नमक-रोटी ! – निरंजन धुलेकर

बेटे का मुँह उतर गया था , वजह थी एक शर्त !

उसे जिस लड़की से प्यार था उसी से शादी करना चाहता था मैंने पहले ही बोल दिया था कि मैं हर हाल में उसके साथ खड़ा हूँ , चिंता न करे !

लड़की वालों से औपचारिक वार्ता शुरू हुई पर उनकी एक शर्त ने मुझे डिस्टर्ब कर दिया था क्यूंकि वो शर्त मुझे कतई मंजूर नही थी ।

वो लोग लड़के के माँ और बाप दोनों से एक साथ बात करना चाहते थे । अजीब लगा ! उन्हें बता दिया गया था कि हम दोनो साथ नही रहते बरसो से ।

बेटा माँ के पास ही रहता था और यही बात लड़की वालों को शायद पसंद नही आयी थी क्यूंकि बेटे और उनकी बेटी दोनों की सर्विस उसी शहर में थी ज़ाहिर था शादी के बाद दोनों उसी शहर में रहते !

उन्हें चिंता थी कि उनकी बेटी शादी के बाद सास के मायके मैं कैसे रहेगी ? उनकी इस चिंता से मैं पूरी तरह से वाकिफ़ ही नही सहमत भी था ।

बेटे का उतरा मुँह मुझसे देखा नही जा रहा था । मैं समझ रहा था उसकी कशमकश । 

एक तरफ घर की समस्याएँ तो दूसरी तरफ प्यार शादी और ढेर सारे सपनों से भरा आकाश !

बेटे को मैंने गले लगा लिया  ” मर्द बन कर प्यार किया न अब मर्द की कलाई के ज़ोर पर अपना ख़ुद का घर भी बसा चाहे कुछ वक्त नमक रोटी ही क्यूँ न खानी पड़े ! और एक बात सुन ये शादी मैं करवा कर ही रहूँगा , बिना शर्त ! “

बेटे की मेरी पीठ पर बढ़ती जकड़ और चेहरे पर पसरती  मुस्कान ने मुझे छप्पन भोग का स्वाद दे दिया था !

निरंजन धुलेकर !

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