पति बनकर नहीं पर पिता बन समझ पाया” – आरती असवानी  

बात हो गयी न दामाद जी से, फिर सो जाओ न” श्वेता ने अपने पति आशुतोष से कहा।

“जब पता था उसको बीवी की प्रेग्नेंसी की कुछ जटिलताएं है तो टूर पर गया ही क्यों। बेचारी मेरी बच्ची अकेली कैसे करेगी। मैंने तो सौरभ को एसी के लिए भी डांट लगाई तब उसने फोन कर सर्विस कराई। ऐसी गर्मी में गर्भवती औरत का ख्याल रखना एक पति की जिम्मेदारी है। कैसा लापरवाह और गैर जिम्मेदार दामाद मिला है।”

श्वेता मुस्कुरा रही थी। उसे अपनी प्रेग्नेंसी याद आ रही।

 

“क्यों वर्मा जी आज बेटी को गर्मी में देख आप आपे से बाहर हो रहे कल जब यही बेटी मेरे पेट में थी तब तो दया नहीं आती थी। शादी कर के आई तब तुम्हारे घर में एक कूलर तक न था। ये तो तुम्हारा दामाद शरीफ है जो सुन रहा इतनी बातें …नहीं तो तुम तो ऐसे अड़ियल हुआ करते थे… जो है जैसा है उसे वैसे ही स्वीकारो …तुम्हारी सुविधाओ के हिसाब से यहां कुछ नहीं बदलेगा” श्वेता ने ताना दिया।

 

आशुतोष को कुछ न सूझा,”तुम तो एक मौका मत छोड़ना मुझे सुनाने का… तब जमाना कुछ और था आज कुछ और है….बेटी की तबियत का सोचो…जब देखो अपना दुखड़ा रोने लगती हो”

“जमाना कोई भी हो…बेटी के लिए पिता का प्यार हमेशा एक सा रहता है।आपको तो समझना चाहिए …  मेरे पिता भी आपके रूखे रवैये और  मेरी गर्भावस्था को लेकर इसी प्रकार चिंतित हुए होंगे। उनकी भी रातों की नींद हराम हुई होगी।”

 

श्वेता की आंखे नम हुई होंगी। अब उसके पास अपने पिता की यादों के अलावा कुछ ना बचा था।आशुतोष कमरे से बाहर निकल गया।

सौरभ के टूर से आने के बाद शिल्पी मायके आई। आशुतोष की खुशी का ठिकाना ही ना था। आशुतोष ने शिल्पी की सेहत को लेकर सौरभ को लंबा चौड़ा भाषण दिया। सौरभ एक अच्छा और समझदार दामाद है।




“पापा जी,अब मुझे आफिस के काम से कहीं जाना पड़ा तो मैं मेरी मम्मी को या आप दोनों को हमारे घर बुला लूंगा ताकि शिल्पी की देखभाल हो सके।”

 

“नहीं बेटा,  क्यों अपनी मम्मी को तकलीफ देना हम ही आ जाएंगे।आखिर हमारा भी नाती होने आने वाला है” आशुतोष ने सौरभ की बात खत्म होने से पहले बोल दिया ।

 

शिल्पी सौरभ के जाने के बाद,

” क्यों वर्मा जी, आपकी माता जी की बाईपास सर्जरी होने के बाद मेरी डिलीवरी हुई थी आप अच्छे से जानते थे कि मेरी सेवा उनसे नहीं हो पाएगी फिर भी आपने मेरी मां की तत्काल में हुई टिकट कैंसिल करवा दी थी और मेरे पिता से  कहा था…. जैसे भी सेवा हो पाएगी हम कर लेंगे।हमारा बच्चा हमारी जिम्मेदारी है।अब क्यों बेटी के बच्चे पर अपना अधिकार जमा रहे।” श्वेता ने फिर मौक़े पर चौका मारा।

 

“हे भगवान !!! मुझे माफ़ कर दो.. जो मैंने तुम पर और तुम्हारे घरवालों पर अत्याचार किया। तुम्हारे दिमाग की दाद देनी पड़ेगी हर छोटी से छोटी बात पर तुम्हे कोई न कोई किस्सा याद आ जाता है। शायद मैं अच्छा पति नहीं था लेकिन अच्छा पिता बनने की कोशिश कर रहा तो तुम्हारे ताने….” आशुतोष ने श्वेता के आगे हाथ जोड़ लिए।




 

श्वेता ने पति के हाथ पकड़ कर कहा

 

“आपको ताने देने का उद्देश्य आपको शर्मिंदा करना बिल्कुल नहींं होता।ये तो एक बेटी बहाने ढूढती हैं अपने उस पिता को याद करने के…जो अब इस दुनिया में नहीं । उस पिता के प्यार को तरसती ये बेटी आपमे वैसा ही पिता देख बहुत खुश है।आपका शिल्पी का प्यार देख मेरे अंदर की बेटी की आत्मा अपने स्वर्गवासी पिता से मिलने के लिए तड़प उठती है।फ़ोन पर या घर में घुसते ही शिल्पी की निगाहें सिर्फ आपको ढूढती है। आपकी आवाज सुनकर या आपको देखकर जो खुशी शिल्पी को मिलती है आपकी पत्नी उस ख़ुशी को पाने को तड़प रही है क्योंकि मैं ना अब अपने पापा को सुन सकती हूं ना देख सकती हूं। बात बात पर आपको ताने देना सिर्फ उनको याद करने के बहाने है। आप मुझे गलत मत समझना अच्छे बेटे बनने की होड़ में आप एक पति बन कर अपनी पत्नी की भावनाओं नहीं समझे लेकिन आज एक पिता बनने के बाद आप उन भावनाओ को समझ पा रहे हो।”

 

श्वेता का आँचल अश्रुपूरित हो गया।

“क्या कहूँ श्वेता…आज एक पति अपनी पत्नी से  दिल से माफी मांग रहा।” आशुतोष ने श्वेता को बाहों में भर लिया।

कुछ बाते अक्सर वक्त के साथ ही समझ आती है।

धन्यवाद दोस्तों

 

आपकी दोस्त

आरती असवानी (खुराना)

 

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