प्रेम विवाह – शिप्रा श्रीवास्तव

हरदोई जैसी छोटी सी जगह मे आज़ से करीब बीस साल पहले जब घर की बहू के रूप में सिर्फ और सिर्फ दिन भर घरेलु काम काज मे जुटी , सिर पर पल्ला डाले सिर झुकाए सास की हर बात पर हाँ में हाँ मिलाती और खाली समय मे पड़ोसन से घर भर के उस पर ढाए जा रहे जुल्मों की दास्तान फुसफुसा फुसफुसा कर कभी बुनाई की नयी डिज़ाइन सीखने तो कभी अचार की विधि पूछने की आड़ में बताती की छवि ही प्रचलित थी। 

ऐसे मे राजू दादा यानी हमारे छोटे भईया जिन्होंने शायद ही कोई काम उस समय के प्रोटोकोल के अनुसार किया था, पल्लवी भाभी से प्रेम विवाह कर के पूरे खानदान पर बम विस्फोट सा कर दिया था l

पल्लवी भाभी लखनऊ में राजू दादा के साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहीं थीं, घर से दूर रह रहे राजू दादा को पल्लवी भाभी और उनका परिवार इतना भाया की मन ही मन उनसे शादी करने का सपना संजो बैठे, पर खाली बैठा बेरोजगार भला बैंक मैनेजर की लड़की को प्रपोज करने की हिम्मत कैसे करे इसी उहापोह मे दिन बीत रहे थे कि उनका चयन प्रशासनिक सेवा मे  हो गया,

इसे ईश्वर की तरफ से दी गई स्वीकृति मान कर उन्होंने  समय न बर्बाद करते हुए पल्लवी भाभी के पिता सर्वेश्वर  जी से उनका हाथ मांग लिया l

सर्वेश्वर जी को इस रिश्ते से वैसे तो कोई आपत्ति नहीं थी सिवाय लड़के की पारिवारिक पृष्टभूमि के, जोकि पल्लवी के माहौल से बिल्कुल विपरित थी l कहां आरंभ से ही अंग्रेजी माध्यम से पढ़ी उनकी सुघड़ सलीके दार बिटिया कहाँ कस्बे का दकियानूसी माहौल

कैसे निभा पाएगी वो वहाँ? राजू दादा के  दिए गए लाख आश्वासनों के बावजूद वो पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पा रहे थे l श्रीमती सर्वेश्वर को  भी राजू भईया शायद दामाद के रूप में भा गए थे और भला भाते भी क्यों ना देखने मे लंबे चौडे सजीले, बात मे सभ्य शिष्ट और पढ़ाई लिखाई मे अव्वल तभी तो चट से सिलेक्ट हो गए और फिर उन्हें अपनी परवारिश, अपनी बेटी पर भी विश्वास था कि वो जीवन की इस परीक्षा मे भी हमेशा की तरह अव्वल ही आयेगी l



बड़े बूढ़ों की नाराजगी और घर की औरतों के कटाक्ष को नज़रअंदाज़ करते हुए ही पल्लवी भाभी एक सादे से समारोह मे संपन्न हुए विवाह के बाद हमारे घर की बहू बन गई l भईया तो वहाँ के माहौल को देखते हुए अगले दिन ही निकल जाना चाहते थे पर भाभी ने पता नहीं कौन सी कसम दे कर वहीँ एक महीना रुकने के लिए उन्हें मना लिया था, दो तीन दिन बाद भईया  तो चले गए थे l

घर के लोगों को यह लगा पहला झटका था, कौन सी बहु ऐसी ससुराल मे रुकती है जहां  उसका स्वागत भी  तानों और शिकायतों से हुआ था, मानो वो खुद ही भाग कर आयी हो ,इन सब के बर्ताव का सबसे ज्यादा बुरा लगा हमारी दादी जी को” कोई ऐसा व्यवहार करता है

नयी बहुरिया के साथ,” और कोई होती तो पढ़ी लिखी होने का, शहर की होने का घमंड दिखाती और चली जाती राजू के साथ ” तब धरा रह जाता तुम लोगन का गुस्सा, बेटा अपना बना रहे और बहू परायी” दादी की झिड़की सुन दो दिनों बाद ताई, चाची और अम्मा ने मौन तोड़ा और बहू के आने पर सुहागिनों को मावा खिला कर रस्मे शुरू करी l

