Short Stories In Hindi

अच्छाई बाकी है – डॉ. पारुल अग्रवाल

रमाकांत जी उम्र के साठ साल पार करने के बाद भी काफ़ी ज़िंदादिल और सकारात्मक इंसान थे। कुछ दिनों से वो जब अपनी सैर से लौट रहे होते तो एक बारह-तेरह साल के लड़के को पार्क के कोने में जूतें-चप्पल की मरम्मत वाले बक्से और  कुछ पढ़ने की किताबें लिए बैठे हुए देखते। एक दिन रमाकांत जी को चलते-चलते जूते में थोड़ी दिक्कत अनुभव हुई। तब वो उसी लड़के के पास अपना जूता बनवाने के लिए रुक गए। बातों-बातों में रमाकांत जी को पता चला कि उसका नाम अतुल है और वो सरकारी स्कूल में आठवीं कक्षा का छात्र है, अभी कुछ दिन पहले एक दुर्घटना में उसने अपने पिताजी को खो दिया। अब घर में बीमार मां और बड़ा भाई है। बड़ा भाई कहीं ड्राइवर का काम करता है पर उसका सारा पैसा मां के इलाज़ में चला जाता है।

घर में थोड़ी मदद करने के उद्देश्य से उसने सुबह और शाम स्कूल के साथ ये काम शुरू किया है।रमाकांत जी उसकी खुद्दारी से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने अतुल को कहा कि तुम मेरे घर के गमलों में पानी और रोज़ाना गाड़ी की सफ़ाई का काम संभाल लो। मैं तुम्हें उसका पारिश्रमिक दे दिया करूंगा और साथ में पढ़ा भी दिया करूंगा।

रमाकांत जी ने उसको अपना पता देकर कल से काम पर आने को बोल दिया। रमाकांत जी की अतुल की इस तरह मदद करना उनके दोस्तों और घरवालों को बिल्कुल ना भाया। उन्होंने कहा कि ऐसे ही किसी पर इतनी जल्दी भरोसा नहीं करना चाहिए। ये कब गिरगिट की तरह रंग बदल जाएं कह नहीं सकते। रमाकांत जी ने उनकी बातों को हंसी में टाल दिया। अब अतुल प्रतिदिन रमाकांत जी के घर जाता और अपने काम को बखूबी करता।

एक दिन जब वो रमाकांत जी के घर पहुंचा तो देखा कि वो सीने में दर्द से कराह रहे हैं। उनके घर के बाकी सदस्य शादी में गए हुए हैं। उनकी ऐसी हालत देखकर उसने तुरंत अपने ड्राइवर भाई को फोन करके बुलाया और हॉस्पिटल में एडमिट कराया। समय से उपचार मिलने पर रमाकांत जी की जान बच गई। जब घर के सदस्य और रमाकांत जी के बाकी दोस्तों को पता चला तो वो भी अतुल की तारीफ़ किए बिना नहीं रह सके। रमाकांत जी ने सिर्फ इतना कहा कि दुनिया में अभी भी अच्छाई बाकी है जरूरी नहीं कि सभी लोग गिरगिट की तरह अपने रंग बदल कर दिखाएं।

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

#गिरगिट की तरह रंग बदलना – के कामेश्वरी

शिप्रा शादी के दो महीने भी नहीं हुआ था मायके आ गई थी । माता-पिता को डर लगने लगा था कि लोग क्या कहेंगे । माँ ने कहा कि रुक भाई तुझे छोड़कर आ जाएगा । पिता ने कहा कि नहीं मैं चला जाता हूँ ।माँ ने कहा मैं उसे समझा देती हूँ ।

शिप्रा— किसे समझाने वाली हैं और क्या समझाने वाली हैं ।

माँ— बेटा बहुत पैसा खर्च करके शादी किया है एक बार सोच लेना।

पिता- इतना अच्छा बच्चा है बड़ों की इज़्ज़त करता है।मुझे और तेरी माँ को इतना सम्मान देता है और क्या चाहिए ? मेरे ख़याल से तुझे ही ठीक से रहना नहीं आता है ।

पापा वह गिरगिट की तरह रंग बदलता है । आप लोगों को नहीं मालूम है वह कैसा आदमी है । पिता ग़ुस्से से दो महीने नहीं हुए शादी को और तुम बताओगी कौन कैसा है?

शिप्रा को लग रहा था कि यह मेरे ही माता-पिता हैं क्या?

उसने अपनी माँ को अंदर ले जाकर बताया था कि वह पहले से ही शादीशुदा है। उसने अपने माता-पिता की देखभाल के लिए मुझसे शादी की है । पहली पत्नी ने सास ससुर की देखभाल करने से इनकार कर दिया था । वैसे भी वह नौकरी करती है । मैं चाहे तो मर जाऊँगी पर उस गिरगिट के पास दूसरी पत्नी नहीं जाऊँगी ।

माँ ने पिता को उसके हालात बताए तब जाकर उन्होंने कहा कि पंचायत बिठाकर पूरी बिरादरी में उनकी थू थू कराऊँगा ।

तुम घर में बिना डरे रहो माँ को भी बताया कि उसे कुछ नहीं कहना कुछ कर लिया तो लड़की से हाथ धो बैठेंगे ।

