ी न किया करें।
मम्मी..! अभी वह बच्चा हैं, अभी नहीं करेंगा तो कब करेंगा।
देखा नहीं..! लवली कितनी परेशान हो जाती है मम्मी बोली।
“मम्मी तुम भी जानती हो कि वह डिंपू को कितनी बुरी तरह से डांटती हैं, लेकिन तब तुम एक शब्द भी नहीं बोलती हो..!”
वह उसके भले के लिए डांटती है- मम्मी बोली।
“घर में जब लोग बढ़ते हैं तो काम भी बढ़ जाता है..!” ज्यादा काम होने के कारण तेरी भाभी चिड़चिड़ी हो गई है।
मम्मी तुम लवली भाभी का ही पक्ष लिए जा रही हो..? मैं कौन सा बैठे रहती हूंँ,। सारा दिन काम करती हूंँ तब भी तुम्हारे मुंँह से एक शब्द भी नहीं निकलता है।
“ससुराल की बातें सुनकर महिलाएं मजबूत बनती हैं और मायके के तानें सुनकर अंदर से टूट जाती हैं.. क्योंकि वह इसी भ्रम में जीती हैं कि मायका तो उनका अपना है।”
एक दिन मानिक भैया लवली भाभी को सामान से भरा हुआ थैला पकड़ाते हुए बोले- यह सामान पकड़ो..! महंगाई बहुत बढ़ गई है। इतने बड़े परिवार का खर्चा बहुत मुश्किल से चल रहा है।
“हांँ मैं मानती हूंँ डिंपू की पढ़ाई का खर्चा बढ़ गया है। मानिक भैया की पेमेंट के साथ-साथ पापा की भी तो अच्छी खासी पेंशन है, लेकिन अब बहस कौन करें..?”
मम्मी पापा कौन से मेरे पक्ष में हैं..? मुझे ही चुप करा देंगे।
बिपाशा ससुराल में कभी इस तरह मानसिक तनाव में नहीं रही थी। उसके सास- ससुर का स्वभाव बहुत ही सरल था। ससुर भी रिटायर्ड बैंक कर्मी थे। जब वह डिंपू को लेकर मायके आ रही थी, उस समय सासू मांँ ने कहा था- “बिपाशा यह तुम्हारा अपना घर है। जब तुम्हारा जी चाहे वापस आ जाना। हम तुम्हारा इंतजार करेंगे..!
उनकी आंखों का अथाह दर्द अभी तक मेरी आंखों के सामने घूमता रहता है।”
उस समय मम्मी, पापा, भैया,भाभी सभी एक ही सुर में बोले हम अपनी बेटी को अब यहां नहीं रहने देंगे। किसके सहारे रहेगी वह.. हम अपनी बेटी और उसके बच्चे को साथ लेकर जाएंगे और वहीं डिंपू की पढ़ाई लिखाई करवाएंगे।
माता-पिता के जवान बेटे की मौत ने कमर तोड़ दी थी ऊपर से बिपाशा के मायके वालों का धौंस… वह लोग ज्यादा कुछ नहीं बोल पाए… और अंत में बिपाशा के ऊपर छोड़ दिया कि उसे कहांँ रहना है। बिपाशा ने भी उस समय अपने मायके जाना ही उचित समझा।
एक दिन मानिक भैया ऑफिस से आए तो डिंपू उनके गले में दोनों हाथ डालकर मामू- मामू बोलने लगा। मानिक भैया उसे झिड़कते हुए हुए बोले-
अरे…! “अभी तो ऑफिस से आया हूंँ, आते ही क्यों चिपक रहे हो। जाओ बाहर खेलो..!”
बिपाशा ने कहा- “सूरज के आफिस से आते ही डिंपू ऐसे ही उनके गले में हाथ डाल लेता था, शायद इसी आदत के कारण आपके साथ भी ऐसा कर रहा है भैया..!”
मैं उसे समझा दूंँगी।
कल डिम्पू का जन्मदिन है मम्मी..! ठीक है लवली भाभी को बोल…! कल घर में अच्छा खाना पीना का इंतजाम कर देगी।
लवली भाभी सुन रही थी वह बोली इस महंगाई के समय में जन्म दिन मनाना फिजूल खर्ची है।
एक काम करो दीदी..! कल उसे मंदिर ले जाकर भगवान के दर्शन करवा देना और प्रसाद खिला देना यही उसका जन्मदिन है। हां भाभी.. उसे मंदिर तो ले जाऊंगी!
“लेकिन वह केक काटने की जिद कर रहा है…!”
