नमक का हक़ अदा करना – ऋतु यादव : Moral Stories in Hindi

हॉस्पिटल में बेड के किनारे बैठी दमयंती आज उस दिन का शुक्र मना रही थी जब, रोते बिलखते उस बच्चे को वह सबके मना करने के बावजूद अपने साथ घर ले आई थी। 

तभी उसके पति राजेन्द्र जी के खांसने की आवाज़ से उसकी तंद्रा टूटी। इतने में रोहित भी पहुंच गया। दोनों ने मिलकर राजेन्द्र जी को बिठाया , फिर दवा दी। तभी डॉक्टर राउंड लेने आए और कहा कि ने कहा है कि अब सब ठीक है, दो चार दिन पेशेंट को हॉस्पिटल में निगरानी के लिए रखेंगे, फिर छुट्टी कर देंगे।

हफ्ते भर बाद राजेन्द्र जी घर आ गए और पखवाड़े बाद वे अपने रूटीन में आ गए।सुबह की चाय पर दमयंती और राजेन्द्र जी बैठे थे, कुछ सोच विचारकर राजेन्द्र जी, “रोहित कहां है? दमयंती ,”दुकान पर गया है, जबसे आपकी तबियत खराब हुई है, भी सब कुछ संभाल रहा है।” राजेन्द्र,”मनन का फोन आया? दमयंती,” जी नहीं!! तभी रोहित आया ,” साहब! कुछ हिसाब किताब है, आप देख लेते और सामान की पेमेंट भी करनी थी, तो कुछ दस्तख़त करने थे।” राजेन्द्र ,” दुकान ही चलते हैं, वैसे भी घर में बैठे बैठे ऊब गया हूँ।चलो गाड़ी निकाल लो।” रोहित ,” जी”।

वे दोनों चले गए तो दमयंती जी सोचने लगी बीस बरस पहले की वह घटना जब वे देवी के दर्शन के लिए गए थे और अचानक मंदिर में भगदड़ मच गई। वे तो किसी तरह बच गए पर करीब पाँच छह साल का एक बच्चा पास खड़ा बिलख बिलख कर रो रहा था।उसे देख राजेन्द्र जी ने पुलिस वालों से सम्पर्क कर सौंपने का प्रयास किया पर सब घायलों को अस्पताल पहुंचाने और स्थिति को ठीक करने में इतने व्यस्त थे कि कोई फ़ुर्सत ही न थी।कोई रास्ता न जानकर राजेन्द्र जी ने कहा भी कि पुलिस को सौंपकर चलो यहां से। पर दमयंती का मन न माना, बोली इसी शहर में तो रहते हैं रिपोर्ट लिखाकर घर ले चलो।कोई खबर मिलेगी तो पुलिस इत्तिला कर देगी।देखो न कितनी मुश्किल से मनन के साथ खेलने लगा है, वरना कैसे बिसर बिसर कर रो रहा था।

घर आकर बहुत क्लेश हुआ, सास ससुर सबने कहा कि इस महंगाई में राजेन्द्र की परचून की दुकान बमुश्किल पेट पलता है, ऊपर से ये नया खर्चा। फ़िर भी दमयंती अड़ी रही कि बाहर न जाने छोटे से बच्चे को कैसे कैसे लोग मिलेंगे, क्या पता कब इसके माता पिता लेने आ जाएं।फिर उसका नाम रोहित रख दिया और वह वहीं का हो गया।

राजेन्द्र जी उसे बहुत झिड़कते। फ़िर मांजी ने सलाह दी कि ये लड़का घर में मुफ्त की रोटी तोड़ता है, इसे अपने साथ दुकान ले जाया कर ताकि तेरा कुछ बोझ हल्का हो। वैसे भी राजेन्द्र जी उसकी पढ़ाई का खर्चा उठाने को मना कर चुके थे।तो अब रोहित राजेंद्र जी के साथ दुकान जाने लगा और उसका घर में रहना सबको कम खटकता। 

थोड़ा बहुत लिखना पढ़ना वह मनन के साथ रहकर सीख गया और हिसाब किताब में वह दुकान का काम कर पक्का हो ही गया था। कभी कभी दमयंती जी का जी दुखता की घर में सबको फ्री का मज़दूर मिल गया है, जो बिना तनख्वाह सिर्फ़ रोटियों के बदले ही काम करता, पर वह चाहकर भी सिर्फ अच्छा खाना देने के अलावा कुछ न कर पाती।