हाँ बातों बातों में उनके पहनने  ओढ़ने, बोलने की हंसी मॉडर्न बहुरिया कह कर उड़ायी जा रही थी पर भाभी तो  इन सारी बातों को नज़रअंदाज़ कर के सभी रस्मों में उत्सुकता से भाग ले रही थींl

रसोई छूने की रस्म मे तो भाभी ने ऐसा लज्जत दार खाना बनाया की क्या बच्चे और क्या बड़े सब वाह! वाह! कर उठे ये था मॉडर्न बहुरिया का दूसरा झटका l

भईया की आँखों मे उस दिन उनकी तारीफें सुन कर जो चमक आयी थीं वो भाभी के लिए शायद सबसे बड़ी उपलब्धि थीं, धीरे धीरे सब पर भाभी का रंग चढ रहा था हाँ हर वक़्त सिर पर पल्लू ना रखने और ताऊ जी से बेहिचक बात करने पर अभी भी उन्हें माडर्न बहु का ताना मिल जाता था

पर उस से उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था, वहीं थीं जो हर मुद्दे पर ताऊ जी से बड़े आराम से ना सिर्फ बात कर पाती थीं बल्कि बात मनवा भी लेती थीं फिर चाहे वो मीरा दी का कॉलेज में एडमिशन करवाना हो या मुझे इंजीनियरिंग के लिए बाहर भेजना, बड़ो का सम्मान और छोटों से उनका अपनापन उनके प्रति लोगों के विचार बदल रहा था l



समय गुजर रहा था पल्लवी भाभी भैया के साथ चली तो गई थीं पर हर वार त्योहार ससुराल मे ही आ कर मनाती थी, हर किसी का जन्मदिन, शादी की सालगिरह उन्हें ना सिर्फ याद रहती बल्कि वे शुभकामनाओं के साथ छोटा सा तोहफा भी देना नहीं भूलती थीं ये भी हमारे परिवार के लिए नया चलन था,

क्योंकि अब तक सालगिरह तो बस बच्चों की ही मनाई जाती थीं वो भी  लड़कों की सिर्फ मुंडन होने तक, अब तोहफे और शुभकामनाएं तो हर उम्र में, हर किसी को अच्छे लगते हैं इसका अनुभव सबको कराने वाली भी तो हमारी भाभी ही थी l

आस पास रहने वाली ताई जी की सखियाँ जो पहले यदा कदा ताई जी को बेटा हाथ से निकल जाने और मॉडर्न बहु के आने का अफसोस प्रकट करने आती थी उसमें अलबत्ता कमी आ गई थीं, उन्हीं दिनों  एक दिन अचानक ताऊ जी की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई थीं घर भर मे सबके हाथ पाँव फूल गए,

ताई जी और घर की औरतों ने रोना शुरू कर दिया था ऐसे में भाभी ने न सिर्फ संयम न खोते हुए मेरी और मेरे भाई की मदद से तुरंत उन्हें हस्पताल पहुंचाया बल्कि उनकी स्तिथि समान्य होने तक हास्पिटल से हिली तक नहीं,

उन्हें डॉक्टर से अंग्रेज़ी मे बात करते देख अब ताई जी को चिढ़ नहीं राहत मिल रही थीं उनकी माडर्न बहुरिया अब उनकी आंखों का तारा बन चुकी थीं, हर आने जाने वाले से वो यह कहते नहीं थक रही थीं

कि उनके तो भाग खुल गए ऐसी बहु पा कर और सभी की आंखों मे उनकी इस बात के लिए स्वीकृति के भाव थे, ये था हमारे घर की मॉडर्न बहु का फुल एंड फाइनल झटका, वो दिन है और आज का दिन भाभी की सलाह के बगैर कोई फैसला नहीं होता हैl

ताई जी की सखियाँ अब भी आती है पर ताई जी के लिये अफसोस प्रकट करने नहीं बल्कि पल्लवी भाभी जैसी बहु न पाने पर अपनी किस्मत पर अफसोस करने l

आशा है कहानी आपको पसंद आएगी।

शिप्रा श्रीवास्तव 

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