पिता का भरोसा !! – पायल माहेश्वरी

” किसी अजनबी लड़के पर भरोसा कैसे करूँ, आखिर नमिता मेरी इकलौती बेटी हैं,और इस महानगर में अकेला रहने वाला लड़का क्या मेरे भरोसे पर खरा उतरेगा ? ” हरीश जी व्यथित होकर अपनी पत्नी कल्पना जी से बोल रहे थे।

 वही दूसरी और नमिता अपने पिता की आंशकाओ से अनभिज्ञ होकर एक अजनबी पर भरोसा कर बैठी थी,और उन प्यारे लम्हों को भरपूर जीना चाहती थी। 

आज किसी अजनबी ने पहली बार हाथ पकड़ा था पर वही अजनबी कुछ महीनों बाद नमिता का जीवन भर हाथ पकड़कर उसका साथ निभाने वाला था वह अजनबी कोई और नहीं बल्कि उसका मंगेतर नमन था।

नमन और नमिता अपने जीवन के यह यादगार लम्हे जी भरकर जीना चाहते थे तभी नमन के मोबाइल फोन की घंटी बजी।

“नमन बेटा !!आप और नमिता इस समय कहा हो?” नमिता के पिताजी हरीश जी का फोन था।

“पापा !! मैं और नमिता इस समय मुम्बई के बेण्ड स्टैंड पर हैं यहा से समुद्र बड़ा अच्छा दिखाई देता हैं” नमन शरारती अंदाज में बोला।

“नमन बेटा !! आप अपना व नमिता का ध्यान रखियेगा” हरीश जी थोड़े चिंतित नजर आये।

“पापा !! आप चिंता न करें मैं रात नौ बजे तक नमिता को होटल में वापिस छोड़ दूंगा” नमन का चेहरा शरारत से चमक उठा।

“नौ बजे !! नमन बेटा थोड़ा जल्दी नहीं आ सकते हो” हरीश जी बोले।

“पापा !! यह मुम्बई महानगरी हैं यहा पर रात नौ बजे का समय जल्दी माना जाता हैं” नमन रहस्यमयी आवाज में बोला।

हरीश जी परेशान हो उठे उन्होंने एक महीने पहले ही अपनी बेटी नमिता की सगाई मुम्बई में रहने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट नमन से तय करी थी नमन के माता-पिता आगरा रहते थे और नमन अकेला मुम्बई रहता था हरीश जी का परिवार लखनऊ का रहने वाला था।

हरीश जी आधुनिक दौर में भी पंरपराओ का पालन करते थे और विवाह से पहले लड़के-लड़की के ज्यादा मिलने व बातचीत करने के विरुद्ध थे।




ऐसे रिश्ते में एक निजता की लकीर होना आवश्यक हैं ज्यादा मेलजोल होने से एक दूसरे की कमजोरी पहले ही पता चल जाती हैं और वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं बीतता हैं ऐसे हरीश जी के विचार थे।

हरीश जी इस बात से संतुष्ट थे की नमन व नमिता एक शहर में नहीं रहते हैं तो मिलने का व सैर-सपाटे का अवसर ही नहीं मिलेगा।

पर नियति को कुछ और मंजूर था नमिता की माँ कल्पना जी को कोई रोग लग गया जिसका निदान शीघ्र ही आपरेशन से निकालना पड़ा और आपरेशन मुम्बई में ही संभव था।

हरीश जी कल्पना जी व नमिता मुम्बई आ गये नियत दिन पर कल्पना जी का आपरेशन सफलता पूर्वक हो गया पर डाॅक्टर ने उन्हें आपरेशन के बाद एक सप्ताह तक मुम्बई में रूकने की सलाह दी थी।

वो तीनों मुम्बई के एक होटल में प्रवास कर रहे थे नमन जिसका आफिस होटल के पास ही था वो रोज शाम को उनसे मिलने आता रहता था।

“पापा!! आपकी अनुमति हो तो मैं नमिता को मुम्बई घुमाना चाहता हूँ” नमन ने हरीश जी से कहा।

“नमन बेटा !! कुछ महीनों के बाद नमिता को जीवन भर मुम्बई आना हैं तब घुम लेना” हरीश जी ने असहमति जताई।

नमन निराश मन से वापिस चला गया, नमिता भी निराश हो गयी।

“आप ना जाने कौनसी सदी में जीते हैं अब जमाना बदल गया है बच्चों को उनका जीवन जीने दीजिए ? “कल्पना जी रोष में आकर बोली।




