मुश्किल फैसला – डॉ. दीक्षा चौबे  : Moral Stories in Hindi

रक्षा अपने दो वर्ष के बेटे विवान की देखभाल के लिए आया ढूँढ़ रही थी तभी उसकी सहेली रमा ने लक्ष्मी को भेजा था। एकबारगी उसके शालीन पहनावे और सुघड़ता को निहार कर रक्षा झेंप सी गई। कहीं  गलती से कोई और तो नहीं आ गई । स्पष्ट रूप से उसने पूछा –”आप बच्चे की देखभाल के लिए आईं हैं न ?”

“ जी हाँ ! मुझे रमा जी ने यही पता दिया था, उन्होंने सौम्यता के साथ उत्तर दिया था।”

 लक्ष्मी के सादगीपूर्ण , शालीन व्यक्तित्व को देखकर रक्षा को विश्वास नहीं हो रहा था कि वे आया का काम माँगने आईं हैं।” जरूर मुसीबत की मारी होगी वरना किसी भले घर की लग रही है “ रक्षा ने मन ही मन सोचा।

      वेतन और सुविधाओं के लिए भी उसने कुछ नहीं कहा -” जो आप अपनी पुरानी आया को देते थे वहीं दे देना “ शायद उसने कहीं काम नहीं किया था इसलिए वेतन रक्षा की इच्छा पर ही छोड़ दिया था। रक्षा को आश्चर्य के साथ खुशी भी हुई, उसके बेटे की देखभाल के लिए वह बिल्कुल निश्चिंत हो गई थी। लक्ष्मी हर काम बहुत मन से करती थी , विवान उसके साथ बहुत जल्दी घुल-मिल गया। जब रक्षा ऑफिस जाती तो लक्ष्मी विवान को सँभालती और जब घर पर होती तो घर के सभी काम कर देती । रक्षा को बोलना भी नहीं पड़ता,वह अपनी इच्छा से घर को सँवारते , सजाते रहती मानो वह उसका अपना घर हो। रक्षा ने जब-जब उसके बारे में जानना चाहा लक्ष्मी ने बहुत संक्षिप्त में उत्तर देकर संवाद खत्म कर दिया और कुछ न कुछ काम करने लगी । कुल मिलाकर रक्षा को बस इतना ही पता था कि उसके पति ने उसे छोड़ दिया है।

           उस दिन रक्षा को एक शादी में रमा मिल गई। रमा ने पूछा –” लक्ष्मी ठीक से काम कर रही है ना। तुझे कोई परेशानी तो नहीं है?”

रक्षा ने रमा को गले लगा कर कहा –”तुमने लक्ष्मी को भेजकर मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया है। ऐसी आया मुझे पहली बार मिली है। वह विवान को बहुत प्यार से रखती है ,साथ ही हम सबका, पूरे घर का ख्याल रखती है। रमा तुम उसके बारे में कुछ बताओ , मुझे तो वह कुछ नहीं बताती। जब भी पूछती हूँ टाल जाती है।”

“ जो बातें कष्ट दें उन्हें कुरेदने से क्या लाभ ? बेचारी इसीलिए उन सवालों से बचती है।” रमा ने ठंडी साँस भरकर कहा ।

“ओह ! उसका अतीत क्या इतना दुखद है । मैं उससे कुछ नहीं कहूँगी ,पर तू मुझे तो बता सकती है।रक्षा ने कहा ।”

“ लक्ष्मी  सम्मान की सूखी रोटी पाने के लिए अपने ससुराल की सुख-सुविधाएँ और परिवार छोड़ कर आई है रक्षा। मैं जानती थी तेरे घर में उसे प्यार और अपनापन मिलेगा और वह काम करके भी खुश रहेगी। प्लीज़ उसका ध्यान रखना । मैं उसकी कहानी तुझे जरूर सुनाऊँगी पर आज नहीं। किसी छुट्टी वाले दिन घर आ “।

