मुखौटे – करुणा मलिक: Moral Stories in Hindi

कई दिन से रेशमा का मन उदास था । पिछली गली में रहने वाली उसकी छोटी बहन राखी बीमार थी । रेशमा को अकेले जूता  फ़ैक्ट्री में जाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था पर क्या करे ? मज़दूर अगर मज़दूरी पर नहीं जाएगा तो शाम को खाएगा क्या ? बस यही सोचकर वह काम पर जाती थी । राखी के बेटे की भी देखभाल करनी पड़ती थी । पति रोज़ कहता था—-

रेशमा, तू सेठ से कुछ रुपये उधार माँग लें  और  अपनी बहन के लिए सफल- सब्ज़ी, दूध … बढ़िया खानपान का इंतज़ाम कर दे ……..वरना राखी  को  भूखों मार देगा  । उसके पति को जरुरत नहीं है अब राखी की …. नई जोरू ले आएगा । 

हाँ …. जोरू तो रास्ते में बिकती हैं ना ? कौन देगा उस निकम्मे को अपनी लड़की? फिर ऊपर से एक लड़का …. ये सब तुम्हारा वहम है । वो तो बापू ने तुम्हारे कहने पर  राधे से शादी कर दी थी……नहीं तो, यूँ ही कुँवारा फिरता अभी तक । 

कहने को तो रेशमा ने अपने पति भैरव से कह दिया पर वो भी जानती थी कि राधे  से राखी की शादी न करते बापू  तो , कोई राजकुमार तो ब्याहने आने वाला नहीं था ।  बेचारी  मेरी बहन राखी सुबह  से शाम तक जी तोड़ मेहनत करती है । पूरे घर का काम करके घर से निकलती थी , पूरा दिन  जूता फ़ैक्ट्री में काम करती और साँझ को फिर घर का काम…. जब से बेटा हुआ, उसे भी अपने साथ काम पर लेकर जाना पड़ता था पर वहाँ तो दोनों बहनें उसे मिलजुल कर सँभाल लेती थी । हालाँकि सेठ कई बार धमकी दे चुका था—-

बच्चे को घर में छोड़कर आया करो । तुम्हारी तनख़्वाह में से पैसे काटूँगा…. आधे दिन के पैसे मिलेंगे तुम दोनों बहनों को । 

नहीं- नहीं सेठ , इसका बच्चा छोटा है । मैं इसके बदले का पूरा काम करके जाऊँगी 

रेशमा ने राधे से कई बार कहा—-

तुम पूरा दिन घर में पड़े रहते हो तो कम से कम बच्चा ही सँभाल लिया करो । ये बेचारी कितना करे और किस- किस की बातें सुनें ? 

साली साहिबा! बस देखती जाओ । कुछ दिन की बात है….. नौकरी की बात चल रही है । फिर राखी के ठाठ ही ठाठ होंगे, महारानी बनाकर ऐश करवाऊँगा । 

रेशमा जानती थी कि  राधे को बातें बनानी खूब आती हैं । भला …. पढ़े-लिखे लोगों को तो नौकरी मिलती नहीं, इस अनपढ़ को नौकरी मिलेगी? बेवकूफ बना रहा है मुझे । वह कई बार भैरव से सुन चुकी थी कि चौराहे पर पान के खोखे पर खड़ा राधे आती- जाती लड़कियों को छेड़ता है…. पूरा दिन आवारागरदी करता है। रेशमा का मन दुखी हो उठता था , राधे की हरकतों को बताकर वह अपनी छोटी बहन का मन नहीं दुखाना चाहती थी । 

रेशमा को लगता था कि  काम की अधिकता, आराम और खानपान की कमी के कारण राखी बीमार रहने लगी ,  उसके बच्चे को अधिकतर रेशमा ही यह सोचकर अपने पास रखती कि थोड़ा आराम कर लेगी पर तन की बीमारी का इलाज तो संभव होता है, मन की बीमारी आदमी को अंदर ही अंदर तोड़ देती है । पता नहीं, राखी को कौन सी बीमारी लग गई थी जो वह मन ही मन घुलती जा रही थी । 

रेशमा कई बार राधे को डाँटती – फटकारती पर उस पर कोई असर ही नहीं होता था । रेशमा अक्सर सोचती —-

शुक्र है, भगवान का कि मुझे ऐसा बेपरवाह पति नहीं मिला । बेऔलाद होने का भी कभी ताना नहीं दिया …. हाँ, कुछ काम- धाम नहीं करता पर कोई बात नहीं….. मेरा और उसका कुछ अलग थोड़े ही है….मेरी तो कद्र करता ही है…. राखी के बारे में भी कितना सोचता है । 

महीना होने को आया था राखी को बिस्तर पर पड़े हुए ।  रेशमा जितना कर सकती थी उससे कई गुना सेवा कर रही थी अपनी बहन की ……बच्चे को भी खुद सँभालती थी ।  एक दिन राखी के बेटे को बुख़ार हो गया था तो रेशमा  फ़ैक्ट्री से उसे लेकर रोज़ के समय से पहले ही घर लौट आई । रेशमा ने सोचा था कि घर जाकर बच्चे को ठंडे पानी की पट्टियाँ रख देगी और अगर बुख़ार नहीं उतरा तो नुक्कड़ पर बैठने वाले डॉक्टर से एक- दो पुड़िया ले आएगी । 

