मेरी दोनों बहु आपस में बहन जैसे रहती हैं : Moral Stories in Hindi

बनारस शहर’ की एक छोटी सी गली में ‘घनश्याम श्रीवास्तव’ जी का एक परिवार रहता था| उनकी (पत्नी) शकुंतला जी बनारस के इंटर कॉलेज में टीचर का काम करती थी|उनके दो बेटे रवि और राजू थे | रवि (बड़ा बेटा) और राजू (छोटा बेटा) था, दोनों की शादी हो चुकी थी ,रवि के पत्नी का नाम ‘रागिनी ‘और राजू के पत्नी का नाम ‘सुमन’ था | रवि और राजू की आपस में बिल्कुल भी नहीं बनती थी, ‘घनश्याम जी’ ने अपने दोनों बेटों के नाम कपड़े की एक दुकान खोली थी, जिसे वह दोनों बेटे ही चलाते थें ।

लेकिन, दोनों की सोच अलग होने के कारण दोनों में बहस हो जाया करती थी ,जिसके वजह से परेशान होकर ‘घनश्याम जी’ ने दोनों की अलग-अलग समय पर दुकान में ड्यूटी लगा दी , एक दुकान पर रहता तो दूसरे का घर पर आराम का समय होता था |

  वहीं दूसरी तरफ ‘रागिनी और सुमन ‘में बहुत बनती थी| सासू मां को स्कूल भेजने के बाद , दोनों आपस में मिलजुल कर घर का सारा काम कर लिया करती थीं| रागिनी और सुमन दोनों को एक दूसरे से कोई शिकायत नहीं थी,दोनों एक दूसरे से सुख-दु:ख भी बांट लिया करती थीं|’शकुंतला’ जी की दोनों बहुएं संस्कारी और सुलझी हुई थीं , वे दोनों ऐसे रहती थी जैसे कि ” दो सगी बहनें”|

एक दिन शाम के समय घनश्याम जी और शकुंतला जी एक पास बैठकर चाय पी रहे थे। शकुंतला जी के मन में अपने दोनों बेटों के ‘व्यवहार ‘को लेकर चिंता थी, वे अपने पति (घनश्याम जी) से कह रही थी, कि हमारी’ बहुएं’ कितनी अच्छी है वह आपस में मिलजुल कर रहती हैं “जैसे कि दो सगी बहने” घर के काम में भी कभी कोई भेद-भाव नहीं करतीं ,कितना अच्छा होता जो हमारे बेटे भी ऐसे ही मिलजुल कर काम करते तो व्यापार और आगे बढ़ जाता, हमारे जाने के बाद भी घर में खुशियां रहती और पैसों की भी कमी नहीं रहती, उन दोनों की बातें दोनों बहुओं ने सुन ली ,उन दोनों ने अपने ससुर घनश्याम जी से बात करने का फैसला किया ,वह चाहती थी कि जब वह अपने ससुर से बात करें तो सारा परिवार साथ में हो । 

     मंगलवार का दिन था, उस दिन दुकान की छुट्टी थी, दोनों बहुओं ने शकुंतला जी से छुट्टी लेने को बोल रखा था, सारा परिवार मंगलवार को ही साथ हो सकता था। शकुंतला, जी अपने दोनों बहुओं के व्यवहार के वजह से उन्हें बहुत मानती थीं, इसलिए वह छुट्टी के लिए मान गईं, सुबह के समय डाइनिंग टेबल पर बैठकर सब एक साथ नाश्ता कर रहे थे, तभी ‘रागिनी ‘ ने कहा पापा जी मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं, ‘घनश्याम जी ने बोला’, “कहो बेटा”, तो उसने बोला ,”कि अगर आपको कोई ऐतराज ना हो तो मैं और सुमन दोनों दुकान पर बैठा करें दुकान के अंदर का काम हम दोनों देख लिया करेंगे”

,दुकान के बाहर जैसे कोरियर ले जाना, ले आना दुकान का माल ले आना यह सारा काम हमारे पति लोग संभाल लिया करेंगे , दुकान के अंदर कपड़े बेचने का काम और खाता संभालने का काम मैं और सुमन मिलकर कर लेंगे| इससे इन दोनों भाईयों के बीच बहस भी नहीं होगी और दुकान भी अच्छे से चलेगा । हम लोगों को अलग से कोई आदमी भी नहीं रखना पड़ेगा, रागिनी की यह बात सुनकर अभी ‘रवि’ कुछ बोलता कि घनश्याम जी ने तुरंत हां बोल दिया उन्हें लगा कि उनके ‘जख्मों’ पर किसी ने ‘मरहम’ लगा दिया हो उसके बाद उन्होंने कहा लेकिन घर का काम ! तो दोनों बहुओं ने तपाक से एक साथ ही बोल दिया आप घर के काम की चिंता मत कीजिए वह हम दोनों पूरा करके जाएंगे|

    दूसरे ही दिन से दोनों बहुएं दुकान पर जाने लगीं, सब मिलजुल कर काम करने लगें ,धीरे-धीरे एक महीने हो गए दुकान की तरक्की होने लगी ,दुकान के तरक्की को देखकर दोनों भाइयों के आंख की पट्टी खुल गई ,उन्हें भी यह एहसास होने लगा कि अगर हम सब मिलजुल कर काम करेंगे तो कठिन से कठिन काम भी आसान हो जाएगा। दोनों भाई भी मिलजुल कर रहने लगें,

सब मिलकर घर का काम भी करते और बाहर दुकान में भी खूब मेहनत करते ,देखते ही देखते एक साल बीत गया ,उनकी दुकान उस शहर की ‘नंबर वन ‘दुकान हो गई , अलग-अलग शहरों में भी कई शाखाएं खुल गईं ,घनश्याम जी और शकुंतला जी ऐसे बदलाव को देखकर बहुत खुश हुए और घनश्याम जी अपनी पत्नी शकुंतला जी से कहने लगीं कि हमारी दोनों बहुओं की सूझ-बूझ से बेटों को समझाना भी नहीं पड़ा और वह समझ भी गए।

शकुंतला जी बैठे-बैठे यह सोचने लगीं कि “हमारी दोनों बहुएं एक साथ ऐसे रहती हैं जैसे कि दो सगी बहनें “अगर हर घर की औरतें ऐसी ही सोच रक्खें तो हर घर स्वर्ग बन जाएगा |

प्रीति श्रीवास्तवा

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