“ठीक है “ कहकर रक्षा घर तो आ गई पर उसका मन रमा की उसी बात पर अटका रहा । जैसे आधी रोटी खाकर भूख अधिक बढ़ जाती है उसका मन लक्ष्मी के बारे में जानने को बेताब हो उठा। पता नहीं क्यों उस दिन लक्ष्मी बहुत अनमनी सी थी। रक्षा ने बहुत स्नेह से उससे कारण पूछा तो “आज हमारी शादी को पच्चीस वर्ष हो गए” कहते वह अपने आपको रोक नहीं पाई और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे मानो बाँध का कोई किनारा टूट गया  और बरसों का जमा पानी पूरे वेग के साथ बह निकला हो। उसने अपनी पीड़ा के बाँध तोड़ दिये थे । रक्षा ने उसे अपने सीने से लगा लिया जैसे कोई माँ अपने बच्चे को सहलाती है । उसका संबल पाकर लक्ष्मी ने अपना अतीत खोलकर उसके सामने रख दिया।

      कितना दुखद है कि एक लड़की अपना सब कुछ छोड़कर ससुराल आती है। अनजाने लोगों को अपना मानकर उनकी सेवा करती है, किसी और घर को अपना मानकर उसे सजाती,सँवारती है और शादी के बाईस-तेईस वर्ष बाद उसका पति उसे घर से बाहर निकाल देता है यह कहकर कि यहाँ तेरा है क्या?

“ मैंने कितनी मेहनत से तिनका -तिनका जोड़ कर अपना आशियाना बनाया था। पति, दो प्यारे बच्चे जिनके लिए अपनी भूख-प्यास भुला दी। शक्की,शराबी पति ने कभी कीमत नहीं समझी। मैं वही काम आपके लिए कर रही हूँ तो आप वेतन के साथ मेरा धन्यवाद करते हैं पर हमारा यह समाज एक हाउसवाइफ के श्रम का कोई मोल नहीं लगाता। खाना बनाना, सफाई करना , कपड़े धोना, उन्हें जतन करना, बच्चों की देखभाल करना और पति की सारी फरमाइशें पूरी करना ये तो एक स्त्री के कर्त्तव्य हैं। पुरुष सिर्फ कमा कर लाता है, स्त्री उसे यत्नपूर्वक खर्च करती है अपनी इच्छाओं को मारकर सुख-सुविधाएँ जुटाती है पर उसका अपना कुछ नहीं होता। सिर्फ जिम्मेदारी उसकी होती है, अधिकार नहीं होता। जब-जब अधिकार जताना चाहती तो मर्द उस पर हाथ उठाकर अपनी श्रेष्ठता साबित करता है। वर्षों तक अपनी अवमानना सहती रही पर जब उसने मेरे मायके में आकर सबके सामने मुझ पर हाथ उठाया तो मुझसे रहा नहीं गया। बस अब और नहीं – बोलकर मैंने उस घर में जाने से इंकार कर दिया। अपमान की रोटी तोड़ने से बेहतर मैंने यह एकाकी जीवन चुन लिया। अब जीवन के जितने भी दिन बचे हैं मैं अपने आत्म सम्मान के साथ बिताना चाहती हूँ। बच्चों के बड़े होने के बाद मैंने यह कदम उठाया ताकि वे समझ सकें कि मैंने कुछ ग़लत नहीं किया और मुझे भी अपने लिए जीने का हक है। “ पति-पत्नी का रिश्ता प्यार, विश्वास और सम्मान का होता है। बिना सम्मान के किसी रिश्ते को ढोने से बेहतर है उसे छोड़ देना पर कितने लोग ऐसा कर पाते हैं। लक्ष्मी के साहस पर मुझे गर्व हुआ , सचमुच उसने अपने नाम को सार्थक सिद्ध किया था।

डॉ. दीक्षा चौबे 

दुर्ग छत्तीसगढ़

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