#गिरगिट की तरह रंग बदलना 

स्वरचित

के कामेश्वरी

गिरगिट की तरह रंग बदलना – मनीषा देवनाथ 

“मालिक ने हमारे लिए बहुत किया, मुस्किल घड़ी में हमारे साथ खड़े थे…”

“हां और मेरे मां के ऑपरेशन के टाइम लोन भी नहीं मिलता ना कोई पैसे दे रहा था पर मालिक से बात की उन्होंने तुरंत मेरी मां के इलाज के लिए मुझे पैसे हाथ में दिए और सर पर हाथ फेरा…”

इतिहास में आज पहली बार ऐसा हुआ की कंपनी घाटे में जा रही थी। “कृताग्नगी प्राइवेट लिमिटेड” के मालिक कमल किशोर जी आज अपाहिंज महसूस कर रहे थे। और उन्होंने अपने कंपनी में काम करते हुए सारे एम्प्लॉय से कंपनी की सच्चाई बताई और खुद हाथ जोड़ कर माफ़ी मांग कर कहा, की इस महीने का और अगले कुछ महीने का पगार वो नहीं चुका पायेंगे लेकिन जैसे ही स्थिति सुधरेगी, वे पगार भी एक साथ चुका देंगे! वे सबका साथ चाहते थे। ऐसे में वहां काम करते लोग आपस में बात करने लगे… की कौन जायेगा और कौन रहेगा।

“सच कहा… और मेरे घर में तो मेरे अकेली के कमाई में चार लोग खाने वाले है!! मैं अभी यहां रही तो अपने घर वालों को कैसे खिलाऊंगी” तृषा अपनी दोस्त महिमा से कहती है।

“हां यार और मेरी भी अगर पगार नहीं हुई तो मेरे आईफोन का लोन भी कई कैसे चुका पाऊंगी!” शालिनी बोली।

“आखिर गिरगिट की तरह अपना रंग बदल ही लिया ना! क्यों महिमा याद नहीं मालिक ने तुझे तेरे अत्याचारी ससुराल वालों से कैसे बचाया था भूल मत अगर वो नहीं होते तो तुम यहां नहीं होती और शालिनी तुम्हें अपने आईफोन की पड़ी है, याद कर वो दिन जब तुम्हारे घर पर छत भी नहीं थी तो मालिक ने तुम्हें छत दी आज उनके बुरे समय में तुमलोग उन्हें छोड़ना चाहते हो… मालिक हमारे पिता समान है और हम सब जानते है की अभी स्थिति क्या है! माफ़ करना, एहसान फरामोश हो तुमलोग!” दोस्त कावेरी की बात सुन दोनों का सर शर्म से झुक गया था।

मनीषा देवनाथ 🖋️

(मुहावरा: गिरगिट की तरह रंग बदलना)

आपसे ये उम्मीद ना थी… – रश्मि प्रकाश

“ माँ ये मयंक चाचा जब देखो तब हमारे घर आते रहते हैं मुझे जरा भी पसंद नहीं है ।” नन्हे कुश की बात सुन नंदा आश्चर्य से उसे देखने लगी

बारह साल का लड़का ये कैसी बात कर रहा …

“ पर क्यों बेटा…आप तो जानते हो आपके पापा के जाने के बाद ये हमारी मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं… आपको और कुहू को कितना प्यार करते हैं फिर भी आप ऐसे क्यों बोल रहे हो?” नंदा ने पूछा

कुश कुछ नहीं बोला और वहाँ से भाग गया

कुछ दिनों बाद…

दस साल की कुहू ने भी नंदा से वही बात कही तो नंदा सोच में डूब गई आख़िर बच्चे मयंक जी के आने से इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहे हैं जबकि वो तो हम सब की ख़ैरियत ही पूछने आते और निशांत की डेथ के बाद  मेरी नौकरी भी लगवा दी और बच्चों के लिए भी जब तब कुछ ना कुछ लाता रहता है इतना प्यार भी करता है ।

“ क्या बात है मेरे बच्चों..,आखिर आप मयंक चाचा से इतना ग़ुस्सा क्यों होते हो आख़िर बात क्या है मुझे तो बताओ ?” नंदा ने दोनों को प्यार से अपने समीप बिठा कर पूछा

“ माँ हमारे सारे दोस्त कहते ये तुम्हारे नए पापा है क्या जो तुम्हें स्कूल भी लेने आते हैं….कितनी बार तुम्हारी मम्मी के साथ भी देखा है यहाँ तक की जो आँटियाँ इधर घर के पास रहती वो भी ऐसा ही कहती हैं ।” बच्चों के मुँह से ये सुन कर नंदा धक् सी रह गई

“मैं मयंक चाचा से बात करूँगी उन्हें आने से मना करूँगी ।” नंदा कह कर बच्चों के पास ही लेट गई

दूसरे दिन जब मयंक आया

“ मयंक अब से आप यहाँ मत आइएगा… हम अपना ध्यान खुद ही रख लेंगे..आपके आने से लोग बातें बनाते हैं और बच्चों को भी बहुत कुछ कह देते हैं जो मुझे पसंद नहीं आया ।” नंदा ने कहा