दीदी आप उसे समझाइए और पैसे की कीमत बताइए। केक जैसे फिजूल खर्ची से मेरे महीने का बजट चरमरा जायेगा।
बिपाशा कुछ नहीं बोली बस चुप हो गई।
दूसरे दिन बिपाशा डिंपू को लेकर मंदिर गई और वहां दीपदान किया भगवान से बच्चें की लंबी उम्र की प्रार्थना की।
उसने डिंपू को केक न काटने के लिए समझा दिया, और बच्चा भी मांँ की बात समझ गया। खुशी-खुशी खेल में व्यस्त हो गया।
अचानक शाम को घर के दरवाजे के सामने एक गाड़ी रुकी। डोर बेल बजी, तो बिपाशा ने ही दरवाजा खोला। बिपाशा का मुंह खुला का खुला रह गया..! सामने सास- ससुर और देवर खड़े थे। देवर के हाथ में एक बड़ा सा केक और सास- ससुर के हाथ में ढेर सारे उपहार थे।
बिपाशा सास को देखते ही उनसे लिपट गई और फफक -फफककर रोने लगी। सासू मांँ की पारखी नजर सब कुछ देखकर समझ गई। उसने बिपाशा को चुप कराया और प्यार से पीठ थपथपाते हुए कहा। आज रोने का दिन नहीं है बेटा..! मैं तुम्हारी शुक्रगुजार हूंँ कि आज के दिन ही तुमने मुझे दादी बनने का सौभाग्य प्रदान किया था।
“कहांँ है मेरा कुल दीपक..?”
अंदर से डिंपू चहकते हुए आया और दादा-दादी और चाचू को देखकर बहुत खुश हुआ। बारी-बारी से सभी की गोदी में जाकर बहुत खुश हो रहा था। तब तक बिपाशा के मम्मी-पापा और भैया-भाभी भी आ गए। औपचारिकतावस वह लोग बिपाशा के ससुराल वालों से खुश होकर मिले।
अचानक समधन जी..! बिपाशा की मम्मी बोली।
अचानक कहांँ..? आज तो हमारे कुल दीपक का जन्मदिन है। हम लोग कहीं भी होते, आज अपने नाती के जन्मदिन में जरूर सम्मिलित होते।
सोचा..! आज आप लोग डिंपू का जन्मदिन मना रहे होंगे चलो हम लोग भी शामिल हो जाते हैं।
बिपाशा की मम्मी थोड़ा झेंप गई हां- हां क्यों नहीं समधन जी..! यह तो आपका ही घर है।
जन्मदिन की कोई पार्टी नहीं हो रही है क्या..?
बिपाशा ने बात को संभालते हुए कहा- आज हमारे एक रिश्तेदार की तबीयत ज्यादा ही खराब है इसलिए… जन्मदिन नहीं मना रहे हैं।
“कोई बात नहीं हम लोग डिंपू से केक तो कटवा सकते हैं..!” यह देखकर बिपाशा की आंखें छलछला गई।
डिंपू भी केक काटने के लिए बहुत उत्सुक था।
सासु मांँ ने एक नई ड्रेस निकाल कर बिपाशा को थमाते हुए कहा, यह ड्रेस डिंपू को पहनाकर ले आओ..!
डिंपू ने केक काटने के बाद सबको खिलाया।
समधन जी आप लोग खाना खाकर ही जाइयेगा। बिपाशा की मम्मी बोली।
हां- हां क्यों नहीं आज तो मेरे नाती का जन्मदिन है बिना खाना खाए कैसे जाएंगे। लवली भाभी मम्मी का मुंँह देखने लगी।
थोड़ी देर में खाना आ गया.. मम्मी बोली समधन जी यह खाना….!! आप लोग तो मेरे मेहमान हैं, फिर आपने क्यों खाना मंगाने की तकलीफ की..?
खाना लवली बहू बना रही है न..।
नहीं समधन जी..! आज मेरे नाती का जन्मदिन है इसलिए खाना तो मेरी तरफ से ही होगा।
बिपाशा की आंखों में आंसू आ गए। सचमुच अपने हीरे जैसे ससुराल को छोड़कर क्यों अपने घर वालों के कहने पर मायके में आ बसी। उसे पल-पल अफसोस हो रहा था..!
“सच ही कहा गया है मायके के सोने के कौर से अच्छा, ससुराल की रूखी सूखी रोटी में ही सम्मान है।”
घर का माहौल बहुत खुशनुमा हो गया था। डिंपू बारी-बारी से अपने दादा, दादी और चाचू से ही चिपका रहा।
बिपाशा ने महसूस किया कि उसकी असली खुशी उसके ससुराल में ही है जहां उसका बच्चा खुली हवा में सांँस ले पाएगा।
बात-बात में हर समय कोई टोका टाकी नहीं करेगा। जब बच्चे का भविष्य बिगड़ने का सवाल हो सिर्फ उसी समय डांट फटकार,टोका टाकी ठीक लगती है….। बच्चे तो बच्चे हैं। स्वच्छंद होकर बड़े हो और भरपूर बचपन जिये। यही हर मांँ बाप सोचते है।
ठीक है बिपाशा बेटा..! रात ज्यादा हो रही है अब हम लोग चलते हैं, सासू मांँ बोली।
माँ आप अकेले नहीं, मैं और डिंपू भी साथ चल रहे हैं। और यह कहते हुए बिपाशा अंदर से अपना सामान ले आई। देवर ने भाभी के हाथ से सामान लेकर डिग्गी में रखा और सभी खुशी-खुशी घर वापिस आ गए।
– सुनीता मुखर्जी “श्रुति”
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
हल्दिया, पश्चिम बंगाल