“कल्पना !! यह मुम्बई महानगरी है यहाँ के लोगों की सोच छोटे शहरों जैसी नहीं होती हैं नमन भी यहाँ के आधुनिक परिवेश में रह रहा है मैं नमिता को विवाह से पहले इस तरह नहीं भेज सकता हूँ “एक पिता अपनी पुत्री के प्रति सुरक्षा की भावना लेकर बोले।

“नमन बहुत नेक व समझदार लड़का हैं और यह दोनों जीवन भर विवाह के बंधन में बंधने जा रहे हैं अगर दोनों एक दूसरे के विचार जान लेते हैं तो क्या बुरा हैं?”कल्पना जी बोली।

“विवाह से पहले एक दूसरे की कमियों को जानना उचित नहीं हैं और मैं नमन पर पूर्ण भरोसा भी नहीं कर सकता वह बहुत अच्छा लड़का हैं पर मुम्बई का माहौल अच्छा नहीं हैं ” हरीश जी निर्णयात्मक स्वर में बोले।

कल्पना जी के बहुत आग्रह के बाद आखिरकार हरीश जी रविवार के  दिन नमन व नमिता के मुम्बई भ्रमण को राजी हो गये पर मन अभी भी शंकित था तो हर आधे घंटे बाद नमन को फोन लगा रहे थे।

रात के नौ बज रहे थे नमन व नमिता लौट कर नहीं आए हरीश जी बैचेन व परेशान थे रह रहकर सैकड़ो विचार उनके मन में आ रहे थे।

दोनों का फोन भी नहीं लग रहा था और रात के ग्यारह बजने को थे।

हरीश जी क्रोध में आकर नमन की शिकायत उसके पिताजी को फोन लगाकर करने वाले थे पर कल्पना जी ने उन्हें रोक लिया।

अपना समय बिताने के लिए हरीश जी ने टीवी चैनल पर समाचार सुनें और एक खबर सुनकर उनका क्रोध चिन्ता में बदल गया।

मुंबई महानगरी में जगह-जगह बम विस्फोट हुए थे मोबाइल नेटवर्क ठप्प पड़े थे और चारों तरफ अफरातफरी का माहौल था।

हरीश जी व कल्पना जी दोनों बच्चों के लिए प्रार्थना करने लगे थे।

तभी दरवाजे की घंटी बजी खोलने पर नमन व नमिता दोनों बाहर खड़े मिले।

“पापा!! शहर में बम विस्फोट से माहौल खराब हो गया था मोबाइल नेटवर्क ठप्प पड़े थे और मैं आपको सकुशल होने का समाचार नहीं दे पाया बड़ी कठिनाई से यहाँ पहुँचा हूँ ” नमन क्षमाप्रार्थी था।




नमन की शालीनता व सादगी ने हरीश जी को अंदर तक छू लिया था, और अपने होने वाले दामाद पर उन्हें भरोसा हो गया। 

“नमन बेटा !! आप मुझे क्षमा करें मैं आपको गलत समझ रहा था पर एक पिता होने के नाते अपनी बिटिया की सुरक्षा भावना मुझ पर हावी हो गयी थी आशा करता हूँ आप मेरी भावना समझेंगे” हरीश जी बोले।

“अब तो आपकी आँखे खुल गयी महानगर में रहने वाला हर लड़का खराब नहीं होता हैं हमारा दामाद सच्चा हीरा निकला” कल्पना जी बोली।

“तुम सही कह रही हो कल्पना अब मैं नमिता का दायित्व एक अजनबी को सौंपकर निश्चिंत हूँ ” हरीश जी संतुष्ट नजर आये।

“पापा !! आप मेरे पिता समान हैं क्षमा मांग कर मुझे शर्मिन्दा न करें आपका नमिता को लेकर चिंतित होना उसके प्रति स्नेह व लगाव की भावना हैं ” नमन मुस्कान के साथ बोला।

नमन ने एक पिता की भावना समझी जो अपनी नाजो पली बिटिया के परायी हो जाने पर भावुक, सशंकित व चिंतित थे, पर नमन इस तनाव भरे माहौल में भी मजाक करना नहीं भूला।

” मैं आपसे एक दिन और नमिता को मुम्बई घुमाने की अनुमति चाहता हूँ पर आप हर आधे घंटे बाद फोन जरूर करना मुझे अच्छा लगेगा ” नमन शरारती अंदाज में बोला।

हरीश जी कल्पना जी व नमिता ठहाके लगाकर हंस पड़े।

ये पिता भी बड़े अजीब होते है

 माँ की तरह सबके सामने नहीं रोते हैं पत्थर की तरह बाहर से कठोर नजर आते हैं

 पर बिटिया की विदाई पर छुपकर रोते पाये जाते हैं।

#भरोसा

आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में

पायल माहेश्वरी

यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं

धन्यवाद।

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