शिवानी………। अलमारी में नीली शर्ट पर प्रेस न हुई देख अक्षय बहुत जोर से चिल्लाया। उसकी आवाज में वही कर्कशता थी, जिसको सुनते ही शिवानी को अपना शरीर सुन्न सा पड़ता महसूस होने लगता। शिवानी जो कि रसोई में उसका नाश्ता तैयार कर रही थी। सब कुछ छोड़कर भागती हुई आई। उसे देखकर अक्षय चिल्ला कर बोला।
सारा दिन घर में पड़ी हुई क्या करती हो। कपड़ों पर प्रेस भी नहीं की जाती। जाहिल औरत…और पता नहीं क्या-क्या उसने शिवानी को बोला। शिवानी चुपचाप शर्ट प्रेस करने लगी। अक्षय से कुछ भी कहने का मतलब था अपनी शामत बुला लेना।
शिवानी की आँखों में आंसू आ गये। पूरा दिन अपने बूढ़े सास-ससुर का ध्यान रखती। दोनों छोटे बच्चों की पूरी जिम्मेदारी उठाती। अक्षय को कोई मतलब नहीं। घर में क्या लाना है या फिर क्या काम है। वह तो घर खर्च के पैसे देकर भी उस पर कमाकर लाने का एहसान दिखाता। वह सब कुछ पूरी जिम्मेदारी से करती।
अक्षय को उसका कम पढ़ा लिखा होना उसके सारे गुणों के आगे ज्यादा बड़ा लगता। वह उसे अपने लायक नहीं समझता था। वह शिवानी से शादी नहीं करना चाहता था। लेकिन अपने पापा को उसने कुछ नहीं बोला।सारी भड़ास बेचारी शिवानी के हिस्से आती। शादी के बाद अक्षय के व्यवहार में बहुत बदलाव आ गया था। अक्षय के गुस्से के आगे उसके मम्मी पापा भी नहीं बोल पाते थे। शिवानी के लिए दुखी होने के अलावा उनके वश में कुछ नहीं था। क्योंकि अगर अक्षय को कोई भी कुछ कहता तो वह और भी ज्यादा आक्रामक हो जाता।
लेकिन आज अक्षय के पापा ने उसके व्यवहार से दुखी होकर शिवानी के पापा को फोन किया, और बोले भाई साहब मैं आपका और शिवानी का गुनाहगार हूंँ। अक्षय को शादी नहीं करनी थी तो पहले बता देता।
लेकिन अब रोज-रोज अपने घर की लक्ष्मी का अनादर मुझसे नहीं देखा जाता। अगर किसी भी तरह मैं शिवानी को घर में उसका सम्मान दिला पाया तो वही मेरा प्रायश्चित होगा। आप एक काम करिए कुछ दिनों के लिए शिवानी को ले जाइए। बाकी मुझ पर छोड़ दीजिए।
जी भाई साहब ठीक है। मैं शिवानी के भाई को भेज दूँगा। अगले दिन जब शिवानी के भाई ने जाकर उसे अपने साथ चलने के लिए कहा। तो उसने कहा कि नहीं भैया यहांँ मां, बाबूजी और बच्चों को छोड़कर मैं कैसे जा सकती हूंँ। मेरे बिना तो यहांँ सब कुछ बिखर जाएगा। उसकी बात सुनकर उसके ससुर बोले। बेटा अगर दोबारा सुंदर घर बनाना होता है। तो एक बार तो उसे तोड़ना ही होता है। कुछ दिनों के लिए तुम अपने घर चली जाओ। शिवानी चली गई। अपने ससुर की बातों से उसे भी कुछ उम्मीद बंधी थी।
शाम को अक्षय ने आकर शिवानी को खाना लगाने के लिए आवाज दी। तो उसके पापा ने बताया कि वहअपने घर चली गई। अब जब तक तू नहीं सुधरेगा। वह वापस नहीं आएगी। अक्षय ने शिवानी को एक गंदी सी गाली दी और बोला। वह क्या समझती है। मुझे उसके जैसी गंवार की जरूरत है। हमने और बच्चों ने भी खाना नहीं खाया अभी।
क्या इतनी देर तक? चलो मैं बाजार से बढ़िया सा खाना लाता हूंँ। सबके खाने का तो हो गया। लेकिन अगले दिन मां बाबूजी की चाय बनाई। स्कूल के लिए बच्चों को उठाया लेकिन वे समय पर तैयार ही नहीं हो पाए। उनकी स्कूल बस निकल गई। उसके मम्मी पापा भी उसकी हालत देख रहे थे। परेशान होकर बोला मैं किसी कामवाली को रख लूंँगा।
उसे लगता है ना उसके बिना यहांँ काम नहीं चलेगा। मैं उसे दिखा दूंँगा। हमें उसकी नहीं उसे मेरी जरूरत है। कितने दिन वहाँ मायके में पड़ी रहेगी। देखता हूंँ। लेकिन काम वाली तो बस जरूरी जरूरी काम करती। चार दिन में ही सारा घर अस्त-व्यस्त हो चुका था। बाहर का खाकर उसके बेटे की तबीयत खराब हो गई। ऑफिस से छुट्टी लेकर वह उसे डॉक्टर के पास ले गया।
उसे तो कुछ भी पता नहीं था। यह सब काम शिवानी अपने आप ही कर लेती थी। अब अक्षय को दिन में तारे दिखाई देने लगे। वह बैठा सोच रहा था कि कैसे शिवानी उसका उसके बच्चों और मां-बाप का ध्यान रखती थी। अब घर, घर सा नहीं नहीं लग रहा था। अब उसे शिवानी के गुण ही दिखाई दे रहे थे।
हारकर वह शिवानी के घर पहुंँच गया। उसने शिवानी से अपने व्यवहार की माफी मांँगी। वह बोला मैं गलत था। लेकिन अब तुम्हें कोई शिकायत का मौका नहीं दूंँगा। एक औरत ही घर को संवार सकती है। तुम ही मेरे घर की नींव हो। शिवानी के पापा भी अक्षय के सुधर जाने से खुश थे। वे बोले बेटा तुम दोनों प्यार से मिलजुल कर अपनी गृहस्थी संभालो। शिवानी को लग रहा था जैसे उसकाअपनी ससुराल में गृह प्रवेश सही मायने में आज होगा। जब वे दोनों घर आए तो बच्चे उनसे लिपट गए। शिवानी की सास ने खुश होकर उनकी आरती उतारी। शिवानी ने कृतज्ञता से अपने सास-ससुर के पैर छू लिए।
नीलम शर्मा