नमक का हक अदा करना – डॉ आभा माहेश्वरी : Moral Stories in Hindi

मोहन सेठ गोविंददास के यहाँ काम चरता था।उसने जब से होश संभाला वो सेठ जी के यहाँ था।उसके बाप-महतारी भी शुरु से वहीं रहते।वो भी बचपन से वही रहता । मोहन का एक बेटा था मोनू– वो सेठजी के घर में खेलता रहता था।सेठ जी उसे बहुत प्यार करते थे। उसकी पढ़ने में रुचि देख सेठ जी ने उसे पढ़ने बैठा दिया।मोनू बहुत होशियार था।

थोड़ा बड़ा हुआ तो अपने पिताजी के काम भी कर देता और सेठजी की भी बड़ी सेवा करता।सेठजी के दोनों बेटे तो विदेश में ही सैटिल होगए। वहीं उन्होंने शादियाँ भी करली और अब तो दोनों बेटों ने आना भी छोड़ दिया अपने माँ बाप के पास।मोनू  डाक्टर बनना चाहता था

और उसने मेहनत करके नीट की परीक्षा भी पास करली।सेठजी ने उसके दाखिले में उसकी मदद करी और उसकी पढ़ाई का पूरा खर्चा उठाया ।और मोनू की लगन रंग लाई और वो डाक्टर बन गया।

    सेठजी अब बीमार रहने लगे थे। बेटा तो कोई आता नही था। मोनू सेठजी की एक बेटे की तरह सेवा करता।मोनू की शादी भी डाक्टर लड़की से हुई थी। वो भी सेठजी की पिता के समान ही सेवा करती।मोनू -जो कि एक  नौकर मोहन का बेटा था—

ने नमक का हक अदा कर दिया एक बेटे की तरह सेठजी की सेवा सुश्रुषा करके।सेठजी ने भी उसे अपना बेटा मान अपनी पूरी सम्पत्ति उसके नाम करदी लेकिन मोनू ने सेठजी के नाम से उस सम्पत्ति से एक अस्पताल खोल दिया जिसमें असहाय बेसहारों का मुफ्त इलाज किया  जाता।

    पूरे  समाज में मोनू की सेवा की चर्चा फैल गई। दरअसल डाक्टर तो लोग बन जाते हैं पर अपना जीवन परसेवा में विरले ही समर्पित करते हैं।,और बहुत लोग दूसरों की मदद भी करते हैं किंतु नमक का हक अदा कोई एक मोनू जैसा ही अदा करता है।मोनू ने सेठजी की उनकी अंतिम श्वास तक जी जान से एक बेटे की तरह सेवा करी।

       उसने सेठजी का नमक खाया और पूरा हक अदा किया उनकी सेवा करके।।

मुहावरा#नमक का हक अदा करना

अर्थ: ऋण चुकाना

लेखिका: डॉ आभा माहेश्वरी अलीगढ

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