प्रायश्चित – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

सुरेश बाबू की आंखों में आज पश्चाताप के आंसू बह रहे थे उन्होंने पत्नी यशोदा के जाने के बाद दूसरी शादी वसुधा से कर ली थी। पहले तो वसुधा ने चिकनी – चुपड़ी बातों में उलझाकर उनके बच्चों को अपना बच्चा कह कर बहुत प्रेम और स्नेह जताया था और सुरेश बाबू भी बच्चों को लेकर निश्चिंत हो गए थे की वसुधा के आने के बाद बच्चों को मां की कमी नहीं खलेगी

लेकिन वक्त के साथ-साथ उसका असली रूप भी आने लगा था। जैसे ही उसका खुद का बच्चा हुआ तो वो अचानक ही बदल गई थी और ये वो सुरेश बाबू के सामने नहीं करती थी पर उनके दफ्तर जाने के बाद उसके बर्ताव में परिवर्तन आ जाता था।

जब मां दूसरी होती है तो पिता तीसरा हो जाता है। बच्चों को इतना डरा – धमका कर रखती की वो पिता से अपने दिल की बात कह नहीं सकते थे। स्कूल से आते राधा यानी यशोदा की बेटी को घर के काम में लगा देती, ढंग से खाना पीना भी बंद ही हो गया था। राधा और रंजीत भाई बहन आपस में एक-दूसरे का दुख बांट लिया करते थे।

राधा मौका मिलते ही रंजीत को उसकी मनपसंद चीज बना कर खिलाया करती और रसोई घर को साफ करके रखा करती जिससे उसकी वसुधा मां को पता ना चले। वसुधा की बेटी छोटी थी तो वो उसके काम में व्यस्त रहती और जब फुर्सत मिलता तो खाकर आराम फरमाती।

सुरेश बाबू भी अपने बच्चों की तरफ कम ध्यान देने लगे थे ‌नई गुड़िया के साथ वक्त बिताया करते थे। कहां तो पहले कभी बच्चों को गोद भी नहीं लेते थे। यशोदा सारे काम बच्चों के साथ – साथ करती थी ना तो कभी उसकी मदद किया था ना ही बच्चों की कोई जिम्मेदारी उठाई थी।अब दफ्तर से आने के बाद वसुधा के साथ लगे रहते थे।

राधा और रंजीत को बहुत ही परायापन महसूस होने लगा था। वक्त के साथ-साथ गुड़िया पांच वर्ष की हो गई थी और राधा काॅलेज की पढ़ाई पूरी करके नौकरी करने लगी थी और उसने भाई रंजीत को अपने साथ ही रख लिया था।

वसुधा हमेशा सुरेश बाबू के कान भरती रहती थी कि राधा की पढ़ाई बहुत हो गई नौकरी की क्या जरूरत घर के काम काज सीखें, आखिर शादी व्याह के बाद गृहस्थी भी तो चलानी आनी चाहिए।

सुरेश बाबू भी उसकी बातों में आ गए थे उन्होंने राधा को नौकरी करने से रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन राधा अब उस भंवर जाल में फंस कर अपने और अपने भाई की जिंदगी बर्बाद नहीं करना चाहती थी।उसको बहुत शिकायतें थीं अपने पिता से क्यों कि उन्होंने कभी भी पिता धर्म नहीं निभाया था।

वसुधा अपने मायके गई हुई थी कुछ दिनों के लिए तो पड़ोस की रमा भाभी ने वसुधा के बर्ताव के बारे में सुरेश बाबू को सब कुछ बताया। सुरेश बाबू को रमा भाभी की बातों पर यकीन ही नहीं हुआ तब उन्होंने शहर जा कर बच्चो से मिलने का फैसला किया। राधा और रंजीत को पिता को देखकर

बहुत आश्चर्य हुआ कि भला पिता जी यहां कैसे? आजतक। वो तो सिर्फ फोन पर हाल खबर ले लिया करते थे।

सुरेश बाबू ने रमा भाभी की कही बातों की सच्चाई जानना चाहते थे। राधा सच सच बताओ कि तुम्हारी वसुधा मां का तुम्हारे प्रति कैसा व्यवहार था? राधा रो पड़ी… “पिता जी आप भी उसी घर में रहते थे आपने हमारे प्रति कैसा व्यवहार है मां का कभी जानने की कोशिश भी नहीं की।वो हम दोनों के साथ बहुत ही बुरा बर्ताव करतीं थीं।”

” तुमने कभी बताया क्यों नहीं बेटा?”

