मायका.. –  वीणा सिंह

अदिति मेरी बचपन की दोस्त भी पटना आई है एयर पोर्ट आए भाई ने जब ये बात बताई तो मैं खुशी से चहक उठी…

           अदिति से मिलने की बात सोचकर हीं मन मयूर नाच उठे.. अपने पापा की पहली पुण्य तिथि पर आई थी…

             मैं भी चली गई संजय चाचा जी की पुण्यतिथि के कार्यक्रम में शामिल होने..

                सबसे मिलने के बाद अदिति को खोजती मेरी निगाहें मनोरमा चाची ने भांप ली… उन्होंने कहा अदिति अपने पापा की तस्वीर के पास खड़ी थी कुछ देर पहले और थोड़ी देर अकेले रहने के लिए कहा है.. तू जा देख अभी शायद वहीं होगी…

               संजय चाचाजी के फोटो की तरफ मुंह किए खड़ी अदिति के पीठ पर हौले से हाथ रखा तो चौंक कर पीछे मुड़ी.. मुझे देखते हीं लिपट कर बिलख पड़ी.. मुझे लगा अपने पापा के लिए इतनी दुखी है.. मैने दिलासा देते हुए कुछ कहना चाहा पर अदिति की आंखों में छुपे हुए कुछ अनकहा दर्द देखकर मैं चुप हो गई…

                 अदिति मेरे साथ छत पर चली गई.. जाड़े की गुनगुनी धूप और बचपन की सहेली का सानिध्य बहुत सुहाना लग रहा था..

         अदिति ने कहना शुरू किया चारू तुम्हे याद है जब तुमलोग स्कूल से आकर खेलती थी तब मैं घर के काम निबटाती थी.. क्योंकि मेरी मां एक ऑफिस में क्लर्क थी और पापा एसबीआई में मैनेजर… दोनो भाई राजकुमार की तरह घर में रहते थे और लड़की होने के कारण घर के काम मेरे हिस्से में आते.. मम्मी के आने के पहले सारे काम करना था वरना मम्मी चिल्लाती बाहर से मर खप के आओ फिर घर में भी.. इतनी बड़ी लड़की अपने खाने पीने के अलावा कोई चिंता नहीं…

        मेरा बचपन कब गुजर गया पता हीं नहीं चला.. अपनी हमउम्र सहेलियों को देखती कैसे उनकी मां उनका ख्याल रखती हैं… तेरे बालों में तेल लगाती तुम्हारी मम्मी को देख कर मेरी आंखें डबडबा जाती काश…

   और यूं हीं वक्त गुजरता गया.. 

                         अपने हीं घर में अपने सगे मां बाप के साथ मुझे कैसी जिंदगी मिली थी.. मां बाप के प्यार से महरूम न जाने किस गुनाह की सजा मुझे मिली थी… पड़ोस की दादी कहती जो मायके में राज करता है उसे ससुराल अच्छा नहीं मिलता, तुझे ससुराल इतना अच्छा मिलेगा की तुम अपनी सारी तकलीफें भूल जाओगी बिटिया…

         ये उम्मीद की किरण मेरे जीने की वजह थी… शायद मेरे भी दिन फिरे..

                 बीए का इम्तिहान देने के बाद मेरी शादी तय होने की बात मम्मी ने बताई…

                 मैं ससुराल आ गई आंखों में सुनहरे ख्वाब लिए…

             पति मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव थे … बेहद रूखे स्वभाव के… अपनी जरूरत पूरी करने के लिए सिर्फ मुझे याद करते…

               मैं शुभी और शुभम दो बच्चों की मां बन गई..

          आसूं सुख गए थे.. जख्म नासूर बन चुका था..




पति की नौकरी छूट गई थी.. बेटी आठवीं कक्षा में थी और बेटा पांचवीं में…

          धीरे धीरे पैसे खत्म होने लगे…

       पति को जब भी काम ढूढने को कहती तो बुरा भला कहता.. मेरी किस्मत को दोष देता..

    बीए की डिग्री पर मुझे कोई ढंग की नौकरी भी नही मिलने वाली थी.. थक हार कर मायके गई.. मुसीबत के वक्त औरत को सबसे पहली उम्मीद शायद यहीं से होती है…

          मदद के नाम पर मायके से एक साड़ी और पांच सौ रुपए मिले… मम्मी पापा ने अपनी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की बात कही… जब की घर की संपन्नता और रहन सहन देख साफ पता चल रहा था कितना झूठ बोल रहे हैं.. मम्मी ने जाते जाते कहा बेटी अपनी किस्मत से सुख और दुख करती है .. जो तुम्हारे किस्मत में होगा वही तुमको मिलेगा हमलोग कुछ नही कर सकते..

                और उसी समय से मैं बिग बाजार में काम कर रही हूं.. समय निकाल कर एक बुटीक का ब्लाउज सिलती हूं साड़ी में फॉल पिको करती हूं… गृहस्थी की गाड़ी खींच रही हूं… बच्चे पढ़ने में अच्छे हैं.. मेरी तकलीफ समझते हैं… पर कभी कभी दोस्तों के ड्रेस महंगे फोन और रेस्टोरेंट में पैसे खर्च करते देख विचलित हो जाते हैं… और मैं बच्चों को समझाते समझाते रो पड़ती हूं तो कभी अपराध बोध से भर उठती हूं..

           जानती हो चारू कितनी बार आत्महत्या का ख्याल आया पर बच्चों का मुंह देखकर… निकम्मा पति को भी पाल रही हूं.. तुम वजह पूछोगी.. जवान होती बेटी और बाहर काम करने वाली निम्न मध्यम वर्ग की औरत के लिए एक मर्द जो उसका पति है भले हीं वो किसी काम का ना हो, पर इस पति और पिता का नाम के प्राणी का होना जरूरी है…

            कितना दर्द अपने अंदर छुपाए जी रही है अदिति.. पिता की तस्वीर के सामने खड़ी अदिति अपना गुनाह पूछ रही थी… मैं आहत थी आश्चर्य चकित थी.. क्या माता पिता ऐसे भी होते हैं.. बेटी को भी नौ महीने गर्भ में रखकर उसी पीड़ा से मां जन्म देती है जिस पीड़ा से बेटे को.. फिर ऐसा अन्याय क्यों.. और बेटियां तो पिता के दिल के बेहद करीब होती है… अदिति की बातें मेरे कानों में गूंज रही थी कितना दुखी होकर अपने दिवंगत जनक की तस्वीर के सामने कहा होगा आपको नरक में भी जगह नहीं मिलेगी जैसा गुनाह आपने मेरे साथ किया है…

                मैं मायके से लौटते समय भाइयों और मां से छुपाकर बाबूजी के फोटो को प्रणाम कर आसूं पोंछ लेती हूं… कहीं वो दुःखी ना हो जाएं.. मायके प्रवास के दौरान हर पल खुश रखने की कोशिश करते मेरे अनुज और छोटी बहन समान भाभियां… मां के गोद में कुछ पल सर रखकर भूल जाती हूं दो टीनएजर बच्चों की मां हूं.. मां की गोद होती हीं ऐसी है.. ये छोटे भाई कब बड़े होकर पिता की परछाई बन जाते हैं पता हीं नहीं चलता… अपनी हर प्रार्थना पूजा में भगवान से मायके की खुशहाली भाइयों के दीर्घायु होने की कामना करती मैं सिहर उठी जब अदिति ने आसूं भरी आंखों से कहा ये लोग कभी खुश नहीं रहेंगे मेरे आसूं मेरा हाय इन्हे जरूर लगेगा…

  वीणा सिंह

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