पत्थर हूं शीशा नहीं।  –  सुषमा यादव

राजेश एक उच्च पदाधिकारी थे।अपना काम बड़ी लगन, मेहनत और ईमानदारी से करते थे। अपने काम को बोझ नहीं बल्कि एक कर्तव्य समझ कर करते,, अपने मातहत कर्मचारियों के साथ वो भी अपने कार्यक्षेत्र में हमेशा जाते,,हर छोटे बड़े कर्मचारियों के साथ उनका बड़ा प्रेम पूर्वक व्यवहार रहता था,सब उनसे बहुत खुश रहते,, मंत्री, और उनके साहब उनकी ईमानदारी से बहुत खुश रहते,, अब अधिकारी तो आते जाते रहते हैं,, राजेश के साहब के स्थान पर नये साहब आ गये,, आते ही अपना रुतबा और रौब जमाने लगे। सबका हिस्सा तय कर दिया गया,,इस अधिकारी को इतना सेवा शुल्क देना ही पड़ेगा। उनके चमचे बोले,,सर, सब तो दे देंगे, क्यों कि उनको भी आप फायदा लेने देंगे,,पर राजेश साहब हरगिज़ नहीं देंगे, उनका सिद्धांत है,ना रिश्वत लूंगा,ना रिश्वत दूंगा। साहब बोले,, ऐसे कैसे नहीं देंगे,,उनको देना पड़ेगा,, अब राजेश को तरह तरह से समझाया गया, अधीनस्थ कर्मचारियों ने कहा,,साहब,हम सब मिलकर दे देते हैं,आप रहने दीजिए, वो आपको बहुत परेशान करेंगे,, कहीं आपका ट्रान्सफर ना कर दें या सस्पेंड ही न कर दें,, राजेश ने निर्भीकता से कहा,, उन्हें जो करना हो कर दें,,मेरा बैग हमेशा तैयार रहता है,, मैं कहीं भी चला जाऊंगा,, निलंबित होने से भी मैं नहीं डरता,, सच्चे लोगों के साथ हमेशा भगवान खड़े रहते हैं,,पर मैं अपने उसूलों से समझौता नहीं करूंगा, अपना स्वाभिमान नहीं छोड़ूंगा।

राजेश के साहब उनके पीछे ही पड़ गये, तरह तरह की धमकी दी गई,, उनके सभी फाईलों की जांच की गई,, जहां जहां अपने कार्यक्षेत्र में जाते,दौरा करते,सब जगह की रिपोर्ट देखते,,पर उन्हें राजेश के खिलाफ कुछ नहीं मिला,, राजेश की बेटी बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने गई थी,, उसके एडमिशन होने के बाद एक बार भी उसके पास उसके माता पिता मिलने नहीं गये थे,, एक महीने बाद राजेश ने बेटी के पास जाने के लिए अवकाश का प्रार्थना पत्र दिया,,पर उनके साहब ने उसे स्वीकृत नहीं किया।।,, राजेश ने कई बार अवकाश के लिए आवेदन किया,पर हर बार अस्वीकार कर दिया गया,, राजेश ने मेडिकल अवकाश भी दिया,पर मेडिकल बोर्ड से रिपोर्ट मांगी गई, राजेश की पत्नी का रो रोकर बुरा हाल था,,वह कभी अकेले घर से बाहर निकली नहीं थी,

वो बहुत सीधी सादी थी,, राजेश भी बहुत दुःखी और व्यथित था,, वहां बेटी भी बहुत रो रही थी, स्कूल की प्रिंसिपल ने फोन पर कहा कि,आप अपनी बेटी को छोड़कर चले गए हैं, और एक बार भी उससे मिलने नहीं आये,आप अतिशीघ्र आयें,,आपकी बेटी बहुत रोती है। राजेश ने अपनी पत्नी की बीमारी का हवाला देते हुए माफी मांगी, और बेटी की देखभाल करने के लिए विनती की। इस तरह चार महीने तक राजेश अपनी बेटी को देखने नहीं जा पाये। सबने कहा,,आप उनकी इच्छा पूरी कर दीजिए,, आपको अवकाश मिल जाएगा,पर राजेश ने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया। ,,साहब, मेरे स्वाभिमान से खेल रहे हैं,, मुझे हर हालत में झुकाना चाहते हैं,,पर मैं भी पत्थर हूं,, शीशा नहीं,,कितना ही परेशान कर लें,,ना टूटूंगा और ना ही झुकुंगा।

पत्नी रो रोकर प्रभु से प्रार्थना करती रही और उसकी प्रार्थना रंग लाई,, अचानक ही राजेश के साहब का तबादला कर दिया गया और उनके स्थान पर जो अधिकारी आये उन्हें सब पता था, तुरंत ही फोन पर राजेश को कहा,जाओ, जल्दी अपनी बेटी के पास,, आराम से आना,, इस तरह पूरे चार महीनों के बाद अपनी बेटी से मिलने पति और पत्नी दोनों गये, बेटी लिपट कर बहुत रोई,,पर ख़ुश भी हो गई। इस तरह अपनी सात साल की बेटी से मिलने राजेश नहीं जा पाये,पर अपने स्वाभिमान और सिद्धांतो से समझौता नहीं किया,, राजेश का स्वाभिमान बना रहा, और पूरी नौकरी के दौरान उन्होंने अपना स्वाभिमान कायम रखा।।। हमें भी कभी कोई ग़लत काम नहीं करना चाहिए, भगवान सब देखते हैं,,अपना स्वाभिमान हरगिज़ ना खोयें,, स्वाभिमान है तो सब कुछ है,, वरना एक बार झुक जाने पर बार बार दुनिया आपको झुकाती रहेगी।
सुषमा यादव,
प्रतापगढ़, उ प्र
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित,,
#स्वाभिमान

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