रोहित को भी इसी तरह जीने की आदत हो गई थी। वह कहे अनुसार काम करता, कोई ऐब न था उसमें, सबसे घर में आदर और स्नेह से पेश आता।इसका नतीजा यह हुआ कि वह राजेन्द्र जी का विश्वासपात्र हो गया था।इसी तरह बीस बरस गुजर गए। न उसकी किसी ने खोज ख़बर ली, न वो कहीं गया।बस उसी घर का होकर रह गया।

इन बीस सालों में, सास ससुर गुजर गए, मनन पढ़ लिखकर नौकरी करने बैंगलौर गया और फ़िर शादी कर वहीं सेटल हो गया। अब फोन भी बस कभी कभार ही करता।

घर में रह गए बस राजेन्द्र जी, दमयंती और रोहित। और फिर अचानक एक दिन राजेन्द्र जी को दिल का दौरा पड़ा, तब रात के बारह बजे रोहित आवाज़ सुनकर आया, उन्हें अस्पताल ले गया। डॉक्टर ने तुरत फुरत एंजियोग्राफी की, वो सब जिम्मेदारी मनोयोग से संभाली।पूरे बीस दिन न सिर्फ अस्पताल, घर, दुकान संभाला बल्कि राजेन्द्र जी की दिन रात बेटे की तरह सेवा की और दमयंती जी को मानसिक संबल दिया।

वहीं जब उस रात दमयंती जी ने मनन को फोन कर रोते हुए बताया और आने को कहा तो उसका कहना था कि ठीक है पहुंच गए न अस्पताल, अब डॉक्टर देख लेगा और फिर इस उम्र में कुछ न कुछ तो लगा ही रहेगा। पैसे की जरूरत हो तो बताना। वो दिन है और आज का दिन न मनन ने फोन कर हाल पूछा, न दमयंती जी ने किया। 

तभी गाड़ी की आवाज़ आई और राजेन्द्र जी और रोहित घर वापिस आ पहुंचे। 

दमयंती जी उठकर जाने लगी तो राजेन्द्र जी पास बैठ बोले, “बैठो!कुछ बात करनी है। मैं सोच रहा हूँ कुछ गलतियाँ की हैं जिन्हें वक्त रहते सुधार लिया जाए तो ठीक है और कुछ जिम्मेदारियां हैं जिन्हें पूरा करना है।”

दमयंती ,” मतलब”?

राजेन्द्र ,”मैंने सोचा है कि अपनी पड़ोसी गाँव की जो ज़मीन संभालते हैं, गोपी चाचा, उनकी पोती सुंदर है,सुशील है, पढ़ी लिखी है।कई बार मुझसे उसके लिए कोई लड़का बताने की बात कर चुके हैं, वो गांव की जमीन रोहित के नाम कर, उनकी पोती की शादी रोहित से करके ये जिम्मेदारी पूरी कर लेते। साथ ही दुकान और घर भी हमारे बाद रोहित की होगी, मैं वसीयत कर देता हूँ। क्या कहती हो?”

दमयंती,”और मनन?उसका हक?”

राजेन्द्र ,” ह्म्म मनन!अच्छा कमाता है।उसे इतना पढ़ाया लिखाया है हमने। उसे कहां किसी चीज़ की जरूरत है! हमारे मरने के बाद आएगा और इन सबको कुछ लाखों में बेच कुछ महीनों में ही खत्म कर देगा और जहां तक बात हक़ की है, हक़ और कर्तव्य एक साथ आते है। कर्तव्य के समय कहां था वो?वैसे भी रोहित ने तो बचपन से हमारे नमक का हक़ अदा करने के लिए सारे फ़र्ज़ निभाए बिना कोई सवाल जवाब।जो फ़र्ज़ हमारे बेटे का था, वो सब उसने बिना किसी लालच में निभाया है। अब हमारी बारी है। उसे बचपन से कभी प्रेम या उसके हिस्से की खुशियां तो दी नहीं, अब कम से कम उसका घर परिवार बसा, भविष्य सुरक्षित कर आराम से मर तो सकते ही हैं।क्या कहती हो?”

दमयंती ,”डबडबाई आँखो से, आपने सोचा है तो ठीक ही सोचा होगा।”

तभी रोहित आया ,”साहब, डॉक्टर के चेकअप कराकर आने का समय हो गया। ” राजेन्द्र जी मुस्कुराकर सिर पर हाथ रख बोले, “हां बेटा!चलते हैं। बाबूजी कहा करो, अच्छा लगेगा मुझे!”

और तीनों की आँखों से निर्झर प्रेम बहने लगा।

लेखिका 

ऋतु यादव 

रेवाड़ी हरियाणा

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