फिर अब क्यूं – तृप्ति शर्मा 

   आज क्यों उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद नहीं दे पाई मैं ।उसे कई दिन से देख रही थी ।अदिति का बदला हुआ रुख ,मानव के जाने के बाद जो संजीदगी उसके चेहरे पर आई थी धीरे-धीरे छटने लगी थी जो मुझे असहज किए जा रही थी।

   अदिति उसे मुझसे मिलवाने ले आई तो मैंने ,घृणा भरा बर्ताव किया उससे ।अदिति ने उसका नाम रोहित बताया, उसी ने उसकी नौकरी लगवाई थी ,बचपन के साथी थे दोनों। उसकी पत्नी को गए भी चार साल हो चुके थे ।दोनों शादी करना चाहते थे।

   अदिति भी 5 साल से सूनी मांग लिए घूम रही थी ।सूना माथा, सूने हाथ ।मै कहती भी थी, अब ऐसे कोई नहीं रहता तो वह सिर हिला देती,” मन नहीं करता मां ,”बस चुपचाप चली जाती।

  अदिति मेरी बहू थी। 8 साल की पोती को छोड़ मेरे बेटे को स्वर्ग सिधारे 5 साल हो गए थे ,तब से वह ऐसे ही सादा जीवन जी रही थी ।मुझे मां का दर्जा देते हुए मेरी सारी जिम्मेदारी बखूबी निभाती थी ।कभी शिकायत का मौका नहीं दिया उसने नौकरी कर घर का खर्च भी किसी तरह पूरा कर देती थी। पर जब अब उसके जीवन में बदलाव आ रहे हैं तो मुझे बुरा क्यों लग रहा है ,




क्यों मैं उसकी विरोधी हो रही हूं।

    क्या मैं अपने जीवन के सूने पन का बदला ले रही थी अपनी बहू से। मन 25 साल पहले चला गया ।ऐसे ही इच्छा मैंने अपने भाई भाभी से की थी तो उन्होंने मेरे मुंह पर हाथ रखते हुए मुझे चुप कराते हुए कहा था, यह क्या सोच रही हो ऐसा कैसा हो सकता है ,तुम एक बच्चे की मां हो ,तो ऐसा सोच भी कैसे सकती हो और भी ना जाने क्या-क्या ताने सुनने पड़े थे। विरोधी हो गई थी मैं पर सब बेकार। इतने साल मायके के बिना कांटे मैंने।

   फिर आज वही इतिहास क्यों दोहरा रही हूं, क्यों अपनी बहू के जीवन को फिर रंग बिरंगा नहीं होने दे रही।

  ग्लानी हो गई उसे अपनी सोच पर ,उठकर अदिति के कमरे में गई ,शाम का दिया बत्ती नहीं किया था उसने ,उसके पास जाकर उसके सर पर हाथ रखा ,अदिति ने उसकी गोदी में सिर रख दिया सिसकियां भरने लगी। मन पसीज गया मेरा अपना समय याद हो आया कैसे इतनी लंबी उम्र सूने पन में काट दी।

  अदिति का चेहरा अपने हाथों में लेकर कहां,” चल बाजार चलना होगा तुझे, मेरे साथ एक लाल साड़ी लानी है “। अदिति मुस्कुराते हुए अपनी मां बनी सास के गले लग जाती है।

 

~तृप्ति शर्मा 

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