“ अरे ये कैसी बातें कर रही है नंदा जी… अब निशांत नहीं है तो मैं हूँ ना आप सब की देखभाल करने को किसी के कहने से क्या हो जाता है वैसे… क्या आपको नहीं लगता बच्चों को पापा की ज़रूरत…।” मयंक बात पूरी भी ना कर पाया था कि चटाक की आवाज़ गूंज गई

“मैं तो निशांत का अच्छा दोस्त समझ तुम्हें घर आने देती थी मुझे लगता था तुम सच्चे दिल से हमारे लिए सोचते हो पर तुम्हारी नीयत तो … आख़िर तुम भी गिरगिट की तरह रंग बदल कर दिखा ही दिए… सच कहते है लोग कभी भी किसी पर इतना भरोसा नहीं करना चाहिए कि वो आपकी मजबूरी का फ़ायदा उठा अपना असली रंग दिखा दें  चले जाओ अभी के अभी यहाँ से फिर कभी अपनी शक्ल यहाँ मत दिखाना … अकेली हूँ पर कमजोर नहीं हूँ याद रखना।” नंदा ने तमतमाते हुए कहा

मयंक अपना सा मुँह लेकर चल दिया…उसे तो लग रहा था इस तरह प्यार का दिखावा कर वो नंदा को अपना बना लेगा।

मौलिक रचना

रश्मि प्रकाश

# गिरगिट की तरह रंग बदलना ( मुहावरा)

अपनों का रंग बदलना – सुभद्रा प्रसाद

  सुजाता चुपचाप बैठी थी, पर उसका मन तेजी से अतीत की ओर भाग रहा था |

     करीब बाइस वर्ष पूर्व की बात है |वह अठारह , बहन सरिता पंद्रह और भाई  समर बारह वर्ष का था |उसके पिता एक फैक्टरी में इंजीनियर थे|अचानक एक रात एक शादी से लौटते हुए कार एक्सीडेंट में माता-पिता दोनों की एक साथ मृत्यु हो गई |तीनों भाई -बहन घर में रहने के कारण बच गये |ऐसे समय में  सुजाता ने बड़ी हिम्मत से काम लिया |एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी पकड़ ली और बच्चों को ट्यूशन भी पढाया| पापा के मिले पैसों और अपनी मेहनत की बदौलत उसने अपनी पढाई पूरी की|खुद कालेज में लेक्चरर बनी, बहन और भाई को इंजीनियरिंग पढाया , उनकी शादी की |वह उनलोगों को बहुत प्यार करती, मदद करती और उनपर बहुत खर्च भी करती| सब उससे बहुत खुश रहते|सुजाता अपनी जिम्मेदारियों के चलते शादी नहीं कर पाई | उम्र भी चालीस हो गई |

     एक साल पहले उसके कालेज में एक प्रोफेसर आये कमलनाथ |बहुत समझदार, तेज दिमाग और शांत स्वभाव के कमलनाथ  को सुजाता बहुत पसंद आई |पहले प्यार में धोखा खाकर विवाह न करने वाले कमलनाथ को सुजाता से प्यार हो गया और  उन्होंने सुजाता के सामने विवाह  का प्रस्ताव रख दिया | इसीलिए आज उसने अपने भाई-बहन को  बुलाया था |

      “क्या बात है  दीदी, आज आपने हमसब को एकसाथ क्यों बुलाया ? सरिता ने पूछा|  सुजाता ने सारी बातें बताई|

       “क्या दीदी, अब इस उम्र में व्याह करेंगी? हम हैं ना | बुढ़ापे में हम आपकी देखभाल करेंगे |” समर की पत्नी बोली |

      “हाँ, दीदी, आपकी ही बदौलत मेरे दोनों बच्चे  मंहगे स्कूल में पढ रहे हैं |” समर बोला |

       मेरे दोनों बच्चों का कैरियर भी आपको ही बनाना है|” सरिता बोलते हुए दीदी के गले लग गई _”अगर आप को बच्चे की इच्छा है तो मेरे ही एक बच्चे को गोद ले लो|”

    “अरे,किसी एक बच्चे को गोद क्या लेना? चारो बच्चों को अपना बच्चा ही समझिये |अब इस उम्र में शादी व्याह के झंझट मे मत पडिए |”समर की पत्नी बोली |

     ” ये लोग भी सिर्फ स्वार्थ के लिए ही मुझसे जुड़े हैं, मेरे सुख से इन्हें कोई मतलब नहीं |”सुजाता ने सोचा |आजतक जिन्हें अपना समझती रही ,उन्हें अपनी शादी की बात पर  गिरगिट की तरह रंग बदलते देख कर वह दंग रह गई | उसने  कमलनाथ से विवाह करने का निश्चय कर लिया|

 स्वलिखित और अप्रकाशित

सुभद्रा प्रसाद

पलामू, झारखंड |

धोखा – मुकुन्द लाल

 शाम के समय भास्कर और संजना झील के किनारे बेंच पर बैठे हुए थे। संजना का चेहरा हर्ष से दमक रहा था। वर्ष-भर इंतजार के बाद उसका सपना सच होने वाला था। उसके यार भास्कर को सर्विस मिल गई थी, किन्तु भास्कर गंभीर मालूम पड़ रहा था। उसके चेहरे पर तनाव की लकीरें उभर आई थी।

 “अब क्यों चिंतित हो?.. तुम्हारा संघर्ष तो सफल हो गया, यह अत्यंत खुशी की बातें है कि तुम्हें नौकरी भी लग गई और हमलोग दो से तीन होने वाले हैं।

” हैं!.. तुम्हारे कहने का क्या मतलब है?.. तुम प्रिगनेंट हो?”

