मेरा फैसला – गौतम जैन

  आज खुद को बहुत तन्हा महसूस कर रही हूं मैं …. बहुत बेबस और लाचार भी ….. । पहली बार तब टूटी थी जब तुम मुझे अकेले छोड़ सारी जिम्मेदारी मुझ पर डाल कर हमेशा-हमेशा के लिए चले गए थे । एक विधवा का जीवन क्या होता है तुम क्या जानों । कैसे एक एक पल तुम्हारे बगैर मर मर कर जिया है बयां नहीं सकती ।

          मगर धीरे धीरे मां बाबूजी के प्यार और सहयोग से अपने आप को संभाला और उठ खड़ी हुई । तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारी कमी हमेशा रही । तुम्हारी कमी हमेशा नासुर की तरह कलेजे को चीर कर जुदाई की आग में जलाती रही और तुम्हारी यादों को दिल में सजाए पूरी जिम्मेदारी से अपने दायित्वों को निभाने में जुट गई ।

           मां बाबूजी मासुम गुड़िया और तुम्हारा बिजनेस बिल्कुल उसी तरह संभाला जैसे तुम संभाला करते थे । तुम्हारी कमी पूरी तो नहीं कर सकती थी मगर पूरी कोशिश की मां बाबूजी को तुम्हारी कमी महसूस न हो । मैं बहू से बेटी और बेटी से कब बेटा बन गई मुझे खुद पता ही नहीं चला ।



         मां बाबूजी ने भी सगी बेटी से ज्यादा मुझे चाहा । मगर उनकी यह चाहत ऐसा मोड़ ले लेगी ख्वाब में भी नहीं सोचा था । और ऐसा सोच भी कैसे सकती थी कि मुझे अपने ही परिवार से जुदा होना पड़ेगा ।

     पता नहीं अचानक उन्हें क्यों महसूस हुआ । किस तरह यह सोच उन पर हावी होने लगी की मुझे दुसरी शादी कर लेनी चाहिए । मेरे साफ मना करने के बाद भी मुझे इमोशनल ब्लेक मेल करने की कोशिश कर रहे हैं ।

” बेटा हमारी जिंदगी अब थोड़ी ही बची है हमें कुछ हो जाए उसके पहले तू अपना घर फिर से बसा ले ” गुड़िया को भी बाप का प्यार मिल जाएगा और तुझे भी सहारा । सोच कर जवाब दे हमने तेरी भलाई के लिए ही ये फैसला किया है । हमारी खुशी की खातिर तुम्हें शादी करनी ही पड़ेगी ।”



        अब तुम ही बताओ …. क्या मैं इतनी खुदगर्ज हो जाऊं और उन्हें इस उम्र में अकेले छोड़ कर अपना घर बसा लूं और तुम्हारी यादों से भी दूर हो जाऊं ?

         और मैंने काफी सोच समझ कर फ़ैसला कर  लिया है …… ऐसा हरगिज नहीं होगा । वे चाहे मुझ पर कितना ही दबाव क्यों न बढ़ाए मैं ये शादी किसी भी कीमत पर नहीं करुंगी । क्योंकि अब मैं किसी अबला नारी की तरह कमजोर नहीं हूं । और तुम भी तो मेरी यादों में हर पल मेरे साथ हो । तो बस यही मेरा अंतिम निर्णय है और कोई भी मुझे इस निर्णय से डिगा नहीं सकता । मां और बाबूजी भी नहीं ।

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