मुझे अधिकार आता है लेना – डॉ बीना कुण्डलिया  : Moral Stories in Hindi

खट खट खट दरवाजे पर जोरों से होती आवाज जैसे ही राधा ने दरवाजा खोला पति सुनील खड़ा था। राधा को देखते ही गिड़गिड़ाने लगा मुझे माफ कर दो राधा मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ  सुबह का भुला अगर शाम को घर वापस आ जाये तो उसे भुला नहीं कहते ।अच्छा बहुत बढ़िया इसका मतलब सुबह तुम गलती करो शाम को तुमको माफी मिल जायेगी…देखो..मुझे और भी बहुत काम है राधा ने सुनील की और बात, अनसुनी कर जोर से दरवाजा बंद कर दिया। फिर जल्दी जल्दी अपने काम निपटा कोर्ट की तरफ चल पड़ी इतने तेज कदमों से कि उसका बस चलता तो आज उड़ कर ही पहुँच जाती, कोर्ट में पेशी जो थी आज उसके फैसले का आखिरी दिन उसने सुनील से तलाक के लिए अर्जी डाल दी थी।

 आखिर अनेक दांव-पेंच दलीलें सभी कोशिश पूरी कर ली सुनील ने, लेकिन महेश बाबू राधा के ससूर जी के पारिवारिक वकील के आगे किसी की भी नहीं चली और परिणाम राधा को आसानी से तलाक मिल ही गया। और साथ ही भरण पोषण भत्ता भी जो कोर्ट के आदेश अनुसार पूर्व जीवन साथी को भरण पोषण भुगतान देना होगा जो मासिक आधार पर है। न्यायधीश ने सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर तथ्यों पर निर्भर रखा था। हिन्दू अधिनियम 1955 की धारा चौबीस के तहत गुजारा भत्ता दिया जाना मंजूर किया गया सी आर पी सी की धारा वन टू थ्री के तहत गुजारा भत्ता मंजूर किया जाता है। जो वेतन का पच्चीस प्रतिशत भाग रहता।

आज राधा बहुत खुश उसको न्याय जो मिल गया । वो वहीं कोर्ट के लान में बैठी अपने बीते हुए दिनों को सोचती.. अतीत की लहरों में हिलोरे खाने लगी… । माँ तो उसको बचपन में ही छोड़कर ईश्वर को प्यारी हो गई थी।उसके पिता जानकी दास और वो दोनों ही एक दूसरे का सहारा थे। अचानक एक पिता के जिगरी दोस्त महेश बाबू आये और अपने बेटे से राधा के विवाह कि प्रस्ताव रखा । राधा पहले तो शादी के लिए तैयार नहीं हुई वो अपने पिता को अकेला छोड़कर नहीं जाना चाहती थी। लेकिन पिता के लाख समझाने पर राजी हो जाती है। 

महेश बाबू कहते हैं बेटा तुम चाहो तो हर हफ्ते अपने पिता से मिलने आ सकती हो एक ही शहर में रहते हैं हम तुम चिंता मत करो अपने दोस्त के लिए मैं अच्छा सा इंतजाम कर दूंगा । बेटा मेरा स्वास्थ्य अब ठीक नहीं रहता है मेरी जिंदगी कि कोई भरोसा नहीं है मैं चाहता हूंँ ये शादी जल्दी से जल्दी हो जाये और फिर राधा का विवाह महेश जी के बेटे सुनील से बड़ी सादगी से हो जाता है। 

सुनील घर से दूर शहर में नौकरी करता राधा के ससुराल में सास-ससुर जेठ जेठानी दो शादी शुदा ननद जो उसी शहर में विवाह किया कभी कभार आ जाती भरा-पूरा परिवार मगर राधा को घर का माहौल बड़ा ही अजीब सा लगता। सभी अपने में ही मस्त शुरू से ही सारे घर के खाने पीने की जिम्मेदारी राधा के उपर डाल दी जाती है। सुनील शादी के बाद हफ्ते भर ही रहे फिर दूसरे शहर अपनी नौकरी पर चले जाते हैं। आज पूरा एक महीना हो गया न कोई फोन न कोई चिट्ठी पत्री न समाचार अनेक बार सासूमां से पूछा भी हर बार एक ही जवाब मिलता अरे आ जायेगा ठीक ही होगा बात को टाल देती कहती तू घर के कामों में ध्यान लगा फालतू की चिंता मत कर। 