” हांँ! “उसने संकोच के साथ शर्माते हुए कहा।

” यह क्या हो गया?.. कैसे यह आफत मेरे गले पड़ गयी?”

”  इसलिए तो कह रहे थे कि हमलोग सादगी के साथ शादी के बंधन में बंध जाएं।”

 संजना के अपने पति से तलाक हो जाने के बाद उसकी जिन्दगी चौराहे पर पहुंँच गई थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कहांँ जाएं, क्या करें।.. उसके माता-पिता की मृत्यु भी कुछ वर्ष पहले ही हो गई थी। भाइयों और भौजाइयों के तानों-उलाहनों का झेलना उसकी दिनचर्या में स्थायी रूप से शामिल हो गया था।

 कुछ इसी तरह की स्थितियां भास्कर की भी थी। उसके मांँ-बाप के देहांत के बाद वह भी बेसहारा हो गया था। उसके भौजाइयों ने उसे चेतावनी दे दी थी कि वह अपने परवरिश की व्यवस्था  स्वयं करे, उनके पास कारू का खजाना नहीं है। दो-चार कड़वी बातों के साथ ही उसे दो वक्त की रोटी नसीब होती थी। वैसे वह स्नातक था और नौकरी के लिए प्रयासरत था।

 दुखदायी और अवसादग्रस्त परिस्थितियों के शिकार दोनों की मुलाकात उस दिन शहर के पार्क में हुई थी। एक- दूसरे की दुखद हालत से दोनों परिचित हुए थे। दोनों के दिलों में एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति उमड़ने लगी। अक्सर वे दोनों पार्क में मिलने लगे। उनमें नजदीकियां बढ़ने लगी थी।संजना और भास्कर पार्कों, होटलों और हरी-भरी प्राकृतिक वादियों में रंग-रेलियां मनाने लगे। ऐसी रंगीन फिजाओं में दोनों ने जिंदगी-भर साथ निभाने का वादा भी किया।

 अपने-अपने घरों को छोड़कर  दोनों ने एक डेरे में अपना बसेरा बना लिया था। संजना को तलाक में मिली मोटी रकम से सारे खर्च चल रहे थे।

 एक-दूसरे का सानिध्य पाने के लिए सामाजिक मान्यताओं को दरकिनार कर उनलोगों ने लिव इन रिलेशनशिप को अपना लिया।

                                “यह कैसे हो सकता है?.. मैं इसे रहने नहीं दूंँगा, समाप्त कर दूंँगा इस बलाय को.. और शादी-ब्याह कैसा?.. हम दोनों को जरूरत थी, जिसकी पूर्ति हमलोगों ने आपसी रजामंदी से की.. एक तरह से अघोषित समझौता था।”

 संजना विस्फारित नेत्रों से उसके चेहरे को मौन होकर देखने लगी थी।

 कुछ क्षण के बाद उसने पुनः कहा,” आजकल के युग में ऐसा चल रहा है संजना, तुमको चिंता करने या तनाव लेने की जरुरत नहीं है। तुम भी स्वतंत्र हो, मैं भी स्वतंत्र हूंँ। तुम्हारा रास्ता अलग है, हमारा अलग।

 संजना के चेहरे पर अनिश्चितता की लकीरें साफ दिखलाई पड़ रही थी।

 पावर में आते ही भास्कर के बोल बदल गये थे। वह अपने असली रूप में आ गया था। गिरगिट की तरह उसका रंग बदल गया था।

  स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित

               मुकुन्द लाल

             हजारीबाग(झारखंड)

                16-05-2023

             लघुकथा प्रतियोगिता

#गिरगिट की तरह रंग बदलना – पूनम अरोड़ा

तान्या को बहुत  दिनों  से शिवि के लिए विश्वसनीय केयर टेकर की तलाश थी।आखिरकार किसी परिचित  द्वारा माला का नाम सुझाया गया ।तान्या  उससे मिली ,गौर वर्ण,साफ सुथरे सलीके दार फैशनेबल कपडे,भाषा ,व्यवहार में शालीनता । तान्या को तो मुँह माँगी  मुराद मिल गई  ।कुछ दिन उसके साथ रह उसे सब काम काज और बेबी की दिनचर्या  समझा कर काम पर जाने लगी ।इस बीच बेबी भी माला से घुल मिल गई थी । उसे रखा तो सिर्फ  बेबी के लिए था लेकिन वह तो कभी तान्या  के सिर और पैर की मालिश ,कभी उसके लिए चाय बना देना ,कभी कपडे सुखा देना आदि छोटे छोटे काम अपनी मर्जी से भी कर देती।तान्या बहुत  खुश  थी उससे ।वह भी उसे कभी अपनी साडियाँ ,कभी शाल ,कभी खाने का सामान देती  रहती।अब उसने ऑफिस जाना शुरू कर दिया था लेकिन उसने नोटिस किया कि उसके  ऑफिस से आते ही बेबी उससे चिपक जाती और सुबकती ।तब माला कहती दिन भर मुझे नहीं  छोड़ती और अब माँ  के आते ही कैसे पराया कर दिया मुझे । जब  चार पाँच  दिन तक बेबी का यही हाल देखा तो तान्या को कुछ शक हुआ।एक दिन  रविवार को माला की छुट्टी  वाले दिन उसने सी सी टी वी कैमरा लगवा लिया घर पर ताकि माला के कार्यकलाप देख सके ।उसका कनेक्शन  मोबाइल  के साथ भी करवा लिया ।अगले दिन  लंच के समय जब उसने गतिविधि  देखने के लिए मोबाइल  ऑन किया तो हैरान हो गई ।माला  टी वी देख रही  थी और बेबी रोए जा रही थी ।जैसे ही वो ज्यादा रोती वैसे ही वो एक धपाक जमा देती और घूर कर उसको धमकाती ।वो बेचारी मासूम डर से रोने की बजाए अंदर अंदर सुबकने लगती ।कलेजा दहल गया तान्या का।

