जीवन दान – Motivational Short Story In Hindi 

 आक्रोश मन का एक भाव है, कभी कभी आक्रोश की अग्नि प्रज्वलित होकर जीवन को नष्ट कर देती है । सकारात्मक सोच के साथ यह आक्रोश कभी कभी जीवन दान भी प्रदान करता है। इसी सकारात्मक सोच के साथ लिखी एक कहानी…..

             आज अंजली सुबह देर से सोकर उठी। रविवार का दिन.. आराम का दिन.. विद्यालय जाने की चिंता नहीं। चैन से बैठकर चाय पीना चाहती थी वरना रोज तो जल्दी चाय पीकर स्कूल भागना पड़ता था। जैसे ही चाय की एक चुस्की ली वैसे ही फोन की घंटी बज उठी। दिल्ली से चचेरे देवर का फोन था भावी जी!आप जल्दी से आ जाओ ताऊ जी अर्थात् (अंजली के ससुर तेजबहादुर जी) अब इस दुनियां में नहीं रहे। यह सुनकर अंजली सुन्न हो गई उसे गहरा आघात लगा।अपनी प्रधानाचार्या को फोन कर ससुरजी के निधन की बात बताई।अनुमति लेकर वह शीघ्र दी जयपुर से दिल्ली के रवाना हो गई। बस स्टेशन पर पहुंचकर शीघ्र ही उसे दिल्ली जाने वाली बस मिल गई। बस में बैठकर अतीत के पन्ने एक एक करके अंजली के स्मृति पटल पर उभरने लेंगे।

               कुछ वर्ष पूर्व अंजली फौजी राजवीर को दुल्हन बनकर आगरा से दिल्ली आई थी।ससुर तेज बहादुर जी फौज से रिटायर थे।सासु मां का देहान्त हो चुका था।राजवीर एक महीने छुट्टी लेकर आए थे। कुछ दिन शादी और मेहमानों में बीत गए। तीन सप्ताह शिमला, कुल्लू ,मनाली की बर्फीली वादियों में पंख लगाकर उड़ गए। एक दूसरे का साथ आजीवन निभाने का वायदा कर दोनों दिल्ली वापस आ गए। अगली सुबह राजवीर अपनी फौजी वर्दी पहन सीमा पर जाने को तैयार था।नव नवेली दुल्हन ने बोझिल मन से पति को विदा किया। 

                  एक महीने बाद सुबह सुबह फौज से कर्नल का फोन आया …मैं फौज से कर्नल जयप्रताप बोल रहा हूं।हमें बड़े दुःख के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि आपके पुत्र फौजी वीर राजवीर जी ने कल सीमा पर शहादत प्राप्त की है। फोन रख कर ससुर जी ने अंजली के कमरे का दरवाजा खटखटाया और बड़े ही सीधे शब्दों  में राजवीर की शहादत की खबर अंजली को दे दी।अंजली दहाड़ मारकर बेहोश हो गई।उसकी तो दुनियाँ ही उजड़ गई।शहीद का शव तिरंगे में लिपटकर आया। राजवीर के चचेरे भाई ने मुखाग्नि दी।




                 अंजली को अपना जीवन निरर्थक लगने लगा। वह सारे दिन कमरे में बंद रहकर आंसू बहाती रहती। उसे न खाने का होश था और न सोने का ही। डॉक्टर कहते अंजली को अंधेरों से दूर रखो वरना ये अवसाद में चली जाएगीं। अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति को अपने जीवन से भी प्यार नहीं रहता है। एक दिन ससुर जी उसके कमरे में आए बोले..अंजली! कमरे से बाहर आओ। मैं तुम्हें बैंक़ ,बिजली,पानी ,राशन आदि का काम सिखा दूंगा।कल से ये सब काम तुम्हें ही करने हैं मैं कुछ भी नहीं करूँग़ा तनिक क्रोधित होकर ससुर जी ने अंजली से कहा। अंजली फिर भी अंधेरे कमरे के आगोश में बैठी रहती। अगले दिन ससुर अंजली के कमरे में आए  और आग्नेय नेत्रों से बोले…अंजली! कमरे से बाहर निकलो, किसी काम में अपना दिल लगाओ …”राजवीर मरा है, तुम तो अभी जिन्दा हो” तुम्हें अब बाहर निकलना होगा। तुम्हारा इस तरह गुमसुम रहना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आता। अपने आग्नेय नेत्रों  फिर बोले ….”या फिर ऐसा करो तुम कोई फ्लैट किराए पर ले लो वहां शिफ्ट हो जाओ ,या फिर मुझे एक फ्लैट में शिफ्ट कर दो” तुम कहीं नौकरी ढूढ़ लो। M.Sc, B. Ed हो।कहीं स्कूल में नौकरी  मिल जाएगी। ससुर जी के आक्रोश को देखकर अंजली शांत हो गई।थोड़ी देर में साहस बटोर कर पूछने लगी….पापा जी!  क्या आपको राजवीर की याद नहीं आती। ससुरजी बोले…”अंजली! किसी की यादों के सहारे जिन्दगी नहीं चलती। मरने वालों के साथ मरा नहीं जाता” जिस दिन राजवीर ने फौज की नौकरी शुरू की थी उसी दिन से मैं यह दिन देखने को तैयार था।

                    कुछ दिनों बाद राजवीर के मित्र के प्रोत्साहन  से अंजली ने सरकारी स्कूल के लिए आवेदन किया। लिखित और मौखिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उसे एक सरकारी स्कूल में नौकरी मिल गई परन्तु पोस्टिंग जयपुर में मिली।वहां फ्लैट लेकर अकेली रहने लगी। उसे नौकरी द्वारा जीने का एक मकसद मिल गया था। अब वह अवसाद से निकल चुकी थी ।आज जयपुर से ही ससुर जी के देहावसान की खबर सुनकर दिल्ली जा रही थी।

                     दिल्ली में तेरह दिन बिताने के बाद दिवंगत आत्मा की शांति के लिए यथोचित पिण्डदान करके अंजली जयपुर वापस जाना चाहती थी।तभी शाम को उसके चचेरे भाई ने कुछ कागज लाकर अंजली को दिए। प्रोपर्टी के कागज़ के साथ साथ ससुरजी का एक खत जो इस प्रकार था…

अंजली बेटी! मैं अपनी सारी जायदाद, चल ,अचल सम्पत्ति तुम्हारे नाम करता हूँ। बेटे को खोने के बाद तुम्हें खोना नहीं चाहता था। मैं चाहता था कि तुम राजवीर की यादों से निकलो। किसी काम में व्यस्त हो जाओ। तुम स्वस्थ रहो। अंधेरों में रहकर कहीं अवसाद में न चली जाओं ,इसी कारण मैं आक्रोश में आकर तुमसे कटु वचन कहता था। मैंने ही राजवीर के मित्र को तुम्हें नौकरी के लिए प्रोत्साहित करने को कहा था। मैं जानता था मैं आज हूं कल नहीं रहूंग़ा। मैं चाहता था कि तुम दुःख़ के गलियारों को छोड़ सुख की दुनियां में जिओ। कोई योग्य जीवन साथी मिले तो उसका हाथ थाम लेगा। मेरे आक्रोश को अन्यथा मत लेना…. पत्र पढ़कर अंजनी के नेत्रों से अविरल अश्रु धारा बह निकली….

स्व रचित मौलिक रचना 

सरोज माहेश्वरी पुणे ( महाराष्ट्र) 

#आक्रोश

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