पश्चाताप – अमित रत्ता : Moral Stories in Hindi

एक माँ के बलिदान की ये वो ह्रदयविदारक तसवीर थी जिसने न सिर्फ सुंदर लाल को बल्कि पूरे गांव की आत्मा को झंकझोर दिया था हर किसी की आँखे छलक रहीं थी हर कोई यही दुआ कर रहा था कि भगवान ऐसा बक्त किसी पर न लाए। वो माँ चाहती तो अपनी जान बचा सकती थी मगर उसने अपने बच्चों को छोड़कर जाने की बजाए अपनी जान देना उचित समझा था।

कहानी मथेहर नामक एक छोटे से गांव की है जो चारों तरफ से जंगलों से घिरा हुआ था यहां कई तरह पेड़ पौधे थे मगर ज्यादातर चील के बड़े बड़े पेड़ों की हरियाली थी। गांव के ज्यादातर लोग किसानी या मजदूरी करते थे आसपास के गांव में जाकर छोटा मोटा काम करना और जो मजदूरी मिले उसमें गुजारा करना वो लोग अमीर तो नही थे मगर जो भी उनके पास था वो उसी में खुश थे।

खाने के लिए अनाज हो ही जाता था जो बच जाता उसे बेच लेते आमदनी का एक साधन चील के पेड़ों से मिलने वाला पैसा भी था दरअसल चील के पेड़ से बिरोजा निकालने का काम ठेकेदार करते हैं जो कई तरह के कामों में लाया जाता है उसके बदले में वो ठेकेदार हर साल पेड़ों के मालिक को पैसा देते है। मान लो अगर किसी के पास पांच सौ पेड़ है

तो दो सौ रुपये प्रति पेड़ के हिसाब से एक लाख रुपये की आमदनी हो गई। और उसमें पेड़ को काटा नही जाता बल्कि उसका तना थोड़ा सा छीलकर उसमे से बिरोजा निकाला जाता है बाकी खैर के पेड़ थे जिन्हें हर दस साल बाद एक बड़ी कीमत में बेचा जाता था इस तरह एक अच्छी आमदनी का साधन ये जंगल थे।

एक दिन की बात है एक किसान जिसका नाम सुंदर लाल था वो गेहूं की कटाई के बाद खेत साफ कर रहा था। उसने सारी बची हुई गेहूं और सरसों के पौधों को इकट्ठा करके उसके खेत मे ढेर लगा दिए। मई का महीना शुरू हो गया था गर्मी तेज हो गई थी मौसम बिल्कुल साफ और शांत था उसने सोचा कि आज मौसम अच्छा है क्यों न खेत की सफाई करके ये बचा हुआ कचरा जला दू

ताकि खेत साफ हो जाए और मक्की की फसल के लिए तैयार हो जाए। तीन दिन खेतों की सफाई करने के बाद दोपहर के बक्त उसने उन सूखे ढेरों में एक एक करके आग लगा दी। अभी कुछ ही देर हुई थी कि अचानक हवा चलने लगी।

वो कभी उस ढेर के पास भागता कभी उस ढेर के पास ताकि आग को बुझाया जा सके मगर अचानक हवा इतनी तेज हो गई कि वो जलती हुई गेहूं और सरसों की सूखी पत्तियों को उड़ाकर ले गई। इससे पहले की उसका शोर सुनकर गांव वाले लोग मदद के लिए आते आग जंगल मे फैलने लगी। गर्मियों के मौसम में ज्यादातर लोग दोपहर को घर के अंदर आराम कर रहे होते हैं

तो इतनी जल्दी किसी को पता भी नही चला कि आग लग गई है। उसके बहुत चिल्लाने के बाद कुछ गांव वाले बाहर निकले धीरे धीरे पूरा गांव भागकर खेतों में आ गया मगर तबतक आग बिकराल रूप धारण कर चुकी थी।