उसी पैर  पुलिस को लेकर घर गई  और   सी सी टी वी की फुटेज दिखा कर  गिरगिट की तरह रंग बदलने वाली माला  को उनके हवाले कर दिया ।

पूनम अरोड़ा

शादी से किया इंकार। – सुषमा यादव,

डाक्टर शीना का अपने ही अस्पताल के एक डॉक्टर से  प्रगाढ़ मित्रता हो गई थी। दोनों के घर वाले भी बहुत खुश थे। ,इस रिश्ते को दोनों परिवारों ने स्वीकृति की मुहर लगा दी थी। शीना और उसका दोस्त अजय बहुत खुश थे। दोनों भविष्य के रंग बिरंगे सपने देखने लगे,अजय के प्यार को महसूस कर शीना को अपने ऊपर बहुत गर्व होता।

इसी बीच शीना ने अमेरिका फेलोशिप के लिए चयन किये जाने की खुशखबरी सबको सुनाई।इस दोहरी खुशी से सब झूम उठे।

शीना ने अजय से कहा, यदि तुम नहीं चाहते तो मैं नहीं जाऊंगी।इस पर अजय ने कहा ” नहीं, नहीं, तुम जाओ, इतना बड़ा अवसर मिला है तुमको।बस एक साल की ही तो बात है। शीना, यदि तुमको मुझ पर विश्वास नहीं है तो हम सगाई कर सकते हैं,तब तुम मुझसे बेफिक्र होकर आराम से जाओ। एक साल बाद हमारी शादी खूब धूमधाम से होगी।

अमेरिका जाने के पहले दोनों परिवारों ने बड़े ही आलीशान जगह पर उनकी सगाई कर दी।

इसके बाद शीना अमेरिका चली गई,। दोनों के बीच अक्सर प्यार भरी बातें होती। लेकिन कुछ समय से शीना देख रही थी कि अब अजय बहुत कम बातें करता है, व्यस्त रहने का बहाना बनाता है। शीना ने सोचा, कोई बात नहीं,हो सकता है वह काम के बोझ तले दबा हो।

आखिर वो दिन आ ही गया जब शीना अपने देश वापस लौट आई। दोनों परिवारों को अब शादी की बहुत जल्दी थी।

सब तैयारियां हो गई , शादी के कार्ड भी छप गये।

अचानक एक दिन अजय शीना के घर आया और बोला, सॉरी मैं ये शादी नहीं कर सकता। सब को काठ मार गया। आखिर क्यों नहीं कर सकते, क्या बात हो गई।

शीना ने रोते हुए कहा, मेरी क्या ग़लती है। मैं तो तुम्हारे कहने पर ही अमेरिका गई थी।

अजय ने बड़ी कड़वाहट से कहा, वो मैं नहीं जानता।बस मेरा फैसला अंतिम है।

शीना के पिता जी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।बेटा मेरी इज्जत तुम्हारे हाथ में है। मेरी बड़ी बदनामी होगी। लेकिन शंका के कीड़े अजय के दिमाग में कुलबुलाने लगे थे, वो टस से मस नहीं हुआ।

अचानक शीना ने आगे आकर कहा,वाह अजय वाह,आज तुम्हारा गिरगिट जैसा रंग बदलते देखकर उस बेजुबान जानवर गिरगिट को भी शर्म आ रही है। वो भी सोच रहा है कि रंग बदलने में तो इंसानों ने भी हमें पीछे छोड़ दिया है।कह कर उसके मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया।

सुषमा यादव, प्रतापगढ़ उ प्र,

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

तुमने तो रंग दिखा दिया – अर्चना कोहली “अर्चि”

“और सुना तैयारी कैसी चल रही है। अब तो हम दोस्त से समधी बनने वाले हैं”।  रामलाल को घर आया देखकर बेतकल्लुफी से उसकी पीठ पर धौल जमाते हुए सुनील ने कहा।

“फर्स्ट क्लास”तुमसे अकेले में कुछ बात करनी है”। इधर-उधर देखते हुए रामलाल ने सुनील से कहा।

पहले यह बता क्या लेगा? चाय या ठंडा। फिर बात करते हैं”।

“आज कुछ नहीं। ज़रा जल्दी में हूँ”।

“ठीक है। लॉन में चलकर बात करते हैं”।

“हाँ, अब बता क्या बात है”! लॉन में रखी कुर्सी  पर जमकर बैठने के बाद सुनील ने पूछा।