अभी वह घर से थोड़ी दूरी पर थी कि उसने देखा कि उसकी कोठरी के दरवाज़े पर भैरव और राधे दोनों खड़े हैं । पहले तो रेशमा का मन किसी आशंका को सोचकर घबराया पर जब उसने देखा कि भैरव राधे के कंधे पर हाथ रखकर मुस्कराहट के साथ उसे कुछ दे रहा है तो वह ठिठक गई । थोड़ी देर में भैरव घर के अंदर और राधे अपने घर की तरफ़ चला गया । रेशमा को समय से पहले आया देखकर अचानक भैरव सकपका गया मानो उसकी चोरी पकड़ी गई हो । रेशमा सोचती रही कि देखूँ, ये राधे के घर में आने की बात बताएगा क्या ….पर भैरव ने कोई ज़िक्र नहीं किया । बच्चे का बुख़ार उतर गया था इसलिए रोटी पकाने के बाद उसने भैरव से कहा—-

मैं ज़रा मुन्ने को राखी से मिलवा आती हूँ……

हाँ-हाँ जाओ और देखो , अगर राखी की हालत में कोई सुधार न दिखे तो उसे अपने साथ ही ले आओ । कम से कम रोटी- पानी तो समय पर मिल जाएगा । अब उस निकम्मे राधे के भरोसे राखी को छोड़ना मूर्खता होगी । 

आज  पहली बार रेशमा को अपने पति की बातों ने हैरान कर दिया—-

क्या मामला हो सकता है? जो आदमी थोड़ी देर पहले राधे से हँस-हँसकर बातें कर रहा था….. अब उसके ख़िलाफ़ कैसे बोल  सकता है ? और राखी को यहाँ लाने की बात भैरव क्यों कह रहा है? 

इन्हीं ख़्यालों में खोई रेशमा छोटी बहन की कोठरी के बाहर ठिठक गई जब उसके कानों में राखी की आवाज़ आई——

अब मैं रेशमा से ज़्यादा दिन छिपा नहीं पाऊँगी….. आज नहीं तो दो महीने बाद उसे पता चल ही जाएगा कि मैं पेट से हूँ और जिस दिन उसे यह पता चल गया कि दोनों बच्चे भैरव के हैं वो मुझे जान से मार देगी …… 

कौन बताएगा तेरी बहन को….. भैरव तो कभी ना बताएगा, हमें पैसे मिल रहे हैं तो हमें क्या ज़रूरत है बताने की…. 

रेशमा का सिर घूमने लगा । अच्छा…. तो इसलिए वह राखी को अपने घर लाने की बात कह रहा है ताकि राधे नाम का झँझट ही बीच से निकल जाए । फिर थोड़े बहुत पैसे देकर एक नया ब्याह करवाने का पासा उसके सामने फेंककर … उसे चुप करवा दिया जाए …… 

रेशमा की आँखों से आँसूओं की धारा बह निकली । कितना छला है उसके पति और उसकी छोटी बहन ने …… राधे से उसे कोई गिला-शिकवा नहीं….. वह क्या लगता है भला उसका ? 

तभी आहट पाकर राधे ने बाहर झाँका ——

साली साहिबा! आओ भीतर आओ । 

ज़रूरी काम याद आ गया , लो पकड़ो अपने बच्चे को….. 

रेशमा की बेरुख़ी से दोनों को इतना आभास हो गया कि सारी नहीं तो , कुछ न कुछ रेशमा के कानों में पड़ चुका है । इससे आगे कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई । 

रेशमा को लौटी देखकर भैरव ने चिंतित स्वर में पूछा—-

तुम राखी को साथ नहीं लाई ? वो कसाई तो उसे मार ही डालेगा …. मुन्ना भी वहीं छोड़ आई क्या ? 

रेशमा का दिल किया कि उसका चेहरा नोच ले पर उसने केवल इतना कहा —-

जाओ ….. तुम ले आओ उन्हें । 

भैरव तो जैसे इन शब्दों का इंतज़ार ही कर रहा था । उसके कोठरी से निकलते ही रेशमा ने हांडी में रखी अपनी खून- पसीने की सारी कमाई निकाली , गिने- गिनाए अपने दोनों कपड़ों के जोड़े उठाए और एक अनजान रास्ते पर निकल पड़ीं । मन में बहुत से प्रश्न उठ रहे थे, ग़ुस्सा और दिल टूटने की पीड़ा थी पर अंत में दिल का ग़ुबार आँसुओं के रूप में निकलने के बाद उसने कहा —-

क्या होता चीखने- चिल्लाने से …. रोने- पीटने से या समझौता करके दिन – रात उन्हीं के बीच रहने से ? ये भावनाएँ तो मनुष्य समझता है और जिन्हें मैं छोड़कर जा रही हूँ, वे तो मनुष्य हैं ही नहीं…. मैं किसी हालत में समझौता अब नहीं करूँगी । 

रेशमा के कदम निरंतर आगे की ओर बढ़ते जा रहे थे, “ वह अपने लिए जिएगी, वह झूठ , फ़रेब और धोखाधड़ी के जाल से मुक्त हो चली थी । 

लेखिका : करुणा मलिक

# समझौता अब नहीं

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