विरासत – अनुज सारस्वत

अमेरिका से विदुषी 15 साल बाद भारत लौटी थी, अपने दादा जी की चहेती थी ,जो कि अब भी भारत के एक पहाड़ी गांव में गंगा के समीप रहते थे ,रिटायर्ड मेजर थे उसके दादू, 80 साल की उम्र में भी फिट और यंग रहते थे सारा ऑर्गेनिक फार्म खुद ही व्यवस्थित करते थे, विदुषी अपनी छुट्टियों में उनके पास आई थी और बोली

” दादू आप क्यों नहीं चलते हमारे साथ अमेरिका में “यहां क्या रखा है इतनी गंदगी और धर्म कर्म के नाम पर लोग लड़ते रहते हैं ,और इतने अंधविश्वासों से भरा ये देश है, अमेरिका में सब वेल प्लांड है कोई टेंशन नहीं है “

उसके दादू मुस्कुराए और कहा इतने सारे भेदभाव हैं परेशानी है फिर भी हम लोग एक हैं ,आज भी बॉर्डर पर कुछ होता है तो सब लोग अपना धर्म छोड़कर देश धर्म के आगे बलिदान देने को तैयार रहते हैं, और रही बात अंधविश्वासों की बात तो यह जो तुम नासा की सबसे बड़ी दूरबीन है ना हबल टेलीस्कोप इसका आईडिया हमारे ऋषि-मुनियों के ग्रंथो से लिया गया ,उन्होंने तो बांस के नली से पूरा ब्रह्मांड अध्ययन किया, विदुषी बोली

“व्हाट  इट्स नॉट पॉसिबल”

फिर दादू बोले

“बेटा इंपॉसिबल को पॉसिबल भी हम भारतीय बनाते हैं ,आज तुम्हारे अमेरिका में जो इंजीनियर डॉक्टर हैं 30% भारतीय जो वहां की इकॉनमी को बढ़ाते हैं, भारतीयों को 213 देशों में से डेढ़ सौ देशों में अपनी काबिलियत के कारण पहचाना जाता हैं ,अब थोड़ा भारत के बारे में सुनो यह जो पीछे घर के पहाड़ है ना यह हिमालय की पर्वत श्रृंखला है जो चीन,पाकिस्तान भारत लिए अभेद्य दीवार है ,विदुशी ने बीच में रोका और कहा

“दादू यह सब तो ठीक है आप लोग गंगा यमुना नदियों को मैया माता क्यों बोलते हो, ऐसे फालतू लॉजिक  आई कांट अंडरस्टैंड “




दादू बोले बेटा तुम्हें पता है आज जितना भी विज्ञान का प्रचार-प्रसार और सारे देश आधुनिक हुए उसमें अप्रत्यक्ष रूप से भारत का योगदान रहा है,आंइसटीन ने भी गीता का अध्ययन किया था,पहले मैं तेरे को नदियों वाले प्रश्न का उत्तर देता हूं हमारे ऋषि मुनि बहुत ज्ञानी थे उन्हें भविष्य का पता होता प्रकृति और पर्यावरण को कैसे सही रखना है ,वह भली भांति जानते थे धरती पर प्राकृतिक स्त्रोतों की कमी ना हो और उनका संरक्षण बहुत महत्वपूर्ण था वैदिक काल में भी और आधुनिक काल में भी ,तो उन लोगों ने इन सभी  को जोड़ा धर्म से क्योंकि पहले लोग धर्मावलंबी होते थे हर चीज में भगवान के दर्शन का कॉन्सेप्ट दिया ऋषियों ने जिससे लोग नदियां प्रदूषित नहीं करें , पहाड़ों पर देवता बिराजे गये,ताकि वह भी स्वच्छ रहें हवन यज्ञ हर घर में होता था, जिससे पर्यावरण शुद्ध और ओजोन लेयर मजबूत होती थी, मंत्र उच्चार शुरू किए जिससे भाषा शुद्ध और लोगों में प्रेम बढ़े, सतयुग का मतलब यही था ,तुम्हें पता है पहले लोग बिना पढ़े लिखे उनकी बातों को मानते और पर्यावरण को अप्रत्यक्ष रूप से बचाते पहले नदियां इसलिए बहुत शुद्ध थी लेकिन जैसे जैसे आधुनिक काल आता गया लोगों ने संस्कृति को दुतकारना शुरू कर दिया, तो प्रकृति ने भी अपने स्रोत वापस लेने शुरू कर दिए गंदी नदियां, सूखे पर्वत, प्रदूषित हवा मनुष्य के अपने कर्मों का फल है।

लोगों को जागरूक होना जरूरी है और तुम जैसे नौजवान फिर से भारत को ग्रीनलैंड और सोने की चिड़िया बना सकते हैं देखो बेटा भारत है इतना उदार देश कि कभी किसी देश पर खुद से आक्रमण नहीं किया ,पूरी दुनिया को निस्वार्थ भाव से ज्ञान दिया  बिना भेदभाव के।

और बेटा तुम्हें पता है भगवान कृष्ण द्वारा बोली गई गीता को 170 देशों से अधिक में फॉलो किया जाता है और पढ़ाया जाता है यूनिवर्सिटी में ,लाइफ मैनेजमेंट का कोर्स करके ,यही तो असली धरोहर है हम भारतीयों की ।

फिर भी हम किसी को नीचा नहीं दिखाते, रही बात धर्म के नाम पर लड़ाई कि वह तो घर की बात है ,भाई भाई लड़ते ही हैं बाद में एक साथ खाना खाते हैं, और यह तो हर देश में हो होता है चाहे वह यहूदियों या अफ्रीकन हो।

विदुषी के सारे प्रश्नों का उत्तर मिल चुका था और उन पर से पर्दा उठ गया और बोली “भारत माता की जय” दादू ने भी जयकारा लगाया और गले से लगा लिया।

तीन चार साल बाद विदुषी ने पर्यावरण पर पीएचडी करके भारत वापस आई और अपना एनजीओ शुरू किया “विरासत” नाम से जिसके अंतर्गत वृक्षारोपण, नदियों का संरक्षण सफाई जैसे विभिन्न कार्यों को आगे बढ़ाया।

-अनुज सारस्वत की कलम से

(स्वरचित और मौलिक)

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