“ये लिस्ट है। लेन-देन की”। जेब से एक परचा निकालते हुए रामलाल ने कहा।

“लेन-देन। इस बारे में पहले तो कोई बात नहीं हुई थी। कहीं तू मज़ाक तो नहीं कर रहा”। हैरानी  से सुनील ने कहा।

“मैं मज़ाक नहीं कर रहा। मेरा इकलौता बेटा है। पढ़ाई पर बहुत खर्चा किया है। कोई कमी नहीं रखना चाहता। रिश्तों की कोई कमी नहीं नीरज को। वो तो तेरी बिटिया हमें पसंद आ गई। लिस्ट देख ले। मंजूर है तो ही सगाई होगी। अन्यथा नहीं”। सपाट स्वर में रामलाल ने कहा।

रामलाल। तू तो लेन-देन के सख्त खिलाफ था। भाषणों में तो दहेज के विरुद्ध बहुत नारे लगाता है। अब क्या हुआ!  रिश्ते की पहल भी तो तूने की थी न! सुनील ने गुस्से से कहा।

“वह तो सब हथकंडे हैं सत्ता पाने के। कुर्सी पाने के लिए क्या-क्या जतन करना पड़ता  है। तुझे क्या मालूम”।  रामलाल ने कुटिलता से कहा।

“वाह रामलाल। तूने तो गिरगिट की तरह अपना रंग दिखा दिया। मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं। अपने बेटे की बोली कहीं और जाकर लगाओ। तुम जा सकते हो”। 

तभी पेड़ से उतरता एक गिरगिट हरे पत्तों में कहीं विलुप्त हो गया।

अर्चना कोहली “अर्चि”

नोएडा (उत्तर प्रदेश)

स्वरचित रचना

गिरगिट – अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा “

विनीता ओैर सुजाता एक ही बिल्डिंग में आमने सामने फ्लैट में रहती थी। सुजाता एक महीने पहले ही यहां शिफट हुई थी। सुजाता को एक साड़ी के साथ मैचिंग ज्वेैलरी खरीदनी थी तो उसने विनीता को भी साथ चलने को कहा। विनीता भी खुशी खुशी राजी हो गयी। बाजार में सुजाता ने दुकान में घुसते ही दुकानदार को नमस्ते बोला और बड़े ही आदर और प्यार से बातचीत करने लगी। विनीता को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि सुजाता किस तरह एक दुकानदार से भी इतनी सभ्यता से पेश आ रही थी। दुकानदार भी एक से बढ़कर एक सुन्दर सेट निकाल निकाल कर दिखा रहा था। सुजाता को एक हार पसन्द भी आ गया और बात दाम पर आकर अटक गयी। सुजाता के काफी कहने पर दुकानदार ने दाम कम भी कर दिया लेकिन सुजाता अपने दाम पर अटकी रही जो कि असल दाम से आधा था। दुकानदार ने जब असमर्थता जाहिर की तो सुजाता अचानक अभद्रता पर उतर आयी और दुकानदान को अपमानित करते हुये दो कौड़ी की दुकान जैसे अपशब्दों का प्रयोग करते हुये दुकान से बाहर निकल गयी। विनीता और दुकानदार दोनों ही सुजाता के इस बदले हुये व्यवहार को देखकर स्तब्ध रह गये कि किस तरह सुजाता ने रंग बदलने में गिरगिट को भी पछाड़ दिया था।

मौलिक

स्वरचित

अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा “

“गिरगिट की तरह रंग बदलना” – डॉ . अनुपमा श्रीवास्तवा

“माँ ये इतना जिद कर रहे हैं तो मान जाओ ना ! तुम्हें हमारे साथ चलने में क्या दिक्कत है?”

“नहीं बेटा, मैं अब अपना यह मनहूस नसीब लेकर कहीं नहीं जाऊँगी। भगवान भरोसे अपनी बची-खुची जिन्दगी यहीं गाँव में गुजार लूँगी।”

पिछे से दामाद जी आकर बोले माँ जी आपने आज हमें पराया कर दिया है। माना कि भाई साहब व्यस्त होने के कारण विदेश से नहीं आ पाए तो क्या हुआ पिताजी के सारे क्रिया- कर्म हुए कि नहीं बोलिये। मैंने कोई अन्तर नहीं किया किसी भी तरह की जिम्मेदारी निभाने में।

“बेटा इसके लिए मैं बहुत ही आभारी हूं जो बेटे के रहते हुए भी आप दामाद होकर बेटे का फर्ज निभा रहे हैं। “

“हाँ तो माँ जी मुझे बेटा कहा है तो एक बेटे का आग्रह है कि आप हमलोग के साथ शहर चलिए।”

शीला जी की आंखों से आंसुओं की धारा बह चली दिल में एक हूक सी उठी कि बेटा रहते हुए भी पिता को मुखाग्नि नहीं देने आया। वीजा पासपोर्ट का बहाना बना बाद में आऊंगा कहकर टाल गया।और यह एक दामाद हैं जो उसकी कमी महसूस नहीं होने दिये। फिर भी सामाजिक रीति ही ऐसी है कि माँ-बाप नहीं चाहते कि बेटी दामाद के पास जाकर रहे।