राधा का ससुराल हवेली नुमा था नौकर चाकर भी बहुत मगर सब बाहर के कामों में लगाये रहते सासूमां शक्की मिजाज महिला नौकरों को अन्दर के काम अपनी निगरानी में ही करवातीं ससूर जी के कमरे के बाहर जेठानी सास ननद कोई न कोई मंडराता रहता।उनका स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन खराब रहने लगा। वो हृदय रोगी थे उनको पहले दो बार हार्ट अटैक पड़ चुका था । एक दिन पति सुनील आये और सीधे अपनी माँ के कमरे में चले गए आपसी वार्तालाप से पता चल रहा था वो काफी गुस्से में थे । दोनों ननद भी सुबह से आई हुई शायद उनको भाई के आने की पूर्व खबर रही होगी कुछ घंटे बाद सुनील जैसे आये वैसे ही वापस चले गए। राधा पीछे पीछे दौड़ी वो पुकारती रह गई मगर सुनील ने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

  उसका मन सोचता रह गया “आखिर बात क्या है “! दूसरे दिन वो ससूर जी कमरे में कुछ आहट होती दिखी वो जानने की कोशिश करने वहां जाती है । वो सोचती है ये क्या..?

 वैसे तो आज मौसम सुहाना सुबह से ही ठन्डा महसूस हो रहा।

मगर महेश बाबू ससुर जी के माथे पर पसीने की बूंदें टपक रही थी। उनको आज का एक एक मिनट सदी सा लग रहा था। 

गहरी सांस लेकर खुद को संभालते हुए राधा को देख चुपके से आवाज लगा पास बुलाया सर पर हाथ फिराया फिर बोले-देख बेटी मेरी बात ध्यान से सुन पता नहीं फिर मौका मिले न मिले.. अपने अधिकार के लिए डटी रहना अपना अधिकार किसी भी हालत में बिल्कुल मत छोड़ना जब तक मैं हूँ न, तब तक तो तुझे चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। अगर कल मैं नहीं रहता हूँ तब तुझे सम्भल कर रहना होगा हर कदम हर फैसले पर दस बार सोचना होगा। मैंने सारा इंतजाम कर दिया है मैं तुम्हारे साथ कभी अन्याय नहीं होने दुंगा मैं तुमको पसंद कर इस घर में लाया । कभी कभी लगता है अन्याय तो नहीं कर दिया तुम्हारे साथ । राधा उस समय तो ससूर जी की बात ठीक से समझ नहीं पाती आखिर वो कहना क्या चाहते हैं…?

बीते रात महेश बाबू की तबीयत बिगड़ जाती है उनको अस्पताल ले जाते रास्ते में ही वो दम तोड़ देते हैं। हवेली में सन्नाटा छा जाता है महेश बाबू के अन्तिम संस्कार की तैयारी सुनील आया मगर  साथ में विदेशी लिबास में एक लड़की भी साथ थी जिसको देखकर कहा ही नहीं जा सकता किसी की गमी में आई है। अन्त्येष्टि के बाद घर में मेहमानों के भरे रहने के कारण उसके बारे में पूछने का मौका ही नहीं मिल रहा राधा को, तेरहवीं की रस्म निपटते ही रात राधा को कुछ महसूस होता है आवाजें सुनाई देती है। वो देखती है आलीशान बड़ा कमरा जहां अक्सर सभी बैठ चर्चा करते कुछ फुसफुसाहट हो रही छुपकर देखती है परिवार के सभी सदस्य उपस्थित आपस में बतिया रहे । 