गर्मियों में चील के पेड़ों की पत्तियां बारूद का काम करती हैं एक वार आग पकड़ लें तो फिर उसे बुझाना आसान नही होता। लोगों ने काफी कोशिश की घरों से पानी की बाल्टियां घड़े गागर जो भी था उठा उठाकर लाने लगे और आग पर डालते मगर उसका कोई फायदा होने वाला नही था। गांव चूंकि मेन शहर से दूर था तो फायर ब्रिगेड भी इतनी जल्दी मदद के लिए आने वाली नही थी

हालांकि गर्मियों के दिनों में वो काफी चौकस रहते हैं जैसे ही उन्होंने धुआं उठता देखा तो वो गाड़ियां लेकर निकल पड़े लगभग एक घण्टे बाद वो बहां पहुंचे उन्होंने भी काफी मशक्कत की मगर जंगल की आग पानी से बुझने वाली नही थी। फिर उन लोगों ने एक तरकीब निकाली की जिस तरफ की हवा थी उस तरफ आग से आधा किलोमीटर आगे जाकर चील की पत्तियों की सफाई करके उल्टी दिशा से आग लगा दी

क्योंकि यही आखरी रास्ता होता है जंगल की आग बुझाने का एक तरफ से आग लगी थी दूसरी तरफ़ से उन्होंने लगादी दोनों आग बीच मे यहां मिलीं बहीं खत्म हो गईं इस तरह उसके आगे का जंगल उन लोगो ने बचा लिया।

रातभर बड़े पेड़ो को लगी आग कड़कड़ करके जलती रही पेड़ों के गिरने की आवाजें ऐसी थीं मानो वो चीख चीख कर पुकार रहे थे बाहर का मंजर ऐसा था जैसे किसी श्मशान में कि हजारों चिताएं एक साथ जल रही हों। जंगल एक सुनसान श्मशान सा लग रहा था। पशु पक्षियों की ह्रदयविदारक आवाजें कानों में कर्कश की तरह चुभ रही थीं।

जैसे कि वो पूछ रहे हों कि हमारा कसूर क्या था क्यों हमे ये सजा दी मगर इसका जवाब किसी के पास नही था।न जाने कितने ही जानवर जिंदा जलकर मर गए कितने ही पक्षी उस आग में झुलस कर राख बन गए। पूरा गांव रात भर जागकर देखता रहा कि आग दूसरी तरफ न फैले।

सुबह हुई तो हर तरफ राख ही राख थी अधजले पेड़ों की गिरी हुई लाशें थी पशु पक्षी एक दम खामोश थे हर तरफ एक सन्नाटा था उस सन्नाटे को बीच बीच मे किसी जलते पेड़ की तड़ तड़ की आवाज चीरती थी। गांव के लोग आगे देखने गए कि शायद कोई जानवर प्यासा हो या अधजला जिंदा हो तो उसे बचाने की कोशिश की जाए।

थोड़ा आगे जाकर वो देखते हैं एक बारहसिंघा जो पूरी तरह झुलसकर दम तोड़ चुका था उसके पास एक दूसरा बारहसिंघा एक दम शांत खड़ा था वो उसका भाई था बीबी थी मां थी या पति पता नही मगर उसकी आँखों मे जो दर्द था वो साफ बयान कर रहा था कि उसका कोई खास अपना ही था। वो एकदम निष्प्राण सा खड़ा था

वो लोगो को देखकर भागा नही मानो कह रहा था कि अब बचा ही क्या है मुझे भी मार डालो। लोगो ने  कुछ घास और पानी की बाल्टी उसके आगे रखी मगर वो टस से मस न हुआ उसने कुछ नही खाया।

थोड़ी ही दूरी पर एक ऐसी ह्रदयविदारक तस्बीर थी जिसने हर किसी की आत्मा को झंकझोर दिया। आठ अंडों पे बैठी एक मुर्गी जिंदा जलकर कोयला बन गई थी वो एक माँ थी जिसकी ममता को आग की लपटें भी हरा न पाई थी उसने अपने उन बच्चों को जो अभी पैदा भी नही हुए थे उन्हें बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी

थी वो चाहती तो उड़ जाती मगर एक मां थी उसने उन्हें छोड़कर जाने की बजाए अपनी जान देने उचित समझा था। इस तस्बीर को देखकर हर किसी की आंख में आंसू आ गए थे। ऐसे ही न जाने कितने जानवरो के अधजले शरीर आसपास पड़े थे कितने जीव जंतु इस आग की भेंट चढ़ गए गिनती करना भी मुश्किल थी।

हालांकि सुंदर लाल ने ये आग जानबूझकर नही लगाई थी मगर अंदर ही अंदर वो आत्मग्लानि से भर गया था उसे पछतावा तो था मगर अब सबकुछ खत्म हो चुका आज न उसने न खाना खाया न पानी पिया बस जंगल मे जानवरो को बचाने में पूरा दिन घूमता रहा। रात को पूरी रात वो सो नही पाया अगले दिन पंचायत में उसको बुलाया गया

उसने अपनी गलती स्वीकार की हालांकि सबको पता था की ये एक हादसा था जो अचानक आए तूफान की बजह से हुआ मगर फिर भी उसपर जुर्माना लगाया गया जो उसने बिना किसी हां ना के स्वीकार कर लिया और पूरी पंचायत में उसने अपनी तरफ से कहा कि मैं कसम खाता हूं जबतक ये जंगल पहले की तरह हर भरा नही होगा मैं चैन से नही बैठूंगा। उसकी बात लोगो को अजीब लगी मगर उसने कहा कि यही मेरा पश्चाताप होगा।

अगले ही दिन वो जंगल से अलग अलग पेड़ों के बीज लेकर आता है और अपने सारे खेतों में उन बीजो की बिजाई करना शुरू कर देता है कुछ ही दिनों में उसके सारे बीज पौधे बनकर बाहर निकलने लगते हैं। वो हर रोज सौ पौधे जंगल मे जाकर लगा देता। एक डेड महीने में उसने ही लगभग पांच हजार पौधा जंगल मे लगा दिया उधर जुलाई के महीने में बरसात भी शुरू हो गई उसके सारे पौधे जड़ पकड़ने लगे।

अगले साल उसने फिर उसी मौसम में पांच हजार पौधे लगाए। अब वो सारा दिन उन पौधों के आसपास साफ सफाई निदाई करता ऐसा करते करते उसने दस साल उसी में निकाल दिए और आज दस साल बाद वो जंगल पहले से भी ज्यादा हरा भरा दिखने लगा था। उसके पश्चात्ताप की आग ने उसे चैन से बैठने नही दिया था

और उसी का नतीजा था कि अब जंगल से पक्षियों के चहचहाने की आवाजें आने लगीं थी जो शायद ये कह रही थी कि उन्होंने उसे माफ कर दिया है जंगल के जानवर सुंदर  लाल से बिल्कुल डरते नही थे जैसे कि उनके परिवार का कोई सदस्य हो क्योंकि दस साल तक उन्होंने उसे साथ मे घूमते फिरते देखा था।

अब जंगल मे कई तरह के जानवर लौट आए तब हर तरफ उनकी आवाजें आने लगी थीं सुंदर लाल के दिल से बहुत बड़ा बोझ उतर गया था अब वो कहता था कि कम से कम चैन से जी नही पाया मगर मर तो सकूंगा। उसके इस काम के चर्चे गांव की पंचायत से शुरू हुए तो मुख्यमंत्री तक पहुंच गए उसे मुख्यमंत्री ने बुलाकर सम्मानित किया और कहा कि सुंदर लाल जैसे लोगों से हम सबको सीख लेनी चाहिए। गलती किसी से भी हो सकती है मगर उसका पश्चाताप दिल से होना चाहिए न कि अपनी गलती पर पर्दा डालकर उसे छुपाना चाहिए।

                     अमित रत्ता

           अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

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