         श्राद्ध कर्म के बाद सारे नाते रिश्तेदार चले गए। किसी को कोई चिंता नहीं थी कि शीला जी अकेले कैसे रहेंगी। बेटी के मनुहार के सामने उनकी एक न चली। बुझे मन से साथ जाने को तैयार हो गईं।

वह सोचने लगीं कि वाकई  बेकार लोग बेटा और बेटी में फर्क़ करते हैं। शीला जी की जिन्दगी आराम से कट रही थी। एक महीने बाद बेटा आया तो गुस्से और क्षोभ के कारण उन्होंने बात तक नहीं की। उसने लाख मिन्नतें की लेकिन वह उसके साथ जाने के लिए तैयार नहीं हुई। हार कर बेटा वापस चला गया।

कुछ दिन बाद शीला जी की तबीयत खराब हो गई। उन्हें हॉस्पीटल में भर्ती कराया गया। लगभग पंद्रह दिनों बाद वह स्वस्थ होकर घर आईं। बेटी दामाद की सेवा से वह भाव विभोर थीं। एक दिन सुबह बैठी धूप सेंक रहीं थीं तभी कुछ पेपर लेकर बेटी आई और कहा कि माँ यह हॉस्पीटल के बिल हैं इसपर दस्तखत कर दो। शीला जी ने कहा-” बिल पर दस्तखत क्यूँ करना है। ” माँ आपके दामाद जी ने कहा है तो कर दो क्या आपको भरोसा नहीं है। “

“अरे बेटा कैसी बात कर रही हो लाओ कर दूँ और उन्होंने उन पेपरों पर साइन कर दिया।”

महीने दिन बाद गांव से रिश्ते के चाचा शीला जी से मिलने आए। आव -भगत के बाद उन्होंने कहा कि-” भौजी अब तो आप कभी गांव आतीं नहीं सो मैं कुशल क्षेम पूछने चला आया।”

शीला जी ने कहा-” क्यों नहीं आऊंगी मैं अपने गाँव ?”

चाचा ने कहा-” जब इतना लगाव था तब आपको पुरखों का नामों निशान नहीं बेचना चाहिए था? “

शीला जी भौचक्का होकर कभी बेटी को देख रही थीं और कभी दामाद को।

बेटी ने तपाक से पति का पक्ष लेते हुए कहा -” ऐसे क्यों देख रही हो माँ.. पैसे पेड़ पर थोड़े न फलते हैं हॉस्पीटल के इतने सारे खर्चे थे सो इन्होंने बेच दिये गांव के घर और ज़मीन को । तुमने ही तो साइन किया था उन जमीन के  पेपरों पर!

शीला जी निःशब्द थीं बस उनकी आंखों से पश्चाताप के आंसू गिर रहे थे और दिल यही कह रहा था कि -“शायद गिरगिट भी अपना रंग इतना जल्दी नहीं बदलता होगा जितना जल्दी इस बेटी दामाद ने बदला है।”

स्वरचित एंव मौलिक

डॉ . अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर बिहार

गिरगिट की तरह रंग बदलना  – मींनाक्षी सिंह

भाभी जी ,भाईसाहब नहीं दिख रहे ?? कहीं गये हैँ क्या ?? निम्मो पड़ोसन अनीता से बोली …

फ़ोन पर से ध्यान हटाते हुए अनीता बोली ….तुझे तो पता हैँ निम्मो…बिजनेसमेन आदमी हैँ…शहर में नाम हैँ इनका …कभी कहीं जाना पड़ता हैँ काम से कभी कहीं …बड़े बड़े लोगों के साथ उठना बैठना हैँ…

तभी अनीता के पति बाइक से आयें…चिलचिलाती धूप में गले में अंगोछा डाले पसीने से तरबतर….अंदर चले गए ..अनीता अभी भी बाहर खड़ी फ़ोन पर लगी रही….

निम्मो बोली – बेचारे भाई साहब कितनी मेहनत करते हैँ अपने परिवार को पालने के लिए ….आप लोग घर में आराम से एसी में सोते हो ..जब भी जाना होता हैँ…गाड़ी से ज़ाते हो..दूसरी तरफ भाईसाहब पेट्रोल बचाने के लिये इतनी गर्मी में भी बाइक से ही ज़ाते हैँ…

तुझसे किसने कहा …पेट्रोल बचाने के लिये ज़ाते हैँ…वो तो उनकी मर्जी हैँ…सबकी किस्मत मेरे जैसी नहीं होती …तुझे देख पति के साथ उनकी दुकान पर कितना काम कराना पड़ता हैँ तुझे ..

तो क्या हुआ भाभी जी ..पति पत्नी को एक दूसरे का साथ देना है चाहिए ..इसमें क्या बुराई …आपकी तरह किटी पार्टी ,बाहर घूमने ,खाने का ना तो समय हैँ मेरे पास ..ना ही पैसे ..मुझे ख़ुशी हैँ मैं पूरे दिन अपने पति के साथ रहकर उनकी तकलीफ समझ सकती हूँ ..कितनी देर हो गयी भाई साहब को आयें ..आप अभी तक पानी भी देने नहीं गयी ..