” मां ने हमें धमकी दी थी कि अगर आपको कुछ बताएंगे तो हमें खाना नहीं देंगी और बहुत पिटाई करेंगी” रंजीत बोल उठा।

ओह!” सारी गलती मेरी थी। मुझे मेरे बच्चों का ध्यान रखना चाहिए था। मुझे माफ कर देना बच्चों मैं यशोदा को दिए वचन नहीं निभा पाया।अब मैं प्रायश्चित करूंगा…. तुम लोगों का वो घर पहले है बाद में वसुधा का….उसको इसकी सजा मिल कर रहेगी।”

“नहीं पिताजी….अब आप गुड़िया के साथ नाइंसाफी करेंगे।

हमें कुछ नहीं चाहिए बस हमारे हाल पर छोड़ दीजिए और हम दोनों भाई-बहन उस घर में कभी भी कदम नहीं रखेंगे।”

सुरेश बाबू बहुत ही दुखी मन से वापस आ गए थे और उन्होंने वसुधा को सबक सिखाने का फैसला ले लिया था लेकिन वो भी तो बराबर के जिम्मेदार थे इसमें। वसुधा जब मायके से आई तो उन्होंने राधा और रंजीत के प्रति उसके व्यवहार को लेकर बहुत डांट लगाई और उन्होंने कहा कि” तुम भी तो एक मां हो और तुमने मां होने के कोई धर्म नहीं निभाया और मुझसे झूठ बोलती रही। तुम इस घर में रह सकती हो पर तुम्हारे साथ भी वैसा ही पराएपन सा व्यवहार होगा जैसा तुमने मेरे बच्चों के साथ किया है। एक छत के नीचे होने के बावजूद हम पति-पत्नी का संबंध सिर्फ दुनिया के दिखावे के लिए होगा।शायद यही मेरा प्रायश्चित होगा। गया वक्त मैं वापस तो नहीं ला सकता क्योंकि तुम्हारे साथ – साथ मैं भी गुनहगार हूं और ये सजा मैं भी भुगतूंगा।”

वसुधा को सफाई देने के लिए कुछ नहीं बचा था वो सुरेश बाबू के पैरों में गिर कर माफी मांग रहीं थी पर उन्होंने उसको झटक कर अपने कमरे में चले गए थे और अपने आपको भी उन्होंने सजा दिया था। वक्त रहते अगर बात संभल जाए तो ठीक रहता है क्योंकि वक्त के गुजर जाने के बाद ज़ख्म को भरने में वक्त लगता ही है।

वसुधा ने राधा और रंजीत से माफी मांगी थी और उनसे बहुत अनुरोध किया था कि वो घर आकर अपने पिता जी को समझाएं और हम सब मिल जुल कर साथ – साथ रहेंगे। राधा और रंजीत ने छोटी उम्र में बहुत कष्ट उठाया था अब उनको वसुधा पर बिल्कुल यकीन नहीं था। उन्होंने साफ-साफ आने से मना कर दिया था। कुछ सालों के बाद अपनी शादी में पिता जी को बुलाया था क्योंकि वो उनसे कन्यादान का हक नहीं छिनना चाहती थी और मां के बाद अपने के नाम पर पिता जी ही तो थे। राधा रंजीत ने सुरेश बाबू को माफ कर दिया था और अब कभी -कभी घर आना-जाना भी शुरू कर दिया था। सबकुछ ठीक तो नहीं हुआ था पर परिवार एक होने लगा था धीरे-धीरे। वसुधा को भी पश्चाताप हुआ था अपने उस व्यवहार पर लेकिन कहीं न कहीं रिश्तों में दरारें आ गई थी जो पूरी तरह भरी नहीं थी।

 

                        प्रतिमा श्रीवास्तव

                       नोएडा यूपी

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