तभी सुनील के चिल्लाने जैसी आवाज पिता जी को मेरी राधा से शादी नहीं करनी चाहिए थी मैंने कितना मना किया मगर उन्होंने सम्पत्ति से बेदखली की बात कह दी वरना मैं कभी शादी नहीं करता । सब सुनकर राधा को आज उसकी सारी सच्चाई स्पष्ट हो जाती है वो जो इतने समय से सुनील के व्यवहार को समझने की कोशिश कर रही थी.. आखिर सुनील इस रिश्ते को बोझ क्यों समझ रहा है..? कौन सी कमी रखी उसने वो प्रेम समर्पण त्याग करती आगे बढती रही परन्तु कब तक..तो सुनील ने इस लड़की से विवाह कर लिया है। मतलब सम्पत्ति के लिए मुझसे शादी की राधा का दिल और विश्वास टूट जाता है। सुनील बराबर कहता है ‘माँ, राधा चाहे तो हवेली में रह सकती है आप लोगों के साथ या जहां चाहे चली जाये,लेकिन मेरे साथ मेरी यही पत्नी रहेगी।

तभी महेश बाबू के पारिवारिक वकील साहब आते हैं और वसीयत की सूचना देते हैं। जिसमें सम्पत्ति का आधे से ज्यादा हिस्सा बहु राधा के नाम और आधा हिस्सा पत्नी के नाम किया गया होता है जिसमें स्पष्ट लिखा गया पत्नी अपने आधे हिस्से में से सम्पत्ति जिसे चाहे दे सकती है लेकिन राधा का हिस्सा उसके पति सुनील को तभी मिलेगा जब वो उसे पत्नी के सभी अधिकार देगा । राधा को आज अपने ससुर जी की बातें अच्छी तरह समझ आने लगती है आखिर वो उस दिन क्या कहना चाह रहे थे..? वकील साहब राधा को कोर्ट में मिलने का कह चले जाते हैं। राधा का मन प्रतिघात से व्यथित कह उठता है।

“ शरीर की चोट सहन हो जाती है लेकिन हृदय पर लगी चोट सहना मुश्किल होता है। आत्मविश्वास को कोई कुचले सहन हो जायेगा पर आत्म सम्मान और चरित्र पर उंगली उठाना सहन नहीं होता है” ।

राधा का मन टूट जाता है वो सब जानकर नफरत में परिवर्तित होने लगता है। वो सोचती है इस रिश्ते को जीवन भर ढोकर फायदा ही क्या है एक बोझ की तरह ही रहेगा ये…? सुनील किसी जंजीर की मजबूती उसकी सबसे कमजोर कड़ी के बराबर ही है।  ये रिश्ते भी एक तरफ की जंजीर की तरह ही होते हैं जिसमें दो लोग जुड़े होते हैं। सुनील का दूसरा विवाह रिश्ते को कमजोर बना रहा है। उसे हटाना जरूरी है।

जब रिश्ते में झूठ अपना घर बना ले रिश्ते में विश्वास ही न बचे जहां खुद की कद्र ही कम हो जाये एक दूसरे से ज्यादा तीसरे को महत्व मिलने लगे तो रिश्ते पर विराम लगा देना ही सही है।

 मै एक स्त्री हूँ तो क्या हुआ..?  मैं कमजोर नहीं हूँ.. शक्ति स्वरूपा हूँ.. मुझे सुनील को जवाब देना होगा । 

“ मुझे आता है अपना अधिकार लेना “ वो अपने ससुर जी की तस्वीर को प्रणाम कर कहती हैं । 

और राधा वकील साहब से मिलकर तलाक के कागज तैयार करवा कोर्ट में पहुँच जाती है।

   अंत में सुनील की लाख कोशिशों के बाद भी उसे कुछ हांसिल नहीं होता राधा से माफी मांगने में भलाई समझता है मगर राधा को यह रिश्ता सामर्थ्य से ज्यादा बोझ लगने लगता है…फिर राधा स्वप्न से यथार्थ के धरातल पर आकर कोर्ट  से पिता के घर वापस आ जाती है आज से वो प्रण करती है खुद को मजबूत काबिल बनाने का प्रयास करेगी उसका दिल कहता किसी को जैसे तैसा क्या स्वीकार करना बेहतर है उसे जैसा तैसा छोड़ देना ।

   लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया

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