अनीता कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी तेज आवाज से अन्दर गयी….पति अनिल जमीन पर बेहोश होकर गिर गये थे …साथ में निम्मो भी दौड़ती  हुई आयी …भाभी जी जल्दी से पानी लाईये ..डॉक्टर को फ़ोन कीजिये…भाईसाहब को लू लग गयी हैँ…निम्मो ने अनिल  के चेहरे पर पानी के छींटे मारे..होश में आते ही अनिल को उल्टियां होने लगी ..यह देख अनीता घबरा गयी ..रोने लगी …निम्मो मैं क्या करूँ…इन्हे क्या हो गया हैँ…

तुरंत अस्पताल ले गये अनिल को…डॉक्टर ने बोतल चढ़ाई …अच्छा किया ले आयें…इनके शरीर में पानी खत्म हो चुका था..थोड़ा और देर कर देते तो शायद आज ये ज़िंदा ना होते…इनकी तबियत कई दिनों से खराब हैँ ..

अनीता निम्मो का हाथ पकड़ बोली – निम्मो,,तूने आज साथ देकर इन्हे बचा लिया…मैने कभी ध्यान ही नहीं दिया कि ये इतने बिमार हैँ…य़े आते तो मैं अपनी मौज में मस्त कहीं बाहर होती …तेरी तरह अब इनका साथ दूँगी ..इनकी देखभाल करूँगी …बोलते बोलते अनीता का गला भर आया …

निम्मो ,मन ही मन सोची…ये हर बार का हैँ भाभी जी का …भाई साहब के सही होते ही गिरगिट की तरह रंग बदल लेती हैँ ..ईश्वर इन्हे सदबुद्धि दें….

मींनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

  संगत का असर –   विभा गुप्ता

     ” दीदी,आप की यह साड़ी तो बहुत सुंदर है,मैं पहन लूँ।” आरती ने अपनी जेठानी देवकी से कहा तो वह बोली ” ठीक है।पहन ले पर ज़रा ध्यान से।”

” हाँ दीदी,ज़रूर।” साड़ी हाथ में लेती हुई आरती अपने कमरे में चली गई।

      जब से आरती देवकी की देवरानी बनी थी तब से उसकी यही आदत थी।देवकी की साड़ियाँ, चूड़ियाँ यहाँ तक कि सैंडिल भी ‘दीदी,बहुत अच्छा है ‘ कहकर लेकर पहन लेती थी और वापस करते समय कहती कि आप भी मेरी ले लेना।

      एक दिन देवकी को अपनी भतीजी की रिसेप्शन में जाना था।उसने सोचा,मेरे गले का सेट तो पुराना हो चुका है।आरती के पास तो नये डिज़ाइन के हैं,उससे ले लेती हूँ।उसने आरती से कहा कि तुम्हारा ब्लू डायमंड वाला हार बहुत सुंदर है,मेरी साड़ी से मैच भी कर रहा है,ज़रा मुझे देना,कल वही पहनकर रिसेप्शन में जाऊँगी।

    सुनकर आरती तुरंत बोली,”अरे दीदी,वो तो मैंने पाॅलिश के लिये दे दिया है।आप पहले कहती तो …”

” कोई बात नहीं ” देवकी आरती की मंशा समझ नहीं पाई।इसके बाद दो-तीन बार ऐसा हुआ, देवकी कुछ भी माँगती,आरती कोई न कोई बहाना लगा देती।अब देवकी समझ गई कि आरती तो गिरगिट है,रंग बदलना उसकी फ़ितरत है।फिर उसने आरती से दूरी बना ली लेकिन आरती तो चतुर खिलाड़ी थी।उसने अपना पैंतरा बदला और देवकी के नज़दीक आने के लिये कभी उसके लिये चाय बना देती तो कभी अपनी चूड़ियाँ उसे जबरदस्ती पहना देती।धीरे-धीरे दोनों के संबंध पहले जैसे हो गये।

      अब आरती को अपनी सहेली के जन्मदिन पार्टी में जाना था।उसने देवकी से मुस्कुराते हुए कहा, ” दीदी..,पिछले महीने जो आपने पिंक कलर की शाॅल खरीदी थी ना,बहुत सुन्दर है।स्नेहा के जन्मदिन पार्टी में वही ओढ़कर जाऊँगी।मेरी साड़ी का परफ़ैक्ट मैचिंग…”

    ” कौन-सा पिंक आरती? ” देवकी ने आश्चर्य-से पूछा।

” अरेऽऽऽ दीदी, वही जो आप कश्मीर इंपोरियम से मँगवाई…।” आरती ने चहकते हुए देवकी को याद दिलाया।

  ” अच्छा वोऽऽऽऽ, वो तो आरती मैंने अपनी बहन को दे दी है।” कहकर देवकी किचन में काम करने लगी।”

” बहन को दे दी! कब? तीन दिन पहले ही तो….।” फिर आरती समझ गई।तीखे स्वर में बोली,” मैंने आपको अपनी इतनी सारी चीजें दी और आपसे एक माँगा तो आपने रंग बदल लिया।”

     देवकी हा-हा करके हँसने लगी।बोली, ” क्या करूँ आरती,ये तो संगत का असर है।पिछली बार मेरे एक हार माँगने पर तुमने गिरगिट की तरह रंग बदल लिया था, आज मैंने रंग बदल लिया।                          

                                            विभा गुप्ता

# गिरगिट की तरह रंग बदलना     स्वरचित 🖋

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