अभय और सूरज बहुत अच्छे मित्र थे और पढ़ाई में भी अच्छे थे। जहां अभय का दिमाग बहुत तेज था वहीं सूरज बहुत ही मेहनती छात्र था। सूरज दिल का बहुत साफ लेकिन अभय के मन में जलन की भावना हमेशा रहती थी
कि,” मेरा दिमाग इतना अच्छा है कि एक बार कुछ भी पढ़ लूं तो छप जाता है पर सूरज मेरी बराबरी कैसे करता है।खैर दिमाग तो उसका भी तेज है पर मेरे मुकाबले तो कुछ भी नहीं”।ये बात उसे कहीं ना कहीं खटकती थी। “कहते हैं ना मेहनत कभी खाली नहीं जाती अगर आप सचमुच में इमानदारी से करते हो तो।”
बारहवीं की बोर्ड परीक्षा करीब आ गई थी। अभय को अपने परिणाम से ज्यादा सूरज आगे ना निकल जाए डर खाने लगा था। उसने सूरज को ‘ पट्टी पढ़ाना ‘चालू किया… अरे! सूरज अब ज्यादा पढ़ने की जरूरत नहीं है।सब तो तैयार है..आ जा खेलने चलते हैं। कोई ना कोई बहाना करके उसको पढ़ने से रोकना शुरू कर दिया था।खुद रात भर पढता और सूरज को दिन में उलझा कर रखता।
सूरज का पढ़ाई में रुचि कम होता देखकर मां मिताली की चिंता बढ़ने लगी थी क्योंकि यही परीक्षा के बाद अच्छे – बुरे भविष्य का निर्णय होता है। मां तो मां ही होती है उसको समझने में देर नहीं लगी की मेरे बेटे को गुमराह किया जा रहा है वो भी उसका सच्चा दोस्त कर रहा है।एक दिन वो उसके घर गई तो अभय सो रहा था। उसकी मां ने बातों – बातों में बताया कि ,”
अभय रात भर पढ़ता है “। वहां तो मिताली कुछ नहीं बोली पर घर आकर बेटे सूरज को सारी बात बता कर आगाह किया कि,” तुम अभय की बातों में आकर अपना भविष्य नहीं बर्बाद करो।” सूरज ने मां की बात मानी और दोस्ती यारी को कुछ दिन के लिए भूल कर दिल लगा कर मेहनत किया। वक्त रहते संभल जाने से परीक्षा के परिणाम बहुत अच्छे रहे। ऐसे लोग भी होते हैं दुनिया में जो अपनों के चोले में आपको नुकसान पहुंचाया करते हैं।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी