“परिवार की खुशियां” – कमलेश आहूजा : Moral Stories in Hindi

नीता थकी हारी ऑफिस से आई..सारा घर बिखरा हुआ देख मन ही मन में बोली..लगता है आज फिर काम वाली नहीं आई।

रोज नीता सुबह आठ बजे घर से ऑफिस के लिए निकल जाती थी और पति नवीन दस बजे के करीब ऑफिस के लिए निकलता था।इस बीच वो कामवाली से काम करवा लेता था।अपना और नवीन का नाश्ता नीता बना लेती थी और दिन का खाना दोनों अपने अपने ऑफिस में खाते थे।नीता नवीन से पहले आ जाती थी।वैसे उसकी कामवाली महीने में दो से ज्यादा छुट्टी नहीं करती थी इसलिए नीता को कोई दिक्कत नहीं होती थी पर इस बार उसने कुछ ज्यादा ही छुट्टियां कर ली थीं।

नीता यही सोच रही थी..कहां से काम शुरू करे..रसोई में सिंक सारा झूठे बर्तनों से भरा पड़ा था।ड्राइंग रूम में समान जहां तहां पड़ा हुआ था।उसका काम करने का बिल्कुल मन नहीं था पर क्या करती?और कोई तो घर में था ही नहीं जो उसकी मदद करता।नवीन के आने में भी अभी समय था।

नीता ने फ्रेश होकर पहले अपने लिए चाय बनाई ताकि थोड़ी थकावट दूर हो जाए।चाय पीने के।बाद उसने सबसे पहले किचन की सफाई की क्योंकि फिर रात के खाना की भी तैयारी करनी थी।

बर्तन साफ करते करते नीता अतीत की यादों में खो गई..

नीता के सास ससुर उसके पास रहने आए हुए थे था।सुबह उसके उठने से पहले सासु मां उठ जाती थी..नाश्ता और टिफिन दोनों नीता को बना बनाया मिल जाता था।उसके और नवीन के ऑफिस जाने के बाद वो कामवाली से सारा काम करवा लेती थीं।नीता शाम को घर आती तो उसे चाय भी हाथ में मिलती।किसी दिन कामवाली नहीं आती तो नीता की सासु मां सब काम कर लेती थी नीता को कुछ नहीं करना पड़ता था। हां रात का खाना रोज नीता बनाती थी।नीता के ससुर भी घर के छोटे मोटे कामों में उसकी मदद कर दिया करते थे।

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नीता के सास ससुर दिनभर अकेले रहते तो टी वी लगाकर बैठ जाते थे।

नवीन ऑफिस से आने के बाद मां बाऊ जी के साथ कुछ देर बैठता और बाते करता था ताकि वो अकेला महसूस ना करें।सब कुछ अच्छे से चल रहा था।नवीन ने मन बना लिया था, कि वो अब मां बाऊ जी को अपने साथ रखेगा क्योंकि अब उनकी भी अकेले रहने की उम्र नहीं थी।

एक दिन बातों बातों में नवीन नीता से बोला -” माँ बाऊ जी के आने से घर में कितनी रौनक आ गई है।काम में भी वो हमको कितना मदद करते हैं ना।” नवीन के मुंह से मां बाऊ जी की प्रशंसा सुनकर नीता को लगने लगा कि अगर ज्यादा दिन तक उसके सास ससुर यहां रह गए तो उसके पतिदेव तो माँ बाऊ जी के चमचे बन जाएंगे..बस फिर क्या था..नीता के दिमाग में सास ससुर को अपने घर वापिस भेजने की खुरापात चलने लगी..! उसे लगा,काम का क्या है? कामवाली आती है..खाने की भी कोई प्रॉब्लम नहीं वो दिन में ऑफिस में खा लेंगे और रात को कुछ भी बनाकर खा लेंगे…बस उसने सास ससुर को अपने घर भेजने की प्लानिंग शुरू कर दी।

बात बात में वो सासु मां के काम में गलतियां निकालने लगी और उनसे बुरी तरह से पेश आती।नवीन से भी बिना बात झगड़ा करती।नवीन को भी आश्चर्य होता,कि नीता को ये अचानक से क्या हो गया? पहले तो ऐसा नहीं करती थी।अब तो नीता एक और बहाना बनाने लगी,कि जब से मां बाऊ जी आएं हैं हमारे घर का बजट ही बिगड़ गया है..दिनभर टीवी चलने से और रात में दो दो एसी चलने से बिजली का बिल ज्यादा आने लग गया है..ऊपर से राशन पानी और सब्जी फल का भी खर्च बड़ गया है यानि नुकसान ही नुकसान।नवीन नीता पे गुस्से होते हुए बोलता -“नीता,अपने माता पिता पे खर्च करना बच्चों का फर्ज होता है इसमें नुकसान फायदा कैसा?अपना सारा जीवन उन्होंने हम पर कुर्बान कर दिया उन्होंने तो कभी नफा नुकसान की बात नहीं की।”

“हम्म्म..तुम तो अपने माता पिता की ही तरफदारी करोगे ना..तुमसे तो बात करना ही बेकार है।”नीता मुंह बनाते हुए बोली।

सास ससुर को लेकर नीता रोज घर में क्लेश करती।नवीन से अपने माँ बाऊ जी का अपमान देखा नहीं जाता था इसलिए उसने उन्हें घर छोड़ आने का मन बना लिया।नीता की प्लानिंग कामयाब हो गई…नवीन माँ बाऊ जी को घर छोड़ आया।

नीता ये जताने के लिए कि वो बिना किसी के मदद के भी सब मैनेज कर सकती है..सुबह जल्दी उठकर अपना और नवीन का नाश्ता बना लेती।फिर ऑफिस के लिए निकल जाती उसे पता था,कि नवीन के ऑफिस का समय दस बजे से है तो कामवाली को भी ९ बजे तक आने के लिए कह दिया ताकि नवीन ऑफिस जाने से पहले साफ सफाई सब करवा जाए।

शाम को नीता नवीन से पहले घर आ जाती और चाय पीकर आराम कर लेती।रात को खाना बनाते समय आधा काम नवीन से करवाती…जैसे सब्जी कटवाना..खाने के बाद प्लेटफार्म साफ करना फिर सोने से पहले दूध गर्म करवाना और कचरा बाहर रखना वगैरह वगैरह…नवीन बेचारा चुपचाप सब करता ताकि घर में शांति बनी रही।

बोनस – दीपा माथुर

सब ठीक चल रहा था नीता खुश थी…अमूमन कामवाली के एक दिन नहीं आने पर नवीन पड़ोस में जो काम वाली आती थी उसे बुलवाकर काम करवा लेता फिर ऑफिस जाता।पर इस बार उनकी कामवाली बिना बताए लंबी छुट्टी पे चली गई।फोन भी नहीं उठाती थी।एक दिन तो कोई भी कामवाली बदली का काम कर देती थी पर रोज रोज कोई करने को तैयार नहीं होता था।

नीता तो सुबह निकल जाती थी…नवीन रोज कामवाली का इंतजार करता था पर वो नहीं आती…पड़ोस वाली की कामवाली ने भी काम करने से मना कर दिया।नवीन अब नाश्ता करके ऐसे ही सब छोड़कर ऑफिस चला जाता था।

डोर बेल बजी तो नीता की तंद्रा टूटी..वो वर्तमान में लौट आई।उसने दरवाजा खोला नवीन ऑफिस से आ गया था।

“आज भी कामवाली नहीं आई..ऐसे कब तक चलेगा नवीन? मेरी तो हालत खराब हो गई है….ऑफिस का काम करके आओ फिर घर का काम करो।मैंने और भी काम वालियों से बात की थी पर किसी के पास भी समय नहीं है।पैसा देकर भी कोई काम करने को तैयार नहीं है।”

“जिन्हें लोगों की कदर नहीं होती,उनके साथ ऐसा ही होता है।”

“क्या मतलब तुम्हारा?”

“माँ बाऊ जी के होते कभी ऐसी दिक्कत आई थी तुम्हें?सब काम किया कराया मिल जाता था..पर तुम्हें वो भी रास नहीं आया।तुम तो अपना नफा नुकसान देखने में लगीं थीं।वो मेरे माता पिता थे उनके लिए मैं जितना भी करूं कम है…वो काम तो करते थे,साथ में दिन में कितने आशीर्वाद भी हमें देते थे…ये उनके आशीर्वाद का ही फल है जो आज हमें इतनी अच्छी तनख्वाह मिल रही है।किसी चीज की कमी नहीं है। माँ बाप को साथ रखने से सिर्फ और सिर्फ नफा ही होता नुकसान की कोई गुंजाइश नहीं होती समझीं नादान औरत।”नवीन गुस्से से बोला।

नीता पहले से ही भरी बैठी थी..नवीन की बात सुनकर वो बच्चों की तरह फूट फूटकर रोने लगी -“नवीन मुझे माफ कर दो मैंने माँ बाऊ जी का बहुत अपमान किया..शायद इसलिए भगवान ने मुझे ये दिन दिखाया।तुम सच कहते हो ..माँ बाप को साथ रखने से सिर्फ और सिर्फ नफा ही होता है।चाहे तुम मुझे स्वार्थी ही बोलो पर तुम्हें अब माँ को यहां लेकर आना पड़ेगा।क्योंकि हमें उनके आशीर्वाद की बहुत जरूरत है।”

नवीन समझ गया,कि नीता को अपनी गलती का एहसास हो गया है अर्थात् उसे संयुक्त परिवार का महत्व समझ आ गया है।उसने उसे प्यार से गले लगा लिया।और फिर नीता और नवीन माँ बाऊ जी को मनाकर अपने साथ ले आए।

आजकल एकल परिवार का चलन चल पड़ा है।पर सच तो ये है,कि माता पिता हों या बच्चे एक दूसरे से अलग रहकर कोई खुश नहीं रह सकता।संयुक्त परिवार में ही निहित होती हैं परिवार की खुशियां।

लेखिका : कमलेश आहूजा 

#संयुक्त परिवार

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